Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 Summary
मनुष्यता – मैथिलीशरण गुप्त (Manushyata Class 10)
आप इस लेख में पढ़ने वाले हैं:
- मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय- Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay
- मनुष्यता कविता का भावार्थ- Manushyata Poem Summary
- Manushyata Poem- मनुष्यता कविता
- मनुष्यता कविता का भावार्थ – Manushyata Class 10 Explanation
- Hindi Sparsh Class 10 Chapters Summary
- NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Question Answer
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय- Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन 1886 में झाँसी के करीब चिरगांव में हुआ। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी आदि विषयों की शिक्षा ली।
मैथिलीशरण गुप्त जी एक रामभक्त कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय जीवन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी कविताओं द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने का अथक प्रयास किया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान का भाव दिखाई देता है। वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम-भक्त थे। इसी कारण, उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत हैं।
साकेत, यशोधरा, जयद्रथ-वध आदि मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रमुख कृतियां हैं।
“भारत-भारती” के लिए मैथिलीशरण गुप्त जी को महात्मा गाँधी ने “राष्ट्रकवि” की पदवी दी और सन 1954 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
मनुष्यता कविता का भावार्थ- Manushyata Poem Summary: मनुष्यता कविता में कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने उसी व्यक्ति को मनुष्य माना है, जो केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित के लिए भी जीते-मरते हैं। ऐसे मनुष्य को मृत्यु के बाद भी उसके अच्छे कर्मों के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता है, इस प्रकार, परोपकारी मनुष्य मर कर भी दुनिया में अमर हो जाता है।
Manushyata Poem- मनुष्यता कविता
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य वाह्य भेद हैं,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढ़केलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
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मनुष्यता कविता का भावार्थ – Manushyata Class 10 Explanation
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता ‘मनुष्यता’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने दो प्रकार के मनुष्य का वर्णन किया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने हमें मनुष्यता के लक्षणों से अवगत कराया है। साथ ही, उन्होंने हमें इस सत्य से भी अवगत कराया है कि मनुष्य अमर नहीं है। मनुष्य मरणशील है, इस बात को हमें स्वीकार करना चाहिए, तभी हमारे अंदर से मृत्यु का भय दूर होगा। कवि के अनुसार मनुष्य कहलाने का अधिकार उसी को है, जो दूसरे के हित तथा दूसरों की ख़ुशी के लिए जीता और मरता है। ऐसे मनुष्य को मृत्यु के बाद भी उसके अच्छे कर्मों के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता है, इस प्रकार परोपकारी मनुष्य मर कर भी दुनिया में अमर हो जाता है।
जबकि स्वार्थी मनुष्य केवल अपना भला व स्वार्थ सोचते हैं और खुद के लिए जीते हैं। ऐसे लोगों के मर जाने पर उन्हें कोई याद नहीं रखता। कवि के अनुसार ऐसे मनुष्यों एवं पशुओं में कोई अंतर नहीं होता है, क्योंकि पशु भी दूसरों के बारे में सोचे बिना केवल अपने हित के बारे में सोचते हैं और वैसे ही जीवन-यापन करते हैं।
अवगत- परिचित
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2.पशु प्रवृत्ति में अनुप्रास अलंकार है।
