George Pancham Ki Naak Summary – Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 Summary

इस लेख में हम कक्षा 10 कृतिका चैप्टर 2 जॉर्ज पंचम की नाक का सारांश (Hindi Kritika Class 10 Chapter 2 George Pancham Ki Naak Summary) पढ़ेंगे और समझेंगे। 

Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 George Pancham Ki Naak Summary

जॉर्ज पंचम की नाक के लेखक कमलेश्वर जी का परिचय

कमलेश्वर जी का जन्म सन् 1932 में मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. किया। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर कार्य करने वाले कमलेश्वर ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया जिनमें सारिका, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर प्रमुख हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत कमलेश्वर को भारत सरकार ने पद्म भूषण से भी सम्मानित किया।

27 जनवरी 2007 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। नयी कहानी आंदोलन के प्रवर्तक रहे कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं  राजा निरबंसियाँ, खोई हुई दिशाएँ, सोलह छतों वाला घर, ‌‍जिंदा मुर्दे (कहानी संग्रह) वही बात, आगामी अतीत, डाक बंगला, काली आंधी और कितने पाकिस्तान (उपन्यास)। उन्होंने आत्मकथा, यात्रा-वृतांत और संस्मरण भी लिखे हैं। कमलेश्वर ने अनेक हिंदी फिल्मों एवं टी.वी.धारावाहिकों की पटकथाएँ भी लिखी हैं।


कमलेश्वर की रचनाओं में तेज़ी से बदलते समाज का बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील चित्रण है। आज की महानगरीय सभ्यता में मनुष्य के अकेले हो जाने की व्यथा को उन्होंने बखूबी समझा और व्यक्त किया है।

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ की भूमिका – George Pancham Ki Naak Short Summary

जॉर्ज पंचम प्रथम ब्रिटिश शासक थे, जो विंडसर राजघराने से संबंध रखते थे। जॉर्ज पंचम के पिता महाराज एडवर्ड सप्तम की मृत्यु के बाद, वे महाराज बने वे एकमात्र ऐसे सम्राट थे, जो कि अपने स्वयं के दिल्ली दरबार में, अपनी भारतीय प्रजा के सामने प्रस्तुत हुए, जहाँ उनका भारत के राजमुकुट से राजतिलक हुआ इन्होंने भारत में सन् 1936 तक शासन किया। दिल्ली इंडिया गेट पर सन् 1938 में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की स्थापना हुई और सन् 1968 तक जॉर्ज पंचम की मूर्ति वहाँ लगी हुई थी। यह पाठ आदि से अंत तक जॉर्ज पंचम की मूर्ति की टूटी नाक को लेकर भारतीय अधिकारियों की चिंता और गुलाम प्रवृर्ति को दर्शाता है।

पाठ में लेखक ने सारा व्यंग्य ‘नाक’ शब्द पर केन्द्रित करते हुए अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े विभिन्न प्रकार के लोगों की औपनिवेशिक दौर की गुलाम मानसिकता और विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट की है। जॉर्ज पंचम की टूटी नाक लगाने के लिए किस तरह के प्रयास किए गए। किस प्रकार भारीतय अधिकारी कभी स्वतंत्रता सेनानी की मूर्तियों की नाक और अंत में किसी की भी जिंदा व्यक्ति की असली नाक काटकर लगाने को तत्पर हैं।

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ के पात्रों का परिचय 

1. रानी एलिजाबेथ :- इंग्लैंड की महारानी। 

2 दर्जी :- महारानी का दर्जी। 

3 हुक्काम :- भारतीय अधिकारी। 

4 मूर्तिकार :- जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर नाक लगाने वाला। 

George Pancham Ki Naak Summary – जॉर्ज पंचम की नाक का सारांश

महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का दौरा

George pancham ki naak summary: यह बात उस समय की है, जब इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान पधारने वाली थी। लन्दन की अख़बारों से रोज खबरें आ रही थी कि क्या-क्या  तैयारियाँ हो रही हैं।

महारानी का दर्जी बहुत परेशान था कि हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर रानी कब और क्या पहनेगी। उनके आने से पहले सेक्रेटरी सुरक्षा की दृष्टि से दौरा कर लेना चाहते थे। फोटोग्राफरों की फ़ौज तैयार हो रही थी। इंग्लैंड के अख़बारों में जो भी खबरे छपती थीं, वे सब अगले दिन हिंदुस्तान की अखबारों में नज़र आती थी कि रानी ने हल्के रंग का एक सुंदर सूट बनवाया है। जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मंगवाया गया है, जिसका खर्च चार सौ पौंड है। फिर तो रानी के नौकरों, बावर्चियों, खानसामों और अंगरक्षकों की जीवनियाँ भी अख़बारों में छपने लगीं, यहाँ तक कि शाही कुत्तों की भी तस्वीरें अख़बारों में छप गईं।

