सवैया कविता अर्थ सहित-Hindi Kshitij Class 10 Summary

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 Summary

सवैया एवं कवित्त – देव

यहाँ हम पढ़ने वाले हैं 

  1. देव का जीवन परिचय – Kavi Dev Ka Jeevan Parichay
  2. सवैया कविता
  3. कवित्त कविता 
  4. सवैया कविता अर्थ सहित- Hindi Kshitij Class 10 Explanation 
  5. सवैया एवं कवित्त कविता का सारांश
  6. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3
  7. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
  8. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer

1. देव का जीवन परिचय – Kavi Dev Ka Jeevan Parichay : हिंदी की ब्रजभाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है। उनका पूरा नाम देवदत्त था। उनका जन्म इटावा (उ.प्र.) में हुआ था। यद्यपि ये प्रतिभा में बिहारी, भूषण, मतिराम आदि समकालीन कवियों से कम नहीं, वरन् कुछ बढ़कर ही सिद्ध होते हैं, फिर भी इनका किसी विशिष्ट राजदरबार से संबंध न होने के कारण इनकी वैसी ख्याति और प्रसिद्धि नहीं हुई। इनके काव्य ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। उनमें से रसविलास, भावविलास, भवानी विलास और काव्यरसायन प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं।

देव रीतिकालीन कवि हैं। रीतिकाल का सम्बन्ध दरबारों व आश्रयदाताओं से बहुत ज्यादा था, जिस कारण उनकी कविताओं में दरबारी व राजसीय संस्कृति का प्रमुखता से वर्णन है। देव ने इसके अलावा प्राकृतिक सौंदर्य को भी अपनी कविताओं में प्रमुखता से शामिल किया। शब्दों की आवृत्ति का प्रयोग कर उन्होंने सुन्दर ध्वनि-चित्र भी प्रस्तुत किये हैं। अपनी रचनाओं में वे अलंकारों का भरपूर प्रयोग करते थे।


2. सवैया
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये  हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

3. कवित्त (1)
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

कवित्त (2)
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

4. सवैया कविता अर्थ सहित- Hindi Kshitij Class 10 Summary

पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये  हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

सवैया कविता प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-3 कविता ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता देव जी हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है।

सवैया कविता भावार्थ :- प्रस्तुत सवैया में कवि देव ने कृष्ण के रूप-सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है। उन्होंने श्रृंगार के माध्यम से श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का गुणगान किया है। उन्होंने कृष्ण को दूल्हे के रूप में बताया है। कवि के अनुसार, श्री कृष्ण के पैरों में बजती हुई पायल बहुत ही मधुर ध्वनि पैदा कर रही हैं। उनकी कमर में बंधी हुई करघनी जब हिलती है, तो उससे निकलने वाली किंकिन की आवाज़ भी बड़ी ही सुरीली लगती है।

उनके सांवले शरीर पर पीले रंग का वस्त्र बहुत ही जँच रहा है। उनके गले में पड़ी पुष्पों की माला देखते ही बनती है। श्री कृष्ण के माथे पर मुकुट है और उनके चाँद रूपी मुख से मंद मुस्कान मानो चांदनी के समान फैल रही है। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें चंचलता से भरी हुई हैं, जो उनके मुखमंडल पर चार चाँद लगा रही हैं। कवि के अनुसार बृज-दूल्हे (श्री कृष्ण) इस संसार रूपी मंदिर में किसी दीये की भाँति प्रज्वलित हैं।

सवैया कविता विशेष:-

1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

2. मुखचंद, जग-मंदिर-दीपक में रूपक अलंकार है।

3. ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

4. सवैया छंद है।

5. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

सवैया कविता प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-3 कविता ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता देव जी हैं। कवि ने वसन्त ऋतु का सुंदर वर्णन किया है।

सवैया कविता भावार्थ :- प्रस्तुत कवित्त में कवि ने वसंत को एक नव शिशु के रूप में दिखाया गया है। उनके अनुसार पेड़ की डालियां वसंत रूपी शिशु के लिए पालने का काम कर रही हैं। वृक्ष की पत्तियाँ पालने में बिछौने की तरह बिछी हुई हैं। फूलों से लदे हुए गुच्छे बालक के लिए एक ढीले-ढाले वस्त्र के रूप में प्रतीत हो रहे हैं। वसंत रूपी बालक के पालने को पवन बीच-बीच में आकर झूला रही है। तोता एवं मैना उससे बातें करके उसे हंसा रहे हैं, उसका दिल बहला रहे हैं।

कोयल भी आ-आकर वसंत-रूपी शिशु से बातें करती है तथा तालियां बजा-बजाकर उसे प्रसन्न करने की कोशिश कर रही है। पुष्प से लदी हुई लतायें किसी साड़ी की तरह दिख रही हैं, जो ऐसी प्रतीत हो रही है कि किसी नायिका ने उसे सिर तक पहना हुआ है। उन पुष्पों से पराग के कण कुछ इस तरह उड़ रहे हैं, मानो घर की बड़ी औरत किसी बच्चे की नजर उतार रही हों। कामदेव के बालक वसंत को रोज सुबह गुलाब चुटकी बजाकर जगाते हैं।

