इस लेख में हम दसवीं कक्षा की पुस्तक कृतिका के पहले अध्याय माता का आँचल का सारांश (Class 10 Hindi kritika Chapter 1 Mata Ka Anchal Summary) पढ़ेंगे।
Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Mata Ka Anchal Summary
माता का आँचल पाठ के लेखक शिवपूजन सहाय का परिचय
शिवपूजन सहाय का जन्म सन् 1893 में गाँव उनवांस, ज़िला भोजपुर (बिहार) में हुआ। उनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बनारस की अदालत में प्रतिलिपिक (कॉपी राइटर) की नौकरी की। बाद में वे हिंदी के अध्यापक बन गए।
असहयोग आंदोलन के प्रभाव से उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। शिवपूजन सहाय अपने समय के लेखकों में बहुत लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्ति थे। उन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी, बालक आदि कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।
सन् 1924 में उन्होंने प्रेमचंद के साथ ‘माधुरी’ पत्रिका का संपादन-कार्य किया। इसके साथ ही वे हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में थे। सन् 1963 में उनका देहांत हो गया।
वे मुख्यतः गद्य के लेखक थे। हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, संपादक और पत्रकार थे। उनकी मुख्य रचनाएं देहाती दुनिया, ग्राम सुधार, वे दिन वे लोग, स्मृतिशेष आदि दर्जन भर गद्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। शिवपूजन रचनावली के चार खंडों में उनकी सम्पूर्ण रचनाएं प्रकाशित हैं।
उनकी रचनाओं में लोकजीवन और लोकसंस्कृति के प्रसंग सहज ही मिल जाते हैं। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन् 1960 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। शिवपूजन सहाय के लिखे प्रारंभिक लेख मनोरंजन, लक्ष्मी तथा पाटिलपुत्र आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे।
Mata Ka Anchal Short Summary – माता का आँचल पाठ की भूमिका
‘माता का आँचल’ रचना शिवपूजन सहाय द्वारा रचित है। शिवपूजन सहाय के आंचलिक उपन्यास सन् 1926 में प्रकाशित ‘देहाती दुनिया’ से ‘माता का आँचल’ अंश लिया गया है। इसमें लेखक ने अपने बचपन के माध्यम से गाँव की संस्कृति और बचपन में अपने माता-पिता के साथ बिताए दिनों को बख़ूबी उकेरा है। लेखक ने अपने समय के बच्चों के खेल और खेलने की सामग्री के बारे में भी बताया है। इसमें लेखक ने माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति प्रेम और दुलार, लोकगीत आदि प्रसंगों को बहुत सुन्दर ढंग से पेश किया है।
माता का आँचल पाठ के पात्रों का परिचय
1. लेखक : कहानी के मुख्य पात्र जिनका नाम तारकेश्वर है, घर में उन्हें भोलानाथ कहते हैं।
2. लेखक के माता-पिता : लेखक अपने पिताजी को ‘बाबूजी’ और माता को ‘मईया’ कहते हैं।
3. लेखक के दोस्त : बैजू और अन्य मित्र मंडली के साथ खेलना।
4. लेखक के गाँव में बूढ़ा मूसन तिवारी : जो लेखक की शिकायत उनके स्कूल में करता है।
5. लेखक के गुरूजी : जो शरारत करने पर लेखक की पिटाई करते हैं।
Class 10 Hindi Chapter 1 Mata Ka Anchal Summary – माता का आँचल पाठ का सारांश
लेखक का बचपन
Mata Ka Anchal Summary: लेखक के बचपन का नाम ‘तारकेश्वरनाथ’ था, लेकिन उनके पिता जी उन्हें भोलानाथ कहकर पुकारते थे। भोलेनाथ अपने पिता जी को ‘बाबूजी’ और माँ को ‘मइयाँ’ कहते थे। भोलानाथ की परवरिश बहुत ही लाड-प्यार से हुई थी। भोलानाथ का अधिकतर समय अपने पिता जी के साथ ही गुजरता था। भोलानाथ रात को अपने पिता जी के साथ ही सोते थे।
पिता जी सुबह उठकर भोलानाथ को उठाते और नहला-धुलाकर अपने साथ पूजा में बैठा लेते। उसके माथे पर शंकरजी जैसा तिलक लगाते थे। वे भभूत भी लगाते थे, जिससे भोलानाथ को ख़ुशी महसूस होती थी। उनके सिर में लम्बी-लम्बी जटाएं थी। भभूत लगाने से वे बमभोला बन जाते थे।
