Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 Kis Tarah Aakhirkar main Hindi Mein Aaya Summary

इस पाठ में हम कक्षा 9 कृतिका पाठ 5 ‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ के पाठ का सारांश (class 9 hindi kritika chapter 5 Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya Summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।

Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 Kis Tarah Aakhirkar main Hindi Mein Aaya Summary (किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया)

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया के लेखक शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय

लेखक शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून के एक प्रतिष्ठित जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम तारीफ सिंह और माता का प्रभुदेई था। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू में हुई थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके ननिहाल देहरादून के पी मिशन हाई स्कूल में हुई। सन् 1928 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करके 1931 में उन्होंने गोंडा (उत्तर प्रदेश) से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर सन् 1933 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए उत्तीर्ण करके सन् 1938 में वहीं से एमए प्रीवियस भी उत्तीर्ण हुए। सन् 1929 में 18 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह धर्मवती के साथ हुआ। छः वर्ष के साथ के बाद 1935 में यक्ष्मा से धर्मवती की मृत्यु हो गयी। सन् 1939 में उनके पिता बाबू तारीफ़ सिंह का भी देहावसान हो गया। 


शमशेर बहादुर सिंह के जीवन का बहुत बड़ा भाग बेहद अभाव से भरा रहा है। उनके भाई तेज बहादुर के शब्दों में “जिस भी इच्छा के लिए पिपासा जागती थी बस उसी का ही अभाव सामने आ जाता था।… वे दुर्दिन तो थे ही, अभाव से ग्रसित दारिद्र जीवन के उस अंधकार में रचनाएँ, चित्र लेख और अपनी उमंगों का सपना संजोए हुए यात्री उत्तरोत्तर अग्रसर होता गया। कपड़ों का अभाव, खाने का अभाव, धन-दौलत का अभाव, भूख-प्यास साहित्य सुभट ने सभी कुछ झेला।”

 शमशेर बहादुर सिंह की प्रसिद्ध रचनाएँ–

कविता- संग्रह – कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने, उदिता: अभिव्यक्ति का संघर्ष, बात बोलेगी, कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ, सुकून की तलाश में 

कहानी और स्केच-संग्रह– प्लाट का मोर्चा। 

निबंध-संग्रह– दो आब।

अनुवाद– पृथ्वी और आकाश (रूसी के अंग्रेजी अनुवाद से), षड्यंत्र (अंग्रेजी से), कामिनी (उर्दू से), हुश्शू (उर्दू से), पी कहाँ (उर्दू से), आश्चर्यलोक में एलिस (अंग्रेजी से)।

पुरस्कार– साहित्य अकादमी पुरस्कार “चुका भी हूँ नहीं मैं” काव्य संग्रह के लिए, ‘मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार’ (मध्यप्रदेश सरकार), ‘कबीर सम्मान’ (मध्यप्रदेश सरकार)

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का सार

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ की भूमिका

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ रचना लेखक शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित है। नयी और विशिष्ट गद्य शैली में लिखी गई यह ललित गद्य रचना हमें शमशेर के रचनाकार व्यक्तित्व की सादगी और संघर्षों से तो परिचित कराती ही है, कवि हरिवंशराय बच्चन की संवेदनशीलता और उनके प्रति लेखक की आत्मीयता को भी दर्शाती हैं। अनौपचारिकता और आत्मीयता की खुशबू के साथ इसमें उर्दू गद्य-शैली का स्वाद भी है। 

इस लेख में लेखक ने बताया है कि पहले उन्होंने उर्दू और अंग्रेज़ी में लिखना शुरू किया था, किंतु बाद में अंग्रेज़ी-उर्दू को छोड़कर हिंदी में लिखना शुरू कर दिया। लेखक ने श्री सुमित्रानंदन पंत, डॉ. हरिवंशराय बच्चन तथा श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के प्रति अपनी श्रद्धा को भी व्यक्त किया है। 

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के पात्रों का परिचय

लेखक- शमशेर बहदुर सिंह, इनके जीवन में अनेक कठिनईयां आई।

तेज बहादुर- लेखक के बड़े भाई, इनकी आर्थिक रूप से मदद करने वाले।

लेखक के ससुराल वाले- आर्थिक रूप से सहायता करने वाले।

हरिहावंश राय बच्चन जी- लेखक की हर तरह से मदद और पढ़ने के लिए प्रेरित करने के साथ फीस का खर्चा भी उठाते हैं।

कवि निराला और पंत- लेखक को लिखने के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्ति।

