इस पाठ में हम कक्षा 9 संचयन पाठ 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी का सारांश (class 9 hindi sanchayan chapter 3 kallu kumhar ki unakoti summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ के लेखक के. विक्रम सिंह का जीवन परिचय
लेखक के. विक्रम सिंह का जन्म सन् 1938 में हुआ। लेखक के. विक्रम सिंह ने अध्यापन कार्य से प्रारंभ कर सरकारी नौकरी में विभिन्न महकमों में उच्च पदों पर कार्यरत रहे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय में निर्देशक ( फिल्म नीति) के पद पर कार्य करते हुए समय से पहले ही नौकरी को विदा कह अपनी विशेष दिलचस्पी के कारण सिनेमा और टेलिविजन के क्षेत्र में सक्रिय हो गए।
विकास, पर्यावरण और देशाटन की और विशेष झुकाव रखने वाले के. विक्रम सिंह ने ‘अंधी गली’ (1984), ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ (1985) के निर्माण में सहयोग करने के साथ-साथ तर्पण (1994) का भी निर्माण किया। उन्होंने टेलीविजन के लिए फिल्म सृजन (1994) का निर्देशन तथा कवि और कविता श्रृंखला का निर्माण एवं निर्देशन भी किया। साठ से अधिक वृत्तचित्र भी बनाए।
अनेक वृत्तचित्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित हुए। फिल्म कार्य के साथ-साथ जीवन, समाज और कलाओं से संबंधित विषयों पर जनसत्ता में नियमित रूप से स्तम्भ लेखन किया।
Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 Kallu Kumhar Ki Unakoti Summary
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ की भूमिका
‘कल्लू कुम्हार की उनाकोटी’ के. विक्रम सिंह एक यात्रा वृत्तांत है। लेखक एक टी.वी. कार्यक्रम की शूटिंग करने त्रिपुरा गए थे और वहाँ की यात्रा करते हुए वहाँ की भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, वहाँ के जनजातीय समाज, संगीत, वाद्य यंत्र, घरेलू उद्योग-धंधे, आधुनिक कृषि परंपरा, धार्मिक रीतिरिवाज़ और मान्यताओं का वर्णन संक्षिप्त परंतु अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ के पात्रों का परिचय
- लेखक- के. विक्रम सिंह, त्रिपुरा की यात्रा का वर्णन।
- कल्लू कुमार- शिवजी की एक करोड़ से एक कम मूर्तियों का निर्माण करने वाला।
- हेमंत कुमार जमातिया- त्रिपुरा के प्रसिद्ध लोकगयक।
- शिवजी और पार्वती- शिवजी द्वारा कल्लू कुमार को कैलाश पर्वत ले जाने के लिए शिवजी की एक रात में एक करोड़ मूर्तियां बनाने एक शर्त रखना।
- मंजू ऋषिदास- महिला, रेडियो कलाकार।
- अन्य पात्र – सी.आर.पी.एफ जवान, स्थानीय लोग।
लेखक का त्रिपुरा जाना
kallu kumhar ki unakoti summary: जब लेखक सन् 1999 के दिसंबर महीने में ‘ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों वाली एक टी.वी. श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गए। इस यात्रा के पीछे लेखक का जो बुनियादी विचार था, वह त्रिपुरा की समूची लंबाई में आर-पार जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और त्रिपुरा की विकास संबंधी गतिविधियों के बारे में जानकारी लेना था।
त्रिपुरा की जानकारी
kallu kumhar ki unakoti summary: त्रिपुरा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से है। इसकी जनसंख्या वृद्धि की दर 34 प्रतिशत है, जो काफ़ी ऊँची है। यह राज्य बांग्लादेश से तीन तरफ़ से घिरा हुआ है और एक तरफ से भारत के दो राज्य मिजोरम और असम (उत्तर-पूर्वी सीमा) सटे हुए हैं। सोनापुरा, बेलोनिया, सबरूम और कैलासशहर जैसे त्रिपुरा के ज्यादातर महत्वपूर्ण शहर हैं, जो बांग्लादेश की सीमा के करीब हैं।
त्रिपुरा की राजधानी अगरतला का वर्णन
kallu kumhar ki unakoti summary : अगरतला सीमा चौकी से महज दो किलोमीटर दूर है। यहाँ बांग्लादेश के लोगों की आवक (आना) बहुत ज़बरदस्त है। यहाँ बाहरी लोगों की जनसंख्या इतनी बढ़ गई है कि मूल निवासी आदिवासियों की संख्या उसके मुकाबले कम पड़ती जा रही है। यहाँ असम और पश्चिम बंगाल से भी लोग आकर रहते हैं यही कारण है कि त्रिपुरा के आदिवासियों में असंतोष बढ़ रहा है। लेखक अपना पूरा यात्रा-वृत्तांत में पहले तीन दिनों की चर्चा करते हैं, जो अगरतला में बीते और उन्होंने अगरतला के इर्द-गिर्द की शूटिंग की।
