चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती | Champa Kale Akshar Nahi Chinhti Class 11

Class 11 Hindi Aroh Chapter 16 – कक्षा 11 हिंदी आरोह पाठ 16

Table of Content:
1. त्रिलोचन जी का जीवन परिचय
2. चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता का सारांश 
3. चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता
4. चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता का भावार्थ
5. चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता प्रश्न अभ्यास
6. Class 11 Hindi Aroh Chapters Summary

त्रिलोचन जी का जीवन परिचय – Trilochan Ji Ka Jeevan Parichay 

कवि त्रिलोचन जी का दूसरा नाम वासुदेव सिंह था। इनका जन्म सन 1917 में उत्तर प्रदेश सुल्तानपुर में हुआ था। हिंदी साहित्य में कवि त्रिलोचन जी का नाम प्रगतिशील काव्य के कारण प्रसिद्ध है। यह एक नहीं बल्कि बहुत सारे भाषाओं के ज्ञानी थे। यह कविता को लय में रख कर लिखते थे। इसलिए इनको इनके नाम के साथ एक उपाधि दी गई, जिस उपाधि का नाम था शास्त्री।


त्रिलोचन जी की कविताएं बेहद रोचक होती थी। इनके लिखने का अंदाज लोगों को बहुत भाता था और शायद यही कारण है कि यह बहुत ज्यादा प्रसिद्ध भी रहे। हिंदी साहित्य में त्रिलोचन जी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हैं।

इनकी प्रमुख रचनाएं हैंधरती, गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि।

इनको महात्मा गांधी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता का सारांश – Champa Kale Akshar Nahi Chinhti Poem Summary

इस कविता में कवि ने एक ऐसे पात्र को अपनी कविता में जगह दी है, जो खुद अनपढ़ है और कवि ने उसी के माध्यम से इस संपूर्ण कविता को लिखा है। चंपा एक अनपढ़ लड़की होने के कारण कुछ अजीबोगरीब बातें कवि के समक्ष कहती है और कवि को उसकी बातों पर हंसी आ जाती है। उसने क्या-क्या बातें कही, उन बातों को कहने का क्या अर्थ है, इन्हें कवि ने इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है। 

चंपा एक ग्वाले की बेटी है और वह बहुत ही ज्यादा सुंदर है, मगर उसे पढ़ाई लिखाई के बारे में बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है। इसलिए कवि जब भी उसके पास बैठकर कुछ पढ़ते थे, तब वह उनके पढ़ी हुई बातों को ध्यान से सुनती थी। चंपा के लिए पढ़ाई काले अक्षर के समान है। जिस कारण उसे कवि का लिखना पढ़ना अच्छा नहीं लगता था और जब भी कवि उससे कभी पढ़ने को कहते थे, तो वह कहती थी कि यह तो गांधी बाबा की बात है और मुझे नहीं पढ़ना यह कहकर वह कवि की बात को टाल देती थी।

कभी-कभी वह कवि का पेन एवं कागज चुरा लेती थी ताकि कवि उन कागजों पर कुछ ना लिखें और वह सिर्फ उसी से बात करते रहे। कवि को उसकी यह सब आदतें कभी-कभी बहुत अच्छी लगती, तो कभी-कभी कवि उस पर गुस्सा हो जाते थे। 

कवि चंपा से कहते हैं कि पढ़ाई लिखाई बहुत ज्यादा जरूरी है। पढ़ाई करने के बाद बेटी अपनी ससुराल चली जाती है और चंपा अगर पढ़ाई लिखाई करेगी, तो उसकी शादी हो जाएगी और उसका पति काम करने के लिए कोलकाता भी जाएगा। कोलकाता का नाम सुनते ही चंपा गुस्सा करती है और कहती है कि मुझे तो वैसे भी शादी नहीं करनी है। अगर मेरी शादी होगी भी, तो मैं अपने पति को कभी भी कोलकाता नहीं जाने दूंगी। कवि के सामने इस बात की कामना करती है कि कोलकाता में भारी विपत्ति पड़े।

