Sudama Charit Class 8 Meaning in Hindi – सुदामा चरित कविता का भावार्थ

वसंत भाग 3 कक्षा 8 पाठ 12 – Hindi Vasant Class 8 Chapter 12 Solutions

Sudama Charit Class 8 Meaning in Hindi – सुदामा चरित कविता का भावार्थ

नरोत्तमदास का जीवन परिचय: श्री नरोत्तमदास जी हिंदी साहित्य के एक महान कवि हैं। ये सगुण भक्ति के कवि हैं। इनका जन्म वाड़ी, सीतापुर, उत्तर प्रदेश हुआ। इनकी जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है, लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं कि इनका जन्म सन् 1493 में हुआ। सुदामा चरित इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसे हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर माना जाता है।

Hindi Vasant Class 8 Solutions All Chapters
Chapter 01. ध्वनि(सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला”)
Chapter 04. दीवानों की हस्ती(भगवती चरण वर्मा)
Chapter 06. भगवन के डाकिये(रामधारी सिंह दिनकर)
Chapter 08. यह सबसे कठिन समय(जया जादवानी)
Chapter 09. कबीर की सखियाँ (कबीर)
Chapter 12. सुदामा चरित(नरोत्तमदास)
Chapter 15. सूर के पद(सूरदास)


Sudama Charit Class 8 – सुदामा चरित

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥


ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥ 

कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥

वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की बात।
यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जात॥
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥
हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकै, अब धन धरौ सकेलि॥

वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ।
वैसेइ कंचन के सब धाम हैं, द्वारिके के महिलों फिरि आयौ।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ।
पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न पायौ॥

कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती कहँ, लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँ, कोमल सेज पै नींद न आवत।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभु, के परताप तै दाख न भावत॥


सुदामा चरित कविता का सारांश – Sudama Charit Ka Bhavarth: सुदामा चरित कविता में कवि नरोत्तमदास जी ने श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती का वर्णन किया है। उन्होंने कविता में बताया है कि सुदामा जी अपनी गरीबी और बदहाली से तंग आकर अपने परम मित्र श्री कृष्ण से मदद मांगने जाते हैं। वहाँ उनकी हालत देखकर द्वारपाल उन्हें महल में घुसने नहीं देते। फिर जब श्रीकृष्ण को उनके आने का पता चलता है, तो दौड़े चले आते हैं और अपने अश्रुओं से सुदामा जी के पैर धुलाते हैं।

फिर श्रीकृष्ण सुदामा जी की पोटली से चावल खा लेते हैं और उन्हें उलाहना देते हैं कि कैसे एक बार बचपन में सुदामा उनके हिस्से के चने खा गए थे। इस तरह खूब आदर सत्कार करके प्रभु सुदामा जी को विदा कर देते हैं।

सुदामा जी को लौटते समय दुख होता है कि श्रीकृष्ण ने उन्हें बिना कुछ दिए ही विदा कर दिया। मगर, जब वो अपने गाँव पहुँचते हैं, तो उन्हें अपनी झोंपड़ी की जगह आलीशान महल मिलता है। इसे देखकर वो भावविभोर हो जाते हैं और श्रीकृष्ण की महिमा गाते हैं।

Sudama Charit Class 8 Meaning in Hindi – सुदामा चरित कविता का भावार्थ

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

सुदामा चरित प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर श्रीकृष्ण से आर्थिक सहायता की उम्मीद से द्वारका जा पहुंचे।

सुदामा चरित भावार्थ: इस पद में कवि ने सुदामा के श्रीकृष्ण के महल के द्वार पर खड़े होकर अंदर जाने की इजाज़त मांगने का वर्णन किया है।

श्रीकृष्ण का द्वारपाल आकर उन्हें बताता है कि द्वार पर बिना पगड़ी, बिना जूतों के, एक कमज़ोर आदमी फटी-सी धोती पहने खड़ा है। वो आश्चर्य से द्वारका को देख रहा है और अपना नाम सुदामा बताते हुए आपका पता पूछ रहा है।

सुदामा चरित विशेष :

1.’द्विज दुर्बल’ और दीन दयाल’ में अनुप्रास अलंकार है

2. इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥ 

सुदामा चरित प्रसंग:प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। इस पद में कवि ने सुदामा की दयनीय दशा को देखकर श्रीकृष्ण के मन के भावों का वर्णन किया है।

सुदामा चरित भावार्थ: द्वारपाल के मुँह से सुदामा के आने का ज़िक्र सुनते ही श्रीकृष्ण दौड़कर उन्हें लेने जाते हैं। उनके पैरों के छाले, घाव और उनमें चुभे कांटे देखकर श्रीकृष्ण को कष्ट होता है, वो कहते हैं कि मित्र तुमने बड़े दुखों में जीवन व्यतीत किया है। तुम इतने समय मुझसे मिलने क्यों नहीं आए? सुदामा जी की दयनीय दशा देखकर श्रीकृष्ण रो पड़ते हैं और पानी की परात को छुए बिना, अपने आंसुओं से सुदामा जी के पैर धोते हैं।

