कबीर की साखियाँ अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan class 8 Summary

वसंत भाग 3 कक्षा 8 पाठ 9 – Hindi Vasant Class 8 Chapter 9 Solutions

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan class 8 Summary

कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay :  संत कबीर दास का जन्म सन् 1400 के आसपास वाराणसी में हुआ। ज्ञानी और संतों के साथ रहकर कबीर ने दीक्षा और ज्ञान प्राप्त किया। वह धार्मिक कर्मकांडों से परे थे। उनका मानना था कि परमात्मा एक है, इसलिए वे हर धर्म की आलोचना और प्रशंसा करते थे। उन्होने अपने अतिंम क्षण मगहर में व्यतीत किएं। कबीर दास की रचनाएँ कबीर ग्रंथावली में संग्रहीत है। 

Hindi Vasant Class 8 Solutions All Chapters
Chapter 01. ध्वनि(सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला”)
Chapter 04. दीवानों की हस्ती(भगवती चरण वर्मा)
Chapter 06. भगवन के डाकिये(रामधारी सिंह दिनकर)
Chapter 08. यह सबसे कठिन समय(जया जादवानी)
Chapter 09. कबीर की साखियाँ (कबीर)
Chapter 12. सुदामा चरित(नरोत्तमदास)
Chapter 15. सूर के पद(सूरदास)


कबीर की साखियाँ – Kabir Ki Sakhiyan class 8

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।1।। 


आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।।2।। 

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै,  यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।।

कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।।

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।।


कबीर की साखियाँ सारांश – kabir ki sakhiyan class 8 meaning: संत कबीर के दोहे हमें जीने की सही राह दिखाते हैं। पहले दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि हमें मनुष्य की जाति से ज्यादा उसके गुणों को सम्मान करना चाहिए। 

दूसरे दोहे में कबीर जी ने कहा है कि कभी भी अपशब्द के बदले में किसी को अपशब्द मत कहो। 

तीसरे दोहे में कबीरदास जी ने मन की चंचलता का वर्णन किया है। उनके अनुसार इंसान जीभ और माला से भले ही प्रभु का नाम जपता रहता है, लेकिन उसका मन अपनी चंचलता त्याग नहीं पाता है।

चौथे दोहे में कबीर जी कहते हैं कि कभी भी किसी को उसके छोटे या बड़े होने का घमंड नहीं करना चाहिए, कभी-कभी छोटे लोग भी बड़ों पर बहुत भारी पड़ जाते हैं, जैसे हाथी पर चींटी भारी पड़ जाती है। 

पाँचवें दोहे में संत कबीर कहते हैं कि मानव अपनी मानसिक कमजोरियां दूर करके, अपने संसार को ख़ुशहाली से भर सकता है।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan class 8 Summary

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।1।।

कबीर की साखीयाँ प्रसंग:- प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ पाठ- 9 ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इस ‘साखी’ के संत कवि कबीरदास जी हैं। इस साखी में कवि ने किसी भी मनुष्य की जाति से ऊपर उसके गुणों को महत्त्व दिया है।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें कभी भी सज्जन इंसान की जाति पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि हमें तो उसके गुणों के आधार पर उसका सम्मान करना चाहिए। जैसे, तलवार की कीमत म्यान नहीं, बल्कि तलवार की धार में छिपी होतो है।

कबीर की साखियाँ विशेष:-
1. कवि ने जातिवाद पर तीखा व्यंग्य किया है।
2.कवि ने जाति-पाति, ऊँच-नीच और धर्म के आधार पर मनुष्य में भेदभाव को स्वीकार नहीं किया है।
3. इसमें दोहा छंद है।
4. भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है।

आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।।2।।

कबीर की साखियाँ प्रसंग:-  प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ पाठ- 9 ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इस साखी के कवि संत कबीरदास जी है। इस साखी में कवि कहते हैं कि हमें अपशब्द का जवाब अपशब्द में नहीं देना चाहिए।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि किसी के अपशब्दों का जवाब कभी भी अपशब्दों से मत दो। इससे वो अपशब्द बढ़ने के बजाय घटते-घटते ख़त्म हो जाएंगे।

कबीर की साखियाँ विशेष:-

1. ‘कह कबीर’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. इसमें दोहा छंद है।

3. भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै,  यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।।