सवैया कविता विशेष:-

1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

2. सुमन झिंगूला, कंजकली नायिका लतान,  मदन महीप में रूपक अलंकार है।

3. कवित्त छंद है।

4. ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

5.पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

सवैया कविता प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-3 कविता ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता देव जी हैं। कवि ने चाँदनी रात का सुंदर वर्णन किया है।

सवैया कविता भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने चांदनी रात की सुंदरता का वर्णन बड़े ही स्वाभाविक रूप से किया है। रात के समय आकाश में चंद्रमा पूरी तरह से खिला हुआ है और उसकी रोशनी चारों तरफ ऐसी फैली हुई है, जैसे किसी पारदर्शी पत्थर से निकल कर सूर्य की किरणें चारों तरफ फैल जाती हैं। ये श्वेत रोशनी की शिलायें ऐसी प्रतीत हो रही हैं, मानो इनके खम्भों से एक चांदी का महल बना हुआ हो। आकाश में चाँद की रोशनी इस तरह फैली हुई है, मानो दही का समुद्र तेजी से अपने उफान पर हो।

यह चांदी का महल पूरी तरह से पारदर्शी है, जिसमें कोई दीवारें नहीं हैं। आँगन में सफ़ेद रंग के दूध का फेना पूरी ओर फैला हुआ है, जिसमें तारे इस तरह जगमगा रहें हैं, जैसे सखियाँ सजकर एक-दूसरे पर मुस्करा रही हों। चारों तरफ फैली इस रोशनी में मोतियों को भी चमक मिल गई है और बेले के फूलों को भी मानो रस मिल गया हो। सफ़ेद रोशनी के कारण पूरा आकाश एक दर्पण की भाँति प्रतीत हो रहा है। जिसके मध्य में चाँद इस तरह जगमगा रहा है, मानो सज-धज कर राधा अपनी सखियों के बीच खड़ी हों।

सवैया कविता विशेष:-

1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।

2. ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

3. कवित्त छंद है।

4. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

5.सवैया एवं कवित्त कविता का सारांश :

प्रथम कवित्त में वसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है। उसे कवि ने एक नन्हे बालक की संज्ञा दी है। वसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। वसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं, जिससे उसकी शोभा और भी ज्यादा बढ़ गई है। पवन के झोंके उसे झूला रहे हैं। मोर और तोते उसके साथ बातें कर रहे हैं। कोयल भी उसके साथ बातें करके उसका मन बहला रही है। ये सभी बीच-बीच में तालियाँ भी बजा रहे हैं। फूलों से पराग की खुशबू ऐसे आ रही है, जैसे कि घर की बूढ़ी औरतें राई और नमक से बच्चे की नजर उतार रही हों। वसंत तो कामदेव के सुपुत्र हैं, जिन्हें सुबह-सुबह गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं।

दूसरे कवित्त में कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता का बखान किया है। चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है, जैसे किसी स्फटिक मणि के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो। चारों ओर सफेद रोशनी ऐसी लग रही है, जैसे कि दही का समंदर बह रहा हो। इस प्रकाश में दूर-दूर तक सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे फर्श पर दूध का झाग फैल गया है। उस फेने में तारे ऐसे लग रहे हैं, जैसे कि तरुणाई की अवस्था वाली लड़कियाँ सामने खड़ी हों। ऐसा लगता है कि मोतियों को चमक मिल गई है या जैसे बेले के फूल को रस मिल गया है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है, जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है। इन सबके बीच पूर्णिमा का चाँद ऐसे लग रहा है, जैसे आसमान रूपी दर्पण में राधा का प्रतिबिंब दिख रहा हो।

प्रस्तुत सवैये में कवि देव ने श्री कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों की पायल मधुर धुन सुना रही हैं। कृष्ण ने कमर में करघनी पहनी है। जिससे उत्पन्न होने वाली धुन अत्यधिक मधुर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है और उनके गले में ‘बनमाल’ अर्थात एक प्रकार के फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है। राजसी मुकुट के नीचे उनके चंचल नेत्र सुशोभित हो रहे हैं। उनके मुख को कवि देव ने चंद्रमा की उपमा दी है, जो कि उस अलौकिक आभा का प्रमाण है। श्रीकृष्ण के रूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वे संसार-रूपी मंदिर के दीपक के सामान प्रकाशित हैं। वे समस्त जगत को अपने ज्ञान की रौशनी से उज्जवल कर रहे हैं।

6. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3

7. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
Chapter 1: सूरदास के पद- सूरदास

Chapter 2: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद- तुलसीदास
Chapter 3: सवैया एवं कवित्त – देव
Chapter 4: आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
Chapter 5: उत्साह एवं अट नहीं रही है – निराला
Chapter 6: यह दंतुरित मुसकान– नागार्जुन
Chapter 7: छाया मत छूना- गिरिजाकुमार माथुर
Chapter 8: कन्यादान कविता – ऋतुराज
Chapter 9: संगतकार – मंगलेश डबराल

8. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9

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