3. आप आप में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता ‘मनुष्यता’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने दानी और उदार व्यक्ति का वर्णन किया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दानी एवं उदार व्यक्ति का गुणगान किया है। मैथिलीशरण गुप्त जी के अनुसार जो मनुष्य दानी एवं उदार होते हैं और इस विश्व में एकता तथा अखंडता का भाव फैलाते हैं, उन्हें सदैव याद किया जाता है एवं उनका गुणगान किया जाता है। ऐसे व्यक्तियों के नाम इतिहास की पुस्तकों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखे जाते हैं। स्वयं सरस्वती माता उनकी कीर्ति का बखान करती हैं एवं धरती ख़ुद उनकी उदारता का ऋण मानती है।
सारा संसार ऐसे उदार, परोपकारी और दानी मनुष्य की पूजा करता है। ऐसे मनुष्य ही विश्व में आत्मीयता का भाव भरते हैं। अंत में कवि कहते हैं कि सच्चे अर्थों में मनुष्य वही है, जो हमेशा दूसरे मनुष्य का भला सोचता है और उसके भले के लिए मर भी सकता है।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1.उसी उदार, सदा सजीव, कीर्ति कूजती में अनुप्रास अलंकार है।
2.संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने दधीचि ऋषि की एक पौराणिक कथा का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पौराणिक कथाओं का उदाहरण देते हुए हमें यह बताया है कि ऐसे बहुत से क़िस्से हैं, जिनमें हमें दानी व्यक्तियों का गुणगान मिलता है। इन पंक्तियों में मैथिलीशरण गुप्त जी ने हमें कई उदाहरण दिए हैं। भूख से व्याकुल रतिदेव ने अपने हाथ में खाने की थाली भी दान में दे दी थी।
वहीं दधीचि ऋषि ने असुरों से रक्षा के लिए देवताओं को अपनी हड्डियाँ दान कर दी थी। महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही देवताओं ने वज्र (एक प्रकार का दैवीय अस्त्र) बनाकर असुरों का संहार किया। फिर एक कबूतर की रक्षा करने के लिए गांधार देश के राजा ने अपने शरीर का मांस काट कर दान में दे दिया था।
यहाँ तक कि दान मांगे जाने पर वीर कर्ण ने अपने शरीर से लगे हुए रक्षा-कवच तक को दान कर दिया था। इसीलिए कवि कहते हैं कि आत्मा तो अमर है, फिर दूसरों की भलाई के लिए शरीर को जोख़िम में डालने से क्या डरना। अपने जीवन का उपयोग दूसरे मनुष्यों के अच्छे के लिए करने पर ही तो हम मनुष्य कहलाने के लायक हैं।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने मनुष्य के भावनात्मक गुणों का वर्णन किया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सहानुभूति, करुणा, उपकार की भावना को मानव का सबसे बड़ा धन बताया है। जिस व्यक्ति में उपकार करने की भावना होती है, वही धनवान कहलाने योग्य है और ऐसे धनवान व्यक्ति तो स्वयं ईश्वर को भी अपने वश में कर सकते हैं। यही कारण है कि भगवान बुद्ध ने जन-कल्याण के लिए सामाजिक रूढ़िवाद का विरोध किया और दया को ही मनुष्य का असली आभूषण बताया। इसी वजह से लोग आज भी उन्हें पूजते हैं।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि हमें कभी भी अहंकार की भावना नहीं रखनी चाहिए।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने हमें घमंड एवं अहंकार जैसी बुरी भावनाओं से दूर रहने को कहा है। उनके अनुसार इस संसार में कोई भी अकेला या अनाथ नहीं है, हर पल तीनों लोकों के स्वामी स्वयं हम सभी के साथ हैं। कवि हमें कहते हैं कि कभी भी अपने यश, धन-दौलत इत्यादि पर घमंड नहीं करना चाहिए और दूसरों को उपेक्षा की नज़र से नहीं देखना चाहिए। ईश्वर की नज़र में हम सब एक समान है। आगे कवि उन व्यक्तियों को अत्यंत भाग्यहीन मानते हैं, जो संसार की चिंता में व्याकुल हैं और जिन्हें ईश्वर की उपस्थिति का ज़रा भी ज्ञान नहीं है।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2. दयालु दीनबंधु में अनुप्रास अलंकार है।
