बादल को घिरते देखा है – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Summary

Table of content:
1. कवि नागार्जुन का जीवन परिचय 
2. बादल को घिरते देखा है कविता का सारांश
3. बादल को घिरते देखा है कविता
4. बादल को घिरते देखा है कविता की व्याख्या
5. बादल को घिरते देखा है प्रश्न अभ्यास 
6. क्लास 11 अंतरा भाग 1 सभी कविताएं

Class 11 Hindi Antra Chapter 17 Badal Ko Ghirte Dekha Hai Poem Summary

बादल को घिरते देखा है क्लास 11 अंतरा पाठ 17 – नागार्जुन

 

कवि नागार्जुन का जीवन परिचय:

बाबा नागार्जुन का जन्म बिहार के तरौनी ज़िले में हुआ था। नागार्जुन जी का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृति पाठशाला तथा उच्च शिक्षा वाराणसी और कोलकाता में हुई। इनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं – युगधारा, पथराई आंखें, तालाब की मछलियां, सतरंगे पंखों वाली, तुमने कहा था, रत्नगर्भा, पुरानी जूतियों का कोरस, हज़ार-हज़ार बांहों वाली आदि।
इनके द्वारा लिखे गए उपन्यासों का नाम है- बलचनामा, जमनिया का बाबा, कुंभी पाक, उग्रतारा, रतिनाथ की चाची, वरुण के बेटे आदि।
विलक्षण प्रतिभा के धनी नागार्जुन को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। जो कुछ इस प्रकार हैं–
1. साहित्य अकादमी पुरस्कार
2. भारत भारती पुरस्कार
3. मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार
4. राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
5. अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान आदि।

कवि नागार्जुन के लिखने का अंदाज़ ही कुछ अलग था। वे अपनी लेखनी में साधारण लोगों के दुखों को जगह देते थे। समाज के यथार्थ को अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त करते थे। शायद यही कारण है कि इनको ज़मीनी कलाकार भी कहा जाता था। वे मनुष्य के दर्द को महसूस करते थे एवं उनकी व्यथा को अपनी लेखनी में स्थान देते थे। बाबा अपने पाठकों को समाज की असलियत से भी परिचित करवाते थे।
बाबा नागार्जुन न सिर्फ हिंदी भाषा में लिखा करते थे, बल्कि अरबी, फारसी, बांग्ला, संस्कृत एवं मैथिली भाषा में भी लिखा करते थे। वे बहु भाषा प्रेमी थे और बहु भाषा में ही इन्होंने कविताएं लिखी हैं, उपन्यास लिखे हैं।


बादल को घिरते देखा है कविता का सारांश – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Summary

कवि नागार्जुन घूमने-फिरने के शौकीन थे। जहां-जहां वे जाते थे, उस स्थान पर मन खोलकर घूमते थे एवं अपने भ्रमण के अनुभवों को अपनी कविता में स्थान देते थे। बाबा नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हिंदुस्तान के हर एक स्थान में घूमकर आनंद लिया है। इसके अलावा वे विदेशों में भी भ्रमण कर चुके हैं। नेपाल, भूटान एवं म्यांमार इनमें से प्रमुख हैं।
इस तरह, एक बार वे यात्रा करते-करते हिमालय प्रदेश में पहुंच गए। वहां की वादियां उन्हें बहुत भा गईं और उस पर ही कवि ने बादल को घिरते देखा है कविता लिख डाली।

बादल को घिरते देखा है कविता – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Poem

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।

छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बडी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर था
एक दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

दुर्गम बरफ़ानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठनेवाले
निज के ही उन्मादक परिमल–
के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मॄग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

शत-शत निर्झर-निर्झरणी-कल
मुखरित देवदारु कानन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघढ़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपदी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखोंवाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

बादल को घिरते देखा है कविता की व्याख्या – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Line by Line Explanation

