Saroj Smriti Poem Summary Class 12 | सरोज स्मृति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

Table of content

1. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
2. सरोज स्मृति कविता का सारांश 

3. सरोज स्मृति कविता
4. सरोज स्मृति कविता की व्याख्या
5. सरोज स्मृति प्रश्न अभ्यास
6. कठिन शब्द और उनके अर्थ
7. Class 12 Hindi Antra All Chapter

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जीवन परिचय- Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay

वसंत का महीना जैसे हम सब पसंद करते हैं, ठीक उसी प्रकार हम कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को भी पसंद करते हैं। कवि निराला का जन्म सन 1896 को कोलकाता में हुआ था और वह दिन बसंत पंचमी का दिन था।


छायावादी कवि निराला को छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। कवि निराला केवल एक कवि ही नहीं थे बल्कि इन्होंने कहानी, निबंध एवं उपन्यास भी लिखा था। 

कोलकाता में ही बांग्ला भाषा से ही कवि निराला की आरंभिक शिक्षा की शुरुआत हुई थी एवं हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के उपरांत वे लखनऊ चले गए।

निराला का विवाह पंद्रह वर्ष के उम्र में हो चुका था।‌ उनकी पत्नी मनोहरा देवी काफी शिक्षित थी एवं पत्नी के कहने पर ही कवि निराला ने हिंदी सीखना आरंभ किया था।

सन 1920 से कवि निराला ने अपना लेखन कार्य आरंभ किया और लगातार लिखते गए और उनकी सबसे अच्छी एवं प्रसिद्ध रचना थी ‘सरोज स्मृति’ जो उन्होंने अपनी बेटी सरोज की याद में लिखी थी। कवि निराला का अंतिम क्षण प्रयागराज में गुजरा था।

15 अक्टूबर 1961 को निराला की मृत्यु हो गई लेकिन हिंदी साहित्य जगत में आज भी वह अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवित है।

सरोज स्मृति कविता का सारांश- Saroj Smriti Poem Summary

सरोज स्मृति कविता एक शोक कथा है। यह कविता कवि निराला ने अपनी इकलौती पुत्री सरोज की याद में लिखी थी। इस कविता में कवि निराला का दर्द कविता के छंदों के माध्यम से व्यक्त हुआ है।

यह कविता मात्र एक शोक गीत ही नहीं है, बल्कि एक पिता का समाज के प्रति आक्रोश भी है। कवि निराला अपनी पुत्री को बचा नहीं पाए थे और इसके लिए जिम्मेदार वह समाज को मानते हैं।

सरोज स्मृति हिंदी की सर्वोच्च उच्च कोटि का शोक गीत माना जाता है। 

सरोज स्मृति कविता – Saroj Smriti Poem

देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
देखती मुझे तू हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी स्पंद
उर में भर झूली छबि सुंदर
प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति –

श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रह कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना माही।
हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,
कोई थे नहीं, न आमंत्रण
था भेजा गया, विवाह-राग
भर रहा न घर निशि-दिवस जाग,
प्रिय मौन एक संगीत भरा
नव जीवन के स्वर पर उतरा।

माँ की कुल निराश मैंने दी,
पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
सोचा मन में, ’’वह शकुंतला,
पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।’’
कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,
बैठी नानी की स्नेह-गोद।
मामा-मामी का रहा प्यार,
भर जल्द धरा को ज्यों अपार,
वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,
तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अंत भी उसी गोद में शरण
ली, मूँदे दृग वर महामरण!

मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपाल
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण

—( सरोज स्मृति कविता का अंश)

सरोज स्मृति कविता की व्याख्या- Saroj Smriti Poem Line by Line Explanation

देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
देखती मुझे तू हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी स्पंद
उर में भर झूली छबि सुंदर
प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति –

सरोज स्मृति कविता का प्रसंग-  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ पाठ-2 कविता ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैं। प्रस्तुत कविता छायावादोत्तर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित है। इन काव्य पंक्तियों में कवि निराला ने अपनी पुत्री सरोज के लिए शोक प्रकट किया है।

सरोज स्मृति कविता का भावार्थ-  कवि निराला अपनी पुत्री की अकाल मृत्यु के कारण अत्यधिक शोक में डूब चुके थे। कवि अपने दुखों के क्षण को याद करते हुए अपनी पुत्री के विवाह के दिन को याद करते हैं और कहते हैं कि तुम्हारा विवाह नए रूप में होते हुए मैंने देखा था।