यह कविता बहुत ही रोचक कविता है, जिसे पढ़कर पाठकों का दिल खुश हो जाएगा।

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता – Champa Kale Akshar Nahi Chinhti Poem

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं

चंपा सुन्दर की लड़की है
सुन्दर ग्वाला है : गायें भैंसें रखता है
चंपा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी है
चंचल है
न ट ख ट भी है
कभी कभी ऊधम करती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूंढ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ – अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ

चंपा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चंपा चुप हो जाती है

उस दिन चंपा आई , मैने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है –
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूंगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूंगी

मैने कहा चंपा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा , तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चंपा पढ़ लेना अच्छा है!

चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम , तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करुंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूंगी
कलकत्ता में कभी न जाने दूंगी
कलकत्ते पर बजर गिरे।

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता का भावार्थ – Champa Kale Akshar Nahi Chinhti Poem Line by Line Explanation

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती व्याख्या: कविता के प्रथम अंश में कवि एक लड़की के बारे में बताते हैं, जो पढ़ी-लिखी नहीं है, जिसका नाम चंपा है। चंपा चुकी पढ़ी-लिखी नहीं रहती है, उसे अक्षरों का ज्ञान भी नहीं होता है। उसे यह काले-काले अक्षर अजीब लगते हैं। जब कवि उन कालो अक्षरों को उसके सामने पढ़ते हैं, तो उसे लगता है कि क्या यह काले काले अक्षर भी स्वर निकाल सकते हैं, ध्वनि निकाल सकते हैं? बस इन्हीं सब चीजों के बारे में चंपा सोचती और कवि उसी के बारे में यहां पर बता रहे हैं।

चंपा सुन्दर की लड़की है
सुन्दर ग्वाला है : गायें भैंसें रखता है
चंपा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी है
चंचल है
न ट ख ट भी है
कभी कभी ऊधम करती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूंढ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ – अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती व्याख्या: कवि कविता के इस दूसरे भाग में चंपा के विषय में ही बातें करते हैं कि चंपा एक सुंदर नाम के ग्वाले की बेटी है। जो स्वयं बहुत ही ज्यादा सुंदर है एवं चंचल भी है। वह गाय एवं‌ भैंसों को चराने ले जाती है एवं कवि को अपनी ‌शरारतों से बहुत तंग भी करती है। चंपा कभी कवि का कलम छुपा देती है, तो कभी कागज। चंपा की शरारतों से कभी-कभी कवि परेशान भी जो जाते थे।

चंपा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चंपा चुप हो जाती है

उस दिन चंपा आई , मैने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है –
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूंगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूंगी

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती व्याख्या: कविता के इस अंश में कवि ने भागने की स्थिति को दिखाया है। जहां पर चंपा और गांव वाले पढ़ाई लिखाई से दूर भागते हुए नजर आते हैं। आपने यह बात सुनी होगी एवं देखी भी होगा कि जब लोगों को कोई चीज अच्छी नहीं लगती है, तो वह चीज उनके लिए बुरी बन जाती है।

बहुत से बच्चों को गणित का विषय समझ में नहीं आता है, इसलिए वह विषय उनके लिए कठिन हो जाता है। वह गणित से पीछे भागते हैं, मगर जिन्हें गणित का विषय पसंद है। वे गणित से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं एवं वह विषय उनके लिए बहुत अच्छा होता है।

इसी तरीके से पढ़ाई लिखाई जो कभी नहीं किए हैं, उनको लगता है कि पढ़ाई लिखाई करना बहुत ही कठिन काम है और इस कविता में चंपा को भी कुछ ऐसा ही लगता है कि पढ़ाई लिखाई उसकी बस की बात नहीं है और इसलिए वह पढ़ना-लिखना नहीं चाहती है।