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।

छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग:  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि ने हिमालय की चोटियों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ: बादल को घिरते देखा है कविता के इस प्रथम छंद में कवि ने हिमालय की चोटियों की व्याख्या की है। किस तरीके से हिमालय की चोटियां बर्फ की सफेद चादर से ढकी रहती हैं और इतनी सुंदर लगती हैं कि उन्हें देखने वाले एक पल भी अपनी पलके नहीं झपकते हैं।

कवि हिमालय की चोटियों के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि हिमालय की चोटियां धूप के कारण बहुत ही ज्यादा उज्ज्वल नजर आती हैं। बर्फ के कारण वे सुंदर दिखती हैं। इतना ही नहीं, ओस की बूंदें कवि को छोटे-छोटे मोतियों के समान लगती हैं।

जब ये छोटी-छोटी ओस की बूंदें कमल के फूलों पर गिरती हैं, तो पूरे कमल के फूल का सौन्दर्य ही बदल जाता है। कवि ने इन सभी दृश्यों का मन खोलकर आनंद लिया है और उसी आनंद को कवि ने इस कविता के माध्यम से व्यक्त किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-

1. छोटे-छोटे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

3. भाषा सहज और सरल है।

4. कवि ने प्रकृति का सुुंदर वर्णन किया है।

तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बडी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग:  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि ने बादल के घिरने के साथ-साथ झीलों, नदियों और तालाबों का भी वर्णन किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ- कवि ने हिमालय प्रदेश में बादलों के घिरने का वर्णन तो किया ही है। साथ ही, वहां के जल में रहने वाले हंसों के विषय में भी बताया है। किस तरह हंस तालाबों में तैरते हैं, उनके तैरने पर तालाब का सौंदर्य बिल्कुल बदल जाता है।

जब भी लोग तालाब की ओर देखते हैं, तो तालाब में मौजूद हंस, लोगों की आंखों का आकर्षण बन जाते हैं। कहा जाता है कि हिमालय की झील और तालाब के ‌पानी में ठंडक होती है। हिमालय से बहने वाली नदियां भी बहुत ठंडी होती हैं। यही कारण है कि यहां पर ठंडक पाने के लिए एवं गर्मी से बचने के लिए हंस रहते हैं।

एक बार जो हंस हिमालय पर्वत की झील एवं नदियों में पहुंच जाते हैं, वे वापस कहीं और जाने का मन नहीं बनाते। ऐसा इसलिए, क्योंकि हिमालय की सुंदरता न सिर्फ मनुष्यों को, बल्कि हंसों को भी पसंद आती है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-  

1. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

2. भाषा सरल और सहज प्रभावशाली है।

ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर था
एक दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि ने वसंत ऋतु का बहुत ही अद्भुत वर्णन किया है। और साथ ही चकवा-चकवी के मिलाप का भी दृश्य प्रस्तुत किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ- बादल को घिरते देखा है कविता के इस भाग में कवि ने वसंत ऋतु का वर्णन किया है। सुबह की सुंदर बेला है, वायु धीरे-धीरे मंद गति से बह रही है, सूरज अपनी लालिमा से संपूर्ण पृथ्वी पर प्रकाश की नई किरणें बिखेर रहा है। वहीं कवि को दूसरी ओर चकवा एवं चकवी के जोड़े दिखाई दिए।

इन्हें यह अभिशाप मिला हुआ है कि ये दोनों रात्रि में एक साथ समय नहीं बिता सकते। इस कारण ये दोनों रात्रि में अलग-अलग रहते हैं और दूसरे दिन सुबह सूर्य के उगने के बाद मिलते हैं। एक-दूसरे को एकटक देखते हैं, मानो एक रात्रि के बाद नहीं, बल्कि कई वर्षों बाद मिल रहे हों।

इस तरीके से एक-दूसरे से मिलाप करते हुए, अपने वियोग की स्थिति को खत्म करते हैं एवं खुशी-खुशी समय बिताते हैं।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-

