इस जल प्रलय में पाठ का सारांश कक्षा 9 कृतिका पाठ 1

इस चैप्टर में हम कक्षा 9 कृतिका पाठ 1 इस जल प्रलय में पाठ का सारांश – Kritika Class 9 Chapter 1 Is Jal Pralay Mein Summary पढ़ेंगे और समझेंगे।  

कक्षा 9 कृतिका पाठ 1 इस जल प्रलय में पाठ का सारांश

इस जल प्रलय में के लेखक का परिचय 

फणीश्वर नाथ ‘ रेणु ‘ का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उस समय यह पूर्णिया जिले में था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु ने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की। इन्होंने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सन् 1942 में की। जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में सन् 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया। जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। ‘रेणु’ द्वारा लिखित प्रसिद्ध रचनाएं–

उपन्यास–  मैला आंचल, परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, कलंक मुक्ति, पलटू बाबू रोड। 


कथा-संग्रह– ठुमरी, एक आदिम रात्रि की महक, अग्निखोर, एक श्रावणी दोपहर की धूप, अच्छे आदमी। 

रिपोतार्ज – ऋणजल-धनजल, नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्वे।

प्रसिद्ध कहानियाँ –  मारे गए गुलफाम (तीसरी कसम), एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस, संवदिया।

पुरस्कार– पहले उपन्यास ‘मैला आंचल’ के लिए पद्मश्री से सम्मानित।

इस जल प्रलय में पाठ की भूमिका 

‘इस जल प्रलय में’ ऋणजल- धनजल नाम से रेणु ने सूखा और बाढ़ पर कुछ अत्यंत मर्मस्पर्शी रिपोर्ताज लिखे हैं, जिसका एक सुंदर उदाहरण है, इस जल प्रलय में। इस पाठ में उन्होंने सन् 1967 की पटना की प्रलयकारी बाढ़ का अत्यंत रोमांचक वर्णन किया है, जिसके वे स्वयं भुक्तभोगी रहे। उस कठिन आपदा के समय की मानवीय विवशता और यातना को ‘रेणु’ ने शब्दों के माध्यम से साकार किया है।

इस जल प्रलय में पाठ के पात्रों का परिचय 

1. लेखक : फणीश्वरनाथ रेणु, लेखक द्वारा बाढ़ का अनुभव, बाढ़ आने से पहले तैयारियाँ   

2. कवि मित्र : लेखक के मित्र, लेखक के साथ बाढ़ के जलप्रलय को देखने के लिए उत्सुक हैं

3. गुरूजी सतीनाथ भादुड़ी जी : लेखक अपने गुरूजी के साथ गंगा में बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद करने के लिए जाते हैं।

4. डॉक्टर : लेखक एक डॉक्टर के साथ बाढ़ से प्रभावित ‘वापसी थाना’ गाँव में जाकर बीमार लोगों को नाव में बैठाकर कैंप लेकर जाते हैं।

5. एक बीमार नौजवान और उसका कुत्ता : नौजवान का अपने कुत्ते के प्रति स्नेह।

6. अन्य पात्र : बाढ़ से प्रभावित लोग, दुकानदार और अन्य पेशे से जुड़े लोग।

Kritika Class 9 Chapter 1 Is Jal Pralay Mein Summary

लेखक के गाँव में बाढ़ से पीड़ित लोगों का आना

Is jal pralay mein Summary: इस पाठ में लेखक फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने बाढ़ की विभीषिका (भयंकर) को प्रत्यक्ष रूप से देखा और अनुभव किया हैलेखक उस गाँव के रहने वाले हैं जहाँ हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की कोसी, पनार, महानंदा और गंगा की बाढ़ से पीड़ित लोग रहने आते हैं। वहाँ की बंजर जमीन पर गाय, भैंसों और बकरियों के झुंड और लोगों की भीड़ से बाढ़ के प्रलय का पता चल जाता था। लेखक का जन्म परती क्षेत्र में हुआ था और उन्हें तैरना भी नहीं आता था किन्तु उन्होंने दस वर्ष की उम्र से ही बाढ़ -पीड़ित लोगों की मदद करना शुरू कर दिया था।

जब लेखक दसवीं कक्षा में पढ़ते थे तब उन्होंने बाढ़ पर एक लेख लिखकर पहला पुरस्कार भी हासिल किया था। इसके अलावा प्रतिष्ठित ‘धर्मयुग मैगजीन’ के एक ‘कथा- दशक’ कॉलम में बाढ़ से संबंधित उनकी एक कहानी भी छपी थी। इसके बाद लेखक ने बाढ़ पर जय गंगा(1947), डायन कोसी(1948), हड्डियों का पुल(1948) आदि रिपोर्ताज के अलावा अपने कई उपन्यासों में बाढ़ का वर्णन किया है। लेखक ने गाँव में रहकर बाढ़ के प्रलय के बारे में सुना तो था, पर सन् 1967 में पटना शहर में भयंकर बाढ़ को पहली बार देखा और झेला था। यह अनुभव लेखक को गोलघर इलाके में रहकर हुआ था।

