Table of content
- कुंवर नारायण का जीवन परिचय
- कविता के बहाने कविता का सारांश
- कविता के बहाने कविता
- कविता के बहाने कविता की व्याख्या
- कविता के बहाने प्रश्न अभ्यास
- बात सीधी थी कविता
कवि कुंवर नारायण का जीवन परिचय- KAVI KUNWAR NARAYAN JI KA JEEVAN PARICHAY
कवि कुंवर नारायण जी का जन्म उत्तर प्रदेश में 19 सितंबर 1927 को हुआ था। कवि कुंवर नारायण इंटर की परीक्षा पास करने के उपरांत विज्ञान के विषय को लेकर आगे बढ़े। उसके पश्चात फिर वह साहित्य के विद्यार्थी बने और लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. की उपाधि हासिल की।
एम.ए.की उपाधि हासिल करने के बाद कवि कुंवर नारायण ने ठीक 5 वर्ष बाद 1956 में अपना प्रथम काव्य चक्रव्यू की रचना की उस वक्त कवि की उम्र मात्र 21 वर्ष थी। हिंदी साहित्य जगत में कवि कुंवर नारायण जी का बहुत ही बड़ा एवं महत्वपूर्ण योगदान है। कविताओं के अतिरिक्त कवि कुंवर नारायण सिंह चिंतनपरख लेख, कहानियां और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर भी अपने अनुसार समीक्षा लिखा करते थे।
कवि कुंवर नारायण सिंह अपने व्यापक एवं जटिल रचनाओं के कारण बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। इनकी प्रसिद्धि इस तरह थी कि देश एवं विदेशों में भी इनकी कविताएं एवं कहानियों को विदेशी भाषा में अनुवाद किया जा चुका है।
सम्मान- वर्ष 2005 में कवि कुंवर नारायण जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया एवं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 6 अक्टूबर को उन्हें भारत देश के सबसे बड़े साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2009 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
कविता के बहाने कविता का सारांश- KAVITA KE BAHANE POEM SUMMARY
कविता के बहाने कविता के रचयिता कवि कुंवर नारायण जी हैं। इस कविता को इन दिनों नामक काव्य संग्रह से लिया गया है। कविता के बहाने कविता में एक यात्रा की शुरुआत होती है, जो चिड़िया से लेकर फूल तक जाती है और फूल से लेकर बच्चों तक यह यात्रा भ्रमण करती है।
इस कविता में कुल 3 छंद है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चिड़िया, फूल एवं बच्चों से कविता की तुलना करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि हीरो की तरह कविता में भी फर्क होता है, फूल की तरह यह भी खिलते हैं बच्चों की तरह यह भी बिना किसी भेदभाव के ही निर्मित होते हैं लेकिन फिर भी कविता और प्रकृति में थोड़ा सा अंतर है चिड़िया, फूल सब सीमित होते हैं लेकिन कविता कभी भी सीमित नहीं होता है।
कविता के बहाने कविता- KAVITA KE BAHANE POEM
कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लया उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
कविता के बहाने कविता का भावार्थ- KAVITA KE BAHANE POEM EXPLANATION
कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लया उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?
भावार्थ- प्रस्तुत काव्य पंक्तियां कवि कुंवर नारायण जी द्वारा रचित कविता के बहाने काव्य से ली गई हैं। इस कविता में कवि कहते हैं कि कवि जो कविताएं लिखता है, वह कविता कल्पना के उड़ान के जैसे होता है। यह उड़ान चिड़ियों की उड़ान जैसी होती है। लेकिन चिड़ियों के उड़ान और कविता के उड़ान में थोड़ा सा फर्क है।
वह अंतर यह है कि चिड़िया जब उड़ती है सीमा में बंधकर उड़ती है। लेकिन कवि कभी भी अपनी रचना किसी भी सीमा में बंधकर नहीं रचता है। कवि अपने कविता में जो पंख लगाकर उड़ता है, उस पंख के बारे में चिड़िया क्या जाने।
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
भावार्थ- कवि फिर अपनी कविता की तुलना फूलों से करते हैं और कहते हैं कि कवि की कविता में जो कल्पना शक्ति होती है वह कल्पना फूलों के जैसे ही खिलती है। लेकिन फूल के खिलने में एक सीमा रहती है और कविता के खिलने में किसी भी प्रकार की कोई सीमा नहीं रहती है।
फूल सुबह खिलता है और शाम तक वह मुरझा जाता है। एक निश्चित समय में फूल खिलते हैं और एक निश्चित समय में ही उसका अस्तित्व भी नष्ट हो जाता है। लेकिन कविता रूपी फूल ना ही किसी विशेष समय में खिलता है और ना ही वह समाप्त होता है। फूल की तुलना कविता के साथ नहीं की जा सकती ऐसा कवि ने बताने का प्रयास किया है।
कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
भावार्थ- कवि फिर बच्चों के खेल के विषय में बताते हुए कहते हैं कि जिस तरह से बच्चे कभी भी कुछ भी खेलने लग जाते हैं। उसी तरह कविता भी सीमा बंधी नहीं होती वह कुछ भी लिख सकती है। जिस तरह बच्चे बिना किसी भेदभाव के सभी के साथ घुल- मिलकर रहते हैं ठीक उसी तरह कविता भी बिना किसी भेदभाव के सभी को अपने कविता में स्थान देकर आगे बढ़ती है और सब को अपना लेती है।
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