Sab Aankho Ke Aansu Ujle Poem Summary – Mahadevi Verma

सब आँखों के आँसू उजले कविता- महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)

हेलो! दोस्तों PoemGyan में आपका स्वागत है। इस ब्लॉग में आप पढ़ने वाले हैं:
1. सब आँखों के आँसू उजले कविता
2. सब आँखों के आँसू उजले कविता का भावार्थ
3. सब आँखों के आँसू उजले कविता की व्याख्या
4. सब आँखों के आँसू उजले प्रश्न अभ्यास
5. क्लास 11 अंतरा भाग 1 सभी कविताएं

सब आँखों के आँसू उजले कविता का भावार्थ- Sab Aankho Ke Aansu Ujle Poem Summary in Hindi

कवयित्री इस कविता के पहले छंद में ये आशय स्पष्ट करना चाहती है की सभी के आंसू मन के भावों के समान सत्य है और इसका प्रतीक है l सृष्टी के सभी पदार्थ ईश्वरीय सत्ता से प्रभावित है, इसलिए सभी पदार्थों की त्याग मय भावनाओ से बन करुणा और वेदना भी अंततः जीवन को उज्जवलता प्रदान करती है l सपनों को पूरा करने के लिए मनुष्य को जीवन में आने वाले कठिनाइयों और सुख दुःख का सहाय पूर्वक सामना करना चाहिए l दीपक की तरह जलना तथा फूलों की तरह खिलना आना चाहिए l

कवयित्री दूसरे छंद मे कहना चाहती हैं कि पर्वत और सागर दोनों ही पृथ्वी को जल प्रदान करते हैं मगर फिर भी दोनों अपनी प्राकृतिक स्वभाव नहीं बदलते, सागर का हृदय कभी पत्थर सा कठोर नहीं बनता और पर्वत कठोर तन नहीं बदलता।


कविता के तीसरे छंद में कहा गया है कि हीरे को अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए खंडित होना पड़ता है। सोना को आग में तपना पड़ता है। सोना न कभी टूटकर और हीरा न कभी आग में तपकर अपने आकर्षण और सौन्दर्य को बनाए रख पाते हैं l अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक वस्तु अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार ही अपना कर अपने अनुपम सौन्दर्य और मूल्य बनाएं रख सकती है l

कविता के चौथे छंद में कवयित्री कहना चाहती हैं कि नीलम का आभास देता नीला आकाश और मकरंद अर्थात पन्ना जैसी दिखने वालीं हरी – भरी विस्तृत धरती के द्वारा प्रतीत होता है l दोना अर्थात अंजलि द्वारा प्रतीत होता है, दोना जैसा इस संसार में सभी प्रकार के जीवन पनपते है जो कभी किसी सीप के अंदर पलने वाले मोती की तरह स्वच्छ और सौंदर्य मय है l सम्पूर्ण सृष्टि में एक ही ईश्वर की सत्ता का अंश विधमान है, जो अंग आकाश में बिजली और बादल का रूप धारण कर प्रस्फुटित होता है l

कविता के अंतिम वाक्यांश में कवयित्री कहना चाहती हैं कि जो आकांक्षा ये मेरे भीतर बनतीं और बिगड़ती है, वैसी ही दूसरे प्राणी अपने भीतर महसूस करते हैं, जलते खिलते और बढ़ते हुए इस संसार के सभी जड़ – चेतन पदार्थों में एक ही ईश्वर की सत्ता का प्राण स्पन्दित होता है।

इसका भाव है कि पीड़ा की अनुभूति में सुख के एहसास मे निरंतर आगे बढ़ती हुए सृष्टि की के जीवन संरचना एक ही प्राण मे समाया हुआ है, यही कारण है कि प्रत्येक सपने में एक ही सत्य आभासित होता है l

सब आँखों के आँसू उजले कविता- Sab Aankho Ke Aansu Ujle Poem

सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्‍य पला!
जिसने उसको ज्‍वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किंतु कब दीप खीला कब फूल जला?
वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका उर्मिल नित करूणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?
नभ तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झुम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला?
नीलम मरकत के संपुट दो
जिमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रुप
उसकी आभा स्‍पदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!
संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपने साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने सपने में सत्‍य ढला!

सब आँखों के आँसू उजले कविता की व्याख्या– Sab Aankho Ke Aansu Ujle poem explanation in Hindi

सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्‍य पला!
जिसने उसको ज्‍वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किंतु कब दीप खीला कब फूल जला?