कबीर की साखियाँ प्रसंग:-  प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ पाठ- 9 ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इस साखी के कवि संत कबीरदास जी है। इस साखी में कबीर जी कहते हैं कि अगर हमें ईश्वर को प्राप्त करना है तो एकाग्र होकर सच्चे मन से भक्ति करनी होगी।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत दोहे में कबीर जी कहते हैं कि अगर आपका मन प्रभु की भक्ति में नहीं लगता है, तो फिर हाथ में माला लेकर घूमना, मुख से प्रभु का नाम लेना बेकार है। अगर प्रभु को पाना है, तो हमें एकाग्र होकर उनकी भक्ति करनी होगी।

कबीर की साखियाँ विशेष:-

1. ‘मुख माँहि‘ और ‘दहुँ दिसि  में अनुप्रास अलंकार है।

2. इसमें दोहा छंद है।

3. भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है।

कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।।

कबीर की साखियाँ प्रसंग:- प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ पाठ- 9 ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इस साखी के कवि संत कबीरदास जी है। इस साखी में कबीर जी कहते हैं कि हमें किसी भी व्यक्ति को छोटा समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत साखी में कबीर जी कहते हैं कि हमें कभी भी किसी को छोटा समझकर उसका निरादर नहीं करना चाहिए। जैसे, घास को छोटा समझकर हर वक़्त दबाना नहीं चाहिए क्योंकि अगर इसका एक तिनका भी आंख में चला जाए, तो हमें बहुत पीड़ा होती है। 

कबीर की साखियाँ विशेष:-

1. इसमें दोहा छंद है।

2. भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है।

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।।

कबीर की साखियाँ प्रसंग:- प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ पाठ- 9 ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इस साखी के कवि संत कबीरदास जी है। इस साखी में कबीर जी ने स्वार्थ, क्रोध जैसी भावनाओं का त्याग करने की बात कही है।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत साखी में कबीर जी कहते हैं कि जिस मनुष्य का मन शांत होता है, दुनिया में उसका कोई शत्रु नहीं हो सकता है। यदि दुनिया का हर मनुष्य स्वार्थ, क्रोध जैसी भावनाओं का त्याग कर दे, तो वो दयालु और महान बन सकता है।

कबीर की साखियाँ विशेष:-

1. इसमें दोहा छंद है।

2. भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है।

3. ‘आपा’ शब्द अहंकार के लिए प्रयुक्त हुआ है।


कबीर की साखियाँ प्रश्न-उत्तर – Ncert Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 9 

प्र॰1 ‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’- उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
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उत्तर. संत कबीरदास जी के अनुसार, हमें किसी व्यक्ति की सुंदरता का अनुमान उसके शरीर से नहीं, बल्कि उसके गुणों से लगाना चाहिए। जिस तरह म्यान तलवार का बाहरी कवच मात्र होती है, ठीक उसी तरह, शरीर मनुष्य का बाहरी आवरण मात्र होता है, इसीलिए हमें मनुष्य की असली पहचान उसके गुणों से ही करनी चाहिए।

प्र॰2 पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
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उत्तर. तीसरी साखी में कबीर कहना चाहते हैं कि अगर आप हाथ में माला जप रहे हैं, मुँह से प्रभु का नाम रट रहे हैं, लेकिन आपका मन अलग-अलग विचारों में उलझा हुआ है, तो ये बेकार है। प्रभु का नाम लेना और उनकी भक्ति करना तभी सार्थक है, जब आप अपने मन पर काबू पा लें और सच्चे मन से भक्ति करें।

प्र॰3 कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
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उत्तर. उक्त दोहे में कबीरदास जी कहना चाहते हैं कि अपने से छोटा समझ कर हमें किसी की निंदा या बेइज्जती नहीं करनी चाहिए। घास का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि पैरों के तले आने पर घास को मत कुचलो क्योंकि अगर घास का एक तिनका भी आँख में चला जाए, तो आपको बहुत कष्ट होगा। अर्थात, छोटे-से-छोटे व्यक्ति में भी कुछ गुण होते हैं और हमें उनका भी सम्मान करना चाहिए।

प्र॰4 मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
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उत्तर. यह भावार्थ कबीर जी की अंतिम साखी में स्पष्ट हो रहा है-
‘जग में बैरी कोई नहीं जो मन शीतल होय।
या आपा को डारी दे, दया करै सब कोय।।’

6 thoughts on “कबीर की साखियाँ अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan class 8 Summary”

  1. बहुत बढ़िया व्याख्या दिया है आप ने एकदम सरल भाषा में धन्यवाद

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