पिता जी का भोलानाथ के प्रति प्रेम
Mata Ka Anchal Summary: बाबूजी जी के रामायण पाठ करते समय भोलानाथ आईने में अपना मुँह निहारते रहते थे। उनके पिता जी पूजा खत्म करने के बाद अपनी ‘रामनामा बही’ पर हजार राम-नाम लिखते थे। पांच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। गंगा जी के तट पर पहुंचकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाते थे।
पिता जी गंगा से वापिस आते समय भोलानाथ को पेड़ों की डालों पर झूला झुलाते थे। भोलानाथ अक्सर अपने बाबूजी के साथ कुश्ती लड़ते थे। उनके बाबूजी जानबूझकर हार जाते, तो भोलानाथ बहुत खुश होते थे। भोलानाथ उनकी छाती पर लेट कर उनकी मूंछों को उखाड़ने का प्रयास करते थे। ऐसा करते देख उनके पिताजी भोलनाथ के छोटे-छोटे प्यारे हाथों को चूम लेते थे। इस प्रकार तरह-तरह की शरारतों से भोलानाथ अपने पिताजी को लुभाता था।
माँ का भोलानाथ के प्रति स्नेह
Mata Ka Anchal Summary: भोलानाथ के पिता उसे अपने हाथों से ही दाल-भात खिलाते थे। परंतु माँ को कहाँ संतुष्टि मिलती थी। माँ अक्सर पिता से कहती कि तुम थोड़ा-थोड़ा खिलाते हो। इससे उसका मन भर जाता है, परंतु पेट नहीं भरता। माँ तरह-तरह के चिड़ियों के नाम ले-लेकर भोलानाथ को खाना खिलाती थी।
माँ का मन करता था कि किसी तरह बच्चा अधिक खाना खा ले। माँ तरह-तरह की बातें बनाकर दाल-भात भोलानाथ को खिलाती थी। उनके मना करने के बाद भी माँ उन्हें बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बना बनाकर उन्हें खिलाती थी।
जब वह खाना खाकर बाहर जाता तो माँ उसे झपटकर पकड़ लेती थी और रोते रहने के बाद भी बालों में तेल डालकर कंघी करती, कुर्ता-टोपी पहनाती, चोटी बनाती और फूलदार लट्टू लगाकर उसको बिल्कुल कन्हैया जैसा सजा देती थी।
भोलानाथ का मित्र मंडली के साथ खेलना
Mata Ka Anchal Summary: भोलानाथ जब भी रोते हुए बाहर आते, तो अपने साथियों से मिलकर सबकुछ भूल जाते। उनके साथ खेलने लग जाते। भोलानाथ अपने मित्रों के साथ मिलकर घर के चबूतरे पर तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। कभी वहाँ मिठाइयों की दुकान लगाते, जिसमें ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी-कचोरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़ों के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाते थे।
जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के बने पैसों से बच्चे उन मिठाइयों को खरीदने का नाटक करते थे। कभी-कभी वहाँ घरौंदा बनाते थे। धूल की मेड़ की दीवार बनती और तिनकों का छप्पर। दातुंन के खम्भे, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीए की कड़ाई, बाबूजी की पूजा वाली आचमनी कलछी बनती थी। पानी के घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से भोज तैयार किया जाता था।
बाबूजी का बच्चों के खेल में सहयोग
Mata Ka Anchal Summary: बच्चों के खेल का बाबूजी भी खूब आनंद लेते थे। कभी-कभी वो नकली बारात का जलूस भी निकालते थे। कनस्तर का तम्बूरा, टूटी-फुट्टी चूहेदानी को पालकी बनाते थे। सभी बच्चे समधी बनकर बकरे पर बैठ जाते और चबूतरे के एक कोने से चलकर दूसरे कोने तक आते थे। इस प्रकार के अनेक छोटे-छोटे नाटकों का वर्णन लेखक ने किया है।
कभी-कभी भोलानाथ के मित्र मंडली को खेती करने की सूझती थी, तो चबूतरे को खेत बनाते और कंकड़ों को बीज और बड़ी मेहनत से खेत जोतते और बोये जाते थे। फसल होने पर सभी बच्चे उसे एक जगह रखकर पैरों से रौंद देते थे। इस बीच बाबूजी आकर पूछ बैठते इस साल की खेती कैसी रही भोलनाथ? फिर सब खेल छोड़कर हँसते हुए भाग जाते थे।
भोलानाथ की शरारतें
