Table of Content:
1. घनानंद का जीवन परिचय
2. कवित्त/सवैया का सारांश
3. कवित्त और सवैया
4. घनानंद के कवित्त की व्याख्या
5. घनानंद के सवैया की व्याख्या
6. कवित्त/सवैया प्रश्न अभ्यास
7. Class 12 Hindi Antra All Chapter
घनानंद का जीवन परिचय- Ghananand Ka Jeevan Parichay
कवि घनानंद हिंदी साहित्य के रीतिमुक्त धारा के कवि थे। इनके संबंध में कहा जाता है कि इन्होंने प्रेम संबंधित बहुत सारी कविताएं लिखी हैं।मगर यह खुद प्रेम जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाए थे, क्योंकि इनकी प्रेमिका सुजान से कभी भी इनका मिलान नहीं हो पाया और सुजान के ऊपर घनानंद ने बहुत सारी कविताएं भी लिखी हैं।
जिनमें उन्होंने बार-बार यह कहा है कि सुजान प्यारे तुम प्रेम का कौन सा पाठ पढ़कर आई हो, जो मेरी प्रेम की भाषा को समझ नहीं पा रही हो। घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने अपनी प्रेमिका सुजान के नाम पर सुजान सागर भी लिख डाला था।
इसके अलावा रीतिमुक्त धारा के कवि होने के कारण यह बिना किसी रीति में बंधे हुए अपनी इच्छानुसार कविताओं को लिखते थे। यह दरबारी कवि नहीं थे। इनकी कविता में दो तरह की विशेषता थी। एक इनका भाव दूसरा यह कविता को सजाकर प्रस्तुत करते थे।
यह ब्रज भाषा में लिखते थे जिसके कारण कविताओं में एक मधुरता दिखाई पड़ती है। कवि घनानंद की कविता लोग आसानी से समझ पाते थे।
घनानंद के कवित्त/सवैया का सारांश- Ghananand Ke kavitt/Saviye Summary
कविता के इस अंश में दो कवित्त एवं दो सवैया प्रस्तुत किया गया है, जो दोनों ही कवि घनानंद द्वारा लिखा गया है।
पहले कवित्त में कवि घनानंद का दिल अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए तड़प रहा है, उसका वर्णन है और दूसरे कवित्त में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका से कहते हैं कि क्या तुमने अपने कान बंद कर लिये है? जो तुम तक मेरी पुकार नहीं पहुंच रही है।
अगले दो सवैये में कवि घनानंद संयोग (सुख की घड़ी) और वियोग (दुख की घड़ी) की बात करते हैं।
आखिरी सवैये में घनानंद दुखी होकर कहते हैं कि उनके द्वारा भेजे हुए प्रेम पत्र को सुजान ने बिना पढ़े ही फाड़कर फेंक दिया।
घनानंद के कवित्त/सवैया- Ghananand Ke kavitt/Saviye
कवित्त
(1)
बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति ही दै दै सनमान कौ।।
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,
अब न घिरत घन आनंद निदान को।
अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये सँदेसौ लै सुजान को॥
(2)
आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं?
कहा मो चकित दसा त्यों न दीठि डोलिहै?
मौन हू सों देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू,
कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हैं पैज परी,
जानियैगो टेक टरें कौन धौं मलोलिहै।।
रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की?
कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलिहै।
सवैया
(1)
तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।
हित-तोष के तोष सु प्रान पले, बिललात महा दुख दोष भरे।
घनआनंद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज समाज टरे।
तब हार पहार से लागत हे, अब आनि के बीच पहार परे।।
(2)
पूरन प्रेम को मंत्र महा पन, जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।
ताही के चारु चरित्र बिचित्रनि, यों पचिकै राचि राखि बिसेख्यौ।
ऐसो हियो हितपत्र पवित्र जु, आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ।
सो घनआनंद जान, अजान लौं, टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।।
घनानंद के कवित्त/सवैया की व्याख्या- Ghananand Ke kavitt/Saviye Line by Line Explanation
बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति ही दै दै सनमान कौ।।
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,
अब न घिरत घन आनंद निदान को।
अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये सँदेसौ लै सुजान को॥
घनानंद के कवित्त का प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ- 11 कविता ‘घनानंद के कवित्त/सवैया’ से ली गई हैं। इसके रचियता घनानंद जी हैं। इस कवित्त में कवि ने अपने हृदय की व्यथा का वर्णन किया है।
घनानंद के कवित्त की व्याख्या- कविता के इस अंश में यानि की कवित्त 1 में कवि घनानंद ने अपने हृदय की व्याकुलता को व्यक्त किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान से मिलना चाहते थे और उनके मन में बार-बार सुजान को देखने का ख्याल आ रहा है। बस इसी विषय में कवि घनानंद ने यहां पर चर्चा की है।
कविता के इस अंश को अच्छे से पढ़ने से हमें यह समझ में आएगा कि कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान से दूर है और उससे दूर होने के कारण उनके मन में बार-बार उनसे मिलने की इच्छा जाग रही है और उनकी प्रेमिका सुजान उनके पत्र का भी जवाब नहीं दे रही है। जिस वजह से कवि घनानंद बहुत ज्यादा उदास है।
वे कहते हैं कि कितने दिनों से मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं सुजान के आने का और कितने पत्र भेज चुका हूं उसके पास उसने मेरे सारे पत्रों को अपने पास रख लिया है। मगर वह आने का विचार ही नहीं कर रही है।
लगता है कि वह मुझसे मिलना ही नहीं चाहती है या फिर वह अपने द्वारा किए गए वादे को भूल गई है। जो उसने मुझसे किया था कि वह मुझसे मिलने जरूर आएगी। मगर उसका यह झूठा वादा भी अब मुझे रुला रहा है।
कवि के लिए दुख का विषय यह है कि जो बादल उसे कभी सुख प्रदान किया करते थे वह भी उसके दुख की घड़ी में उसका साथ नहीं दे रहे हैं। बादल भी अब घिर नहीं रहे हैं क्योंकि घिरे हुए बादल से कवि घनानंद को सुख की प्राप्ति होती है। मगर वह बादल भी कवि को आनंद नहीं दे रहा है।
घनानंद के कवित्त की व्याख्या-
1. घिरत घन, चाहत चलन, पयान प्रान में अनुप्रास अलंकार है।
2. गहि गहि, दै दै, कहि कहि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं?
कहा मो चकित दसा त्यों न दीठि डोलिहै?
मौन हू सों देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू,
कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हैं पैज परी,
जानियैगो टेक टरें कौन धौं मलोलिहै।।
रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की?
कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलिहै।
घनानंद के कवित्त का प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-11 कविता ‘घनानंद के कवित्त/सवैया’ से ली गई हैं। इसके रचियता घनानंद जी हैं। यहाँ कवि अपनी प्रेमिका सुजान की निष्ठुरता का वर्णन करते हैं।
घनानंद के कवित्त की व्याख्या- कविता के इस अंश में कवि घनानंद ने अपनी प्रेमिका सुजान के निष्ठुर मन की घोर आलोचना की है, क्योंकि कवि को अब अपनी प्रियतमा सुजान पर गुस्सा आ रहा था। क्योंकि सुजान ने कवि द्वारा भेजे गए एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया था।
कवि घनानंद कहते हैं कि तुमने अपने हाथ में जो आरसी पहनी हुई है, जो अंगूठी तुमने अपने हाथों में पहनी हुई है, उसे ही तुम बार-बार देख रही हो। उसे देखने का तुम्हारे पास समय है। मगर मुझे देखने का तुम्हारे पास थोड़ा- सा भी वक्त नहीं। आखिर कब तक तुम मुझसे नहीं मिलोगी और कब तक ना मिलने का बहाना करती रहोगी और क्या मैं तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता।
कवि अब मौन होने का फैसला करते हैं और कहते हैं कि अब मैं तब तक मौन रहूंगा जब तक तुम अपना प्रण, मुझसे ना मिलने का प्रण नहीं तोड़ोगी। क्योंकि मेरा मौन ही अब तुम्हें मुझसे बात करने पर, मिलने के लिए मजबूर कर देगा। ऐसा बोलते हुए कवि मौन होने का फैसला करते हैं यानि की कोई भी शब्द नहीं बोलने का निर्णय लेते हैं।
कवि आगे कहते हैं कि मुझे अब पता चल गया है कि तुमने खुद में और मुझ में एक जंग छेड़ी है कि कौन हम दोनों में से पहले बातचीत करेगा मुझे अब यह बात समझ में आ चुकी है।
कवि अपनी प्रेमिका सुजान से कहते हैं कि तुमने तो अपने कानों में रुई डाल रखी है। जिस कारण तुम्हें मेरी पुकार नहीं सुनाई दे रही है। जिस दिन तुम अपने कानों से वह रूई हटाओगी, उस दिन तुम्हें इस मौन मन के पीछे छिपे हुए दर्द का एहसास होगा और तब जाकर तुम मुझसे बात करोगी।
कविता का पूरा अर्थ यह है कि कवि की प्रेमिका सुजान उनके पत्रों का जवाब नहीं देती है। जिस वजह से कवि ने मौन रहने का फैसला किया है। वह कहते हैं कि मेरी जान तुम्हारें कानों में रुई की वजह से तुम मेरी पुकार नहीं सुन पा रही हो, जिस वजह से तुम मेरी मन की व्यथा को नहीं जानती। पर मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम एक न एक दिन जरूर मेरी मन की व्यथा को सुन पाओगी और मुझसे बात करने के लिए मजबूर हो जाओगी।
घनानंद के कवित्त की व्याख्या-
1. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. आनाकानी आरसी करौगे कौलौं, पन पालिहौ, पैज परी, टेक टरें में अनुप्रास अलंकार है।
तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।
हित-तोष के तोष सु प्रान पले, बिललात महा दुख दोष भरे।
घनआनंद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज समाज टरे।
तब हार पहार से लागत हे, अब आनि के बीच पहार परे।।
घनानंद के सवैया का प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-11 कविता ‘घनानंद के कवित्त/सवैया’ से ली गई हैं। इसके रचियता घनानंद जी हैं। कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान से मिलने और बिगड़ने के पलों को याद करने का वर्णन किया है।
घनानंद के सवैया की व्याख्या- कविता के इस अंश में कवि घनानंद विरह के वक्त मिलने और बिछड़ने का वर्णन करते हैं। जैसा कि हम सबने जाना कि कवि घनानंद दुख के अवस्था को झेल रहे हैं और इस अवस्था में कवि को बार-बार उनकी प्रेमिका सुजान याद आ रही है। उनके साथ बिताए हुए वह हर पल उनको याद आ रहा है, जो उन्होंने पहले उनके साथ बिताया था।