कवि जब भी चंपा से मिलते थे या चंपा जब भी कभी से मिलती थी, तो कवि हमेशा कागज़ में कुछ न कुछ लिखते रहते थे। चंपा को कवि का कागज में यू लिखना अच्छा नहीं लगता था। इसलिए वह कहती थी कि तुम यह कागज में क्या लिखते हो, पढ़ाई करते रहते हो, इसमें क्या रखा है। अर्थात चंपा के अनुसार कागज पर लिखना कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है।

कवि पढ़ाई लिखाई पर जोर देते हुए चंपा से कहते हैं कि तू भी पढ़ाई कर ले यह पढ़ाई तेरे बहुत काम आएगी और वह गांधीजी के बारे में बताते हुए भी कहते हैं कि स्वयं महात्मा गांधी चाहते थे कि देश के सभी लोग पढ़ाई लिखाई करें एवं अच्छे नागरिक बने। तब चंपा पलट कर जवाब देती है कि तुम तो कहते थे कि वह अच्छा आदमी है भला अच्छा आदमी पढ़ने लिखने की बात कब से करने लगा। इस तरह से वह पढ़ाई लिखाई के प्रति अपना मुंह मोड़ लेती है और फिर से कहती है कि मैं पढ़ाई नहीं करूंगी।

मैने कहा चंपा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा , तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चंपा पढ़ लेना अच्छा है!

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती व्याख्या: कविता के इस अंश में कवि फिर से चंपा को पढ़ाई लिखाई के गुणों के बारे में बताते हैं कि पढ़ाई लिखाई उसके लिए कितना जरूरी है। पढ़ाई उसके लिए आगे चलकर बहुत काम आ सकता है। कवि कहते हैं कि चंपा तुम्हारी शादी हो जाएगी, तो तुम शादी के बाद अपने ससुराल चली जाओगी और अगर तुम्हारा पति काम के सिलसिले से कोलकाता जाएगा, तो वह दूर हो जाएगा और तुम फिर उससे चिट्ठी के माध्यम से कैसे बात करोगी। बिना पढ़ाई लिखाई किए तुम एक चिट्ठी भी नहीं लिख सकती हो और इस तरीके से तुम दोनों के बीच बातचीत भी होना असंभव है।

चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम , तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करुंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूंगी
कलकत्ता में कभी न जाने दूंगी
कलकत्ते पर बजर गिरे।

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती व्याख्या: चंपा कवि द्वारा यह सुनने पर बहुत रूठ जाती है कि कवि ने उसे पढ़ने-लिखने के लिए कहा है। वह कवि से कहती है कि तुम तो बहुत झूठ बोलते हो, पढ़-लिख कर क्या फ़ायदा जब तुम झूठ ही बोलोगे, तो तुमने पढ़ाई क्यों कि? चंपा को लगता है कि पढ़ना-लिखना बुरी बात है और पढ़-लिख कर कभी किसी का भला नहीं होता है और फिर वह कवि से कहती हैं कि मैं शादी नहीं करूंगी और अगर मैं शादी करूंगी भी तो अपने पति को कभी भी कोलकाता जाने नहीं दूंगी अपने पास ही रखूंगी।

वह फिर कलकत्ता शहर को बुरा कहती है और उस शहर का बुरा चाहती है कि ऐसे शहरों में कहर बरसे, जो एक व्यक्ति को अपने परिवार से दूर करता है।

 अर्थात दूसरे तरीके से अगर देखा जाए, तो यहां चंपा अपने पति का शोषण होता भी नहीं देखना चाहती है। वह अपने पति को अपने साथ अपने पास रखना चाहती है, ताकि वह अच्छे से उसका ख्याल रख सके और उसके हर बुरे वक्त की खबर भी उसे अच्छे से हो। अगर उसका पति दूर रहेगा, तो वह उसकी जानकारी नहीं रख पाएगी और इससे उसके परिवार में भी मुसीबतें बढ़ेंगी।

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