Table of content:
1. पंडित नरेन्द्र शर्मा का जीवन परिचय
2. नींद उचट जाती है कविता का सारांश
3. नींद उचट जाती है कविता
4. नींद उचट जाती है कविता की व्याख्या
5. नींद उचट जाती है प्रश्न अभ्यास
6. क्लास 11 अंतरा भाग 1 सभी कविताएं
Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Neend Uchat Jati Hai Poem Summary
नींद उचट जाती है क्लास 11 अंतरा पाठ 16 – नरेन्द्र शर्मा
कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा का जीवन परिचय:-
पंडित नरेंद्र शर्मा हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं सम्पादक थे। पं. नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी, 1923 में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। इन्होंने फिल्म जगत में भी लेखन कार्य किया ।
नरेंद्र जी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में अधिकारी भी रहे। बंबई आने के बाद इन्होंने बॉम्बे टाकीज़ के लिए फिल्मी गीत भी लिखे। बाद में ये आकाशवाणी से भी जुड़ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं– ‘प्रभात फेरी‘ , ‘पलाश वन‘ , ‘प्रीति कथा‘ , ‘कामिनी‘ , ‘मिट्टी के फूल‘ , ‘हंसमाला‘ ,’ रक्त चंदन‘ , ‘कदली वन‘ , ‘द्रौपदी‘ , ‘प्यासा निर्झर‘ , ‘उत्तर जय‘ , आदि अनेक रचनाएं लिखी।
इन्होंने आम जन जीवन से जुड़ी कहानियां एवं कविताएं लिखी। समाज की बुराइयों, विषमताओं को इन्होंने अपनी कविताओं में लिखकर व्यक्त किया है। इन्होंने छायावादी एवं प्रगतिवादी दोनों प्रकार की ही कविताएं लिखी हैं।
पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की भाषा सरल, सहज व मधुर है। इनकी भाषा में प्रेरक तत्व की प्रधानता मिलती हैं जो पढ़ने वालों को दृढ़ निश्चयी बनाती है। इनकी भाषा में एक ओर जहां कोमलता दिखाई पड़ती है वहीं दूसरी ओर कठोरता भी दिखाई देती है। इस महान कवि की मृत्यु 11 फ़रवरी 1984 को हृदय की गति रुकने के कारण हुई।
नींद उचट जाती है कविता का सारांश – Neend Uchat Jati Hai Poem Summary
कवि नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ एक व्यक्ति और समाज के भीतर अवसाद बेचैनी, निराशा, सन्नाटा, चिंताओं के भावों की कविता है। यहां कवि ने इन सभी नकारात्मक भावों को प्रकट करने के लिए रात, अंधेरे, नींद न आना आदि शब्दों का प्रयोग किया है।
कवि ने कविता में जिस अंधेरे की बात की है वह दो स्तर पर है। एक व्यक्ति के स्तर पर और दूसरा समाज के स्तर पर। व्यक्ति पर यह अंधेरा, उसकी निराशा, चिन्ता, बुरे सपने, बेचैनी आदि के रूप में है।
जो समाज के अंधेरे के रूप में प्रतिबिंबित हुई है। अर्थात् समाज में अंधेरे के रूप में विषमता, चेतना व जागृति का अभाव, विकास न होना, शोषण, छल, कपट विद्यमान है जिसके फलस्वरूप समझ में विसंगति बढ़ती जा रही है। और इन्हीं विसंगति के परिणामस्वरूप समाज के व्यक्ति की नींद उचट जाती है।
कवि – जीवन में दोनों स्तर के अंधेरे को दूर करने की बात करता है। वह चाहता है कि समाज में जागृति, चेतना फैले और सभी के जीवन से अंधेरा दूर हो जाए।
नींद उचट जाती है कविता – Neend Uchat Jati Hai Poem
जब-तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?
देख-देख दुःस्वप्न भयंकर,
चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर;
पर भीतर के दुःस्वप्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिंता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब-जब श्वान शृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निंद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंद्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
नींद उचट जाती है कविता की व्याख्या – Neend Uchat Jati Hai Poem Line by Line Explanation
जब-तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?
Neend Uchat Jati Hai भावार्थ – कविता में एक ऐसी बात का कवि ने वर्णन किया है और कहां है कि जब अचानक बुरे और डरावने सपने देखने के कारण कवि की नींद खराब हो जाती है तब नींद खराब होने के बाद वह रात लंबी हो जाती है अर्थात खत्म ही नहीं होती है।
देख-देख दुःस्वप्न भयंकर,
चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर;
पर भीतर के दुःस्वप्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
Neend Uchat Jati Hai भावार्थ – नींद उचट जाने के बाद कवि यह अनुभव करते है कि हृदय में जो डर है उससे अधिक भयानक बाहर का घना अंधेरा है। बार-बार ऐसा लगता है मानो सुबह होने को है मगर हर बार, यह आभास ही होता है। बाहर के अंधेरे को देखकर मन में दुष्चिंता घर कर लेती है, कुत्ते, गीदड़ की आवाज वातावरण को और डरावना बना रही है।
देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिंता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब-जब श्वान शृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
Neend Uchat Jati Hai भावार्थ – सामाजिक व्यवस्था व कुरिति के बारे में सोच- सोच कर कवि फिर सोना चाहता है। परन्तु जब तक धरती पर अंधेरा व्याप्त है उन्हें न तो उस करवट नींद आ रही है, न ही दूसरी करवट में नींद आ रही है। अर्थात् कवि के अंदर बहुत बेचैनी है।
मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निंद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
Neend Uchat Jati Hai भावार्थ – वह रात भर करवटें बदलते हैं, किन्तु अंधेरा नहीं बदलता है अर्थात् सुबह ही नहीं हो रही थी। लगातार जागे रहने से कवि के मन में एक पागलपन–सा छा गया है। समय रुक गया है ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। सिर्फ इसी आशा में सांस अटकी है कवि कि बस जल्दी से सुबह हो जाएं।
करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंद्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
Neend Uchat Jati Hai भावार्थ – कवि रात भर जागने को जागरण जागृति नहीं मानते अपितु इसे नींद न आने की समस्या कहते है उनका मानना है कि जब तक धरती पर अंधेरा व्याप्त है प्रकाश इसके चारों तरफ चक्कर काट रहा है। इसी प्रकार कवि के अंतर की आंखों के आगे चट्टान (अंधेरे) की है। अर्थात् समाज का अंधेरा अभी दूर नहीं हुआ है।
क्लास 11 अंतरा भाग 1- Class 11 Hindi Antra Part 1 All Chapter
10. कबीर के पद- कबीर
11. सूरदास के पद- सूरदास
12. हँसी की चोट – देव
13. औरै भाँति- पद्माकर
14. संध्या के बाद- सुमरित्रानन्दन पंत
15. जाग तुझको दूर- महादेवी वर्मा
15. सब आँखों के आँसू उजले
16. नींद उचट जाती है- नरेंद्र शर्मा
17. बादल को घिरते देखा है- नागार्जुन
18. हस्तक्षेप- श्रीकांत वर्मा
19. घर में वापसी- धूमिल
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