पथिक कविता प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
उत्तर: पथिक समुद्र के तट पर खड़ा होकर प्रकृति के मनोरम दृश्य को निहार रहा है।
ऊपर आकाश में बादलों का समूह सूर्य के समक्ष हर पल नए नए रूप बना कर नृत्य कर रहा है, नीचे समुद्र की लहरें अठखेलियाँ कर रही हैं।
नीचे नीला समुद्र है, ऊपर नीला आकाश है, यह दृश्य देख कर पथिक का मन इन रंग-बिरंगे बादलों पर बैठ कर समुद्र और आकाश के बीच विचरन करना चाहता है।
प्रश्न 2. सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: सूर्योदय वर्णन के किए कवि कहते हैं कि उगता हुआ सूर्य ऐसा प्रतीत होता है मानो आधा सूर्य समुद्र के ऊपर और आधा सूर्य समुद्र के अंदर है। और ये आधा सूर्य माता लक्ष्मी के स्वर्ण मंदिर के गुंबद के समान प्रतीत होता है।
समुद्र के तल पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो ऐसा लगता है जैसे माता लक्ष्मी की सवारी को धरती पर उतारने के लिए समुद्र ने एक प्यारी सी सोने की सड़क बना दी हो।
प्रश्न 3. आशय स्पष्ट करें-
(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।
(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम कहानी।
जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
उत्तर: (क) इन पंक्तियों में कवि कहता है कि आधी रात बीतने के बाद जब अंधेरा हर तरफ छा जाता है तब ईश्वर धीमी गति से मुसकुराते हुए आता है और समुद्र तट पर खड़े होकर आकाशगंगा के मधुर गीत गाता है।
(ख) इन पंक्तियों में कवि कहता है कि प्रकृति की प्रेम-लीला से वन-उपवन-पर्वत-समुद्रतल हर जगह बारिश होने लगती है। हर लहर, तट, पेड़, तिनके, आकाश, पर्वत पर प्रकृति की यह प्रेम कहानी लिखी हुई है।
यह सब देख कर मेरी आत्मा में प्रलय होने लगता है और मेरी आंखो से आँसू गिरने लगते हैं। यह प्रेम कहानी इतनी मधुर और मनोहर है कि मेरा मन करता है कि मैं इसका एक अक्षर बन जाऊँ और संसार की आवाज़ बन जाऊँ।
प्रश्न 4. कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।
उत्तर: प्रस्तुत कविता में कई स्थानों पर कवि ने प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा है।
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
भाव: इन पंक्तियों में कवि ने बादलों का वर्णन करते हुए कहा है कि आकाश में हर क्षण रंग-बिरंगे बादलों का समूह नए-नए रूप बना कर सूर्य के सामने नृत्य कर रहा है।
रत्नाकर गजन करता है, मलयानिल बहता है।
भाव: कवि कहता है कि समुद्र गर्जना कर कर रहा है और पर्वत से आने वाली सुगंधित हवा बह रही है ।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।
भाव: कवि यहाँ पर कहता है कि लक्ष्मी की सवारी को धरती पर उतारने के लिए समुद्र ने सोने की सड़क बना दी है।
निर्भय, दृढ़, गभीर भाव से गरज रहा सागर है।
भाव: कवि कहता है कि समुद्र निडर , गंभीर एवं दृढ़ होकर गर्जना कर रहा है।
जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता है।
अतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता हैं।
भाव: कवि ने इन पंक्तियोंमें कहा है कि जब आधी रात हो जाती है तब गहरा अंधेरा संसार को ढ़क लेता है और आकाश में तारों को छिटका देता है।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।
भाव: कवि कहता है कि ईश्वर मानवीय रूप में धीमी गति से आता है और समुद्रतट पर खड़े होकर आकाशगंगा के मधुर गीत गाता है।
उसमें ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।
पक्षी हर्ष सभाल न सकतें मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं-
भाव: कवि कहता है कि यह सब देख कर मुग्ध होकर आकाश में चाँद भी हंस देता है , पेड़ विभिन्न प्रकार के फूल-पत्तियों से खुद को सजा लेते हैं। पक्षी हर्षित होकर चहक उठते हैं , फूल सांस लेकर महक उठते हैं।
वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
भाव: कवि कहता है कि प्रकृति का मनोहर दृश्य देख कर वन-उपवन-पर्वत-समुद्रतट हर जगह बादल बरस पड़ते हैं।
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पथिक कविता रामनरेश त्रिपाठी
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