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि इन पंक्तियों के माध्यम से हमें एक-दूसरे की सहायता करने का संदेश दे रहे हैं।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें एक-दूसरे की सहायता करते हुए उद्धार के रास्ते पर चलने का संदेश दे रहे हैं। उनके अनुसार मृत्यु के बाद देवतागण स्वयं अपने हाथ फैलाए परोपकारी एवं दयालु मनुष्यों का स्वागत करेंगे। वे चाहते हैं कि उद्धार पाने में मनुष्य परस्पर एक-दूसरे की सहायता करें। इस प्रकार कवि हमें एक-दूसरे का कल्याण करने का मार्ग बता रहे हैं। उनके अनुसार ऐसा मनुष्य, मनुष्य कहलाने के लायक ही नहीं है, जो ज़रूरत पड़ने पर दूसरे मनुष्य की सहायता ना कर सके।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2. अभी अमर्त्य अंक, अनंत अंतरिक्ष में अनुप्रास अलंकार है।
3.बड़े-बड़े में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य वाह्य भेद हैं,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि हमें यह बताने का प्रयास किया है कि भले ही रंग -रूप में हम सब अलग हैं लेकिन हमारे भीतर एक ही परमात्मा ही वास करते हैं।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि सबसे बड़ी समझदारी इस बात को समझने में है कि सभी मनुष्य भाई-बंधु हैं। उन्होंने कहा है कि सिर्फ़ बाहर से ही हमारे रंग-रूप में अंतर है। लोग कर्म के अनुसार एक-दूसरे को अलग-अलग समझने की भूल करते हैं लेकिन सभी की आत्मा में एक ही परमात्मा का निवास है। हम सभी परमेश्वर को पूज्य-पिता के समान मानते हैं। फिर कवि कहते हैं कि ऐसे भाई (मनुष्य) के होने का फायदा ही क्या, जो ज़रूरत पड़ने पर दूसरे भाई (मनुष्य) की सहायता ना कर सके।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2. मनुष्य मात्र, पिता प्रसिद्ध में अनुप्रास अलंकार है।
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढ़केलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
मनुष्यता कविता का प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-4 कविता मनुष्यता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता मैथलीशरण गुप्त जी हैं। कवि ने हमें आपसी भेद-भाव न रखने और अपने लक्ष्य को बिना रुके हासिल करने का संदेश दिया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें अपने लक्ष्य के मार्ग पर बिना रुके निरंतर चलते रहने का उपदेश दे रहे हैं। कवि कहते हैं कि रास्ते में जितनी भी बाधाएँ आएँ, उन्हें साहसपूर्वक पार करके हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए। परन्तु हमें ऐसा करते हुए, आपसी भेद-भाव को कभी भी बढ़ने नहीं देना है और आपसी भाईचारे को कम भी नहीं होने देना है। हमारी सामर्थ्यता तभी सिद्ध होगी, जब हम अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला करेंगे, ऐसा करने पर ही हम सही मायनों में मनुष्य कहलाने के लायक हैं। इस प्रकार हमें कवि ने परोपकार एवं भाईचारे के भावों को मन में रख कर हँसी-ख़ुशी जीवन जीने का संदेश दिया है।
मनुष्यता कविता का विशेष:-
1. संस्कृत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2. विपत्ति विघ्न में अनुप्रास अलंकार है।
Hindi Sparsh Class 10 Chapters Summary
Chapter 1 : कबीर की साखी- कबीर
Chapter 2 : मीरा के पद- मीरा
Chapter 3 : बिहारी के दोहे- बिहारी
Chapter 4 : मनुष्यता– मैथिलीशरण गुप्त
Chapter 5 : पर्वत प्रदेश में पावस– सुमित्रानंदन पंत
Chapter 6 : मधुर मधुर मेरे दीपक जल– महादेवी वर्मा
Chapter 7 : तोप– वीरेन डंगवाल
Chapter 8 : कर चले हम फिदा– कैफी आजमी
Chapter 9 : आत्मत्राण– रवींद्रनाथ टैगोर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Question Answer
Chapter 1: Kabir Ki Sakhi Ncert Solutions
Chapter 2: Mera Bai Ke Pad Ncert Solutions
Chapter 3: Bihari Ke Dohe Ncert Solutions
Chapter 4: Manushyata Ncert Solutions
Chapter 5: Parvat Pradesh Ncert Solutions
Chapter 6: Madhur Madhur Ncert Solutions
Chapter 7: Top Ncert Solutions
Chapter 8: Kar Chale Ham Ncert Solutions
Chapter 9: Atmatran Ncert Solutions
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