विप्लव गायन कविता का अर्थ- Viplav Gayan Class 7

Hindi Vasant Class 7 Chapter 20 Viplav Gayan

विप्लव गायन कविता का अर्थ- Viplav Gayan Class 7

बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जीवन परिचय: कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन का जन्म 8 दिसम्बर सन् 1897को मध्यप्रदेश राज्य के ग्वालियर शहर के भयाना नामक गाँव में हुआ। वे एक महान लेखक होने के साथ ही अच्छे पत्रकार और राजनेता भी थे। वे सन् 1952 से लेकर अपनी अंतिम घड़ियों तक संसद के सदस्य रहे। 

इनकी प्रमुख रचनाएं रश्मिरेखा, उर्मिला, कुंकुम, अपलक आदि हैं। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें सन् 1960 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


विप्लव गायन – Viplav Gayan

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,
जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए,
एक हिलोर उधर से आए।


सावधान! मेरी वीणा में,
चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ
दोनों मेरी ऐंठी हैं।

कंठ रुका है महानाश का
मारक गीत रुद्ध होता है,
आग लगेगी क्षण में, हृत्तल
में अब क्षुब्ध युद्ध होता है।

झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं –
इस ज्वलंत गायन के स्वर से
रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है
निकली मेरे अंतरतर से।

कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,
वही तान गाती रहती है,
कालकूट फणि की चिंतामणि। 

आज देख आया हूँ – जीवन
के सब राज़ समझ आया हूँ,
भ्रू-विलास में महानाश के
पोषक सूत्र परख आया हूँ।


विप्लव गायन कविता का सारांश(viplav gayan poem meaning in hindi): कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन ने अपनी इस कविता में लोगों से सामाजिक बुराईयों और पाखंडों की ज़ंजीरें तोड़कर प्रगति के मार्ग पर बढ़ने का आह्वान किया है। वो कहते हैं कि अब तुम शांति के गीत गाना छोड़ो और क्रांति की तान सुनाओ ताकि बुराईयों और बुरे लोगों में हलचल मच जाए। कवि ने इस कविता के जरिए समाज को एक महान बदलाव करने का संदेश दिया है। 

कवि मानते हैं कि पुराने कुविचारों और पाखंडों का अंत करके ही हम एक नए और स्वच्छ समाज की नींव रख पाएंगे। इसीलिए कवि ने विप्लव गायन कविता में हम सभी से एक क्रांति लाने का अनुरोध किया है, ताकि एक बेहतर समाज बनाया जा सके।


विप्लव गायन कविता का अर्थ- Viplav Gayan Class 7 Summary

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,
जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए,
एक हिलोर उधर से आए।

सावधान! मेरी वीणा में,
चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ
दोनों मेरी ऐंठी हैं।

विप्लव गायन कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत’ पाठ- 20 कविता ‘विप्लव गायन’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन है। कवि इस कविता के माध्यम से लोगों को अपने गीत गाने की इच्छा को प्रकट करते हुए कहते हैं कि मेरे इस गीत से समाज में क्रांति आ जाएगी।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि एक ऐसा गीत गाने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, जो समाज में क्रांति पैदा करे और जिससे परिवर्तन की शुरुआत हो। 

अगली पंक्तियों में कवि लोगों को सावधान करते हुए कहते हैं कि मेरा यह गीत समाज में क्रांति की चिंगारियां पैदा कर सकता है, आपकी शांति भंग हो सकती है और इस क्रांति से आने वाले बदलाव आपको कष्ट दे सकते हैं। वो कहते हैं कि उनके इस गीत से समाज में कई बदलाव आएंगे और वर्तमान व्यवस्था उलट-पुलट सकती है।

विप्लव गायन कविता का विशेष:-

1. ‘कवि कुछ’ में अनुप्रास अलंकार है।

कंठ रुका है महानाश का
मारक गीत रुद्ध होता है,
आग लगेगी क्षण में, हृत्तल
में अब क्षुब्ध युद्ध होता है।

झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं –
इस ज्वलंत गायन के स्वर से
रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है
निकली मेरे अंतरतर से।