Mata Ka Anchal Summary: एक दिन सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। तभी आँधी के बाद बारिश होने लगी। जब बारिश बंद हुई, तो वहाँ से बहुत सारे बिच्छू निकल आए। जिन्हें देखकर सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। संयोग से उन्हें रास्ते में बूढ़ा मूसन तिवारी मिला गया। भोलानाथ और उसके दोस्त बैजू ने उन्हें खूब चिढ़ाया। फिर क्या था बैजू की देखा–देखी सारे बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाने लगे।
मूसन तिवारी बच्चों का पीछा करते हुए उनकी पाठशाला पहुँच गए। तिवारी ने उनकी शिकायत गुरु जी से कर दी। स्कूल में जब उन्होंने शिकायत की तो गुरूजी ने भोलानाथ की खूब खबर ली। भोलानाथ के पिताजी ये खबर सुनकर पाठशाला चले गए और बच्चे को दुलारने लगे। भोलानाथ ने रो-रोकर बुरा हाल किया हुआ था फिर उनके पिताजी ने गुरूजी से बिनती की और भोलानाथ को घर लेकर चले गए। रास्ते में भोलानाथ अपने मित्रों को खेलता देख उनके साथ खेलने लग गए।
भोलानाथ का अपनी माँ के प्रति अधिक प्रेम
Mata Ka Anchal Summary: भोलानाथ और उसके मित्र एक टिले पर जाकर चूहों के बिल में पानी डालने लगे, तभी उस बिल में से सांप निकल आया। सभी रोते-चिल्लाते भागने लगे। कहीं न कहीं सभी को चोट लगी। किसी का सिर फूटा, किसी के दांत फूटे, भोलानाथ की सारी देह लहुलुहान हो गई। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए।
जैसे ही भोलानाथ घर में गया, तो उस समय उसके पिता हुक्का पी रहे थे। उनके बुलाने पर भी भोलानाथ उनके पास नहीं गया। सीधे माँ की गोद में जाकर उनके आँचल में छिप गया। माँ भोलानाथ से पूछने लगी आखिर उसे क्या हो गया है? माँ तुरंत हल्दी पीसकर बच्चे के घाव पर लगाने लगी। घर में कोहराम मच गया। भोलानाथ सा-सा… करते हुए कांप रहा था। वह आंखे खोलना चाहता था पर डर से खोल नहीं रहा था। माँ उसको निहार रही थी।
इसी समय उसके पिता दौड़े आए और आकर झट मईया की गोद से अपने गोद में लेने लगे। परंतु भोलानाथ ने अपनी माँ का आँचल नहीं छोड़ा और माँ से चिपका रहा।
माता का आँचल पाठ का उद्देश्य
इस रचना के माध्यम से लेखक ने हमें यह बताने का प्रयास किया है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव भी क्यों न हो लेकिन छोटा बच्चा विपदा के समय हमेशा माँ के ही पास जाता है।
अपने इस लेख से लेखक हमें एक बच्चे की ओर उसकी माँ के बीच के प्यार के बंधन को दिखाना चाहते हैं। लेखक के अनुसार बच्चे चाहे पिता के साथ कितना ही घुल-मिले क्यों न हो। उनसे कितना ही लगाव क्यों न रखते हो। लेकिन जब विपदा की घड़ी आती है, तो बच्चे अपनी माँ की आँचल में खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।
माता का आँचल पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ—
तड़के- सुबह
लिलार- ललाट
त्रिपुंड- एक प्रकार का तिलक जिसमें ललाट पर तीन आड़ी या अर्धचंद्रकार रेखाएं बनाई जाती है।
मृदंग-एक प्रकार का वाद्य यंत्र
शिथिल- ढीला
उतान- पेट के बल लेटना
सानकर- मिलाना, लपेटना,गूँधना
अफर- भर पेट से अधिक खा लेना
हठ- बल प्रयोग, ज़िद, जबरदस्ती, किसी बात के लिए अड़े रहना
ठौर- स्थान, अवसर
महतारी- माता
झुँझलाकर- गुस्सा दिखाना, खिन्न होकर बोलना
चंदोआ- छोटा शामियाना
बटखरे- बाट, वजन
घरौंदा- मिट्टी का छोटा घर, पत्तों का घर
ज्योनार- दावत,भोज
जीमने- भोजन करना
अमोले- आम का उगता पौधा
ओहार- पर्दे के लिए डाला गया कपड़ा
कसोरे- मिट्टी का बना छिछला कटोरा
रहरी- अरहर
कौंधने- कौंदना, चमकना, बिजली चमकना, कुछ क्षणों के लिए (बिजली का) चमकना
अँठई- कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े
बरखा- बारिश
चिरौरी- दीनता पूर्वक की जाने वाली प्रार्थना
ओसारे-बरामदा
अमनिया- साफ, शुद्ध
अधीर- उतावला, बेचैन, व्याकुल
कुहराम- हलचल, रोना कलपना, भगदड़
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