विवाह के दिन निराला जी की पुत्री के ऊपर  कलश का शुभ जल छलककर गिरा था। उस वक्त पुत्री सरोज कवि निराला को देखकर काफी हंस पड़ी थी। कवि कहते हैं कि तेरे हृदय में अपने प्रियतम के प्रति एक ख़ास छवि झलक रही थी।  जिसे व्यक्त कर पाना तेरे लिए संभव नहीं था क्योंकि तेरा पति तेरे श्रृंगार का एक माध्यम था जो स्पष्ट झलक रहा था।

अपनी पुत्री के विवाह के दिनों को याद करते हुए कवि कहते हैं कि तेरे नेत्र जो झुके हुए थे। वह एक अजीब सा प्रकाश दे रहे थे। तेरे होंठ कांप रहे थे, शायद तू कुछ कहना चाहती थी। तुझे अपनी मां का अभाव खल रहा था। तुझे देखकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मानो जीवन के सुखद क्षणों का कोई प्रथम गीत तू ही थी।

सरोज स्मृति कविता का विशेष:-

1. अंग- अंग, थर-थर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. नत नयनों में अनुप्रास अलंकार है।

3. प्रस्तुत कविता एक शोक गीत है।

4. सरल हिंदी भाषा और संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रह कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना माही।
हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,
कोई थे नहीं, न आमंत्रण
था भेजा गया, विवाह-राग
भर रहा न घर निशि-दिवस जाग,
प्रिय मौन एक संगीत भरा
नव जीवन के स्वर पर उतरा।

सरोज स्मृति कविता का प्रसंग-  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ पाठ-2 कविता ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैं। प्रस्तुत कविता छायावादोत्तर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित है। कवि ने अपनी पुत्री सरोज के विवाह का वर्णन किया है।

रोज स्मृति कविता का भावार्थ- विवाह के दिन पुत्री सरोज का श्रृंगार कवि निराला को अपनी पत्नी की याद दिला रही थी। कवि निराला अपनी पुत्री में अपनी पत्नी की साफ झलक देख पा रहे थे। अपनी पत्नी के श्रृंगार को कवि निराला काव्य पंक्तियों में व्यक्त करते हुए कहते हैं कविता का यह रस मेरे प्राणों में मेरे प्रियतम के साथ बिताए गए क्षणों को व्यक्त कर रहा है।

कवि निराला को अपनी पुत्री स्वर्ग लोक से उतरी किसी परी जैसी लग रही थी। कवि कहते हैं कि मेरी पुत्री के विवाह में कोई सगे संबंधी भी मौजूद नहीं थे। ना ही विवाह में गाए जाने वाले गीत गाए गए थे, ना ही मेरी पुत्री के विवाह में कोई हलचल थी और ना ही कोई रात-रात भर जगा था।

कवि कहते हैं कि उनकी पुत्री का विवाह बहुत ही साधारण तरीके से संपन्न हुआ था। संपूर्ण विवाह में अगर कुछ अच्छा था तो वह था मौन जो एक संगीत के रूप में शांत तरीके से संपूर्ण विवाह को संपन्न किया। यह मौन नव दंपती को नए जीवन में प्रवेश करने की प्रेरणा दे रहा था।

सरोज स्मृति कविता का विशेष:-

1. प्रस्तुत कविता एक शोक गीत है।

2. सरल हिंदी भाषा और संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

माँ की कुल निराश मैंने दी,
पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
सोचा मन में, ’’वह शकुंतला,
पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।’’
कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,
बैठी नानी की स्नेह-गोद।
मामा-मामी का रहा प्यार,
भर जल्द धरा को ज्यों अपार,
वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,
तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अंत भी उसी गोद में शरण
ली, मूँदे दृग वर महामरण!

सरोज स्मृति कविता का प्रसंग-  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ पाठ-2 कविता ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैं। प्रस्तुत कविता छायावादोत्तर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित है। कवि ने अपनी पुत्री सरोज को माँ का भी प्यार दिया। 

सरोज स्मृति कविता का भावार्थ- कवि निराला अपने स्वर्गवासी पुत्री सरोज को याद करते हुए कहते हैं कि तेरे जीवन में तेरी मां का अभाव भी मैंने ही पूर्ण किया है। एक मां जो शिक्षाएं अपनी पुत्री को देती है, वह शिक्षा भी मैंने ही तुझे दी थी। एक मां का फर्ज भी मैंने निभाया था। विवाह के बाद जो पुष्प सैया सजाई जाती थी वह भी मैंने ही सजाई थी।