कवि अपने सुख के पल को याद करते हुए कहते हैं कि जब सुजान तुम मेरे साथ थी, जब तुम मेरे पास रहती थी, तब मैं तुम्हारी छवि को देखकर मन ही मन खुश होता था। सुखी होता था, मगर आज तुम मुझसे दूर हो गई हो और आज तुम मेरे पास नहीं हो। मैं अपने सुख के उन दिनों को याद करते हुए अपने आंखों से आंसू बहा रहा हूं।
कवि आगे चलकर यह कहते हैं कि सुख के दिनों में जो आंखें सिर्फ तुम्हें देखा करती थी। आज दुख के दिनों में वो आंखे सिर्फ आंसू बहा रही हैं और वियोग के आग में दुख के आग में खुद को वहीं आंखें जला रही है।
कवि सुजान से कहते हैं कि जब तुम मुझसे मिलती थी। तुमसे मिलने का हर एक पल तुम्हारे साथ रहने का हर एक पल मुझे यह विश्वास दिलाता था कि तुम हर पल हर वक्त मेरे साथ रहोगी। मगर आज तुम जब मुझसे दूर हो तब मुझे यही सब बातें बहुत कष्ट पहुंचा रही है।
कवि घनानंद कहते हैं कि मेरे जीवन का सारा सुख तुम ही थी सुजान और अब तुम्हारे बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। मुझे संसार का सारा सुख बेकार ही लग रहा है क्योंकि मेरी असली खुशी तो तुम ही थी, जो अब मुझसे दूर हो।
जब भी हम मिला करते थे और तुम्हारे गले का हार मेरे लिए एक पहाड़ के समान था। मगर आज तुम दूर हो तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम्हारे और मेरे मिलन के बीच में ना जाने कितनी सारी बाधाएं आ चुकी है कितने सारे पहाड़ खड़े हो चुके हैं।
घनानंद के सवैया का प्रसंग-
1. प्रान पले, दुख दोष सुख-साज समाज, जात जरे में अनुप्रास अलंकार है।
2. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
पूरन प्रेम को मंत्र महा पन, जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।
ताही के चारु चरित्र बिचित्रनि, यों पचिकै राचि राखि बिसेख्यौ।
ऐसो हियो हितपत्र पवित्र जु, आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ।
सो घनआनंद जान, अजान लौं, टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।।
घनानंद के सवैया का प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-11 कविता ‘घनानंद के कवित्त/सवैया’ से ली गई हैं। इसके रचियता घनानंद जी हैं। कवि अपनी प्रेमिका के निष्ठुर व्यवहार से बहुत दुखी हो गए थे।
घनानंद के सवैया की व्याख्या- कविता के इस अंश में कवि घनानंद ने अपनी प्रेमिका सुजान के निष्ठुर मन का वर्णन किया है। कवि घनानंद ने अपनी प्रेमिका सुजान को बहुत सारी चिट्ठियां भेजी थी। मगर उनकी प्रेमिका सुजान एक भी पत्र का उत्तर नहीं दे रही थी।
कवि यह भी कहते हैं कि सुजान मैंने हर एक पत्र में तुम्हारी सुंदरता का वर्णन, हमारे प्रेम का वर्णन करते हुए ,तुम्हें भेजा है। मगर तुम एक भी पत्र का जवाब नहीं दे रही हो।
कवि घनानंद बहुत दुखी हो जाते हैं, जब उनको यह मालूम पड़ता है कि उनकी प्रेमिका सुजान ने उनके द्वारा भेजे गए पत्र को बिना पढ़े ही फाड़ डाला है।
वह कहते हैं कि सुजान मैंने एक पवित्र पत्र लिखा था। जिस पत्र में सिर्फ मेरी और तुम्हारी प्रेम की ही बातें थी, तुम्हारी सुंदरता का वर्णन था। ऐसे पवित्र पत्र को तुमने बिना पढ़े ही फाड़ दिया। ऐसा क्यों किया तुमने? मैंने कोई गलत कहानी तो नहीं लिखी या मैंने किसी और विषय में कोई बातचीत भी नहीं की।
मैंने तो सिर्फ अपना और तुम्हारे प्रेम का ही वर्णन किया है। इस पत्र के माध्यम से तुम्हारी सुंदरता का चित्रण किया है। इतने पवित्र पत्र को तुमने बिना पढ़े ,देखें फाड़ दिया। सुजान के इस निष्ठुर व्यवहार से कवि घनानंद बहुत ज्यादा दुखी हो गए।
घनानंद के सवैया का प्रसंग-
1.मंत्र महा, हियो हितपत्र, पूरन प्रेम, सोधि सुधारि, में अनुप्रास अलंकार है।
2. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।