Father To Son Poem Summary In Hindi

Father To Son Poem Summary In Hindi

I do not understand this child
Though we have lived together now
In the same house for years. I know
Nothing of him, so try to build
Up a relationship from how
He was when small. Yet have I killed
The seed I spent or sown it where
The land is his and none of mine?

Father To Son Poem Summary In Hindi: “Father to Son” में, पिता शिकायत करता है कि वह अपने बच्चे को नहीं समझ पा रहा है। पिता आश्चर्य करता है कि यद्यपि वह अपने बच्चे के जन्म के बाद से एक साथ रह रहे हैं, परन्तु फिर भी पिता अपने बेटे के बारे में कुछ नहीं जानता  है। पिता ने अपने बेटे के साथ संबंध बनाने की कोशिश की है जब उनके बेटे ने पहली बार लोगों को पहचानना शुरू किया था, यह फिर जब बच्चे ने बड़ी दृढ़ता से चलने की कोशिश की थी और उसमे कामयाब भी हो गया था। पिता इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या उन्होंने अपनी संतान रूपी बीज को नष्ट कर दिया है या फिर फिर उन्होंने इस बीज को ऐसी मिटटी में बोया है जो अब सिर्फ उसके पुत्र से सम्बंधित है, पिता का कोई हक़ नहीं है।

We speak like strangers, there’s no sign
Of understanding in the air.
This child is built to my design
Yet what he loves I cannot share.
Silence surrounds us. I would have
Him prodigal, returning to
His father’s house, the home he knew,
Rather than see him make and move
His world. I would forgive him too,
Shaping from sorrow a new love.


Father To Son Poem Summary In Hindi: बेटे और पिता दोनों एक-दूसरे से अजनबी के रूप में बात करते हैं। और दोनों के बीच कोई समझदारी नहीं है। दोनों के बीच एक चुप्पी बानी रहती है, अर्थात उनके पास आपस में बात करने के लिए कुछ नहीं होता, एकदूसरे को बताने के लिए कुछ नहीं होता। दोनों के बीच प्यार बचा ही नहीं है। पिता को पता लगाने की कोशिश में अजीब लगता है कि उसका अपना बेटा एक पूर्ण अजनबी क्यों बन गया है। पिता कहते हैं कि उनका बच्चा उनके द्वारा ही बनाया गया है जिसका मतलब है कि बेटा अपने पिता का हमरूप होना चाहिए। तो वह अपने पिता जैसा दिखना चाहिए हालांकि वर्तमान तस्वीर कुछ और कहती है।

Father and son, we both must live
On the same globe and the same land.
He speaks: I cannot understand

Father To Son Poem Summary In Hindi: पिता अपने बेटे को बहुत ही खर्चीला एवं आवारा समझता है। जो सिर्फ घूमने एवं खाने में सारे पैसे खर्च कर देता है। इसी कारण वस उन्हें लगता है की बहुत जल्द ही जब बेटे को परेशानी का सामना करना पड़ेगा वह अपने पिता के घर लौट आएगा जो की उसका ही था। पिता किसी भी कीमत पर उसे माफ करने के लिए तैयार है। पिता चाहता है की वह एक नए घर में जाने और युवा आयु के कारण अनावश्यक परेशानी में पड़ने के बजाय अपने पिता के घर लौट आये। बेटा यह भी स्वीकार करता है कि वह अपने स्वयं को समझने के लिए भी संघर्ष कर रहा है। वह अपने पिता के साथ टूटे हुए रिश्ते से संबंधित उदासी महसूस करता है।

Myself, why anger grows from grief.
We each put out an empty hand,
Longing for something to forgive.

Father To Son Poem Summary In Hindi: एलिजाबेथ जेनिंग्स का कहना है कि दुनिया भर में पिता और पुत्रों को एक ही दुनिया और उसी भूमि पर जीना सीखना चाहिए। अंत में, पिता को यह अहसास होता है कि दोष उनका ही है क्युकी वह अपने पुत्र को समझ नहीं सके और खामाँखा ही नाराज हो जाते रहे । पिता ने यह निष्कर्ष निकाला है कि उनमें से दोनों ही एक दूसरे को माफ करने के लिए तैयार है। माता-पिता और बच्चों के बीच की दूरी को कम करने का एकमात्र तरीका एक-दूसरे के मतभेदों का सम्मान करना है। न की एकदूसरे से रूठकर बात चित बंद कर देना।

About The Poet Elizabeth Jennings in Hindi:

एलिज़ाबेथ जेनिंग्स का जन्म 8 जुलाई 1926 में बोस्टन में हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्राप्त की और उसके बाद उन्होंने होने अपनी जीवन के सुरुवाती चरणों में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में लिब्रेरियन का काम किया। लेकिन अपने स्कूल अध्यापक और उनके अंकल जो की एक लेखक ही थे उनसे प्रेरणा मिलने के बाद उन्होंने लिखना सुरु किया और एक कवियत्री बन गई।

कवयत्री गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रस्त थी और यह उनके लेखो में भी अनुभव किया सकता है। लेकिन कभी भी उन्होंने पूर्ण रूप से अपनी आत्मकथा का वर्णन नहीं किया। 

ऑक्सफोर्डशायर के बैम्प्टन में एक देखभाल गृह में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें बीसवीं सदी के दूसरे भाग के सर्वश्रेष्ट कवियों में स्थान दिया जाता है। उन्हें जेरार्ड मैनली हॉपकिंस के बाद से इंग्लैंड का सर्वश्रेष्ठ कैथोलिक कवि भी कहा जाता है।

Father to Son Poem by Elizabeth Jennings

I do not understand this child
Though we have lived together now
In the same house for years. I know
Nothing of him, so try to build
Up a relationship from how
He was when small. Yet have I killed
The seed I spent or sown it where
The land is his and none of mine?

We speak like strangers, there’s no sign
Of understanding in the air.
This child is built to my design
Yet what he loves I cannot share.
Silence surrounds us. I would have
Him prodigal, returning to
His father’s house, the home he knew,
Rather than see him make and move
His world. I would forgive him too,
Shaping from sorrow a new love.

Father and son, we both must live
On the same globe and the same land.
He speaks: I cannot understand

Myself, why anger grows from grief.
We each put out an empty hand,
Longing for something to forgive.

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