Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदास
यहाँ हम पढ़ने वले हैं
- तुलसीदास का जीवन परिचय- Tulsidas Ka Jeevan Parichay
- राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का भावार्थ- Ram Lakshman Parshuram Samvad Bhavarth
- राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदास
- Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation in Hindi
- Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad
- Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
- Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer
1.तुलसीदास का जीवन परिचय- Tulsidas Ka Jeevan Parichay: गोस्वामी तुलसीदास के जन्म एवं स्थान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। परन्तु अधिकांश विद्वान इनका जन्म 1532 में सोरों में मानते हैं। इनके पिता एवं माता का नाम आत्मा राम दुबे एवं हुलसी था। इनका बचपन काफी कष्टपूर्ण था। बचपन में ही ये अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे। इनके गुरु नरहरि दास थे। इनका विवाह रत्नावली से हुआ, जिन्होंने इनका जीवन राम-भक्ति की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया।
इनके ग्रन्थ रामचरितमानस में इन्होंने समस्त पारिवारिक संबंधों, राजनीति, धर्म, सामाजिक व्यवस्था का बड़ा ही सुन्दर उल्लेख किया। रामचरितमानस के अतिरिक्त इनके अन्य ग्रन्थ विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली इत्यादि हैं।
तुलसीदास जी की काव्य भाषा अवधी है। अवधी के अतिरिक्त ब्रज भाषा का प्रयोग भी इनके साहित्य में प्रचुरता में मिलता है। ये प्रभु श्री राम के परम उपासक थे। सन् 1623 में इन्होंने काशी में देह त्याग किया।
2.राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का भावार्थ- Ram Lakshman Parshuram Samvad Bhavarth: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद रामचरितमानस से लिया गया है। जो कि सीता जी के स्वयंवर के समय का है। श्री राम, शिव जी का धनुष उठाकर उसे तोड़ देते हैं, तो सारे संसार में इस बात की चर्चा आग की तरह फैल जाती है। जब यह बात परशुराम जी के कानों तक जाती है और उन्हें पता चलता है कि उनके गुरुदेव शिव जी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है, वो अपने आपे से बाहर हो जाते हैं। वो धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति का वध करने के लिए सीता जी के स्वयंवर वाली सभा में आ जाते हैं। उसके बाद राम – लक्ष्मण – परशुराम जी के बीच जो बात होती है, उसका वर्णन यहाँ दिया हुआ है।
3.राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदास
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥
येही धनु पर ममता केहि हेतू। सुनी रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
बाल ब्रह्म्चारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।
कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि दै दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
4.Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary- Ram Lakshman Parshuram Samvad Summary in Hindi
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें श्री राम और परशुराम जी के बीच बातचीत का वर्णन है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- इन पंक्तियों में श्री राम परशुराम जी से कह रहे हैं कि – हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने की शक्ति तो केवल आपके दास में ही हो सकती है। इसलिए वह आपका कोई दास ही होगा, जिसने इस धनुष को तोड़ा है। क्या आज्ञा है? मुझे आदेश दें। यह सुनकर परशुराम जी और क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि सेवक वही हो सकता है, जो सेवकों जैसा काम करे। यह धनुष तोड़कर उसने शत्रुता का काम किया है और इसका परिणाम युद्ध ही है। उसने इस धनुष को तोड़कर मुझे युद्ध के लिए ललकारा है, इसलिए वो मेरे सामने आए।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. काह कहिअ किन, करि करिअ में अनुप्रास अलंकार है।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥
येही धनु पर ममता केहि हेतू। सुनी रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें परशुराम जी कहते हैं कि जिसने भी शिवजी का धनुष तोड़ा है वह मेरे साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जाए।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम जी श्री राम से कहते हैं, जिसने भी शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह इस स्वयंवर को छोड़कर अलग खड़ा हो जाए, नहीं तो इस दरबार में उपस्थित सारे राजाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है। परशुराम के क्रोध से भरे स्वर को सुनकर लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं कि हे मुनिवर! हम बचपन में खेल-खेल में ऐसे कई धनुष तोड़ चुके हैं, तब तो आप क्रोधित नहीं हुए। परन्तु यह धनुष आपको इतना प्रिय क्यों है? जो इसके टूट जाने पर आप इतना क्रोधित हो उठे हैं और जिसने यह धनुष तोड़ा है, उससे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. सहसबाहु सम सो, बिलगाउ बिहाइ में अनुप्रास अलंकार है।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें परशुराम जी लक्ष्मण से पूछते हैं कि तुम्हें शिवजी के धनुष और अन्य धनुष में कई अंतर नहीं नज़र आता।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम जी कहते हैं, हे राजपूत (राजा के बेटे) तुम काल के वश में हो, अर्थात तुम में अहंकार समाया हुआ है और इसी कारणवश तुम्हें यह नहीं पता चल पा रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो। क्या तुम्हें बचपन में तोड़े गए धनुष एवं शिवजी के इस धनुष में कोई अंतर नहीं दिख रहा? जो तुम इनकी तुलना आपस में कर रहे हो?
