गीत गाने दो मुझे की व्याख्या- Geet Gaane Do Mujhe Vyakhya Class 12

Table of content:

1. सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय
2. गीत गाने दो मुझे कविता का सारांश
3. गीत गाने दो मुझे कविता
4. गीत गाने दो मुझे कविता की व्याख्या
5. गीत गाने दो मुझे प्रश्न अभ्यास
6. कठिन शब्द और उनके अर्थ
7. Class 12 Hindi Antra All Chapter

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय- Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay

  • कवि का जन्म 1896 में बंगाल में हुआ। 
  • इनके पिता का नाम रामसहाय त्रिपाठी है।
  • जब वह 3 वर्ष के थे, तब उनकी मां का देहांत हो गया था और युवा अवस्था तक पिता का साथ छूट गया।
  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद फैली महामारी में भाभी, पत्नी, भाई और चाचा चल बसे। अंत में  पुत्री की मृत्यु ने उन्हें अंदर तक जन्झोर दिया।
  • पत्नी की प्रेरणा से निराला कि साहित्य और संगीत में रुचि पैदा हुई।
  • इन्हें छायावाद का नरेश कहा जाता है।
  • निराला औझ और जागरण के कवि हैं।
  • निराला की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 ई. में इलाहाबाद में हुई।

गीत गाने दो मुझे कविता का सारांश- Geet Gaane Do Mujhe Poem Summary

गीत गाने दो कविता कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा रचित काव्य है। कवि ने अपने जीवन की मुश्किलों से बहुत कुछ सीखा है और कवि ने इस कविता के माध्यम से वही समझाने प्रयास किया है। 


कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जी ने अपने इस कविता के माध्यम से हमें जीवन में निरंतर संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। कवि का मानना है कि हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों में होश हावास नहीं खोना चाहिए।

 प्रस्तुत काव्यांश में कवि निराला ने अपने पीढ़ा को कम करने के लिए गीत गाने की बात कही है। कवि निराला का जीवन संघर्षों से भरा था। वह जीवन भर संघर्ष करते-करते थक चुके थे

एक समय पर कवि को ऐसा भी लगता है, मानो उनका अंत करीब आ गया हो। वे ऐसी स्थिति में पहुंच गए थे, जहां वो बिल्कुल हार मान चुके थे। अब उनको ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे की उनकी मृत्यु उनके निकट खड़ी हैं। आईये इस ब्लॉग में इसे विस्तार से समझते हैं।

गीत गाने दो मुझे कविता- Geet Gaane Do Mujhe Poem

गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।

भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।

गीत गाने दो मुझे कविता की व्याख्या- Geet Gaane Do Mujhe Poem Line by Line Explanation

गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।

गीत गाने दो मुझे कविता की व्याख्या- कवि ने इस पद्यांस में अपनी वेदना को कम करने के लिए गीत गाने का आवेदन किया है। वो अपने जीवन से लड़ते लड़ते थक गए हैं। इस कारण वह अत्यंत दुखी हैं।

अपने दुःख को कम करने के लिए वे गीत गाना चाहते हैं। जीवन के कठिन मार्ग पर उन्हें जो दुख मिले, उससे वे अब अपने होश खोने लगे हैं। अब कवि इतना आहत हो चुकें हैं कि वे अब होश में नहीं है। 

कवि कहते हैं कि जिनकी वजह से वह जीवन जी रहे थे, उन सहारो को भी छल कपट से पूंजी पत्तियों ने छीन लिया है। अब उनके पास जीने की कोई वजह नहीं है। आगे कवि कहता है कि उसका कंठ रुकता जा रहा है, मानो ऐसा प्रतीत होता है कि उनका अंत करीब आ गया है।

विशेष – 

  1. सांसारिक छल – प्रपंच से दुखी कवि, हृदय की पीड़ा का मार्मिक चित्रण
  2. भाषा खड़ी बोली तत्सम प्रधान
  3. ठक ठाकुरों में रुपक अलंकार है
  4. गीत – गाने में अनुप्रास अलंकार हैं
  5. मुक्त छंद
  6. कंठ रुकना, काल आना – मुहावरों का प्रयोग
  7. छायावादी शैली

भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।

गीत गाने दो मुझे कविता की व्याख्या- संसार के छल कपट के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करते हुए कवि ने आशावादी बनने की प्रेरणा दी है। कवि को हर जगह निराशा नजर आती है। लगता है अब संसार भी छल-कपट से हार गया है।

लोग एक दूसरे को अविश्वास की दृष्टि से देखते हैं। वे एक दूसरे को पहचान कर भी अनजान बन जाते हैं और सही परिचय नहीं देते। ऐसा इसलिए हो गया है क्योंकि लोगो में भाई चारे की भावना अब खत्म हो गई है ।

ऐसा लगता है जैसे भाईचारे, करुणा जैसे गुण मिट गए हैं। कवि लोगो से निवेदन करता है कि अब संघर्ष करने का समय आ गया है। अब वह उठे और संसार के शोषण, स्वार्थ और निराशा को दूर करने के लिए लड़े।

जिससे संसार में प्रेम की बुझी लौ दोबारा जल उठे और निराशा आशा में बदल जाए और लोगो के बीच भाईचारे की भावना फिर से उतपन्न हो।

विशेष – 

  1. सांसारिक छल – प्रपंच से दुखी कवि द्वारा मानवता की पुकार।
  2. भाषा खड़ी बोली तत्सम प्रधान
  3. जल उठी फिर सीचने को में विरोधाभास अलंकार है।  लोग लोगों – अनुप्रास अलंकार ।
  4. मुक्त छंद
  5. जहर भरना, लो भुजना, जल उठना मुहावरों का प्रयोग।
  6. छायावादी शैली।

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