1. अलग-अलग, मंद-मंद में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

3. तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।

4. कवि वसंत ऋतु का वर्णन किया है। 

दुर्गम बरफ़ानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठनेवाले
निज के ही उन्मादक परिमल–
के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मॄग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग:  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि ने एक मृग का वर्णन किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ- कवि हिमालय की चोटियों के नीचे खड़े हैं। कविता के इस अंश में वे उस युवा कस्तूरी मृग का वर्णन कर रहे हैं, जिसके शरीर से ही एक अच्छी सुगंध आ रही है। मगर वह अपने शरीर की इस सुगंध से ही अनजान है और पहाड़ों के बीच भागता हुआ उस सुगंध को खोज रहा है।

उसे पता ही नहीं कि ये सुगंध उसके अपने शरीर से निकल रही है। वह संपूर्ण हिमालय में इधर-उधर भटक रहा है। अंत में मृग चिढ़ जाता है और कवि को मृग को चिढ़ा हुआ देखकर बहुत ही अच्छा लग रहा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-

1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

2. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

3. भाषा सहज और सरल है।

कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग:  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि कुबेर देव की अलका नगरी को ढूंढने के वर्णन कर रहे हैं।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ- कवि को हिमालय पर्वत का आंगन बहुत ही पसंद आया है। वे यहां पर भगवान कुबेर देव की अलका नगरी को ढूंढने का प्रयास कर रहे थे। मगर उनको भगवान कुबेर देव की अलका नगरी नहीं दिखी। यहां तक कि उन्होंने कालिदास द्वारा मेघदूत कविता में बताई गई आकाश गंगा नदी को भी ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन कवि असफल हुए।

कवि को एक अनोखी चीज बहुत अच्छे-से नज़र आई – कैलाश पर्वत की ऊंचाई से बादलों को एक साथ टकराते हुए एवं गरजते हुए कवि ने बहुत ध्यानपूर्वक देखा था।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-

1. गरज-गरज में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

3. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

4. सरल और सहज भाषा का प्रयोग हुआ है।

शत-शत निर्झर-निर्झरणी-कल
मुखरित देवदारु कानन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघढ़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपदी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखोंवाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ पाठ-17 कविता- ‘बादल को घिरते देखा है’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता नागार्जुन जी हैं। कवि ने हिमालय के प्रकृति का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का भावार्थ- बादल को घिरते देखा है कविता के इस अंतिम छंद में कवि ने हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि ने यहां देवदारु पेड़ के घने जंगलों और झरनों ‌का वर्णन किया है। कवि हिमालय पर्वत में रहने वाले लोगों के विषय में कहते हैं कि यहां के लोग हमेशा सुंदर दिखते हैं एवं हमेशा सज सँवरकर रहते हैं।

यहां की औरतें बालों में गजरा लगाए फिरती हैं एवं किन्नर लोग मदिरा पीकर मस्त रहते हैं। किन्नर लोग हमेशा झूमते-गाते हैं, सुर-ताल-छंद खुद ही बनाकर गाते हैं। कवि ने यह सब अपनी आंखों से देखा और उन बातों को यहां व्यक्त किया।

‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का विशेष:-

1. अपने-अपने, शत-शत में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. इन पंक्तियों में अनुुुुुुुप्रास अलंकार है।

3. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

क्लास 11 अंतरा भाग 1- Class 11 Hindi Antra Part 1 All Chapter

10. कबीर के पद- कबीर
11. सूरदास के पद- सूरदास
12. हँसी की चोट – देव
13. औरै भाँति- पद्माकर
14. संध्या के बाद- सुमरित्रानन्दन पंत
15. जाग तुझको दूर- महादेवी वर्मा
15. सब आँखों के आँसू उजले
16. नींद उचट जाती है- नरेंद्र शर्मा
17. बादल को घिरते देखा है- नागार्जुन
18. हस्तक्षेप- श्रीकांत वर्मा
19. घर में वापसी- धूमिल

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