कवितावली (उत्तर कांड से ) तुलसीदास अर्थ सहित – Kavitavali (uttar kaand se) Class 12 Summary
विषय सूचि
- तुलसीदास जी जी का जीवन परिचय
- कवितावली कविता का सारांश
- कवितावली कविता
- कवितावली कविता की व्याख्या
- कवितावली कविता के प्रश्न उत्तर
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय – Tulsidas Ji Ka Jeevan Parichay
तुलसीदास जी का जन्म: तुलसीदास जी भारत एवं हिन्दू समाज के महान कवियों में से एक हैं । इनके जन्म काल के बारे में कोई एक निश्चित राय नहीं है। अब तक के शोध एवं तथ्यों के आधार पर 1532 ई को इनके जन्म का वर्ष माना जाता है।
तुलसीदास जी का जन्म स्थान: इनकी जन्मभूमि के विषय में भी ऐसा ही है, राजा पुर, सोरों, हाजीपुर, तारी इत्यादि स्वयं को इनकी जन्मभूमि बताने का प्रयास करते हैं। संत तुलसी के आत्म उल्लेखों एवं भगवान राम के वन जाने के क्रम में यमुना नदी से आगे निकलने पर कवि की भावनाओं आदि के आधार पर राजापुर, उत्तर प्रदेश को उनकी जन्मभूमि बताया गया है।
वहीं रामनरेश त्रिपाठी ने सोरों में तुलसीदास जी के स्थान का अवशेष, उनके भाई नंददास के उत्तराधिकारी का मंदिर आदि के आधार पर सोरों को तुलसीदास जी की जन्मभूमि बताया है।
तुलसीदास जी का कुल: तुलसीदास जी की ‘कवितावली’ एवं ‘विनयपत्रिका’ की कुछ पंक्तियों से उनके ब्राह्मण कुल के होने का आभास होता है। राजापुर से प्राप्त तथ्यों के आधार पर उन्हें सरयुपारीण ब्राह्मण माना जाता है। उनके आत्मोल्लेखों एवं मिश्र बंधुओं के आधार पर उन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण माना जाता है। सोरों से प्राप्त तथ्य उन्हें सना ब्राह्मण बताते हैं। परंतु शिवसिंह ‘सरोज’ के अनुसार वो सरबरिया ब्राह्मण थे।
तुलसीदास जी के माता-पिता: तुलसीदास जी का जन्म निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पास जीविका के लिए कोई ठोस साधन नहीं था। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें भिक्षाटन के लिए विवश होना पड़ा। तुलसीदास के माता पिता के विषय में भी कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, प्राप्त सूत्रों के अनुसार तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दूबे था। किन्तु भविष्यकाल में उनके पिता का नाम श्रीधर बताया गया है। रहीम के दोहे के आधार पर उनकी माता का नाम हुलसी बताया जाता है।
तुलसीदास जी के गुरु: तुलसीदास के गुरु के रूप में कई व्यक्तियों के नाम लिए जाते हैं। अलग अलग सूत्रों के अनुसार राघवानंद, जगन्नाथ दास, नरसिंह चौधरी, गृयर्सन एवं नरहरी को तुलसीदास के गुरु के रूप में जाना जाता है। परंतु सभी तथ्यों का विश्लेषण करने के पश्चात ‘नरहरी’ को तुलसीदास जी का गुरु बताया गया है।
तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएँ: रामचरितमानस, विनयपत्रिका, गीतावली, दोहावली, श्री कृष्ण गीतावली आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। तुलसीदास जी का निधन 1623 ई में काशी में हुआ।
तुलसीदास की कवितावली की व्याख्या – Kavitavali Class 12 Summary
प्रस्तुत कविता में कवि श्री तुलसीदास जी ने बताया है कि संसार के सभी अच्छे बुरे क्रियाकलापों का आधार है ‘पेट की आग’ और उसका समाधान उन्हें सिर्फ रामभक्ति में ही मिलता है। कवि के अनुसार रामभक्ति उनके समस्त संकटों का समाधान है, सांसारिक मोहमाया से मुक्ति प्रदाता है।
कवि के अनुसार संसार में इंसान खेती, नौकरी, व्यापार, नाच-गाना, सेवा, चोरी, डकैती, गुप्तचरी और न जाने कितने ही प्रकार के काम करते हैं। परंतु इन सब का उद्देश्य केवल एक ही होता है, पेट की आग को बुझाना। इस भूभुक्षा को शांत करने के लिए लोग अपनी संतानों तक को विवशता में बेच डालते हैं। इस आग को शांत करने का सामर्थ्य अब केवल घनश्याम की भक्ति में ही है।
कवि ने इस कविता में अकाल का चित्रण किया है। इस समय किसान खेती नहीं कर सकता, व्यापारी व्यापार नहीं कर सकता, भिखारी को भीख नहीं मिलती। ऐसे समय में केवल रामभक्ति से ही पेट की आग बुझ सकती है। उन्हें अपने भगवान और भक्ति पर गहन विश्वास है। वो धर्म और जाति में विश्वास नहीं करते और प्रभु श्री राम को ही अपना स्वामी मानते हैं।