विप्लव गायन कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत’ पाठ- 20 कविता ‘विप्लव गायन’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन है। कवि ने अपने गीत के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों के प्रति रोष प्रकट किया है।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: कवि ने विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कहा है कि मेरे गीत से पैदा हुए हालातों की वजह से महाविनाश का गला रुंध गया है और उसने मृत्यु का गीत गाना रोक दिया है। असल में, इन पंक्तियों में कवि कहना चाह रहे हैं कि जब भी समाज में बदलाव के लिए आवाज़ उठाई जाती है, तो उसे दबाने की लाखों कोशिशें की जाती हैं। मगर, क्रांति की आवाज़ ज्यादा समय तक दबाई नहीं जा सकती। 

कवि के दिल में सामाजिक बुराइयों और वर्तमान व्यवस्था के प्रति को रोष है, उसकी ज्वाला से हर अवरोध जल कर राख हो जाएगा। फिर बदलाव के गीतों की तान दोबारा दोगुने ज़ोर से शुरू हो जाती है और उसके वेग से सभी सामाजिक कुरीतियां और ढोंग-पाखंड पल भर में समाप्त हो जाते हैं।

विप्लव गायन कविता का विशेष:-

1. संस्कृत शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

2. ओज गुण की प्रधानता है।

कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,
वही तान गाती रहती है,
कालकूट फणि की चिंतामणि। 

आज देख आया हूँ – जीवन
के सब राज़ समझ आया हूँ,
भ्रू-विलास में महानाश के
पोषक सूत्र परख आया हूँ।

विप्लव गायन कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत’ पाठ-20 कविता ‘विप्लव गायन’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन है। कवि ने अपने गीत के माध्यम से समाज में फैली बुराईयों और पांखड को खत्म कर समाज के नवनिर्माण की बात की है।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि संसार के हर एक कण में क्रांति का गीत समा गया है, हर दिशा से उसी की प्रतिध्वनि आ रही है। जिस तरह शेषनाग अपनी मणि की चिंता में डूबे रहते हैं, उसी प्रकार यह सारा संसार भी नवनिर्माण के चिंतन में लीन हो गया है।

विप्लव गायन कविता की अगली पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं तो यह जानता हूँ कि बदलाव के बाद समाज में कैसी परिस्थितियां पैदा होंगी। इसीलिए वो कहते हैं कि समाज के विचारों और नज़रिए में बदलाव आने के साथ ही बुराइयों से भरे दूषित समाज का विनाश होने लगेगा और इसके बाद ही एक नए राष्ट्र और समाज का निर्माण प्रारम्भ होगा।

विप्लव गायन कविता का विशेष:-

1. कण-कण , रोम-रोम में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. संस्कृत शब्दावली का प्रयोग किया गया है।


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1 ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर ….. कालकूट फणि की चिंतामणि’
(क) ‘वही स्वर’, ‘वह ध्वनि’ एवं ‘वही तान’ आदि वाक्यांश किसके लिए/किस भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं?
(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है/निकली मेरे अंतरतर से’ -पंक्तियों से क्या कोई संबंध बनता है?

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उत्तर. (क) विप्लव गान कविता में ‘वही स्वर’, ‘वह ध्वनि’ और ‘वही तान’ आदि वाक्यांश नवनिर्माण और आम जन को सचेत व जागृत करने के भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है/निकली मेरे अंतरतर से’ -पंक्तियों से एक गहरा संबंध है क्योंकि कवि इन पंक्तियों में सभी आमजनों को आवेशपूर्ण ढंग से जगाना चाहते हैं, लेकिन उनके गीत के स्वर गले में ही अटक जाते हैं। इस वजह से वो और भी ज्यादा अधीर हो जाते हैं।

2. नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
‘सावधान ! मेरी वीणा में …… दोनों ऐंठी हैं।’

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उत्तर. इन पंक्तियों में कवि लोगों को समाज में होने वाले परिवर्तन के प्रति सचेत कर रहे हैं। अब उनकी वीणा से मधुर स्वरों के बजाय कठोर स्वर निकल रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी उंगलियों की मिज़राबें (वीणा बजाने के लिए उंगलियों में पहना जाने वाला एक छल्ला) टूट कर गिर गयी हैं और उनकी उंगलियां घायल होकर ऐंठ गयी हैं। 

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