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ का सारांश

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक का दिल्ली जाना 

लेखक कहते हैं कि वे जिस स्थिति में थे, उसी स्थिति में बस पकड़कर दिल्ली चले आए। दिल्ली आकर वे पेंटिंग सीखने की इच्छा से उकील आर्ट स्कूल पहुँचे। परीक्षा में पास होने के कारण और साथ ही उनका पेंटिंग के प्रति शौक देखकर उन्हें बिना फ़ीस के ही वहाँ दाखिला मिल गया। वे करोल बाग में रहकर कनाट प्लेस पेंटिंग सीखने जाने लगे। रास्ते में आते-जाते वे कभी कविता लिखते और कभी ड्राइंग बनाते थे। अपनी ड्राइंग के तत्व खोजने के लिए वे प्रत्येक आदमी का चेहरा बहुत गौर से देखते थे। 

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक की आर्थिक स्थिति

लेखक को अपने जीवन में पैसे की बड़ी तंगी रहती थी। कभी-कभी उनके बड़े भाई तेज बहादुर उनके लिए कुछ रुपये भेज देते थे। वे कुछ पैसे साइनबोर्ड पेंट करके भी कमा लेते थे। और उसी से अपना थोड़ा बहुत गुजारा करते थे। अतः अपने को व्यक्त करने के लिए वे कविताएँ और उर्दू में गज़ल के कुछ शेर भी लिखते थे। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनकी कविताएँ कभी छपेंगी। उनकी पत्नी टी.बी की मरीज थीं। और उनका देहांत हो चुका था। अतः वे बहुत दुःखी रहते थे। 

लेखक ने दो-तीन जगह देखने के बाद करोल बाग़ के सड़क के किनारे एक कमरा लिया। वे रोज वही से अपनी क्लास के लिए जाते थे। उनके साथ महाराष्ट्र के एक पत्रकार भी आकर रहने लगे। उसकी  उम्र तीस-चालीस के करीब होगी। वे हमेशा लेखक के सामने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का जिक्र करते थे।

उन दिनों लेखक से मिलने बच्चन जी भी स्टूडियो में आए थे और लेखक के न मिलने पर वे उनके  लिए एक नोट छोड़ गए थे। लेखक को याद नहीं कि उस नोट में क्या लिखा था लेकिन वे स्वयं को कृतज्ञ महसूस कर रहे थे। उनकी एक बुरी आदत थी वे किसी के भी पत्र का जवाब नहीं देते थे। इसके बाद लेखक ने एक अंग्रेज़ी का सॉनेट लिखा, किंतु उन्होंने सॉनेट बच्चन जी के पास भेजा नहीं था।

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक की बच्चन जी से मुलाकात 

कुछ समय बाद लेखक देहरादून आ गए। वे अपने ससुराल के केमिस्टस एंड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कम्पाउंडरी का काम सीखने लगे और साथ ही टेढ़े- मेढ़े वाक्यों को पढ़ने में महारत भी हासिल हो गई। लेखक जब देहरादून में थे तो उनके गुरु श्री शारदाचरण जी उकील ने देहरादून में पेंटिंग क्लास खोल ली थी।

उस समय बच्चन जी भी गर्मी की छुट्टियों में देहरादून आकर ब्रजमोहन(संयोग से लेखक के भाई का मित्र और उनके पिताजी लेखक के पिताजी के पड़ोसी मित्र रह चुके थे) के घर ठहरे थे। देहरादून आने पर बच्चन जी डिस्पेंसरी में आकर उनसे मिले थे। उस दिन मौसम बहुत खराब था और आँधी आ जाने के कारण वे एक गिरते हुए पेड़ के नीचे आते-आते बच गए थे। वे बताते हैं कि बच्चन जी की पत्नी का देहांत हो चुका था। अतः वे भी बहुत दुखी थे। उनकी पत्नी सुख-दुख की युवा संगिनी थी। वे बात की धनी, विशाल हृदय और निश्चय की पक्की थी। 

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक का इलाहाबाद जाना 

लेखक बीमार रहने लगे थे, अतः बच्चन जी ने उन्हें इलाहाबाद आकर पढ़ने की सलाह दी और वे उनकी बात मानकर इलाहाबाद आ गए। बच्चन जी ने उन्हें एम.ए में प्रवेश दिला दिया क्योंकि वे चाहते थे कि लेखक को पढ़-लिखकर अच्छा काम मिल जाए। लेखक अपने पिताजी की सरकारी नौकरी को देखकर स्वयं सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते थे। 