कवितावली – Kavitavali Class 12
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।।
‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।
खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।
धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ।
कहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सौऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुच सो कहें कछु आोऊ।
माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।।
कवितावली तुलसीदास अर्थ सहित – Kavitavali Class 12 Line by Line Explanation
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।।
‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।
कवितावली भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘कवितावली(उत्तर कांड से) से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि संसार में लोग कई तरह के काम करते हैं। कोई खेती करता है, तो कोई मजदूरी, कोई भीख मांगता है, तो कोई नट का काम करता है, कोई नौकरी करता है, तो कोई चोरी, कोई व्यापार करता है, तो कोई बाजीगरी। कोई पढ़ाई करता है, कोई कुछ कला सीखता है, कोई पहाड़ चढ़ता है, तो कोई जंगल में शिकार ढूँढता है।
पेट भरने के लिए लोग कुछ भी करते हैं, छोटा-बड़ा, धर्म-अधर्म कुछ भी नहीं देखते। पेट के लिए लोग कभी-कभी अपने बच्चों को बेचने पर भी मजबूर हो जाते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि एक घनश्याम ही हैं जो इस पेट की आग को बुझा सकते हैं, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र से भी बड़ी है।
खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।
कवितावली भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘कवितावली’ के उत्तरकाण्ड से ली गयी हैं। इनके रचयिता श्री तुलसीदास जी हैं। इस कविता में तुलसीदास जी ने तत्कालीन, सामाजिक एवं आर्थिक दुर्व्यवस्था के बारे में वर्णन किया है।
तुलसीदास जी कहते हैं कि अकाल की स्थिति बहुत भयानक है। किसान खेती नहीं कर सकता, भिखारी को भीख नहीं मिलती, बलि को भोजन नहीं मिलता। व्यापारी का व्यापार ठप्प है, जो लोग नौकरी करना चाहते हैं, उनको नौकरी नहीं मिल रही है।
चारों तरफ बेरोजगारी होने की वजह से आजीविका के साधन ठप्प पड़ गए हैं। इस वजह से सब लोग दुःखी और लाचार हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि जीवन यापन कैसे किया जाय।
वेदों-पुराणों में ऐसा कहा गया है और संसार में ऐसा देखा गया है कि जब-जब संसार पर कोई भारी संकट आया है, तब-तब श्री राम ने ही सारे संकटों का नाश किया है। वे आगे कहते हैं कि हे दीनबंधु संसार में दरिद्रता रूपी रावण ने हाहाकार मचा रखा है। आप तो सभी संकटों का नाश करने वाले हो, संसार के दुखों का भी हरण करो।
धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ।
कहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सौऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुच सो कहें कछु आोऊ।
माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।।
कवितावली भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘कवितावली’ के उत्तरकाण्ड से ली गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि यह संसार मुझे धूर्त कहे या पाखंडी, जुलाहा कहे या राजपूत मुझे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता।
मुझे ना तो किसी की बेटी से अपने बेटे को ब्याहना है, ना तो किसी की जाति बिगाड़नी है। मैं तो सिर्फ श्री राम का गुलाम हूँ। जिसको जो मर्ज़ी मुझे कह के पुकार ले, मैं तो सदा रामभक्त ही रहूँगा। मैं तो मांग के खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ, मुझे किसी से कुछ लेना देना नहीं है।
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