इस तरह शंख इंग्लैंड में बज रहा था और गूंज हिंदुस्तान में हो रही थी। राजधानी दिल्ली में तहलका मचा हुआ था। फिर देखते-ही-देखते दिल्ली की कायापलट होने लगी।

जॉर्ज पंचम की नाक एक मुसीबत

George pancham ki naak summary: जॉर्ज पंचम की नाक एक मुसीबत थी। दिल्ली के इंडिया गेट के सामने जॉर्ज पंचम के लाट(मूर्ति) की नाक गायब हो गई थी। हिंदुस्तान के जिन लोगों की नाक मूर्तियों से गायब हो गई थी, वे तो अजायबघरों में पहुंचा दी गई थीं। लेकिन जब महारानी भारत आएँगी और जॉर्ज पंचम की नाक न हो, यह कैसे हो सकता है? सभी अधिकारियों की चिंता बढ़ गई और एक मीटिंग का आयोजन किया गया। सभी चिंतित थे कि यदि यह नाक नहीं लगी, तो हमारी भी नाक नहीं रह पाएगी। मीटिंग में निर्णय लिया गया कि मूर्तिकार को दिल्ली में बुलाया जाए। 

सभी अधिकारियों के उतरे हुए चेहरे देखकर मूर्तिकार की आँखों में आंसू आ गए। इतने में मूर्तिकार को एक आवाज़ सुनाई दी कि ‘मूर्तिकार! जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है’। मूर्तिकार ने कहा नाक लग जाएगी, पर यह बताना होगा कि लाट(मूर्ति) का पत्थर कहाँ से लाया गया था? यह सुनकर सब हुक्काम(अधिकारी) एक-दूसरे की ओर देखने लगे और क्लर्क को बुलाकर यह काम सौंपा गया कि पुरानी फाइलें देखकर पता लगाओ कि यह लाट(मूर्ति) कब, कहाँ बनी और पत्थर कहाँ से लाया गया? क्लर्क ने सभी फाइलें छान मारी, पर कुछ भी पता नहीं चला। फिर हुक्कामों(अधिकारियों) की सभा हुई। सबके चेहरे पर उदासी छा गई। फिर एक कमेटी बनाकर उस नाक की ज़िम्मेदारी उस पर डाल दी गई।

मूर्तिकार द्वारा पत्थर की खोज

George pancham ki naak summary: मूर्तिकार ने आश्वासन दिया परेशान मत होइए। मैं हिंदुस्तान का हर पहाड़ छान मारूंगा और ठीक ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा। यह सुनकर कमेटी में बैठे लोंगों की जान में जान आई। सभापति ने बड़े गर्व से कहा “ऐसी क्या चीज़ है, जो हिंदुस्तान में नहीं मिलती। हर चीज़ देश के गर्भ में छिपी है, ज़रूरत खोज करने की है। खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा… आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।” यह छोटा-सा भाषण अखबार में छप गया।

मूर्तिकार पत्थर की खोज में निकल पड़ा। उसे पत्थर नहीं मिला फिर कुछ दिन बाद हताश होकर लौटा। उसने सिर लटकाकर खबर दी कि हिंदुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला, पर इस किस्म का पत्थर नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है सभापति तैश में आ गए, बोले-“लानत है आपकी अकल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है, तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता ?”

मूर्तिकार द्वारा आश्चर्यजनक सलाह

George pancham ki naak summary: मूर्तिकार ने यह सलाह दी कि अगर हम अपने ही किसी नेता की मूर्ति से नाक उतारकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर लगा दें, यह सुनकर सभापति ने उसे फटकार लगाई। तब मूर्तिकार ने एक और सलाह देने के लिए इस शर्त पर कहा कि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे। सभापति की आँखों में कुछ चमक आई और चपरासी से सभी दरवाज़े बंद करा दिए। मूर्तिकार ने सलाह दी कि “देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं, अगर आपकी इजाजत हो और आप लोग ठीक समझें तो मेरा मतलब है कि… जिसकी नाक इस लाट(मूर्ति) पर ठीक बैठे, उसे उतार लाया जाए।”

जॉर्ज पंचम की सबसे छोटी नाक

George pancham ki naak summary: यह सुनकर सभी खुश हो गए। सभापति ने मूर्तिकार को धीरे से कहा यह काम बड़ी होशियारी से करना होगा। इसकी कानों कान किसी को भी खबर न हो।

