Meerabai Ka Jeevan Parichay – मीराबाई का जीवन परिचय

इस ब्लॉग में हम Meerabai Ka Jeevan Parichay, मीराबाई का जीवन परिचय, मीराबाई की जीवनी, मीरा बाई के इतिहास के बारे में जानेंगे।

मीरा बाई एक आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। भक्ति आन्दोलन में मीरा बाई का नाम सबसे लोकप्रिय माना जाता है। उनके आराध्य श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी सम्पूर्ण भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं।

Meerabai Ka Jeevan Parichay – मीराबाई का जीवन परिचय

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई का जन्म

मीरा भाई का जन्म राजघराने में हुआ था लेकिन इनके जन्म स्थान और समय के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। अधिकार विद्वानों का यह मानना है कि मीराबाई का जन्म लगभग 1498-60 के दौरान जोधपुर के कुड़की गावं में हुआ था।


Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई का बचपन का नाम 

मीराबाई के बचपन के नाम के बारे में भी अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि इनके बचपन का नाम पेमल था।

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई का बचपन

मीरा बाई का जन्म राठौड़ वंश में हुआ था। इनके पिता का नाम रतन सिंह था। मीरा बाई अपने परिवार की लाड़ली थीं। ऐसा कहा जाता है कि बाल्यावस्था से ही वे कृष्णभक्ति में पूर्णतः समर्पित थीं।

जब मीरा मात्र तीन साल की थीं, तो एक महात्मा संत उनके घर पधारे। महात्मा ने उनके पिता राणा रतन सिंह को कृष्ण की मूर्ति उपहार में दी। नन्ही मीरा को जैसे ही वह मूर्ति उनके पिता ने दी, वह उनके हृदय में बस गयी और यूँ लगा जैसे कृष्ण स्वयं मीरा के पास चलकर आए हैं।

कुछ दिन के उपरांत, मीरा ने अपनी माँ से जिज्ञासावश पूछा कि उनका दूल्हा कब आएगा, तो मीरा की माँ ने परिहास करते हुए कह दिया की यह कृष्ण ही तेरा दूल्हा है। यह बात मीरा के अंदर इतने गहरे तक प्रवेश कर गयी कि तबसे वह पूर्णत: कृष्णा को समर्पित हो गयीं।

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीरा बाई का विवाह

मीरा का विवाह उनके न चाहते हुए भी मेवाड़ चित्तोड़ के महाराजा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ। विवाह के थोड़े ही दिन के बाद उनके पति का स्वर्गवास हो गया। जब उन्हें अपने पति के साथ सती होने के लिए बोला गया, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि मेरे पति केवल श्री कृष्णा ही हैं। जब मीरा ने ससुराल की कुल देवी, दुर्गा माँ की उपासना करने से मना कर दिया और कहा, “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई”, तो ससुराल वालों ने उन्हें उपेक्षित कर दिया।

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई का घर छोड़ना

घरवालों द्वारा निकाले जाने के बाद वह मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचतीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा और उन्हें कई बार मारने की चेष्ठा की गयी। उन्हें विषपान करने को कहा गया और काँटों की सेज पर भी सुलाया गया परंतु हर बार उनके हरि उनके प्रणों की रक्षा करते रहे। मीराबाई घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान हो गयीं, लेकिन साधु संगत के लोग उन्हें देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते।

इसी दौरान उन्होंने तुलसीदास को पत्र लिखा था, जो इस प्रकार है-
स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।

(मीरा ने पत्र में तुलसीदास जी को लिखा कि मेरे साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है, परंतु किसी भी तरह मैं कृष्णा को नहीं छोड़ सकती, घनश्याम मेरे रोम-रोम में बसे हैं।)

मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसी दास ने भी इसी प्रकार दिया-

जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।

(तुलसी दस जी ने उन्हें उत्तर दिया कि वहाँ से निकल जाओ और जो भी आपकी भक्ति में बाधा बने उसे छोड़ दो।)

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई का कृष्ण के प्रति अघाद्य प्रेम और मीरा के साथ हुई चमत्कार