व्याख्या प्रस्तुत काव्य पंक्तियां छायावादोत्तर कवित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित है इस कविता में कवित्री ने प्रकृति के सुंदर सुंदर रूपों का चित्रण किया है जिसमें संपूर्ण यथार्थ व्याप्त है इतना ही नहीं प्रकृति की सुंदरता मनुष्य को ऊंचाइयों तक पहुंचने में किस हद तक मदद करती है इस कविता में वैसे ही जिक्र किया गया है।

प्रकृति मनुष्य की मित्र है जिससे एक बार मनुष्य अगर दोस्ती कर ले तो बस उसका हर सपना साकार आसानी से हो सकता है तो चलिए जानते हैं क्या है इस कविता के प्रथम पंक्ति में कवित्री कहती हैसब आंखों के आंसू उजले अर्थात हमारी आंखों से जो भी आंसू बहती है यह सभी आशु उजाला का प्रतीक है।

यानी एक नई सुबह का प्रतीक है।इतना ही नहीं कवित्री ने हमें यह भी बताने का प्रयास किया है कि हर एक व्यक्ति तभी होता है जब वह उदास होता है या वह बहुत खुश होता है बिना कारण को भी व्यक्ति नहीं रोता है अर्थात जब भी कोई व्यक्ति रोता है तो उसकी आंखों से जो आंसू बहता है वह एक सत्य का प्रतीक होता है।

यहां पर आंसू को सत्य का भी प्रत्येक कवित्री ने बताने का प्रयास किया है।फिर कभी तीन कहती है सब के सपनों में सत्य पला अर्थात हर व्यक्ति सपना देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए वह एक मंजिल निर्धारित करता है जहां तक पहुंचने के लिए वह हर संभव प्रयास भी करता है। यदि मनुष्य चाहे तो अपने हर सपने को साकार कर सकता है और उसके सपने को साकार करने में प्रकृति अहम भूमिका निभाती है मगर मनुष्य प्रकृति की मदद तभी पा सकता है जब वह प्रकृति से दोस्ती करेगा। 

कविता में कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं जिसके माध्यम से कवित्री ने कुछ बताने का प्रयास किया है जैसे जिसने उसको ज्वाला सौंपा यानी कि ईश्वर जिसने एक प्रदीप को एक रोशनी प्रदान किया है जिसके माध्यम से वह संपूर्ण अंधेरे को खत्म करने की शक्ति रखता है ईश्वर ने फूलों में मकरंद अर्थात रस भरा है।जिस कारण फूल हमारे पर्यावरण को सुगंधित करती हैं।

जब फूल की आयु समाप्त हो जाती है तब वह अपनी पंखुरियों के साथ झड़ जाती है।यहां कुल एवं दीपक एक दूसरे के पूरक है दोनों ही पथ प्रदर्शक है मगर दोनों के काम करने का तरीका बिल्कुल ही अलग है इन दोनों का अस्तित्व ही अलग है यह दोनों अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अपना अलग पथ चुनते हैं।एक दीपक कभी खिल नहीं सकता और एक फूल कभी जल नहीं सकता अर्थात दोनों का कार्य अलग है।

शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका उर्मिल नित करूणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?

कठिन शब्द परिधि- चारों ओर का घेरा, उर्मी- लहर, पाषाण- पत्थर, गिरी- पर्वत

व्याख्या कवित्री यहां पर कहते हैं कि धरती पर प्रकृति में पारो के माध्यम से सैकड़ों करोड़ों पानी को प्रवाहित किया है।तारों से निकलने वाले झरने धरती को एक उपहार के रूप में प्राप्त हुए हैं। पहाड़ों ने धरती को उपहार के रूप में झरने प्रदान किए हैं जिससे धरती मैं निवास करने वाले हर प्राणी की प्यास बुझ सके।

वास्तव में पहाड़ अर्थात पत्थर पत्थर दिल के लोग हम अक्सर बातों बातों में कहते हैं क्या रे उसका दिल तो पत्थर है अक्सर पत्थर दिल वाले के हृदय में कोमलता या अच्छाई का भाव नहीं होता मगर यहां पर यह पहाड़ करुणा का सागर है जो सुंदर प्रकृति को झरना प्रदान कर इस प्रकृति की सुंदरता को बनाए रखने में मदद करता है।

पृथ्वी के प्यास को बुझाने का कार्य या प्रकृति योजना यह पर्वत करता है अर्थात यह प्रकृति यह पहाड़ योजना कितना निर्मल है कितना करुणा से भरा है या सब इस बात का प्रतीक है।

वहीं दूसरी ओर सागर की लहरें इस संपूर्ण पृथ्वी को ढेर कर समस्त मानव जाति के समस्त प्राणी की रक्षा कर रहा है अर्थात यह सागर ऐसा करके अपने अंदर मौजूद करना को उजागर करता है।समुंद्र एवं जन नायक दोनों ही प्रकृति के हित में मानस के हित में अपना अहम भूमिका निभा रहा है। प्रकृति के सभी रूप चाहे वह पत्थर होया आंसू यह सभी मानव के हित के लिए बनाए गए हैं।

नभ तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झुम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला?