सुदामा चरित विशेष :

1. ‘पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।

2. इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

3. ‘करुना करिके करुनानिधि’ में अनुप्रास अलंकार है

कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥

सुदामा चरित प्रसंग:प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। श्रीकृष्ण सुदामा से मिलकर अपने बचपन की एक बात को याद करते है।

सुदामा चरित भावार्थ: सुदामा जी की अच्छी आवभगत करने के बाद कान्हा उनसे मजाक करने लगते हैं। वो सुदामा जी से कहते हैं कि ज़रूर भाभी ने मेरे लिए कुछ भेजा होगा, तुम उसे मुझे दे क्यों नहीं रहे हो? तुम अभी तक सुधरे नहीं। जैसे, बचपन में जब गुरुमाता ने हमें चने दिए थे, तो तुम तब भी चुपके से मेरे हिस्से के चने खा गए थे। वैसे ही आज तुम मुझे भाभी का दिया उपहार नहीं दे रहे हो।

सुदामा चरित विशेष :

1 .इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है

2. इसमें सवैया छंद है

3. सुधा-रस में रूपक अलंकार है

वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की बात।
यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जात॥
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥
हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकै, अब धन धरौ सकेलि॥

सुदामा चरित प्रसंग:प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। सुदामा को कृष्ण से मिलकर घर लौटते हुए बहुत निराश होते हैं। सुदामा इस बात से दुखी थे कि मेरे मित्र ने मुझे कुछ भी भेंट नहीं दिया।

सुदामा चरित भावार्थ: इस पद में सुदामा के वापिस घर की तरफ लौटने का वर्णन है। वो सोचते हैं कि मैं मदद की उम्मीद लेकर श्रीकृष्ण के पास आया, लेकिन श्रीकृष्ण ने तो मेरी कोई मदद ही नहीं की। लौटते समय निराश और खिन्न सुदामा जी के मन में कई विचार घूम रहे थे, वो सोच रहे थे कि कृष्ण को समझना किसी के वश की बात नहीं है। एक तरफ तो उसने मुझे इतना आदर-सम्मान दिया, वहीं दूसरी तरफ मुझे बिना कुछ दिए लौटा दिया। 

मैं तो यहां आना ही नहीं चाहता है, वो तो मेरी धर्मपत्नी ने मुझे जबरदस्ती द्वारका भेज दिया। ये कृष्ण तो खुद बचपन में ज़रा-से मक्खन के लिए पूरे गाँव के घरों में घूमता था, इससे मदद की आस लगाना ही बेकार था।

सुदामा चरित विशेष :

1. इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है

2. ‘घर-घर’ में पुनरुक्ति प्रकाश और ‘धन धरौ’ में अनुप्रास अलंकार है

3. इसमें दोहा छंद का प्रयोग हुआ है  

वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ।
वैसेइ कंचन के सब धाम हैं, द्वारिके के महिलों फिरि आयौ।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ।
पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न पायौ॥

सुदामा चरित प्रसंग:प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। सुदामा जब अपने गाँव पहुँचते है तो अपनी झोपड़ी न मिलने पर चिंतित हो जाते हैं।

सुदामा चरित भावार्थ: जब सुदामा अपने गाँव पहुंचते हैं, तो उन्हें आसपास सबकुछ बदला-बदला दिखता है। सामने बड़े महल, हाथी-घोड़े, गाजे-बाजे आदि देखकर सुदामा जी सोचते हैं कि कहीं मैं रास्ता भटककर फिर से द्वारका नगरी तो नहीं आ पहुंचा हूँ? मगर, थोड़ा ध्यान से देखने पर वो समझ जाते हैं कि ये उनका अपना गाँव ही है। फिर उन्हें अपनी झोंपड़ी की चिंता सताती है, वो बहुत लोगों से पूछते हैं, मगर अपनी झोंपड़ी को ढूँढ नहीं पाते।

सुदामा चरित विशेष :

1. इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है

2. इसमें सवैया छंद का प्रयोग हुआ है

कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती कहँ, लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँ, कोमल सेज पै नींद न आवत।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभु, के परताप तै दाख न भावत॥

सुदामा चरित प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग 3’ कविता ‘सुदामा चरित’ से ली गई है। इसके कवि नरोत्तम दास जी है। सुदामा श्री कृष्ण की महिमा का गुण-गान करने लगते हैं ।

सुदामा चरित भावार्थ: जब सुदामा जी को श्रीकृष्ण की महिमा समझ आती है, तो वो उनकी महिमा गाने लगते हैं। वो सोचते हैं कि कहाँ तो मेरे सिर पर टूटी झोंपड़ी थी, अब सोने का महल मेरे सामने खड़ा है। कहाँ तो मेरे पास पहनने को जूते नहीं थे, अब मेरे सामने हाथी की सवारी लेकर महावत खड़े हैं। कठोर ज़मीन की जगह मेरे पास नरम बिस्तर हैं। पहले मेरे पास दो वक्त खाने को चावल भी नहीं होते थे, अब मनचाहे पकवान हैं। ये सब प्रभु की कृपा से ही संभव हुआ है, उनकी लीला अपरम्पार है। 

