Atmakathya Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Summary (आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद)

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Summary

आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद

यहाँ आप पढ़ने वाले हैं

  1. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – Jaishankar Prasad Ka Jeevan Parichay
  2. आत्मकथ्य कविता का सार- Atmakathya Poem Summary in Hindi
  3. आत्मकथ्य  – जयशंकर प्रसाद (Atmakathya- Jaishankar Prasad)
  4. Atmakathya Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Summary Explanation 
  5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Atmakathya
  6. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
  7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer

1. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – Jaishankar Prasad Ka Jeevan Parichay : बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद जी का जन्म वाराणसी में सन् 1889 में हुआ। ये काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में पढ़ने गए। परन्तु विकट परिस्थितियों के कारण इन्हें आठवीं कक्षा में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी इत्यादि का अध्ययन किया। इन्हें छायावाद का प्रवर्तक माना जाता है। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी इन्होंनें साहित्य की रचना की। इन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध एवं कविता आदि सभी की रचना की। इनकी कामायनी छायावाद की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसके लिए इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार दिया गया।

देश के गौरव का गान तथा देशवासियों को राष्ट्रीय गरिमा का ज्ञान कराना इनके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता रही है। इनके काव्य में राष्ट्रीय स्वाभिमान का भाव भरा हुआ था। इनकी रचनाओं में श्रृंगार एवं करुणा रस का सुन्दर प्रयोग मिलता है। इनकी मृत्यु सन् 1937 में हुई।


2. आत्मकथ्य कविता का सार- Atmakathya Poem Summary in Hindi : जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का निवेदन किया, जबकि जयशंकर प्रसाद जी अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते थे। इसीलिए उनके मित्रों के निवेदन का मान रखते हुए, प्रसाद जी ने इस काव्य की रचना की। इस काव्य में उन्होंने जीवन के प्रति अपने अनुभव का वर्णन किया है।

उनके अनुसार यह संसार नश्वर है, क्योंकि प्रत्येक जीवन एक न एक दिन मुरझाई हुई पत्ती-सा टूट कर गिर जाता है। उन्होंने इस काव्य में जीवन के यथार्थ एवं अभाव को दर्शाया है कि किस प्रकार हर आदमी कहीं न कहीं किसी चोट के कारण दुखी है। फिर चाहे वो चोट प्रेमिका का न मिलना हो या फिर मित्रों के द्वारा धोखा खाना हो।

उनके अनुसार उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है, जिससे लोग उनकी आत्मकथा सुनकर वाह-वाही करेंगे। उन्हें तो लगता है कि अगर उन्होंने अपने जीवन का सत्य सबको बताया, तो लोग उनका उपहास उड़ाएंगे और उनके मित्र खुद को दोषी समझेंगे। कवि के अनुसार उनका जीवन सरलता एवं दुर्बलता से भरा हुआ है और उन्होंने जीवन में कोई महान कार्य नहीं किया। उनके अनुसार उनकी जीवन-रूपी गगरी खाली ही रह गई है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत पंक्तियों में जहां एक ओर कवि की सादगी का पता चलता है, वहीँ दूसरी ओर उनकी महानता भी प्रकट होती है।

3. आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद (Atmakathya- Jaishankar Prasad)

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह-डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं क़ि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

4. Atmakathya Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Summary :

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने एक पत्ते की तुलना मनुष्य के जीवन से की है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- यहाँ कवि ने अपने मन को भँवरे की संज्ञा दी है, जो गुन-गुनाकर पता नहीं क्या कहानी कह रहा है। वह यह नहीं समझ पा रहा कि वह अपनी जीवन गाथा की कौन-सी कहानी कहे, क्योंकि उसके समीप मुरझाकर गिरते हुए पत्ते जीवन की नश्वरता का प्रतीक हैं। ठीक इसी तरह मनुष्य का जीवन भी एक न एक दिन समाप्त हो जाना है।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2. ‘कौन कहानी’ ‘गुन-गुना कर कह’ में अनुप्रास अलंकार है

3. ‘मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ’ में मनुष्य के जीवन में आये दुःख का प्रतीक है।  

इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने अपनी आत्मकथा के बारे में बात की है कि स्वयं आत्मकथा लिखकर अपना मज़ाक लोगों के सामने उड़ाया है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, यह नीला आकाश जोकि अनंत तक फैला हुआ है, उसमें असंख्य लोगों ने अपने जीवन का इतिहास लिखा है। जिसे पढ़कर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो उन्होंने स्वयं की आत्मकथा लिखकर खुद का मज़ाक उड़ाया है और लोग इन्हें पढ़कर उन पर हँस रहे हैं।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

तब भी कहते हो कह-डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने बताया है कि अपनी दुर्बलताओं को लोगों के समक्ष रखकर अपना ही मज़ाक उड़ाने वाली बात है। 

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- कवि अपने मित्रों से यह प्रश्न करने के लिए बाध्य हो जाता है कि क्या तुम भी यही चाहते हो कि मैं भी अपनी जीवन की सारी दुर्बलताएँ लिख डालूं। जिन्हें पढ़कर तुम लोग मेरी जीवन की खाली गगरी को देखकर मेरा मज़ाक बनाओ।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.’गागर रीती’ में रूपक अलंकार है। 

3. ‘सुनकर सुख’ में अनुप्रास अलंकार है।

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने अपने मित्रों को अपनी जीवन रूपी गगरी को खाली करने की बात कही है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- जिन मित्रों ने कवि से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, उनसे कवि कहते हैं कि मेरी आत्मकथा पढ़कर और मेरे जीवन की गगरी खाली देखकर कहीं ऐसा ना हो कि तुम खुद को मेरे दुखों का कारण समझ बैठो और यह सोचने लग जाओ कि तुम्हीं ने मेरी जीवन-रूपी गगरी को खाली किया है।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.किन्तु कहीं में अनुप्रास अलंकार है

यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने अपने स्वभाव का वर्णन किया है। उनका कोई भी मज़ाक तो उन्हें कोई मलाल नहीं है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- कवि का तात्पर्य यह है कि उनका स्वभाव बहुत ही सरल है। इसी स्वभाव के कारण उन्हें कई लोगों ने धोख़ा दिया, जिनसे उन्हें कष्ट सहना पड़ा। परन्तु इसके बावज़ूद भी कवि को अपने स्वभाव पर कोई मलाल नहीं है और वो अपनी आत्मकथा में इसका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहते। ना वो अपनी भूलें बताना चाहते हैं और ना ही वो छल-कपट गिनाना चाहते हैं, जो उन्हें सहने पड़े।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने अपनी प्रेमिका के साथ बिताए समय की यादों का वर्णन किया है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, वो रातों के हसीन लम्हें, जो उन्होंने अपनी प्रेमिका के साथ बिताए थे, वो साथ में हँसकर की गयी मीठी बातें आदि उनके निजी अनुभव हैं। वो ये अनुभव कैसे और क्यों अपनी आत्मकथा में लिखकर लोगों को सुनाएं। ये तो उनके जीवन की पूँजी है और इस पर सिर्फ और सिर्फ उनका हक़ है।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.खिल खिल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने अपने जीवन के सुख के पलों को याद करता है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- जीवन भर कवि ने जिन सुखों की कल्पना की और जिनके सपने देखकर कवि कभी-कभी जाग जाता था। उनमें से कोई भी सुख उन्हें नहीं मिला। कवि ने जब भी अपने हाथों को फैलाकर अपनी प्रेमिका को अर्थात उन सुखों को गले लगाना चाहा, तब-तब उनकी प्रेमिका मुस्कुराकर भाग गई।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.आते-आते में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि अपनी प्रेमिका की सुन्दता का वर्णन करते है।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी प्रेमिका की सुंदरता का बखान करते हुए कहते हैं कि उनकी प्रेमिका के लाल-लाल गाल इतने सुन्दर थे कि उषा भी अपनी लालिमा उन्हीं से उधार लेती थी।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.’अरुण-कपोलों’ में रूपक अलंकार है। 

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ- 4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने बताता है कि अपनी प्रेमिका की यादों के सहारे ही अपना जीवन बिता रहे हैं।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- कवि कहता है कि उनकी प्रेमिका के साथ बिताए हसीन पलों को याद करके आज कवि इस अकेले संसार में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है और उनके जीवन का एकमात्र सहारा यही यादें हैं। तो क्या तुम (मित्र) मेरी उन यादों को देखना चाहते हो? और इस प्रकार मेरी आत्मकथा पढ़कर, मेरी भूली हुई यादों को फिर से कुरेदना चाहते हो और मेरी यादों की चादर को तार-तार करना चाहते हो?

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2. ‘स्मृति पाथेय’ में रूपक अलंकार है। 

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं क़ि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि ने स्वयं को तुच्छ माना है और उनका मानना है कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया। जिस पर वो बड़ी-बड़ी गाथाएँ लिख सकें।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में जयशंकर प्रसाद जी की महानता का पता चलता है। उनके अनुसार उनका जीवन बहुत ही सरल और सादगी भरा है। वह स्वयं को तुच्छ मनुष्य मानते हैं और उनके अनुसार उन्होंने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे वो खुद के बारे में बड़ी-बड़ी यश-गाथाएँ लिख सकें। इसलिए वो चुप रहना ही उचित समझते हैं और दूसरों की गाथाओं को सुनते हैं।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1.खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

2.’मैं मौन’ में अनुप्रास अलंकार है

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

आत्मकथ्य कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-4 कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें कवि अपने मित्रों को खुद के बारे में बताते हैं कि तुम सब मेरी आत्मकथा सुनकर भला क्या करोगे?

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने मित्रों से कहते हैं कि तुम मेरी भोली-भाली, सीधी-साधी आत्मकथा सुनकर भला क्या करोगे? उसमें तुम्हारे काम लायक कुछ भी नहीं मिलेगा। मैंने ऐसा कोई महान कार्य भी नहीं किया जिसका वर्णन मैं कर सकूँ। अब मेरे जीवन के सारे दुःख शांत हो गए हैं और मुझमें अब उन्हें लिखने की इच्छा और शक्ति नहीं है।

आत्मकथ्य कविता का विशेष:-

1. ‘मेरी मौन’ में अनुप्रास अलंकार है

2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है

3. ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ में मानवीकरण अलंकार है। 

5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Atmakathya

6. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
Chapter 1: सूरदास के पद- सूरदास

Chapter 2: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद- तुलसीदास
Chapter 3: सवैया एवं कवित्त – देव
Chapter 4: आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
Chapter 5: उत्साह एवं अट नहीं रही है – निराला
Chapter 6: यह दंतुरित मुसकान– नागार्जुन
Chapter 7: छाया मत छूना- गिरिजाकुमार माथुर
Chapter 8: कन्यादान कविता – ऋतुराज
Chapter 9: संगतकार – मंगलेश डबराल

7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6
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7 thoughts on “Atmakathya Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 Summary (आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद)”

  1. thank you so much sir/mam for the summary of this chapter. You helped us alot by this . Thank you so much once again.🙏

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