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें परशुराम जी की बात सुनकर लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम की बात सुनने के उपरांत लक्ष्मण मुस्कुराते हुए व्यंग्यपूर्वक उनसे कहते हैं कि, हमें तो सारे धनुष एक जैसे ही दिखाई देते हैं, किसी में कोई फर्क नजर नहीं आता। फिर इस पुराने धनुष के टूट जाने पर ऐसी क्या आफ़त आ गई है? जो आप इतना क्रोधित हो उठे हैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यह बात कह रहे थे, तब उन्हें श्री राम तिरछी आँखों से चुप रहने का इशारा कर रहे थे। आगे लक्ष्मण कहते हैं, इस धनुष के टूटने में श्री राम का कोई दोष नहीं है, क्योंकि इस धनुष को श्री राम ने केवल छुआ मात्र था और यह टूट गया। आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. काज करिअ कत, हसि हमरे में अनुप्रास अलंकार है।
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
बाल ब्रह्म्चारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें परशुराम जी लक्ष्मण जी पर अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग्य से भरी बातों को सुनकर और भी ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने फ़रसे की तरफ देखते हुए बोलते हैं, हे मूर्ख लक्ष्मण! लगता है, तुझे मेरे व्यक्तित्व के बारे में नहीं पता। मैं अभी तक बालक समझकर तुझे क्षमा कर रहा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा है।
मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। सारा संसार मेरे क्रोध को अच्छी तरह से पहचानता है। मैं क्षत्रियों का सबसे बड़ा शत्रु हूँ। अपने बाजुओं के बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का सर्वनाश किया है और इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दिया है। इसलिए हे राजकुमार लक्ष्मण! मेरे फरसे को तुम ध्यान से देख लो, यही वह फरसा है, जिससे मैंने सहस्त्रबाहु का संहार किया था।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. सठ सुनेहि सुभाउ, भुजबल भूमि भूप, में अनुप्रास अलंकार है।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें परशुराम अपने फरसे से लक्ष्मण को डराते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- हे राजकुमार बालक! तुम मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डालो, अर्थात अपनी मृत्यु को न्यौता मत दो। मेरे हाथ में वही फरसा है, जिसकी गर्जना सुनकर गर्भ में पल रहे बच्चे का भी नाश हो जाता है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि मैं आपकी इन बातों से डरने वाला नहीं हूं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम की डींगें सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराते हुए बड़े प्रेम भरे स्वर में बोलते हैं कि परशुराम तो जाने-माने योद्धा निकले। आप तो अपना फरसा दिखाकर ही मुझे डराना चाहते हैं, मानो फूंक से ही पहाड़ उड़ाना चाहते हों। परन्तु मैं कोई छुइमुई का वृक्ष नहीं, जिसे आप अपनी तर्जनी ऊँगली दिखाकर मुरझा सकते हैं। मैं आपकी इन बड़ी-बड़ी डींगों से डरने वालों में से नहीं हूँ।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. मुनीसु महाभट मानी में अनुप्रास अलंकार है।
3. ‘पुनि पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण जी परशुराम जी से कहते हैं कि मैं आपका वध नहीं कर सकता यही हमारी कुल की मर्यादा है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- इन पंक्तियों में लक्ष्मण कहते हैं, मैंने आपके हाथ में कुल्हाड़ा और कंधे पर टँगे तीर-धनुष देखकर, आपको एक वीर योद्धा समझा और अभिमानपूर्वक कुछ कह दिया। आपको ऋषि भृगु का पुत्र मानकर एवं काँधे पर जनेऊ देखकर आपके द्वारा किये गए सारे अपमान सहन कर लिए और क्रोध की अग्नि को जलने नहीं दिया।
वैसे भी हमारे कुल की यह परंपरा है कि हम देवता, ब्राह्मण, भक्त एवं गाय के ऊपर अपनी वीरता नहीं आजमाते। आप तो ब्राह्मण हैं और मैं आपका वध करूँ, तो पाप मुझे ही लगेगा। आप अगर मेरा वध भी कर देते हैं, तो मुझे आपके चरणों में झुकना पड़ेगा। यही हमारे कुल की मर्यादा है। फिर आगे लक्ष्मण कहते हैं कि आपके वचन ही किसी व्रज की भाँति कठोर हैं, तो फिर आपको इस कुल्हाड़े और धनुष की क्या ज़रूरत है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. कोटि कुलिस, धरहु धनु, बान कुठारा में अनुप्रास अलंकार है।
