Baat Sidhi Thi Par Class 12 Summary – Kunwar Narayan

Table of content

  1. कुंवर नारायण का जीवन परिचय
  2. बात सीधी थी पर कविता का सारांश 
  3. बात सीधी थी पर कविता 
  4. बात सीधी थी पर कविता की व्याख्या
  5. कविता के बहाने कविता

कवि कुंवर नारायण का जीवन परिचय- KAVI KUNWAR NARAYAN JI KA JEEVAN PARICHAY

कवि कुंवर नारायण जी का जन्म उत्तर प्रदेश में 19 सितंबर 1927 को हुआ था। कवि कुंवर नारायण इंटर की परीक्षा पास करने के उपरांत विज्ञान के विषय को लेकर आगे बढ़े। उसके पश्चात फिर वह साहित्य के विद्यार्थी बने और उन्होंने 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. की उपाधि हासिल की।

एम.ए.की उपाधि हासिल करने के बाद कवि कुंवर नारायण ने ठीक 5 वर्ष बाद 1956 में अपना प्रथम काव्य चक्रव्यूह की रचना की उस वक्त कवि की उम्र मात्र 21 वर्ष थी। हिंदी साहित्य जगत में कवि कुंवर नारायण जी का बहुत ही बड़ा एवं महत्वपूर्ण योगदान है। कविताओं के अतिरिक्त कवि कुंवर नारायण सिंह चिंतनपरख लेख, कहानियां और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर भी अपने अनुसार समीक्षा लिखा करते थे।


कवि कुंवर नारायण सिंह अपने व्यापक एवं जटिल रचनाओं के कारण बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। इनकी प्रसिद्धि इस तरह थी कि देश एवं विदेशों में भी इनकी कविताएं एवं कहानियों का विदेशी भाषा में अनुवाद किया जा चुका है।

सम्मान- वर्ष 2005 में कवि कुंवर नारायण जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया एवं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 6 अक्टूबर को उन्हें भारत देश के सबसे बड़े साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया।

वर्ष 2009 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।

बात सीधी थी पर कविता का सारांश- BAAT SIDHI THI PAR POEM SHORT SUMMARY

प्रस्तुत कविता में कवि ने भाषा की जटिलता की ओर कटाक्ष किया है। यह कविता खड़ी बोली में रचित है। मुहावरे एवं अलंकारों का भी प्रयोग किया गया है। भाषा को सही ढंग से प्रस्तुत ना करने के कारण कवि को प्रचुर मात्रा में असफलता भी प्राप्त हुई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने सरलता से अपने काम को करने की बात कही है। मुक्तक छंद का प्रयोग हुआ है, व्यंग्यात्मक भी बातें निहित है इस कविता में। 

खड़ी बोली का प्रयोग करने के साथ-साथ भाषा का मानकीकरण भी किया है। अलंकारों का भी प्रयोग प्रचुर मात्रा में इस काव्य में किया गया है।

बात सीधी थी पर कविता- BAAT SIDHI THI PAR KAVITA

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फंस गई।

उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।

ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”

बात सीधी थी पर भावार्थ-  BAAT SIDHI THI PAR POEM LINE BY LINE EXPLANATION

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फंस गई।

उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-3 कविता-‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि कुंवर नारायण जी हैं। कवि ने अपनी बात को लोगों के सामने प्रस्तुत करने के ढंग का वर्णन किया है।

भावार्थ- ‌इस कविता में कवि कहते हैं कि वे अपने मन के भावों को हमेशा सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहते थे। परंतु समाज के कारण वह अपनी बातों को सही ढंग से प्रस्तुत करने में असमर्थ रहते थे।

कवि कहते हैं कि मैंने अपनी बात को कहने के लिए शब्दों का प्रयोग किया,, वाक्यांशों का प्रयोग किया सभी को इधर-उधर बदलकर रखा।  लेकिन फिर भी अपनी बात को मैं ना कह सका, जो मैं वास्तव में कहना चाहता था और शायद यही कारण है कि वह असफल रह गए। अपनी बातों को कहने में समय के साथ-साथ उनकी भाषा और भी जटिल होती चली गई।

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:-

1. भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. ‘साथ साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-3 कविता-‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि कुंवर नारायण जी हैं। कवि ने बताया है कि उनकी भाषा से दर्शकों को प्रेरणा मिल रही थी।

भावार्थ- फिर आगे बढ़ते हुए कवि कहते हैं कि जब उनकी बात अपने आप में थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी हो गई, तब भी उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। समाधान ढूंढने के स्थान पर वह और भी ज्यादा शब्दों में घिरकर फँस चुके थे। इन्हीं सब कारणों से उनकी भाषा और भी जटिल हो गई और जो भी भाषा का उन्होंने प्रयोग किया था। वह भाषा भले ही उन्हें ना समझ में आ रही हो लेकिन उनके दर्शकों को उस भाषा से प्रेरणा मिल रही थी। शायद यही कारण है कि दर्शक उनकी बातों को सुनकर उनकी प्रशंसा कर रहे थे।

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:-

1. भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. बेतरह, तमाशबीनों, करतब उर्दू भाषा के शब्द हैं।

3. साफ सुनाई, वाह वाह में अनुप्रास अलंकार है।

4. ‘वाह वाह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।

ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-3 कविता-‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि कुंवर नारायण जी हैं। कवि अपनी बात को बहुत पेचीदा ढंग से कहते हैं।

भावार्थ- अंत में कवि अपनी बात को कहने के लिए कुछ अपने मन से बना-बना कर बातों को कहने लगे। जिसका परिणाम यह हुआ जिसका कवि को सच में डर था। कवि चूड़ियों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस तरीके से उसमें ज्यादा जोर देकर पेंच देने से चूड़ियां टूट जाती है। ठीक उसी प्रकार यदि शब्दों को ज्यादा मरोड़ा जाए तो शब्दों का सही मायने में जो अर्थ निकलता है, वह अर्थ निकलने के बजाय ऐसा लगता है कि मानो उसमें कुछ मिलाव को गई है यानि शब्द का सही अर्थ उल्टा पड़ जाता है।

जब अंत में कवि अपनी बात को नहीं कह सके, तो उन्होंने अपनी बात को कहना बंद कर दिया और उनकी बात भले बात लग रही हो लेकिन उसमें किसी भी तरह का कोई भी भाव नहीं था। ना ही शब्दों में कोई ताकत थी अर्थात कविता में जो प्रभाव कवि लाना चाहते थे। वह प्रभाव ही नहीं आया उनकी बात ही स्पष्ट ना हो सकी और अंत में कवि अपना पसीना पोंछते हैं और कहते हैं क्या आपने कभी भी भाषा को सरल एवं सहज तरीके से प्रयोग करना सीखा है और यह कहकर इस कविता का अंत हो जाता है।

‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रसंग:-

1. भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है।

2. प्रस्तुत पंक्तियों में प्रश्न अलंकार है।

3. सहूलियत, बरतना उर्दू भाषा के शब्द हैं।

4. ज़ोर जबरदस्ती, ठीक ठाक, पसीना पोंछते में अनुप्रास अलंकार है।

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