Table of content:
1. कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
2. जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ
3. जाग तुझको दूर जाना कविता
4. जाग तुझको दूर जाना कविता प्रश्न अभ्यास
5. क्लास 11 अंतरा भाग 1 सभी कविताएं
जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)
कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा, इंदौर में हुई। इनका विवाह बारह वर्ष की आयु मे हो गया था।
प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया।
इनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं– निहार, रश्मि, नीरजा, संध्या गीत, यामा और दीप शिखा है। महादेवी वर्मा ने भारतीय समाज में स्त्री जीवन के बारे में वर्तमान, अतीत और भविष्य सबका मूल्यांकन किया है। प्रस्तुत काव्यांश दीप शिखा पाठ्य पुस्तक से उद्धृत की गई है, सब आँखों के आंसू उजले कविता में प्रकृति की उस मनोरम दृश्य की चर्चा की गई है जो जीवन का सत्य है और मनुष्य को हर संभव लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करता है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ – Jaag Tujhko Door Jaana Hai Poem Summary in Hindi
ये महादेवी वर्मा का एक प्रेरक गीत है इस गीत में महादेवी वर्मा खुद को मोटीवेट करती हुई कहती है कि आज तुम इतने आलस्य में क्यों है, क्यों व्यर्थ के कामों में उलझी हुई हो। फालतू व्यवस्थाओं और आलस्य से खुद को जगाओ क्योंकि अभी तुम्हें जिंदगी में काफी कुछ करना है, अभी तुम्हें अपनी जिंदगी में काफी दूर जाना है।
चाहे कुछ भी हो जाये तुमे बिना किसी बात से परेशान हुए हमेशा अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहना है फिर चाहे भले ही हिमालय पर्वत अपनी जगह से हिलने लगे या आसमानों से आँसुओं की बारिश होने लगे या फिर आकाश में घना अंधेरा हो जाये और सिवाय अंधकार के कुछ भी दिखाई ना दे। चाहे कुछ भी हो जाये तुम्हें निरंतर आगे बढ़ते रहना है। चाहे बिजली की चमक से भयंकर तूफान आ जाये या भयंकर तूफान आने की वजह से मार्ग भी दिखाई ना दे।
लेकिन तुझे बिना किसी बात की परवाह करते हुए आगे बढ़ते रहना है। निराशा को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है भले ही अपनी इस कोशिश में तुम्हें अपनी जान भी गवानी पड़ जाये। इस दुनिया में कुछ ऐसा करके जाना है कि दुनिया वाले तुम्हें हमेशा याद रखे और तुम्हारे जाने के बाद भी इस दुनिया में तुम्हारी अमिट छाप मौजूद रहें।
महादेवी वर्मा इस कविता में सांसारिक बंधनों के बारे में भी बात करती है। वो कहती है कि क्या सांसारिक मोहमाया के बंधन जो बहुत आसानी से मोम के समान पिघल सकते हैं तेरा रास्ता रोक सकते है। क्या तितलियों के रंगों के जैसे दिखने वाले सांसारिक सुख तुम्हारी राह में रूकावट बन सकते हैं। इस संसार में इसके अलावा भी बहुत कुछ है। ये संसार दुखों से भरा पड़ा है।
क्या इन दुखों के बारे में सोचकर और इन्हें जानकर भी तुम सांसारिक सुखों के बारे में सोच सकती हो। क्या तुम्हारा हृदय समाज की इस व्यथा को दूर करने के लिए तड़प नहीं उठता है। संसार के सभी सुख और आर्कषण तुम्हारी खुद की परछाई के समान है। यदि तुम अपनी परछाई का पीछा करने लग गए तो कभी आगे नही बढ़ पाओगे और तुम्हारा विकास रूक जाएगा। इसलिए बिना डरे, बिना निराश हुए अपनी परछाई को अपने रास्ते की रूकावट मत बनने दो और हमेशा आगे बढ़ते रहो।
वो अपनी इस कविता में आगे कहती है कि तुम्हें अपनी अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। तुम्हारे अंदर काफी साहस है। तुम्हारे अंदर असीम इच्छा शक्ति है जिसके सामने कोई भी सांसारिक आर्कषण ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। लेकिन आज तुम्हें ना जाने क्या हो गया है। आज तुम्हारी इच्छा शक्ति क्यों कमजोर पड़ रही है।
आज क्यों तुम संसार के अत्याचार और उत्पीड़न को भूलकर आलस्य में डूबी हुई हो। ऐसे तो तुम अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाओगी। तुम्हें इस आलस्य को छोड़कर अपने लक्ष्य के बारे में सोचना पड़ेगा।
अभी अपने लक्ष्य को याद करके अपना सफर शुरू कर दो। अपनी मौत से पहले तुम्हें उसे हर हाल में पाना होगा। इसलिए अब निराश होने का वक्त नहीं है। अपने गुजरे हुए कल के बारे में सोचकर निराश होने से कुछ नहीं मिलने वाला। अपने अतीत को भूल जाओ और आगे बढ़ो। उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति होने से पहले रूको मत।
अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले अगर तुम्हारी जान भी चली गई तो ये संसार तुम्हें हमेशा याद रखेगा। दीपक की लौ पर चलने वाला पतंगा मरने के बाद भी दीपक को अमर बना देता है। तुम्हारा रास्ता त्याग और बलिदान का है। तुम्हें जीवन की तमाम कठिनाईयों को पार करते हुए आगे बढ़ते रहना है। अत: अब तुम जागो और आगे बढ़ो अभी तुम्हारी मंजिल काफी दूर है।
जाग तुझको दूर जाना कविता – jaag tujhko door jana poem
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले !
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले ;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया
जागकर विद्युत शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले !
पर तुझे है नाश पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना !
जाग तुझको दूर जाना !
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले ?
पंथ कि बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन ,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल के दल ओस – गीले ?
तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना !
जाग तुझको दूर जाना !
वज्र का उर एक छोटे अश्रु – कण में धो गलाया ,
दे किसे जीवन – सुधा दो घूंट मदिरा मांग लाया !
सो गयी आंधी मलय की वात का उपधान ले क्या ?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया ?
अमरता – सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर मे बसाना ?
जाग तुझको दूर जाना !
कह ना ठंडी सांस में अब भूल वह जलती कहानी ,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी ;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका ,
राख़ क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार – शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना !
जाग तुझको दूर जाना कविता की व्याख्या – jaag tujhko door jana poem explanation in Hindi
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले !
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले ;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया
जागकर विद्युत शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले !
पर तुझे है नाश पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना !
जाग तुझको दूर जाना !
जाग तुझको दूर जाना कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अन्तरा’ पाठ-15 कविता ‘जाग तुझको दूर जाना है’ से ली गयी हैं। इस कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं। कवयित्री हमें यह संदेश दे रही है कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी रुकना नहीं चाहिए।
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री अपने प्राणों को देख कर अत्यंत चिंतित हो उठी हैं। वो अपने प्राणों से कह रही हैं कि – तुम्हारी आँखें तो सदा सजग रहती हैं और अपने प्रिय पथ को सदा ही देखती रहती हैं। किन्तु आज तुम्हारी आँखें आलस से भरी हुई क्यों दिख रही हैं ? आज तुम्हारी दशा इतनी अस्त –व्यस्त क्यों है। तुम आलस का त्याग करो। जागो और अपने लक्ष्य को याद करो।
तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुँचना ही है। संभवतः तुम्हें अपने मार्ग में आने वाली अड़चनों का डर है। किन्तु तुम्हें अपने डर और आलस को दूर करना है और अपने उद्देश्य को पूरा करना है। भले ही आज कभी न डरने वाले हिमालय पर्वत का हृदय काँप उठे या फिर सदा मौन रहने वाला आकाश भी प्रलय के आँसू रो पड़े। या चाहे पूरे आकाश के प्रकाश पर अंधेरा छा जाए और उस अंधकार में सूर्य और चंद्रमा भी विलीन हो जाएँ।
चाहे बिजली के भयानक तूफान से प्रलय आ जाए या सारी दिशाएँ जलमग्न हो जायें। पर तुम निराश न होना एवं उसी ध्वस्त पथ पर अपने सफलता के निशान छोड़ आना। जागो अभी तुम्हारा लक्ष्य बहुत दूर है और तुम्हें उस तक पहुँचना ही है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का विशेष:-
1. चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
2. भाषा सरल, सुबोध और सरस है।
3. इन पंक्तियों में अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार है।
4.तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले ?
पंथ कि बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन ,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल के दल ओस – गीले ?
तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना !
जाग तुझको दूर जाना !
जाग तुझको दूर जाना कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अन्तरा’ पाठ-15 कविता ‘जाग तुझको दूर जाना है’ से ली गयी हैं। इस कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं। कवयित्री हमें सांसारिक मोहमाया से दूर रहने का आग्रह कर रही है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों मे कवयित्री अपने प्राणों को संसार की मोहमाया से दूर रहने का निवेदन कर रही हैं। क्या मोम की तरह पिघलने वाले सांसारिक आकर्षक बंधन तुझे बाँध लेंगे ?
