Antra Class 12 Ghananand Solution- घनानंद के कवित्त/सवैया प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1) कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान’ को क्यों कहां है?

उत्तर- कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान’ को इसलिए कहा है क्योंकि कवि अभी विरह की स्थिति से गुजर रहे हैं और इस विरह की स्थिति में एकमात्र सुख देने वाला बादल वह भी अब घिरा हुआ नहीं है।

इस वजह से कवि और भी ज्यादा उदास है कि दुख की घड़ी में सुजान की तरह बादल भी उनको भाव नहीं दे रहे हैं।


प्रश्न 2) कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?

उत्तर- सुजान कवि घनानंद से ना मिलने का प्रण ली हुई रहती है। जिस कारण कवि भी मौन होने का फैसला करते हैं और यह देखना चाहते हैं कि कब तक नायिका कवि से न बात करने का प्रण रख पाती है।

प्रश्न 3) कवि ने किस प्रकार की पुकार से ‘कान खोलि है कि बात कही है?

उत्तर- कवि के अनुसार नायिका सुजान ने अपने कानों के अंदर रुई डाल रखी है। जिस कारण कवि के मन की बात नायिका के कानों तक नहीं पहुंच पाती और कवि को अब पूर्ण विश्वास है कि जिस दिन वह रूई नायिका के कान से हटेगी। उस दिन कवि के मन की व्यथा को सुजान समझेगी।

प्रश्न 4) प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पर रहे थे और अब क्यों दुखी हैं?

उत्तर- प्रथम सवैये के आधार पर कवि घनानंद के प्राण बहुत ही सुखमय तरीके से पहले चल रहे थे। कवि के जीवन में जब तक नायिका थी जब तक नायिका का साथ था। तब तक कवि बहुत ज्यादा ही सुखी था।

मगर जब से नायिका उनसे दूर चली गई है, तब से उनको कोई भी सुख चैन अच्छा नहीं लगता। कवि का असली सुख, असली जीवन सब कुछ तो नायिका सुजान ही थी। जो अब उनके साथ उनके पास नहीं है, जिस कारण वह बहुत ज्यादा दुखी है, उन सुखद पलों को याद करके।

प्रश्न 5) घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपनी भाषा में लिखे।

उत्तर- घनानंद ब्रजभाषा में अपनी कविताओं को लिखते थे। यह रीति से मुक्त होकर लिखने वाले कवि थे। जिस कारण यह बिना किसी बंधन में बंध कर अपने मन से स्वतंत्र तरीके से कविताएं लिखते थे और यही कारण है कि इनकी कविताओं को उस समय भी लोग पसंद करते थें और वर्तमान में भी लोग पसंद करते हैं।

इनकी कविता में बहुत मिठास है बहुत सरलता है एवं बहुत ही अच्छी तरीके से यह कविता को प्रस्तुत भी करते हैं।

प्रश्न 6) निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।

(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
       गहि गहि राखति ही दै दै सनमान कौ।।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(ख) कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलि है।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों की भाषा ब्रज भाषा है। विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।

उत्तर- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 7) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को

उत्तर- कवि घनानंद ने अपने पूरे जीवन में अपनी प्रेमिका सुजान का इंतजार किया, मगर वह नहीं आई। अब वह अपने जीवन के अंतिम क्षण में है और आखिरी बार वह अपनी प्रेमिका को देखना चाहते हैं।

(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।

उत्तर- कवि घनानंद की सुजान उनसे बात नहीं कर रही है। इसलिए प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं भी अब चुप रहूंगा और मेरी चुप्पी ही तुम्हें अब बोलने में विवश कर देगी।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।

उत्तर- कवि अपने पुराने दिनों को याद करते हैं और इसी आस में बैठे हुए हैं कि उनकी प्रेमिका अभी उन्हें दर्शन देने के लिए आएगी।

(घ) सो घनआनंद जान अजान लौं टूक कियौ पर वाँचि न देख्यौ।

उत्तर- कवि ने अपनी प्रेमिका को एक पत्र भेजा था। लेकिन उनकी प्रेमिका ने उस पत्र को बिना पढ़े ही उसे फाड़ कर फेंक दिया। जिससे कवि बहुत आहत हुए थे और दुख में वे कहते हैं कि मेरी प्रेमिका को मेरी कोई परवाह ही नहीं है।

(ङ) तब हार पहार से लागत हे, अब बीच में आन पहार परे।

उत्तर- कवि कहते हैं कि जब संयोग की स्थिति में थे। उस वक्त मेरे और मेरी प्रेमिका के मध्य उसके गले का हार पहाड़ का कार्य करता था और आज हम दोनों अलग-अलग हैं, वह भी वियोग रूपी पहाड़ के कारण।

प्रश्न 8) संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-

(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै …… चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि घनानंद कहते हैं कि मुझे तुम्हारी बातों में नहीं आना चाहिए था। आज तुम्हारे द्वारा दिए गए झूठी दिलासा के कारण मैं बहुत उदास हूं।

मैंने तुम्हें पत्र भेजा मगर तुमने उसे बिना पढ़े फाड़ दिया। इससे मैं बहुत आहत हुआ हूं। मगर आज भी जीवन के इस अंतिम क्षण में भी मुझे तुम्हारा इंतजार है कि तुम आओगी या फिर तुम्हारा कोई संदेशा आएगा तब जाकर मेरे यह प्राण निकलेंगे।

(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी ……. कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्तियां रीति काल के प्रसिद्ध कवि घनानंद द्वारा रचित है। कवि कहते हैं कि तुम आज चुप हो सुजान, तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती हो, तो फिर ठीक है। अब से मैं भी चुप रहूंगा, हो सकता है कि मेरी चुप्पी तुम्हें विवश कर दे मुझसे बात करने पर।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, ……………..बिललात महा दुःख दोष भरे।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब तुम मेरे समक्ष थी। तब मैं तुम्हारी छवि को देखकर जिंदा रहता था। मगर आज परिस्थितियां कुछ अलग है। 

जब भी मैं तुमसे मिलने के क्षण के बारे में सोचता हूं तो मेरी आंखों में पानी आ जाता है। कवि अपने वियोग अवस्था में अपने संयोग अवस्था के बारे में सोच रहे हैं।

(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र ….. टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

उत्तर- प्रसिद्ध काव्य पंक्तियां कवि घनानंद द्वारा रचित है इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैंने अपने हृदय में तुम्हारे अलावा किसी को भी स्थान नहीं दिया है अब तुम ही पहली और तुम ही आखिरी प्रेमिका हो मेरी लेकिन तुमने कभी मेरे हृदय की बातों को समझा ही नहीं और मुझे आज अकेला छोड़ दिया है।

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