इस दौरान लेखक ने उज्जयंत महल की भी चर्चा की है जो अगरतला का मुख्य महल है और अब वहीं पर त्रिपुरा की राज्य विधानसभा बैठक होती है। लेखक यह बताते हैं कि त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने से कुछ समस्याएँ पैदा हुई है, लेकिन इस समस्या का लाभ यह है कि राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बन गया है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है।
लेखक ने अगरतला के बाहरी हिस्से पैचारथल में एक सुन्दर बौद्ध मंदिर भी देखा। उन्हें पूछने पर पता चला कि त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से, यानी चकमा और लघु महायानी बौद्ध हैं। ये कबीले त्रिपुरा में बर्मा या म्यांमार से चाटगाँव के रास्ते आए थे। दरअसल इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा भी 1930 के दशक में रंगून से लाई गई थी।
टीलियामुरा का वर्णन
kallu kumhar ki unakoti summary: लेखक अगरतला शूटिंग करने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग- 44 से टीलियामुरा कस्बे में पहुँचे। यह एक कस्बा है जोकि काफी बड़ा गाँव है। लेखक की टीलियामुरा में त्रिपुरा के प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया से मुलाकात होती है, जिन्हें सन् 1996 ई. में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।
गायक हेमंत कोकबारोक बोली में गाते हैं। कोकबारोक त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से एक है। वहीं टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक की मुलाकात एक और गायक मंजु ऋषिदास से हुई। ऋषिदास त्रिपुरा में मोचियों (जूते बनाने वालों) के एक समुदाय का नाम है। इस समुदाय के लोग जूते बनाने के अतिरिक्त तबला और ढोल का निर्माण भी करते हैं।
मंजु ऋषिदास आकर्षक महिला थीं और रेडियो कलाकार होने के साथ-साथ नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। वे अनपढ़ थीं। उन्होंने लेखक के लिए दो गीत भी गाए और इसमें उनके पति ने भी शामिल होने की कोशिश की क्योंकि लेखक उस समय गाने को भी शूट कर रहे थे।
लेखक का मनु की यात्रा का वर्णन
kallu kumhar ki unakoti summary: इसके बाद लेखक राष्ट्रीय राजमार्ग- 44 पर 83 किलोमीटर स्थान मनु तक की यात्रा के दौरान ट्रैफिक सी.आर.पी.एफ की सुरक्षा में काफिलों के साथ जाते हैं। लेखक ने मुख्य सचिव, आई.जी और सी. आर.पी.एफ से निवेदन किया कि हमें घेरबंदी में चलने वाले काफ़िले के आगे-आगे चलने दें। वे इसके लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि लेखक और उनके कैमरामैन को सी.आर.पी.एफ की हथियारबंद गाड़ी में चलना होगा और यह काम उन्हें अपने जोखिम पर ही करना होगा।
काफ़िला दिन के 11 बजे चलना शुरू हुआ। लेखक अपनी शूटिंग में इतना व्यस्त थे उस समय उन्हें डर नहीं लगा जबतक सी.आर.पी.एफ. के एक जवान ने लेखक का ध्यान दो पत्थरों आकृष्ट नहीं करवाया था। सी.आर.पी.एफ. जवान ने लेखक से कहा कि ‘दो दिन पहले हमारा एक जवान यहीं विद्रोहियों के द्वारा मारा गया था।’ लेखक मनु तक की शेष यात्रा में यह बात मन से नहीं निकल पाए।
लेखक द्वारा त्रिपुरा के प्राकृतिक और उद्योग का वर्णन
kallu kumhar ki unakoti summary: लेखक त्रिपुरा के प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करते हुए कहते हैं- “त्रिपुरा की प्रमुख नदियों में से एक मनु नदी के किनारे स्थित मनु एक छोटा कस्बा है। जिस वक्त हम मनु नदी के पार जाने वाले पुल पर पहुँचे, सूर्य मनु के जल में अपना सोना उडेल रहा था।”
जब लेखक उत्तरी त्रिपुरा जिले में प्रवेश किया तो उन्होंने वहाँ की लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक-अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सीकें तैयार करने वाले घरेलू उद्योग का भी मुआयना किया। बाँस की इन सीकों को अगरबत्तियाँ बनाने के लिए कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है।