क्या तितलियों के रंगीन पंखों से सुंदर संसार के सुख साधन तुम्हारे लक्ष्य मे बाधक बन जाएंगे ? क्या इस संसार के आकर्षण और मधुर गुनगुन में तुम भूल बैठोगे समाज के दुख और व्यथा को ? क्या इन सांसारिक फूलों पर जो ओस है तुम उसमें इतना डूब जाओगी कि अपने कर्तव्यों को भूला बैठो ? तुम अपनी चाहत की कैद में अपने लक्ष्य से भ्रमित नहीं हो सकती। जागो तुम्हें अपने लक्ष्य को पूरा करना ही है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का विशेष:-
1. चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
2. भाषा सरल, सुबोध और सरस है।
3. इन पंक्तियों में प्रश्न अलंकार है।
4. इन पंक्तियों में मानवीकरण अलंकार है।
वज्र का उर एक छोटे अश्रु – कण में धो गलाया ,
दे किसे जीवन – सुधा दो घूंट मदिरा मांग लाया !
सो गयी आंधी मलय की वात का उपधान ले क्या ?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया ?
अमरता – सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर मे बसाना ?
जाग तुझको दूर जाना !
जाग तुझको दूर जाना कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अन्तरा’ पाठ-15 कविता ‘जाग तुझको दूर जाना है’ से ली गयी हैं। इस कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं। कवयित्री कहती है कि हमें अपनी मृत्यु से पहले ही अपने लक्ष्य को पा लेना चाहिए।
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री अपनी आत्मा को कहती हैं कि तुम तो वज्र के समान कठोर थी और कभी भी आपदाओं से विचलित नहीं हुई फिर आज क्या हुआ ? आज तुम्हारा हृदय एक छोटे से आकर्षण के आँसू से गल कैसे गया? अपने जीवन का अमृत कहाँ छोड़ आई और उसके बदले में मदिरा रूपी विष ले आई।
संसार के रुदन के विरुद्ध जो आँधी तुम्हारे मन में थी क्या वो सो गयी है और उसका स्थान किसी काल्पनिक सुख के मलय ने ले लिया है। तुम अपने उद्येश्य से भ्रमित होती जा रही हो। विश्व में जो अत्याचार रूपी अभिशाप फैला है उसको दूर करने के लक्ष्य की जगह अब आलस्य ने ले ली है। संसार की पीड़ा को देखकर तुझे आलस्य कैसे आ सकता है ? तुम मृत्यु को अपने हृदय में बसाना चाहती हो। मृत्यु से पूर्व तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुँचना ही है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का विशेष:-
1. चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
2. भाषा सरल, सुबोध और सरस है।
3. इन पंक्तियों में प्रश्न अलंकार है।
4.तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
कह ना ठंडी सांस में अब भूल वह जलती कहानी ,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी ;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका ,
राख़ क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार – शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना !
जाग तुझको दूर जाना कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अन्तरा’ पाठ-15 कविता ‘जाग तुझको दूर जाना है’ से ली गयी हैं। इस कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं। कवयित्री का मानना है कि अगर हमें लक्ष्य को पाने के लिए सुख-चैन का त्याग कभी करना भी पड़े तो करना चाहिए।
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री अपनी आत्मा को जगाते हुए कहती हैं कि अब उस पुरानी व्यथा की कहानी को भूल जाओ और ठंडी सांस मत भरो। जब हृदय में आग होगी तब आँखों में आँसू भी होंगे। विरह की आग से ही आँखों में आँसू आते हैं।
जिस प्रकार दीपक से जलने वाला पतंगा राख़ हो जाता है पर दीपक को अमर कर जाता है उसी प्रकार अपने उद्येश्य की प्राप्ति के मार्ग में अगर मृत्यु भी हो जाए तो वो भी विजय के समान है। अपने पथ के कष्ट रूपी अंगारो को सहकर उन पर अपने सुख रूपी नरम कलियाँ बिछाना ही तुम्हारा कर्तव्य है। अतः जाग जाओ और अपने सुखों का त्याग कर अपने पथ पर अग्रसित हो जाओ। तुम्हारा लक्ष्य अभी बहुत दूर है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का विशेष:-
1. चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
2. भाषा सरल, सुबोध और सरस है।
3. तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
क्लास 11 अंतरा भाग 1- Class 11 Hindi Antra Part 1 All Chapter
10. कबीर के पद- कबीर
11. सूरदास के पद- सूरदास
12. हँसी की चोट – देव
13. औरै भाँति- पद्माकर
14. संध्या के बाद- सुमरित्रानन्दन पंत
15. जाग तुझको दूर- महादेवी वर्मा
15. सब आँखों के आँसू उजले
16. नींद उचट जाती है- नरेंद्र शर्मा
17. बादल को घिरते देखा है- नागार्जुन
18. हस्तक्षेप- श्रीकांत वर्मा
19. घर में वापसी- धूमिल
Tags:
jaag tujhko door jaana hai
jaag tujhko door jaana
jaag tujhko door jaana by mahadevi verma
jaag tujhko door jana summary in hindi
jaag tujhko door jaana hai summary in hindi