लेखक बताते हैं कि उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में एक सीट निःशुल्क(फ्री) मिल गई। इसके साथ ही प्रसिद्ध कवि पंत जी की कृपा से उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम भी मिल गया। अब उन्हें लगा कि गंभीरता से हिंदी में कविता लिखनी चाहिए, किंतु घर में उर्दू का वातावरण था तथा हिंदी में लिखने का अभ्यास भी छूट चुका था। अतः बच्चन जी उनके हिंदी के पुनर्संस्कार के कारण बने।

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक की रचनाएँ पत्रिकाओं में छपना 

इस समय तक उनकी कुछ रचनाएँ ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ पत्रिका में छप चुकी थी। ‘अभ्युदय’ पत्रिका में छपा लेखक का एक “सॉनेट” बच्चन जी को बहुत पसंद आया था। वे बताते हैं कि पंत जी और निराला जी ने उन्हें हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया। बच्चन जी हिंदी में लेखन कार्य शुरू कर चुके थे। अतः लेखक को लगा कि अब उन्हें भी हिंदी लेखन में उतरने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। बच्चन जी ने उन्हें एक स्टैंजा का प्रकार बताया था।

‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ पाठ के लेखक की हिंदी लेखन में सफलता 

इसके बाद उन्होंने एक कविता लिखी। उन्हें बच्चन की निशा- निमंत्रण के आकार ने बहुत आकर्षित किया। लेखक अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहे थे। इसलिए बच्चन जी को बहुत दुख था। वे बच्चन जी के साथ एक बार गोरखपुर कवि सम्मेलन में भी गए थे। अब लेखक की हिंदी में कविता लिखने की कोशिश सार्थक हो रही थी। ‘सरस्वती’ में छपी उनकी कविता ने निराला जी का ध्यान खींचा।

लेखक ‘रूपाभ’ कार्यालय में प्रशिक्षण लेने के बाद बनारस के ‘हंस’ कार्यालय की ‘कहानी’ में चले गए। वे कहते हैं कि निश्चित रूप से बच्चन जी ही उन्हें हिंदी में ले आए। वैसे बाद में बच्चन जी से दूर ही रहे, क्योंकि वे चिट्ठी लिखकर भेजने और मिलने-जुलने में उतना विश्वास नहीं रखते थे। वैसे बच्चन जी उनके बहुत निकट रहे।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का उद्देश्य

लेखक ने अपने साहित्यिक और निजी जीवन में आने वाली कठिनाईयों के बारे में बताकर हमें जीवन में कभी हार नहीं मानने का संदेश भी दिया है। उनकी जिंदगी में उतार – चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने मुसीबतों का डटकर सामना किया। लेखक के मुश्किल समय में उनके परिवार, मित्रों ने पूरा सहयोग किया।

“किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया” के कठिन शब्दों के अर्थ 

दुष्प्राप्य- जिसका मिलना कठिन हो 

क्षोभ- दुःख, असतोष, व्याकुलता 

प्रातिभ- प्रतिभा से युक्त 

नैसर्गिक- सहज, स्वाभाविक 

आकस्मिक- अचानक होनेवाला

सजग- सतर्क, सावधान

संशोधन- शुद्ध करना, साफ़ करना, ठीक करना, दुरुस्त करना, रूप बदलना

आकृष्ट- आकर्षित

द्योतक- दायित्व 

विरक्त- आसक्तिरहित, भोग विलास आदि से दूर रहनेवाला, उदास

संकीर्ण- छोटा, उदार, नीच, तंग, 

रब्त- संबंध, रिश्ता, नाता 

घोंचूपने- गड़ाना, चुभाना

निश्चल- अचल, स्थिर, अपरिवर्तनशील

मेज़बान– मेहमान नवाजी करने वाला, आतिथ्य करने वाला, 

इसरार-आग्रह 

बराय नाम- नाम के लिए, दिखाने के लिए 

वियोग- विरह, दुःख, अभाव

इत्तिफ़ाक- संयोग

एकांतिकता – अकेलापन, एकाकीपन  

गोया- मानो, जैसे, इस प्रकार 

इबारत- वाक्य की बनावट 

कृतज्ञ- उपकार माननेवाला, एहसानमंद

मुख़्तसर- संक्षिप्त, छोटा किया हुआ, थोड़ा, अल्प, सारूप 

सामंजस्य- अनुकूलता, उपयुक्तता, तालमेल 

गरज़- आवश्यकता, ज़रूरत, स्वार्थजन्य इच्छा

चुनाँचे- अतः, इसलिए, इस प्रकार 

वसीला- ज़रिया, सहारा 

जुमला-वाक्य 

लबे-सड़क- सड़क के किनारे 

कक्षा 9  की पुस्तक कृतिका  के पांचवे अध्याय किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का सारांश ‘Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

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