यह दीप अकेला कविता की व्याख्या- Yeh Deep Akela Summary in Hindi

Table of content

1. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय
2. यह दीप अकेला कविता का सारांश 

3. यह दीप अकेला कविता
4. यह दीप अकेला कविता की व्याख्या
5. यह दीप अकेला प्रश्न अभ्यास
6. कठिन शब्द और उनके अर्थ
7. Class 12 Hindi Antra All Chapter

कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय –

अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। 


प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी और संस्कृत में हुई है। ये स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी रहे थे, जिसके चलते उन्हें 1930-1936 तक जेल हुई।

उन्होंने सारी रचनाएं अज्ञेय उपनाम से की है। उन्होंने कई रचनाएं जैसे चिंता, बावरा नाटक जैसे उत्तर प्रियदर्शी कहानियां जैसे परंपरा और कई प्रकार के उपन्यास भी लिखे है। उ

नकी मृत्यु 4 अप्रैल 1987 ई. में हुई थी।

यह दीप अकेला कविता का सारांश- Yeh Deep Akela Poem Summary

इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्मकता समाज के काम आनी चाहिए।

जिस तरह एक दीपक के लिए अकेले जलने से बेहतर है, दीपकों की कतार में जलना। उसी तरह व्यक्ति के लिए समाज से जुड़े रहकर अपने जीवन को सार्थक बनना चाहिए। इस कविता में दीपक प्रतिभाशाली व्यक्ति का प्रतीक है और पंक्ति समाज का प्रतीक है।

यह दीप अकेला कविता- Yeh Deep Akela Poem

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो 

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित : 

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो 

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो 

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो 

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो 

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो

यह दीप अकेला कविता की व्याख्या- Yeh Deep Akela Poem Line by Line Explanation 

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

शब्द अर्थ – स्नेह – तेल के अर्थ में। मदमाता – मस्ती में चूर

भावार्थ ये जो दीपक रूपी व्यक्ति है, स्नेह अथवा तेल से भरा हुआ है। इसे थोड़ा गर्व भी है, पर ये मस्ती में चूर है। लेकिन इसे भी समाज रूपी पंक्ति को अर्पित कर देना चाहिए। जिससे ये समाज के काम आ सके और इसका जीवन सार्थक हो सके।

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित : 

शब्द अर्थ – जन – व्यक्ति । हठीला – हठ करने वाला । बिरला – दुर्लभ
पनडुब्बा – गोताखोर । कृती – कुशल खोर व्यक्ति । समिधा – यह की लकड़ी

भावार्थये ऐसा व्यक्ति है, जो अनोखे गीत रचता है। जिसे कोई और नहीं रच सकता। ये उस गोताखोर की तरह है, जो विचारों के मोती चुन कर लाता है। जिन्हे और कोई चुन नहीं सकता अर्थात जिस तरह गोताखोर पानी में कूद कर मोती चुन कर लाता है, उसी तरह यह व्यक्ति भी इतना कुशल है कि ये विचारों के मोती चुन कर लाता है। 

ये प्रतिभाशाली व्यक्ति उस लकड़ी की तरह है, जो खुद जलकर वातावरण में पवित्रता फैलाती है। अर्थात ये व्यक्ति अपने विचारों से क्रांति की आग लगा सकता है, ऐसा कोई नहीं है। मैं इस दीपक के माध्यम से समाज के प्रति अपने आप को समर्पित कर रहा हूं।

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो 

शब्द अर्थ – मधु – शहद , काल – समय, संचय – इकठ्ठा करना, स्वयंभू – अपने आप उत्पन्न , पुत- पवित्र, पय – दूध , गोरस – माखन , अंकुर – अंखुआ

भावार्थ ये प्रतिभाशाली व्यक्ति शहद के समान है। जिसे स्वयं समय रूपी मधुमक्खियों ने जमा किया है। जिस प्रकार शहद बनने में समय लगता है, उसी प्रकार रचनाओं को भी बनने में समय लगता है। ये दही या मक्खन के समान है, जो कि असाधारण है।

जीवन भी कामधेनू के समान है, जो हमारी सारी इच्छाओं को पूरा कर देता है अर्थात ये प्रतिभा शाली व्यक्ति दही या मक्खन के समान है। ये जीवन रूपी कामधेनू के अमृत के समान पवित्र दूध के मथने से निर्मित हुआ है, इसलिए महत्पूर्ण है।

ये सत्य से आंखे मिलाने का साहस रखता है। ये प्रकृति से उत्पन्न है, ये अपने आप उत्पन्न हुआ है। ये ईश्वर या परम सत्ता के समान है। ये किसी से जुड़ा हुआ नहीं है, इसे भी शक्ति को दे देना चाहिए।

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो  

शब्द अर्थ- लघुता –  छोटापन, कुत्सा – निंदा, अवज्ञा -अपेक्षा, तम – अंधेरा, द्रवित – करुणा से भरा, प्रबुद्ध- सचेत

भावार्थकवि ये कहते हैं कि सृजन शील व्यक्ति हर परिस्थिति में धीरज बनाए रखता है। उसकी मौलिकता कभी खत्म नहीं होती। वह किसी के सामने घुटने नहीं टेकता। उसके भीतर की भावना अच्छी रहती है। इसके अंदर जो विश्वास है, वह छोटा होने पर भी नहीं भागता।

उसका विश्वास इतना गहरा है कि कोई और व्यक्ति उसे नहीं नाप सकता। उसे कई बार समाज से अपमान जनक व कड़वे शब्द सुनने पड़ते हैं, मगर वो कभी हार नहीं मानता।

यह इस धुएँ में भी तरूता से भरा रहता है। हमेशा सतर्क वह सावधान रहता है। इसकी आंखे हमेशा अनुराग से भरी रहती हैं। यह हमेशा लोगो को अपनाने के लिए तैयार रहता है। इसके भीतर जो अपनापन है, वो कभी ख़तम नहीं होता। इसे हमेशा कुछ जानने व पहचाने की जिज्ञासा रहती है ।

इस व्यक्ति को भी भक्ति को दे दो अर्थात इसे समाज से जोड़ देना चाहिए। जिससे समाज आध्यात्मिक रूप से बना रहे, जुड़ा रहे और इस व्यक्ति की सारी आस्था समाज के काम आ सके।

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