मूर्तिकार के पास जॉर्ज पंचम की नाक का नाप था। मूर्तिकार दिल्ली से बंबई, गुजरात, बंगाल, उत्तर प्रदेश से होकर मद्रास, मैसूर, केरल आदि सभी प्रदेशों का दौरा करता हुआ पंजाब जा पहुंचा। उसने सभी स्वतंत्रता सेनानियों गोखले, तिलक, शिवाजी, गांधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, मोतीलाल, बिस्मिल, लाला लाजपतराय तथा भगत सिंह की मूर्तियों की नाक को नापा परंतु सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी थी।

अंत में दिल्ली पहुँचकर उसने सभा में अपनी मुश्किल बयान की- “पूरे हिंदुस्तान की परिक्रमा कर आया, सब मूर्तियाँ देख आया और सबकी नाक का नाप लिया पर जॉर्ज पंचम की नाक से सबकी नाक बड़ी निकलीं।” मूर्तिकार से यह बयान सुनकर सारे हुक्काम(अधिकारी) हताश हो गए।

मूर्तिकार हार मानने वाला नहीं था, वह एक गरीब मूर्तिकार था इसलिए इस मौके को गवाना नहीं चाहता था उसने सभा में बैठे अधिकारियों से कहा कि बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, शायद बच्चों की नाक फिट बैठ जाए। यह सोचकर मूर्तिकार वहाँ भी पहुँच गया। पर उन बच्चों की नाक भी इससे कहीं बड़ी थी। महारानी के आने की राजधानी में तैयारियाँ चल रहीं थीं।

मूर्ति पर पत्थर की नाक की जगह जिंदा नाक का लगना

George pancham ki naak summary: जॉर्ज पंचम की लाट(मूर्ति) को नहलाकर और उसे रंग करके तैयार किया गया। सिर्फ नाक न होने के कारण बड़े-बड़े हुक्कामों(अधिकारियों) में खलबली मची हुई थी।

इधर मूर्तिकार ने फिर शर्त दोहराई। जिसमें एक कमरे में कमेटी बैठी हुई थी, उसके दरवाज़े बंद कर दिए गए। मूर्तिकार ने एक नई योजना पेश की- “नाक लगाना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ आबादी में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए…।”

मूर्तिकार की इस नई सलाह को सुनकर सन्नाटा छा गया। सबको परेशान देखकर मूर्तिकार ने कहा-“आप लोग घबराते क्यों हैं? यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए। नाक चुनना मेरा काम है। आपकी सिर्फ इज़ाज़त चाहिए।” सबकी सहमति से मूर्तिकार को इज़ाज़त दे दी गई।

अखबार में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट(मूर्ति) की नाक लग रही है। जॉर्ज पंचम की नाक लग गई। मूर्ति के आसपास का तालाब सूखाकर साफ करके ताजा पानी डाला गया, जिससे जिंदा लगाई जाने वाली नाक सूख न जाए।

अख़बार में सिर्फ एक चर्चा थी- जॉर्ज पंचम की नाक   

George pancham ki naak summary: रानी के आने का दिन नजदीक आ रहा था। मूर्तिकार ने हल तो निकाल लिया था लेकिन वह खुद इस हल से परेशान था। उसने फिर जिंदा नाक लाने के लिए कमेटी से कुछ और मदद माँगी। उसे मदद यह कहते हुए दे दी गई कि उस दिन हर हालत में नाक लग जानी चाहिए।

वह दिन आ गया और जॉर्ज पंचम की नाक लग गई, सभी अखबारों में खबर छपी कि जॉर्ज पंचम को जिंदा नाक लगाई गई है, यानि ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती।

जिस दिन जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाई गई, उस दिन सब अखबार खाली थे। देश में किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी, कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई। कहीं किसी का अभिनंदन नहीं हुआ, कोई मान-पत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत समारोह नहीं हुआ। अखबार में किसी का चित्र नहीं छपा। 

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का उद्देश्य

लेखक ने हमें इस रचना के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि इस पाठ में भारतीय कार्यप्रणाली आजाद होते हुए भी गुलाम है इसमें जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को प्रतिष्ठा बनाकर नेता और सरकारी कार्यालयों की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है।

‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ 

बेसख्ता – स्वाभाविक रूप से 

नाजनीनों- कोमलांगी 

लाटों- खम्भा, मूर्ति 

खैरख्वाहों- भलाई चाहने वाला 

दारोमदार- किसी कार्य के होने या न होने की पूरी जिम्मेदारी, कार्यभार 

अचकचाया- चौंक उठाना, भौंचक्का होना 

हिदायत- आदेश 

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