बाढ़ के समय लोगों की तैयारियाँ 

Is jal pralay mein Summary: जब अठ्ठारह घण्टे लगातार बारिश हुई तो पुनपुन नदी का पानी राजेंद्र नगर, कंकड़बाग तथा निचले क्षेत्रों में भर गया। बाढ़ के समय लोगों ने रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीज़े जैसे – ईंधन, मोमबत्ती, दियासिलाई, पीने का पानी, कंपोज की गोलियां इत्यादि इकट्ठा किया और बाढ़ के आने की प्रतीक्षा करने लगे। बाढ़ का पानी शहर में बढ़ता जा रहा था और सुबह तक पानी राजभवन, मुख्यमंत्री निवास, दोपहर तक गोलघर में भर चुका था।

लेखक की उत्सुकता 

Is jal pralay mein Summary: लेखक को एक रिक्शेवाले ने खबर दी कि बाढ़ का पानी कॉफी हाउस तक आ चुका है। लेखक बाढ़ के प्रभाव और उसके प्रकोप को देखने के लिए अपने एक कवि मित्र के साथ निकल पड़े। लोग बाढ़ देखने के लिए रिक्शे, टांगे, टमटम, स्कूटर आदि वाहनों से जा रहे थे। लेखक बाढ़ के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए कॉफी हाउस जाना चाहते थे, परंतु कॉफी हाउस बंद था। अन्य लोग भी बाढ़ की विभीषिका(भयंकरता) देखने निकल पड़े और अपने-अपने तरीके से अनुमान लगाने लगे। सड़क की ओर बढ़ते पानी को देखकर लेखक ने अपने मित्र से कहा कि आगे जाने की जरूरत नहीं है। लेखक ने मृत्यु के तरल दूत( बाढ़ के भयंकर प्रवाह) को अपनी ओर आते देखकर उसे प्रणाम किया और दोनों रिक्शे में बैठकर गांधी मैदान की ओर चले गए।

लेखक के लिए बाढ़ का अनुभव 

Is jal pralay mein Summary: लेखक के लिए बाढ़ का भयंकर रूप देखना बिल्कुल नया अनुभव था। लोग गाँधी मैदान की रेलिंग को पकड़कर ऐसे खड़े थे, जैसे रामरीला का रामरथ वहाँ से निकलने वाला हो। शाम को लगभग साढ़े सात बजे पटना के आकाशवाणी केंद्र ने घोषणा की कि पानी आकाशवाणी के स्टूडियो की सीढियों तक पहुँच चुका है। जो लोग बाढ़ का पानी देखकर आ रहे थे, वे लोग पान की दुकानों पर हँस-हँसकर बातचीत करते हुए रेडियो पर समाचार सुन रहे थे। लेकिन लेखक और उनके मित्र के चेहरे पर उदासी थी। अब लेखक राजेंद्रनगर जा पहुंचे और मैगजीन कॉर्नर से कुछ पत्रिकाएँ खरीदीं। उन्हें चारों ओर पानी-ही-पानी दिखाई दे रहा था। रेडियो और जनसंपर्क विभाग की गाड़ियाँ लोगों को बाढ़ के लिए बार-बार सावधान कर रही थीं।

लेखक की स्मृतियाँ

Is jal pralay mein Summary: लेखक के राजेंद्रनगर पहुँचते ही जनसंपर्क विभाग की गाड़ी ने लाउडस्पीकर से सूचना दी गई कि आज रात 12 बजे राजेंद्रनगर में पानी घुस जाएगा। बाढ़ की चिंता से ग्रस्त लेखक पुरानी यादों में खो गए। 

सबसे पहले उन्हें सन् 1947 में मनिहारी जिले में आई बाढ़ याद आई। जब वे अपने गुरूजी सतीनाथ भादुड़ी जी के साथ नाव में बैठकर गंगा में आई बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ितों की सहायता करने पहुँचे थे। सन् 1949 की महानंदा की बाढ़ में लेखक एक डॉक्टर के साथ ‘वापसी थाना’ के एक गाँव से बीमार लोगों को नाव पर चढ़ाकर कैंप ले जा रहे थे, तभी एक बीमार नौजवान के साथ उसका कुत्ता भी चढ़ा। उस कुत्ते को देखकर डॉक्टर साहब डर गए और बाद में कुत्ता और नौजवान नाव से उतर गए। 