उत्तरी त्रिपुरा जिले का मुख्यालय कैलासशहर है, जो बांग्लादेश की सीमा के काफ़ी करीब है। त्रिपुरा में एक स्थान का नाम उनाकोटी है, जिसके बारे में लेखक कुछ नहीं जानते थे। लेखक को उसकी विशेष जानकारी वहाँ के जिलाधिकारी से प्राप्त हुई। उनाकोटी का मतलब है एक कोटि यानी एक करोड़ से एक कम।
‘उनाकोटी’ की प्रसिद्ध दंतकथा (काल्पनिक कथा) का वर्णन
kallu kumhar ki unakoti summary: दंतकथा के अनुसार उनाकोटी में शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं। विद्वानों का मानना है कि यह जगह दस वर्ग किलोमीटर से कुछ ज्यादा क्षेत्र में फैली है और पाल शासन के दौरान नवीं से बारहवीं सदी तक के तीन सौ वर्षों में यहाँ चहल-पहल रहा करती थी। पहाड़ों को अंदर से काटकर यहाँ विशाल आधार मूर्तियाँ बनी हैं।
एक विशाल चट्टान पर ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के अवतरण के मिथक (पौराणिक कथा) को चित्रित करती है। गंगा अवतरण के धक्के से कहीं पृथ्वी धसकर पाताल लोक में न चली जाए इसलिए शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें।
शिवजी का चेहरा एक समूची चट्टान पर बना है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। भारत में शिवजी की यह सबसे बड़ी आधार मूर्ति है। पूरे साल बहने वाला एक जलप्रपात पहाड़ों से उतरता है, जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है। यह पूरा इलाका ही देवी-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है।
कल्लू कुम्हार द्वारा मूर्तियाँ बनाना
kallu kumhar ki unakoti summary: स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों को कल्लू कुम्हार ने बनाया था। वह पार्वतीजी का सच्चा भक्त था और वह शिव-पार्वती के साथ उनके निवास स्थान कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिवजी कल्लू को कैलाश ले जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन इसके लिए शिवजी ने शर्त यह रखी कि कल्लू को एक रात में शिवजी की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी होंगी।
कल्लू अपनी पूरी श्रद्धा से इस काम में जुट गया। लेकिन जब सुबह हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से एक कम निकलीं। शिवजी कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़वाना चाहते थे इसलिए शिवजी ने इसी बात का बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और स्वयं कैलाश पर्वत पर चले गए।
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का उद्देश्य
लेखक अपने इस यात्रावृतांत के माध्यम से हमें त्रिपुरा की भौगोलिक, सामाजिक परिवेश और धार्मिक जानकारी देना चाहते हैं।
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ
सोहबत- संगति, साथ
ऊर्जादायी- ऊर्जा(शक्ति) देने वाली
खलल- बाधा, व्यवधान
कानकाडू- तेज आवाज़ जो कान फोड़ हो
विक्षिप्तों- पागल
तड़ित- बिजली
अलस्सुबह – तड़के, बिल्कुल सुबह
आवक- आना
अवैध- गैर क़ानूनी, नियम विरुद्ध
दुर्गम- कठिन, ऐसी जगह जहाँ पहुंचना मुश्किल हो
प्रवास- अपना देश छोड़कर किसी अन्य देश में रहने का भाव; विदेश में रहना; देशांतरण
प्रतीकित-अभिव्यक्त करना
कबीलाई- काबिले से संबंधित
हस्तांतरण- एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के हाथ में जाना
तेजतर्रार- बहुत तेज
मिथक- पौराणिक कथा
शब्दशः- प्रत्येक शब्द के अनुसार
चिन्हित- जिनकी अभी पहचान नहीं की जा सकी है
अवतरण- पार उतरना, प्रादुर्भाव,जन्म
प्रपात- ऊँचे स्थान से गिरने वाला जलप्रवाह
कक्षा 9 की पुस्तक संचयन के तीसरे अध्याय कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश ‘Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 kallu kumhar ki unakoti’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।
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