कठिन शब्दपुलकितप्रसन्न होना, तारक- तारा

व्याख्याकवित्री इन पंक्तियों में स्वर्ण धातु एवं हीरो के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि सभी की प्रकृति अलग-अलग होती है।इन दोनों के माध्यम से कवित्री ने यह बताने का प्रयास किया है कि जिस तरीके से हीरा अपना चमक नहीं बदलता सोना अपना मोल नहीं बदलता ठीक उसी प्रकार से मानव को अपना आचार एवं व्यवहार कभी नहीं बदलना चाहिए।

कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को अपने अंदर मौजूद किसी भी गुण को किसी भी लोगों के कारण नहीं बदलना चाहिए एक मनुष्य जैसा गुण लेकर इस सृष्टि में आया है अपने उस गुण को हमेशा यह कोशिश करना चाहिए कि वह गुण हमेशा बढ़ता रहे उसकी गुणवत्ता में कभी भी कोई कमी ना आए।

सोने को भी चमकने के लिए आंख में तपिश को सहन करना पड़ता है उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर तरीके की चुनौतियों का सामना करना चाहिए ना कि उन चुनौतियों से पीछे हट कर चुपचाप एक कोने में बैठा चाहिए अर्थात आपके जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आए आप बिल्कुल उन कठिनाइयों का डटकर सामना कीजिए और अपने अंदर की स्वभाव को किसी के लिए मत बदलिए।

नीलम मरकत के संपुट दो
जिमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रुप
उसकी आभा स्‍पदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!

व्याख्याजिस तरीके से एक सींप के अंदर मोती का जन्म होता है ठीक उसी प्रकार ऊपर सुनहरे नीले आकाश एवं नीचे पन्ना के समान हरे बिचले घास के मध्य एक मनुष्य जन्म लेता है अर्थात संपूर्ण पृथ्वी के मध्य एक मनुष्य का जीवन यापन होता है इसलिए एक मनुष्य को अपने अंदर के प्राकृतिक गुणों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।

एक मनुष्य को भी उस मोती की तरह हमेशा चमकना चाहिए। जीवन के सारे धड़कन ही जीवन जीने का जरिया है। फिर कवित्री कहती हैं कि आकाश में जब बादल छाया होता है उसके मध्य से भी आकाश से वर्षा होने लगती है। 

अर्थात हर परिस्थिति में खुद को कभी नहीं बदलना चाहिए क्योंकि यह प्रकृति भी अपने आप को कभी नहीं बदल सकती है हमेशा हमें अपनी प्रकृति से सीख लेना ही चाहिए जिस तरह वह अपना स्वभाव किसी और कारण से नहीं बदलते उस तरीके से मनुष्य को भी अपना स्वभाव किसी के लिए बदलना नहीं चाहिए।

संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपने साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने सपने में सत्‍य ढला!

कठिन शब्दसंसृति- सृष्टि

व्याख्याइन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवित्री यह कहना चाहती है कि संपूर्ण सृष्टि के अंदर ही समस्त प्राणियों का निवास होता है। हमारी सृष्टि गतिशील है इस गतिशील सृष्टि का करता एवं धरता दोनों ही ईश्वर है।

संपूर्ण सृष्टि में हमेशा रूप स्वरूप बदलता रहता है इस सृष्टि में कभी वसंत आता है तो कभी फाल्गुन का महीना आता है। हर महीना अपने आप में भिन्न होता है ठीक उसी प्रकार हर मानव भी अपने आप में भिन्न होता है हर मानव अपने गुण अनुसार खुद को ढालने का प्रयास करता है और जो मानव अपने गुण अनुसार अपने जीवन को ढाल लेता है। वही मानव जीवन में सर्वाधिक सफल भी होता है। हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए प्रकृति हम सभी मनुष्य की पथ प्रदर्शक है।

मनुष्य को अपने जीवन में सफल होने के लिए अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अकेला ही प्रयास करना चाहिए जिस तरीके से प्रकृति बिना किसी की मदद के हमेशा आगे बढ़ती रहती हैं पीछे मुड़कर नहीं देखती तो उसी प्रकार एक मनुष्य को भी प्रकृति जैसा बनना चाहिए तभी एक मनुष्य का सपना सच होगा सत्य होगा अटल रहेगा। सपने में सत्य छिपा होता है जो कि सिर्फ परिश्रम के माध्यम से मनुष्य अपने सपने को साकार कर सकता है।

क्लास 11 अंतरा भाग 1- Class 11 Hindi Antra Part 1 All Chapter

10. कबीर के पद- कबीर
11. सूरदास के पद- सूरदास
12. हँसी की चोट – देव
13. औरै भाँति- पद्माकर
14. संध्या के बाद- सुमरित्रानन्दन पंत
15. जाग तुझको दूर- महादेवी वर्मा
15. सब आँखों के आँसू उजले
16. नींद उचट जाती है- नरेंद्र शर्मा
17. बादल को घिरते देखा है- नागार्जुन
18. हस्तक्षेप- श्रीकांत वर्मा
19. घर में वापसी- धूमिल

Tags:
सब आँखों के आँसू उजले व्याख्या 
सब आँखों के आँसू उजले भावार्थ 
सब आँखों के आँसू उजले कविता का अर्थ 
सब आँखों के आँसू उजले Summary 
Sab Aankho Ke Aansu Ujle vyakhya
Sab Aankho Ke Aansu Ujle Summary

Leave a Comment