घटनाएँ अकबर तक भी पहुंची और अकबर की मीरा से मिलने की इच्छा हुई। मीरा के राजनैतिक परिवार और अकबर में राजनैतिक दुश्मनी थी। सो वह भिकारी का वेश धरकर, मिलने गए। वह मीरा की भक्ति और उनके मंत्र मुग्ध करने वाले भजनों से इतने प्रभावित हुए की जाते समय मीरा बाई के चरणों में अकबर ने उन्हें हीरों के क़ीमती हार की सौग़ात देनी चाही। यह बात मेवाड़ के राजा से छुपी न रही। राणा ने मीरा को आदेश दिया की वह किसी नदी में कूद जाएँ और अपने प्राण त्याग दें।
परंतु एक बार फिर उनके पालनहार ने उन्हें खरोंच भी नहीं लगने दी और वृन्दावन जाने का आदेश दिया।

कुछ समय बाद राणा ने वादा किया कि वह उनके सत्संग और भजन कीर्तन में कोई व्यवधान नहीं डालेंगे। संत मीरा बाई उन्हें मना न कर सकीं और राणा भोज के साथ मेवाड़ चित्तोड़ वापस आ गयीं। परिस्तिथिवश वह फिर वृन्दावन आ गयीं।

वृन्दावन में जीवा गोसाईं वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख थे। मीर उनके दर्शन करना चाहती थीं। लेकिन जीवा गोसाईं जी ने यह कह कर मीरा को मना कर दिया कि वह किसी स्त्री की परछाई भी अपने ऊपर नहीं पड़ने दे सकते। ऐसा सुनकर मीरा बोलीं कि मुझे तो नंदलाल के अलावा कोई और पुरुष नज़र ही नहीं आता। इतना सुनते ही, गुसाईं जी मीरा से मिलने चले आए।

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीरा बाई की मृत्यु

मीराबाई की मृत्यु के बारे में भी अधिक जानकारी नहीं है। ऐसा माना जाता है कि मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम दिन द्वारका में व्यतीत किए। एक बार जब मीरा बाई द्वारका स्थित द्वारकाधीश मंदिर में भजन कीर्तन कर रही थीं, तो भावनात्मक रूप से इतना कृष्ण से जुड़ गईं कि नंदलाल से प्रार्थना करने लगीं कि उन्हें अपने समा लो। वह मंदिर के गर्भ गृह में गई और द्वार बंद कर लिए। जब लोगों ने द्वार खोले मीरा वहां नहीं थी। उसके पश्च्यात वे कहीं नहीं दिखीं। कहते हैं वे द्वारकाधीश मंदिर की कृष्णा मूर्ति में समा गई और उन्ही में लीन हो गयीं। यह वर्ष 1546 की बात है।

Meerabai Ka Jeevan Parichay: मीराबाई की लेखनी और भाषा शैली

मीराबाई का साहित्यिक परिचय देने की ज़रूरत नहीं है, इनका नाम ही काफी है। मीरा बाई की कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रति एक गहरी टीस दिखती है, जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। उन्होंने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा की कीर्ति का आधार उनके पद हैं। ये पद राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं। हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद हमारे देश की अनमोल संपत्ति है। भावों की सुकुमारता और निराडंबरी सहजशैली की सरसता के कारण मीरा की व्यथासिक्त पदावली बरबस सबको आकर्षित कर लेती हैं। प्रधानत: वह सगुणोपासक थीं तथापि उनके पदों में निर्गुणोपासना का प्रभाव भी यत्र-तत्र मिलता है। आत्म-समर्पण की तल्लीनता से पूर्ण उनके पदों में संगीत की राग-रागिनियां भी घुलमिल गई हैं। मीरा उन्माद की तीव्रता से भरे अपने कस्र्ण-मधुर पदों के कारण सदैव स्मरण की जाएँगी।

मीराबाई की रचनाएँ

  • बरसी का मायरा
  • गीत गोविंद टीका
  • राग गोविंद
  • राग सोरठ

मीरा बाई की कविताएँ

  • पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो
  • पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे

मीरा बाई के भजन

  • मेरो दरद न जाणै कोय
  • चलो मन गंगा-जमना-तीर
  • श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया
  • होरी खेलत हैं गिरधारी

मीराबाई की पदावली

  • रुकमणी मंगल,
  • नरसी जी का मायरा,
  • फुटकर पद,
  • मीरा की गरबी,
  • मलार राग,
  • नरसिंह मेडता की हुंडी,
  • चरित सत्यभामा जी नुं रूसंन (मीरा के पद)

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