लेखक परमान नदी की बाढ़ में फंसे मुसहरों की बस्ती में भी मदद करने पहुँचे। जो कई दिनों से मछली और चूहे भुन कर खा रहे थे। लेखक और उनके साथियों ने देखा वहाँ एक ऊँचे मचान पर ‘बलवाही’ नाच रहा था और एक काला सा आदमी लाल रंग की साड़ी पहनकर दुल्हन की एक्टिंग कर लोगों को हंसा रहा था। बस्ती से लौटते समय लेखक को अपने परम मित्र भोलानाथ शास्त्री की याद आ गई।

लेखक को दो और घटनाएं याद आ रही थीं। पहली घटना सन् 1937 की है, जब सिमरवनी-शंकरपुर में बाढ़ के समय नाव को लेकर लड़ाई हो गई थी। उस समय लेखक स्काउट बॉय थे। उस गाँव में नाव नहीं थी। इसलिए लोग केले के पेड़ से नाव बनाकर काम चला रहे थे और जमींदार के लड़के नाव पर हारमोनियम, तबला लेकर जाने लगे। इससे नाराज होकर गाँव के नौजवानों ने मिलकर जमींदार के लड़कों की नाव छीन ली और उनके साथ थोड़ी मारपीट भी की।

दूसरी घटना लेखक को तब की याद आ रही है, जब सन् 1967 में पुनपुन नदी का पानी राजेंद्र नगर में घुस आया और एक नाव पर कुछ नौजवान लड़के-लड़कियों की टोली स्टोव, केतलीं, बिस्कुट लेकर किसी फिल्मी सीन की तरह कश्मीर का आनंद लेने के लिए निकल पड़े। उनके ट्रांजिस्टर में “हवा में उड़ता जाए” गाना बज रहा था। जैसे ही उनकी नाव गोलंबर पहुंची, तो ब्लॉक की छत पर खड़े लड़कों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और वें शर्मिंदा होकर वहां से भाग गए।

लेखक बाढ़ के दृश्य को कैद करने में असमर्थ 

Is jal pralay mein Summary: इसके बाद लेखक अपनी पुरानी यादों से बाहर वर्तमान समय में आ चुके थे और इस समय रात के 2:30 बज रहे थे। लेकिन बाढ़ का पानी अभी तक शहर में नहीं पहुंचा था। लेखक को लगा कि शायद इंजीनियरों ने तटबंध ठीक कर दिया हो। जिस वजह से पानी शहर तक नहीं पहुंचा। इसके थोड़ी देर बाद लेखक को नींद आ गई। जब लेखक को लोगों ने सुबह साढे पाँच बजे जगाया, तो लेखक ने देखा कि सभी लोग जागे हुए थे। लेखक ने ऐसी भयानक बाढ़ कभी नहीं देखी थी। चारों ओर पानी-ही-पानी दिखाई दे रहा था। लेखक सोचने लगे कि यदि मेरे पास कैमरा या टेपरिकॉर्डर होता, तो इस दृश्य को कैद कर लेता। वे कुछ लिख भी नहीं सकते थे क्योंकि उनकी कलम चोरी हो गई थी। 

इस जल प्रलय में पाठ का सन्देश

फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ जी ने अपनी प्रस्तुत रचना ‘इस जल प्रलय में’ के माध्यम से हमें प्राकृतिक आपदाओं से सचेत किया है। हमें ऐसी भयंकर आपदाओं से निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहना चाहिए।

इस जल प्रलय में पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ

पनाह- शरण लेना

परती- वह जमीन जो जोती-बोई न जाती हो

विभीषिका- भयंकर

अविराम- विरामहीन, लगातार

प्लावित- जो बाढ़ के पानी से डूब गया हो

अनवरत- निरंतर, लगातार

अनर्गल- बेतुकी, विचारहीन, मनमानी

अनगढ़- बेडौल, टेढ़ा-मेढ़ा 

स्वगतोक्ति- अपने आप में कुछ बोलना

अस्फुट- अस्पष्ट

सभय- डरा हुआ भयभीत

बरबस- लाचार

अनुनय- विनय, प्रार्थना

गैरिक- गेरुए रंग का

आवरण- ढक्कन, किसी वस्तु को ढकने का कपड़ा

जिज्ञासा- जानने की इच्छा

आच्छादित- ढका हुआ

वक्तव्य- कथन

उत्कर्ण- सुनने को उत्सुक

चेष्टा- कोशिश, प्रयत्न 

आसन्न- पास आया हुआ 

अलमस्त- मौजी, मस्त

मुसहरी- एक जाति(आदिवासी) जो पत्तलें बनाने का काम करती है।

बलवाही- एक प्रकार का लोकनृत्य

द्रुत- जल्दी, शीघ्र

आसन्नप्रसवा-जिसे आजकल में ही बच्चा होने वाला हो

वृष्टि- वर्षा का जल

माकूल- उचित, ठीक 

अलाप- बोलना, बात करना 

संयोजन- सम्मिलित करना, मिलाना, जोड़ना 

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