Atmatran Class 10 Summary (आत्मत्राण – रवींद्रनाथ टैगोर)

Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 Summary

आत्मत्राण – रवींद्रनाथ टैगोर

इस ब्लॉग में आप पढ़ने वाले हैं:

रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय: रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 1861 में बंगाल में हुआ था। इनकी शिक्षा घर पर ही पूरी हुई। उन्होंने 8 साल की उम्र से कविता लिखना शुरू कर दिया। 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला कविता-संग्रह प्रकाशित किया। इन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर हमेशा से ही समाज को शिक्षित और जागरूक बनाने के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सन 1901 में शांतिनिकेतन नामक संस्था की स्थापना की। कला के इस महान संस्थान को कुछ समय बाद सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्ज़ा दे दिया।

उनके उपन्यास, कहानियाँ और गीत मुख्य रूप से राजनीतिक और व्यक्तिगत विषयों से संबंधित हैं। गीतांजलि, गोरा और घरे-बाइरे उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाएं हैं। उनकी रचनाओं को दो राष्ट्रों ने अपने राष्ट्र गानों के रूप में चुना था: भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन” और बांग्लादेश का राष्ट्रगान “आमार सोनार बांगला” दोनों गुरुदेव की कलम की ही देन हैं। श्रीलंका के राष्ट्रीय गान का मूल गीत भी श्री रवींद्रनाथ टैगोर ने ही लिखा था। गुरुदेव अपने जीवन में तीन बार महान वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टाइन से भी मिले।


रवींद्रनाथ टैगोर 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें उनकी उत्कृष्ट रचना गीतांजलि के लिए यह पुरस्कार दिया गया। टैगोर ने गद्य और कविता के नए रूपों की शुरुआत की और बंगाली साहित्य में बोलचाल की भाषा के उपयोग को भी लोकप्रिय बनाया। उन्हें आधुनिक भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्कृष्ट व रचनात्मक कलाकार माना जाता है।

आत्मत्राण – Atmatran

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

नव शिर होकर सुख के दिन में
तव मुह पहचानूँ छिन-छिन में।
दुख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।

आत्मत्राण कविता का सार – Aatmatran Summary : प्रस्तुत कविता महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा बांग्ला में लिखी गई थी। इसका हिन्दी में अनुवाद आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया। प्रस्तुत कविता में कवि ने इस बात का वर्णन किया है कि ईश्वर केवल उनकी सहायता करते हैं, जो खुद अपनी सहायता करने की कोशिश करते हैं। जो मुसीबतों का सामना करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, उन्हें ही जीवन के संघर्ष में जीत मिलती है।

अर्थात अगर आप बिना कुछ किये ये चाहें कि भगवान आपकी मुसीबतों को ख़त्म कर दें और आपको कभी कोई दुःख ना मिले, तो स्वयं भगवान भी आपके लिए कुछ नहीं करेंगे। आपको ईश्वर पर भरोसा रखते हुए, हमेशा अपनी मुसीबतों का सामना खुद से ही करना पड़ेगा, तभी ईश्वर आपको आत्मबल एवं शक्ति प्रदान करेंगे। जिससे आप तमाम मुसीबतों व कष्टों के बावजूद भी अंत में विजयी हो जाओगे और मुश्किलों के आगे कभी घुटने नहीं टेकोगे।

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Atmatran Class 10 Summary (आत्मत्राण – रवींद्रनाथ टैगोर)

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

‘आत्मत्राण’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-9 कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गयी हैं। इस कविता के रचयिता रविन्द्रनाथ टैगोर जी हैं। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहे हैं कि ईश्वर उन्हें इतनी शक्ति दें कि उनके जीवन में आने वाली हर मुसीबतों का वह डटकर सामना कर सकें।

आत्मत्राण भावार्थ : आत्मत्राण कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रवींद्रनाथ टैगोर ईश्वर से कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं आपसे यह प्रार्थना नहीं करता कि आप मुझे मुसीबतों से बचाएँ। मैं तो आपसे यह विनती कर रहा हूँ, मुझे आप इतनी शक्ति दें कि मैं इन मुसीबतों को देखकर घबराऊँ ना और इनका डटकर सामना करूँ। जब मुझे दुःख झेलना पड़े, तो भले ही आप मेरे विचलित मन को सांत्वना ना दो। परन्तु, मुझे इतनी शक्ति अवश्य देना कि मैं उस दुःख पर विजय प्राप्त कर सकूँ।