कवि निराला ने शकुंतला की तुलना अपनी पुत्र सरोज से की है। सरोज की तरह शकुंतला भी मां विहिन पुत्री थी। किंतु कण्व ऋषि की पुत्री शकुंतला एवं कवि निराला की पुत्री सरोज के जीवन में थोड़ा- सा बदलाव था। वह बदलाव यह था कि शकुंतला की माता स्वयं अपनी इच्छा से उसे छोड़ कर चली गई थी और सरोज की मां की अकाल मृत्यु हुई थी।

कवि निराला अपनी पुत्री को याद करते हुए कहते हैं कि विवाह के कुछ दिनों बाद ही तू अपनी नानी का साथ पाने के लिए अपनी खुशी जाहिर करने के लिए अपनी ननिहाल चली गई थी। ननिहाल में तुझे तेरे मामा एवं मामी ने अश्रु से स्वागत किया।

कवि कहते हैं कि तेरे ननिहाल वाले तेरे हर सुख एवं दुख की घड़ी में तेरा साथ निभाते थे। जिस तरीके से फूल की कली खिलती है। ठीक उसी प्रकार से मेरी परी मेरी सरोज अपने ननिहाल में खिली, पली एवं बड़ी हुई। यहां तक कि जीवन के अंतिम क्षण मृत्यु के वक्त भी तुम अपने ननिहाल में ही मौजूद थी।

सरोज स्मृति कविता का विशेष:-

1. सदा समस्त में अनुप्रास अलंकार है।

2. प्रस्तुत कविता एक शोक गीत है।

3. सरल हिंदी भाषा और संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपाल
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण

सरोज स्मृति कविता का प्रसंग-  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ पाठ-2 कविता ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैं। प्रस्तुत कविता छायावादोत्तर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित है। कवि निराला जी ईश्वर से कहते हैं कि मेरे जीवन के अच्छे कर्मों का फल मेरी पुत्री सरोज को मिले।

सरोज स्मृति कविता का भावार्थ- कवि निराला अपने आप को भाग्यहीन कहते हुए कहते हैं कि मुझ भाग्यहीन की एकमात्र तू ही सहारा थी। कवि निराला ने कहा कि उनके जीवन में सबसे ज्यादा दुख की कथाएं हैं। कवि निराला कविता की अंतिम पंक्तियों के माध्यम से बताते हैं कि उन्होंने कभी भी अपने सुख एवं दुख की चर्चा कभी किसी और से नहीं कही, तो वह आज क्या कहेंगे।

कवि कहते हैं कि मुझ पर भले ही वज्रपात हो जाए अर्थात विपत्तियां आ जाए या फिर मेरे समस्त कर्म नष्ट हो जाए। जिस तरीके से कमल का फूल नष्ट हो जाता है। लेकिन यदि मेरा धर्म मेरे साथ है, तो मैं जीवन की हर मुश्किल परिस्थितियों का सामना डंटकर कर सकता हूं।

कवि निराला कहते हैं कि मुझे कभी भी कोई अपने मार्ग से हटा नहीं सकता। मैं परिस्थितियों से नहीं भागता, मैं उनसे लड़ना जानता हूं। अंत में कवि कहते हैं कि बेटी मैं अपने बीते हुए समस्त शुभ कार्यों को तुझे अर्पित करता हूं और इस तरीके से मैं तेरा तर्पण करता हूं।

इस तरीके से कवि निराला ईश्वर से प्रार्थना करते हैं एवं कहते हैं कि उनके सभी अच्छे कर्मों का फल उनकी पुत्री सरोज को प्राप्त हो और ऐसा कहते हुए वह अपनी पुत्री सरोज का तर्पण करते हैं।

सरोज स्मृति कविता का विशेष:-

1. कर करता में अनुप्रास अलंकार है।

2. प्रस्तुत कविता एक शोक गीत है।

3. सरल हिंदी भाषा और संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

Tags:
सरोज स्मृति

सरोज स्मृति सारांश
सरोज स्मृति कविता का सारांश
सरोज स्मृति कविता की व्याख्या
सरोज स्मृति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
saroj smriti ka saransh
saroj smriti summary
nirala ki saroj smriti
saroj smriti by nirala
saroj smriti poem
saroj smriti poem summary
saroj smriti poem summary in hindi
saroj smriti class 12

1 thought on “Saroj Smriti Poem Summary Class 12 | सरोज स्मृति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला”

Leave a Comment