सुदामा चरित विशेष :

1. ‘कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत।’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।

2. इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है


सुदामा चरित कविता के प्रश्न-उत्तर – Ncert Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 

सुदामा चरित प्रश्न 1: सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
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सुदामा चरित उत्तर. सुदामा जी की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण को बहुत दुख हुआ। इस वजह से उनकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी। उन्होंने सुदामा जी के पैर धोने के लिए पानी मंगवाया था, लेकिन वो इतने रोए कि उनके आँसुओं से ही सुदामा जी के पैर धुल गए।

सुदामा चरित प्रश्न 2:“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
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सुदामा चरित उत्तर. प्रस्तुत पंक्ति में कवि बताते हैं कि जब सुदामा जी दयनीय अवस्था में श्रीकृष्ण के पास पहुँचे, तो प्रभु उन्हें देखकर बहुत दुखी हुए और उनका मन भर आया। उन्होंने सुदामा जी के पैर धोने के लिए जल मंगवाया था, लेकिन सुदामा जी की दुर्दशा देखकर वो रो पड़े और उनके आँसुओं की धारा से सुदामा जी के पैर धुल गए। उन्होंने परात के पानी को छुआ तक नहीं।

सुदामा चरित प्रश्न 3:“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
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सुदामा चरित उत्तर.
(क) यह पंक्ति श्रीकृष्ण अपने बचपन के मित्र सुदामा जी से कह रहे हैं।
(ख) सुदामा जी अपनी पत्नी द्वारा दिये गए चावलों को संकोच व लज्जा की वजह से श्रीकृष्ण को नहीं दे पा रहे थे। तब श्रीकृष्ण इस बात को भांप जाते हैं और मजाक करते हुए उन्हें कहते हैं कि तुम तो चोरी में पहले से ही निपुण हो। भाभी ने मेरे लिए पोटली में जो भेजा है, जल्दी से मुझे दे दो।
(ग) श्रीकृष्ण की इस शिकायत के पीछे की कहानी कुछ इस तरह है –
बचपन में सुदामा जी और श्रीकृष्ण संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे। एक दिन जब सुदामा जी और श्रीकृष्ण जंगल में लकड़ियां लेने जा रहे थे, तब गुरुमाता ने सुदामा जी को चने देते हुए कहा कि तुम दोनों आधे-आधे खा लेना। परन्तु सुदामा जी यह बात श्रीकृष्ण को नहीं बताते हैं और चुपके से उनके हिस्से के चने भी खा जाते हैं। इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण सुदामा जी को उसी चोरी का उलाहना दे रहे हैं।

सुदामा चरित प्रश्न 4: द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
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सुदामा चरित उत्तर. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा जी बहुत हताश थे। वो सोच रहे थे कि मेरे जाने पर कृष्ण मेरा कितना आदर-सत्कार किया, मगर विदाई के समय कुछ भी नहीं दिया। क्या कृष्ण का प्रेम दिखावटी था? सुदामा जी श्रीकृष्ण के व्यवहार पर थोड़ा खीज भी रहे थे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि प्रभु उनकी गरीबी दूर करने के लिए उन्हें ख़ूब धन-दौलत देंगे। मगर श्रीकृष्ण ने तो उन्हें चोरी का उलाहना देकर खाली हाथ ही विदा कर दिया।

सुदामा चरित प्रश्न 5: अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
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सुदामा चरित उत्तर. जब सुदामा जी अपने गाँव वापिस लौटे, तो उन्हें अपनी झोंपड़ी कहीं नहीं दिखी। तब उनके मन में पहला ख्याल आया कि कहीं वो मार्ग भटककर फिर से द्वारका तो नहीं चले आए हैं? मगर गौर से देखने पर वो अपना गाँव पहचान गए और लोगों से अपनी झोंपड़ी का पता पूछते हुए गाँव में घूमने लगे।

सुदामा चरित प्रश्न 6: निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
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सुदामा चरित उत्तर. श्रीकृष्ण की कृपा से सुदामा जी की ग़रीबी दूर हो गयी। सुदामा जी की टूटी-फूटी झोंपड़ी की जगह अब सोने का आलीशान महल बना था। पहले उनके पास पहनने के लिए जूते तक नहीं थे, अब उनके पास घूमने के लिए हाथी-घोड़ों की सवारियाँ थीं। कहाँ वो पहले कठोर धरती पर सोते थे और अब उनके पास सोने के लिए शानदार मखमली बिस्तर थे। पहले कभी-कभी उन्हें खाने के लिए चावल भी नहीं मिलते थे और अब वो मनचाहे पकवान खा सकते थे। मगर, प्रभु से बिछड़कर उन्हें वो सब अच्छा नहीं लगता।

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