‘आत्मत्राण’ कविता का विशेष:-

1. इस कविता की भाषा सरल और सहज है।

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।

‘आत्मत्राण’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-9 कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गयी हैं। इस कविता के रचयिता रविन्द्रनाथ टैगोर जी हैं। कवि ईश्वर से कहते हैं कि मेरा आत्मबल हमेशा ऐसे ही बना रहे। 

आत्मत्राण भावार्थ : आत्मत्राण कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं, अगर मुसीबत के समय कोई मेरी सहायता करने वाला ना हो, तो मुझे कोई परवाह नहीं। प्रभु! सिर्फ़ मेरा आत्मबल कभी कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर मुझे इस संसार में केवल धोखा व दुःख प्राप्त हो और मुझे हानि उठानी पड़े, तो भी मेरे मन में कोई अफसोस या मलाल नहीं होना चाहिए। आगे कवि कहते हैं कि वे ईश्वर से यह नहीं चाहते हैं कि उनकी नाव ईश्वर पार लगा दें। वे तो बस ईश्वर से इतनी शक्ति पाना चाहते हैं कि वे अपनी नाव को स्वयं ही जीवन के तमाम तूफानों से निकाल कर किनारे तक पहुँचा सकें।

‘आत्मत्राण’ कविता का विशेष:-

1. ‘कोई कहीं’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. इस कविता की भाषा सरल और सहज है।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

नव शिर होकर सुख के दिन में
तव मुह पहचानूँ छिन-छिन में।
दुख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।

‘आत्मत्राण’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-9 कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गयी हैं। इस कविता के रचयिता रविन्द्रनाथ टैगोर जी हैं। कवि ईश्वर से कहते हैं कि मेरी मुसीबतों का भार कम भले ही मत करें लेकिन मेरी शक्ति को बढ़ा दें।

आत्मत्राण भावार्थ : यहां कवि कह रहे हैं – हे प्रभु! आप भले ही मेरी मुसीबतों का भार कम कर के मेरी सहायता ना करो, लेकिन मुझे इतनी शक्ति ज़रूर देना कि मैं निर्भय होकर सभी मुसीबतों का सामना कर सकूँ। भगवान! आप मुझे ऐसी शक्ति दें कि अपने सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूल पाऊँ। दुःख से भरी काल-रात्रि में जब सभी मुझे धोखा दे दें और मेरी निंदा करें, तो ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी कभी मेरे मन में आपके लिए तिनका-भर भी संदेह नहीं आए। हे भगवान! मैं सच्चे दिल से आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे रोम-रोम में ये सारी शक्तियाँ भर दें।

‘आत्मत्राण’ कविता का विशेष:-

1. छिन-छिन में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. इस कविता की भाषा सरल और सहज है।

Hindi Sparsh Class 10 Chapters Summary
Chapter 1 : कबीर की साखी- कबीर
Chapter 2 : मीरा के पद- मीरा
Chapter 3 : बिहारी के दोहे- बिहारी
Chapter 4 : मनुष्यता– मैथिलीशरण गुप्त
Chapter 5 : पर्वत प्रदेश में पावस– सुमित्रानंदन पंत
Chapter 6 : मधुर मधुर मेरे दीपक जल– महादेवी वर्मा 
Chapter 7 : तोप– वीरेन डंगवाल
Chapter 8 : कर चले हम फिदा– कैफी आजमी
Chapter 9 : आत्मत्राण– रवींद्रनाथ टैगोर

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Question Answer
Chapter 1: Kabir Ki Sakhi Ncert Solutions
Chapter 2: Mera Bai Ke Pad Ncert Solutions
Chapter 3: Bihari Ke Dohe Ncert Solutions 
Chapter 4: Manushyata Ncert Solutions 
Chapter 5: Parvat Pradesh Mein Pavas NCERT Solutions
Chapter 6: Madhur Madhur Mere Dipak Jal NCERT Solutions 
Chapter 7: Top NCERT Solutions 
Chapter 8: Kar Chale ham Fida NCERT Solutions 
Chapter 9: Atmatran NCERT Solutions 

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