कन्यादान कविता – ऋतुराज (Kanyadan Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 Summary)

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 Summary

कन्यादान- ऋतुराज

यहां हम पढ़ने वाले हैं

  1. ऋतुराज का जीवन परिचय
  2. कन्यादान कविता का सार- Kanyadan Class 10 Summary
  3. कन्यादान- ऋतुराज (Kanyadan)
  4. Kanyadan Class 10 Summary in Hindi
  5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 Kanyadan
  6. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
  7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer

1. ऋतुराज का जीवन परिचय : कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान के भरतपुर जिले में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेजी-अध्ययन किया। ऋतुराज के अब तक के प्रकाशित काव्य-संग्रहों में ‘पुल पानी में’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सूरत निरत’ तथा ‘लीला अरविंद’ प्रमुख हैं। इन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार शामिल है। उन्होंने अपनी कविताओं में यथार्थ से जुड़े सामाजिक शोषण एवं विडंबनाओं को स्थान दिया। इसी वजह से उनकी काव्य-भाषा लोक जीवन से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।

2. कन्यादान कविता का सार- Kanyadan Class 10 Summary : प्रस्तुत कविता में कवि ऋतुराज ने माँ और बेटी के बीच होने वाली घटना का वर्णन किया है। जब एक माँ अपनी बेटी को शादी के बाद विदा करती है, तो उसे ऐसा लगता है, मानो उसके जीवन की सारी जमा पूँजी उससे दूर चली जा रही है। फिर उनका पुत्री-मोह उन्हें इस बात से भयभीत करता है कि उनकी बेटी नए घर में जा रही है, कहीं उसे कुछ परेशानी ना हो, या उसे कोई अत्याचार न सहना पड़े। इन सबके कारण माँ चिंतित होकर अपनी फूल-सी बेटी को भले-बुरे का पाठ पढ़ाने लग जाती है, जिसे जीवन में आने वाले दुखों का कोई बोध ही नहीं हैं, उसने सिर्फ अभी कुछ खुशियां ही देखी हैं और उन्हीं के सपने सजाए हैं।


अर्थात जब तक किसी लड़की की शादी नहीं होती, तब तक उसे घर में एक बच्ची की तरह बड़े लाड-दुलार से पाला जाता है। परन्तु, विदाई के वक्त अचानक से वह बड़ी लगने लगती है और उसकी माँ उसे सही गलत समझाने में लग जाती है।

3. कन्यादान- ऋतुराज (Kanyadan)

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

4. Kanyadan Class 10 Summary in Hindi

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

कन्यादान कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-8 कविता- ‘कन्यादान’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता ऋतुराज जी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने लड़की का कन्यादान होने के बाद उसकी माँ की मनोदशा का वर्णन किया है।

कन्यादान कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि अपनी लड़की का कन्यादान अर्थात शादी के बाद विदा करते वक्त किसी माता का दुःख बड़ा ही स्वाभाविक होता है। हर माता को यह लगता है कि उसके जीवन की आख़िरी जमा पूँजी भी उससे दूर चली जा रही है। बड़े ही लाड-दुलार से उन्होंने अपनी बेटी को पाल पोसकर बड़ा किया था। आखिर अपनी बेटी के साथ ही तो वे अपने जीवन का सुख-दुःख बाटंती थी। वही तो उनके जीवन की साथी थी। परन्तु अब यह साथी भी उनसे दूर चली जा रही है।

कन्यादान कविता का विशेष :-

1.भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. शादी में लड़की का कन्यादान का वर्णन किया है।

लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

कन्यादान कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-8 कविता- ‘कन्यादान’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता ऋतुराज जी हैं। कवि ने बताया है कि लड़की बड़ी तो हो गई लेकिन उसमें दुनियादारी की समझ नहीं है।