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें विश्वामित्र और परशुराम जी के बीच संवाद का वर्णन है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- यह सुनकर ऋषि विश्वामित्र जी ने परशुराम जी से कहा कि हे मुनिवर! यदि इस बालक ने आपका अपमान किया है, आपको कुछ अनाप-शनाप बोला है, तो कृपया इसे क्षमा कर दें।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. सुनि सरोष, गिरा गंभीर में अनुप्रास अलंकार है।
कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। परशुराम जी विश्वामित्र से कहते हैं कि इस बालक को तुम मेरे बल और क्रोध के बारे में बताओ। कहीं ऐसा न हो मेरे हाथों आज इसका वध हो जाए।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- विश्वामित्र की बात सुनकर परशुराम कहते हैं, हे विश्वामित्र! यह बालक बहुत ही मंद बुद्धि वाला और मूर्ख एवं उदंड है, जिसके कारण यह अपने ही कुल का नाश कर बैठेगा। इसे सत्य का ज्ञान नहीं है। यह चंद्रमा में लगे दाग की तरह अपने कुल के लिए एक कलंक है। इसको काल ने घेर रखा है। मैं चाहूँ तो छण-भर में इसका अंत कर सकता हूँ। फिर मुझे तुम दोष मत देना। अगर तुम इस बालक की सलामती चाहते हो, तो मेरे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बताकर इसे समझाओ एवं शांत करो।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. निपट निरंकुसु, अबुधु असंकू, कुटिलु कालबस में अनुप्रास अलंकार है।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। परशुराम की बातें सुनकर लक्ष्मण जी कहते हैं कि आप अपनी वीरता का बखान करते हुए थकते नहीं हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में परशुराम की बात सुनकर लक्ष्मण कहते हैं, हे मुनिवर! आप अपनी वीरता का बखान करते हुए थक नहीं रहे हो। आपने कई प्रकार से अपनी वीरता के बारे में बतलाया है। आपके बल और साहस के बारे में आपसे अच्छा भला कौन बता सकता है। अगर इतने से भी आपका मन न भरा हो, तो अपना क्रोध सहन कर खुद को पीड़ा न दें। अपितु फिर से अपनी वीरता का बखान कर लें। आप एक वीर पुरुष हैं, जिनमें धैर्य और क्षमा व्याप्त है। आपके मुँह से अपशब्द शोभा नहीं देते।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. रिस रोकि, दुसह दुख, कछु कहहू, बहु बरनी में अनुप्रास अलंकार है।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण जी कहते हैं कि जो वीर योद्धा होते हैं वो इस तरह अपनी वीरता का बखान नहीं करते बल्कि युद्ध में जीतकर अपनी वीरता का परिचय देते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- शूरवीर युद्ध में अपनी शूरवीरता का प्रदर्शन करते हैं। वे अपने मुँह मिया-मिट्ठू नहीं बनते अर्थात स्वयं के मुख से स्वयं की प्रशंसा नहीं करते और रणभूमि में अपने शत्रु को सामने पाकर कायरों की तरह बातों में व्यर्थ समय नहीं बिताते, अपितु युद्ध करके अपनी वीरता का परिचय देते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि दै दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण जी की बातें सुनकर परशुराम जी अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में लक्ष्मण जी परशुराम से कहते हैं कि हे मुनिवर! ऐसा लग रहा है कि आप मृत्यु को मेरे लिए हाँक लगा-लगाकर बुला रहे हो। लक्ष्मण के इस व्यंग्य को सुनकर परसुराम बहुत ही क्रोधित हो जाते हैं और अपने फरसे को हाथ में ले कर बोलते हैं कि इस बालक के वध के लिए संसार मुझे दोष न दे, क्योंकि इसने खुद अपने कटु वचनों के सहारे अपनी मौत को बुलाया है। मैंने इसे बालक समझकर कई बार क्षमा किया, परन्तु अब यह मरने-योग्य हो गया है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. बार बार में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा’ में अनुप्रास अलंकार है।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। विश्वामित्र जी परशुराम जी से कहते हैं कि लक्ष्मण को क्षमा कर दें।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में विश्वामित्र जी परशुराम से कहते हैं कि परशुराम जी! आप तो साधु हैं। साधु कभी बालकों के अपराध पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और उन्हें क्षमा कर देते हैं। इसलिए लक्ष्मण को भी क्षमा कर दें। यह सुनकर परशुराम जी विश्वामित्र से कहते हैं कि तुम जानते हो कि मैं कितना कठोर एवं निर्दयी हूँ।
मुझमें क्रोध कितना भरा हुआ है। मेरे सामने यह मेरे गुरु का अपमान किये जा रहा है और मेरे हाथों में फरसा होने के बावजूद भी मैंने अभी तक इसका वध नहीं किया है। अगर यह जीवित खड़ा है, तो सिर्फ तुम्हारे प्रेम और सद्भाव के लिए। नहीं तो अभी तक मैं अपने फरसे से बिना किसी परिश्रम के इसे काटकर इसका वध कर देता और अपनी गुरु-दक्षिणा चुका देता।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. कौसिक कहा, काटि कुठार कठोरे, गुन गनहिं में अनुप्रास अलंकार है।