कन्यादान कविता का भावार्थ :- आगे कवि ऋतुराज कहते हैं कि लड़की बड़ी तो हो गई थी, लेकिन पूरी तरह से सयानी नहीं हुई थी, अर्थात दुनियादारी की समझ अभी तक उसमें नहीं आयी थी। उसने अभी तक अपने घर के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। उसे जीवन की जटिलता का सामना नहीं करना पड़ा था। उसका जीवन अभी तक बड़ी सरलता से बीत रहा था। यही कारण है कि उसे ख़ुशियाँ मनाना तो आता था, लेकिन परेशानियों का सामना कैसे किया जाए, ये अभी तक नहीं पता था। अपने घर के बाहर की दुनिया उसके लिए एक धुंधली तस्वीर की तरह थी। जिसे वो कभी ठीक से देख नहीं पाई थी। जब तक कोई व्यक्ति घर के बाहर कदम न रखे, बाहर की दुनिया में वक्त न गुजारे, तब तक उसका संपूर्ण रूप से विकास नहीं हो सकता। इसलिए अभी वह भोली बच्ची केवल सुखों की कल्पना में जी रही थी।

कन्यादान कविता का विशेष :-

1.भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. एक माँ की अपनी बेटी के प्रति चिंता प्रकट हुई है।

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के

कन्यादान कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-8 कविता- ‘कन्यादान’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता ऋतुराज जी हैं। कवि ने बताया है कि एक माँ अपनी बेटी को ससुराल में किस तरह से संभलकर रहने की नसीहत दे रही है।

कन्यादान कविता का भावार्थ :- अपनी इन पंक्तियों में कवि ने उस माँ का वर्णन किया है, जो विदाई के वक्त अपने बेटी को नसीहत दे रही है कि उसे ससुराल में किस तरह रहना है और किस तरह नहीं। सबसे पहले माँ अपनी बेटी को बोलती है कि अपनी सुंदरता पर कभी मत इतराना क्योंकि सांसारिक जीवन को सही तरह से चलाने के लिए, सुंदरता से ज्यादा हमारे गुण काम आते हैं। फिर माँ अपनी बेटी को कहती है कि आग रोटियाँ पकाने के लिए होती है, न की जलने के लिए अर्थात वह अपने बेटी को यह कहना चाह रही हैं कि अपनी जिम्मेदारियों को अवश्य निभाना, परन्तु किसी अत्याचार को मत सहना। उसके बाद माँ कहती है कि वस्त्र-आभूषण के मोह में कभी ना पड़ना, यह केवल एक बंधन है, जिसमें कभी भी नहीं बंधना चाहिए। इसके चक्कर में बसा-बसाया संसार भी उजड़ सकता है।

कन्यादान कविता का विशेष :-

1. भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. ‘और आभूषण’ में अनुप्रास अलंकार है।

माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

कन्यादान कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-8 कविता- ‘कन्यादान’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता ऋतुराज जी हैं। एक माँ अपनी बेटी को कहती है कि तुम कभी भी दूसरों के सामने खुद को निर्बल मत समझना।

कन्यादान कविता का भावार्थ :- इन पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को कह रही है कि अपने आप को किसी के सामने एक दुर्बल कन्या की तरह प्रस्तुत मत करना और न ही अपनी निर्बलता किसी के सामने आने देना। इस संसार में लोग निर्बल के ऊपर ही अत्याचार करते हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि अपने भीतर नारी के सभी गुण बनाए रखना, लेकिन दूसरों के सामने खुद को कभी निर्बल और असहाय मत दिखाना।

कन्यादान कविता का विशेष :-

1.भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. एक माँ अपनी बेटी को दूसरों के सामने निर्बल का होने का संदेश देती है।

5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 Kanyadan

6. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
Chapter 1: सूरदास के पद- सूरदास

Chapter 2: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद- तुलसीदास
Chapter 3: सवैया एवं कवित्त – देव
Chapter 4: आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
Chapter 5: उत्साह एवं अट नहीं रही है – निराला
Chapter 6: यह दंतुरित मुसकान– नागार्जुन
Chapter 7: छाया मत छूना- गिरिजाकुमार माथुर
Chapter 8: कन्यादान कविता – ऋतुराज
Chapter 9: संगतकार – मंगलेश डबराल

7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9

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