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। विश्वामित्र मन ही मन कहते हैं कि परशुराम जी और राम-लक्ष्मण शूरवीर और पराक्रमी हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- यह सुनकर विश्वामित्र जी मन ही मन हँसने लगते हैं और सोचते हैं कि परशुराम जी ने सभी क्षत्रियों को हराया है, तो वे राम-लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय मानकर उन्हें आसानी से हराने के बारे में सोच रहे हैं। परन्तु उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि उनके समक्ष कोई गन्ने के रस से बना गुड़ नहीं है, अपितु लोहे के फौलाद से बनी तेज तलवार है। अर्थात राम एवं लक्ष्मण को वे साधारण क्षत्रिय समझने की भूल कर रहे हैं, जबकि दोनों ही शूरवीर एवं पराक्रमी है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. ‘हृदय हसि’ में अनुप्रास अलंकार है।
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण परशुराम जी को गुरु-ऋण देने की बात करते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- लक्ष्मण परशुराम जी से कहते हैं कि हे मुनिवर! आपके शील स्वभाव से पूरा संसार भली-भाँति परिचित है। आप अपने माता-पिता के कर्ज से तो पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं, परन्तु अभी तक आपके ऊपर गुरु-ऋण बाकी बचा हुआ है। जिसे आप जल्द से जल्द उतारना चाहते हैं और इसी कारण आप मेरा वध करने पर तुले हुए हैं।
यह ठीक भी है, क्योंकि बहुत दिन हो चुके हैं, अब तक तो आपके ऊपर गुरु-ऋण का बहुत ब्याज चढ़ चुका होगा। तो फिर देर करने की ज़रूरत नहीं है, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए। मैं देर किए बिना अपनी थैली खोल कर सारी धन राशि चुका दूँगा।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। लक्ष्मण की बातें सुनकर परशुराम जी बहुत क्रोधित हो जाते हैं और अपने फरसे को हाथ में पकड़कर लक्ष्मण का वध करने को तैयार हो जाते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- लक्ष्मण के ये कठोर वचन सुनकर परशुराम अपने क्रोध की आग में जलने लगते हैं और अपने फरसे को पकड़ कर आक्रमण की मुद्रा में आते हैं, जिसे देखकर दरबार में उपस्थित सारे लोग हाय-हाय करने लगते हैं। यह देखकर लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि आप मुझे अपना फरसा दिखाकर भयभीत करना चाहते हैं और मैं यहाँ आपको ब्राह्मण समझकर आप से युद्ध नहीं करना चाहता।
ऐसा प्रतीत होता है, मानो आपका अभी तक युद्ध भूमि में किसी पराक्रमी से पाला नहीं पड़ा। इसलिए आप अपने आप को बहुत शूरवीर समझ रहे हैं। यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सारे लोग अनुचित-अनुचित कहकर पुकारने लगते हैं और श्री राम अपनी आँखों के इशारे से लक्ष्मण जी को चुप होने का इशारा करते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. ‘हाय हाय’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘बिप्र बिचारि बचौं’ में अनुप्रास अलंकार है।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-2 ‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से ली गई हैं। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। अंत में श्रीराम जी परशुराम जी के क्रोध को शांत करते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- इस प्रकार लक्षमण द्वारा कहा गया प्रत्येक वचन आग में घी की आहुति के सामान था और परशुराम जी को अत्यंत क्रोधित होते देखकर श्री राम ने अपने शीतल वचनों से उनकी क्रोधाग्नि को शांत किया।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. ‘बचन बोले’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad
6. Hindi Kshitij Class 10 Poems Summary
Chapter 1: सूरदास के पद- सूरदास
Chapter 2: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद- तुलसीदास
Chapter 3: सवैया एवं कवित्त – देव
Chapter 4: आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
Chapter 5: उत्साह एवं अट नहीं रही है – निराला
Chapter 6: यह दंतुरित मुसकान– नागार्जुन
Chapter 7: छाया मत छूना- गिरिजाकुमार माथुर
Chapter 8: कन्यादान कविता – ऋतुराज
Chapter 9: संगतकार – मंगलेश डबराल
7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8
Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9
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