Class 9 Hindi Kritika Chapter 3 reedh ki haddi summary

इस पाठ में हम कक्षा 9 कृतिका पाठ 3 ‘रीढ़ की हड्डी’ के पाठ का सारांश (class 9 hindi kritika chapter 3 reedh ki haddi summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।

Class 9 Hindi Kritika Chapter 3 reedh ki haddi summary

रीढ़ की हड्डी पाठ के लेखक जगदीशचन्द्र माथुर का जीवन परिचय

जगदीशचन्द्र माथुर का जन्म 16 जुलाई 1917 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में हुई। उच्च शिक्षा यूईंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय का शैक्षिक वातावरण और प्रयाग के साहित्यिक संस्कार रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका हैं। 1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (अंग्रेज़ी) करने के बाद 1941 ई. में ‘इंडियन सिविल सर्विस’ में चुन लिए गए।


सरकारी नौकरी में 6 वर्ष बिहार शासन के शिक्षा सचिव के रूप में कार्य किया और 1955 से 1962 ई. तक आकाशवाणी भारत सरकार के महासंचालक के रूप में,1963 से 1964 ई तक उत्तर बिहार (तिरहुत) के कमिश्नर के रूप में कार्य करने के बाद 1963-64 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में विज़िटिंग फेलो नियुक्त होकर विदेश चले गए। वहाँ से लौटने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए 19 दिसम्बर 1971 ई. से भारत सरकार के हिंदी सलाहकार रहे। इन सरकारी नौकरियों में व्यस्त रहते हुए भी भारतीय इतिहास और संस्कृति को वर्तमान संदर्भ में व्याख्यायित करने का प्रयास चलता ही रहा।

इनकी साहित्यिक रचनाएँ निम्नलिखित है–

नाटक- भोर का तारा, कोणार्क, ओ मेरे सपने, शारदीया, दस तस्वीरें, पहला राजा, जिन्होंने जीना जाना

उपन्यास- यादों का पहाड़, धरती धन अपना, आधा पुल, कभी न छोड़े खेत, मुठ्ठी भर कांकर, टुंडा लाट, घास गोदाम, नरक कुंड में वास, लाट की वापसी, जमीन तो अपनी थी।

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 रीढ़ की हड्डी पाठ की भूमिका 

‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी लेखक जगदीशचन्द्र माथुर द्वारा रचित है। इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने समाज में स्त्रियों के प्रति व्याप्त रुढ़िवादी मानसिकता पर प्रहार करते हुए स्त्रियों की शिक्षा एवं उससे उत्पन्न उनके आत्मविश्वास और साहस को दर्शाया है। इस पाठ की मुख्य स्त्री पात्र उमा के माध्यम से गोपाल प्रसाद और उसके बेटे शंकर जैसे लालची, दकियानूसी सोच रखने वाले लोगों की सच्चाई का पर्दाफाश किया गया है। दूसरी ओर उमा के पिता जी जोकि अपनी बेटी उमा को इतना पढ़ा- लिखाकर भी एक मजबूर पिता के रूप में दिखते हैं। 

रीढ़ की हड्डी पाठ के पात्रों का परिचय 

  1. रामस्वरूप- पेशे से वकील, उमा के पिताजी और एक मजबूर पिता।
  2. प्रेमा- उमा की माताजी।
  3. उमा- मुख्य पात्र, साहसी, निडर, पढ़ी-लिखी और स्वयं निर्णय लेने वाली।
  4. गोपाल प्रसाद- शंकर के पिताजी, लालची, रुढ़िवादी सोच रखने और विवाह को कारोबार समझने वाला। 
  5. शंकर- जिसके रीढ़ की हड्डी नहीं है (स्वयं का कोई व्यक्तित्व नहीं है।)
  6. रतन- रामस्वरूप के घर का नौकर। 

रीढ़ की हड्डी पाठ का सार 

रामस्वरूप द्वारा लड़के वालों के लिए तैयारियां

उमा को देखने के लिए गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आने वाले हैं। रामस्वरूप और उनका नौकर कमरे को सजाने में लगे हुए हैं। तख़्त और दरी पर चादर बिछाकर हारमोनियम रखा गया है। मेहमानों के लिए नाश्ता भी तैयार किया गया है। 

उमा की माँ का उसे शादी के लिए समझाना

उमा की माता का नाम प्रेमा है और वे उमा के पिताजी से आकर कहती हैं कि तुम्हारी बेटी तो मुँह फुलाकर बैठी हुई है। तभी उसके पिताजी कहते हैं कि उसकी माँ किस मर्ज की दवा है। जैसे-तैसे वे लोग मान गए हैं अब तुम्हारी बेवकूफी से मेरी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। फिर तुम मुझे दोष मत देना, प्रेमा कहती है कि तुमने ही तो उसे इतना पढ़ा-लिखाकर सिर चढ़ा लिया है। मैंने तो उसके सामने पाउडर-वोडर सब लाकर रख दिया है पर उमा इन सब चीजों से नफरत करती है। रामस्वरूप कहते हैं न जाने इसका दिमाग कैसा है। 

उमा के पिताजी रामस्वरूप की सोच

उमा ने बी.ए तक पढ़ाई की है। परंतु उसके पिताजी लड़के वालों को दसवीं तक ही पढ़ी बताते हैं क्योंकि लड़के वालों को कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए। नाश्ते में टोस्ट पर रखने के लिए मक्खन नहीं है। इसलिए रामस्वरूप ने अपने नौकर रतन को मक्खन लाने के लिए भेजता है। जब रतन जाते हुए देखता है कि घर की तरफ कोई आ रहा है तो तुरंत जाकर रामस्वरूप को बताता है। 

गोपाल प्रसाद और उनके बेटे शंकर का घर में प्रवेश 

फिर थोड़ी देर में दरवाजा खटकता है। दरवाज़ा खुलने पर गोपाल प्रसाद और उनका बेटा शंकर आते हैं। रामस्वरूप उनका स्वागत करते हैं। रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद दोनों बैठकर अपने जमाने की तुलना वर्तमान से करते है। थोड़ी देर बाद गोपाल प्रसाद बात बदलते हुए कहते हैं अच्छा तो साहब अब बिजनेस की बातचीत की जाए। वे शादी को एक बिजनेस मानते हैं।

गोपाल प्रसाद लोभी और दकियानूसी सोच रखने वाला व्यक्ति 

रामस्वरूप उमा को बुलाने के लिए जाते हैं तभी गोपाल प्रसाद पीछे से अपने बेटे शंकर से कहते हैं कि आदमी तो भला है, मकान से हैसियत भी बुरी नहीं लगती पर यह तो पता चले कि लड़की कैसी है। वे अपने बेटे को झुककर बैठने पर डाँटते है। रामस्वरूप दोनों को नाश्ता करवाते है और इधर-उधर की बातें भी करते हैं।

गोपाल प्रसाद लड़की की सुन्दरता के बारे में पूछते है तो रामस्वरूप कहते हैं कि आप खुद ही देख लीजिएगा। फिर जन्मपत्रियों के मिलने की बात होती है। तो रामस्वरूप कहते हैं कि मैंने उन्हें भगवान के चरणों में रख दिया है। आप उन्हें मिला हुआ ही समझ लीजिए। गोपाल प्रसाद लड़की की पढ़ाई के बारे में पूछते हुए कहते हैं कि हमें तो मेट्रिक पास ही लड़की चाहिए। मुझे उससे नौकरी तो करवानी नहीं है। 

उमा का लड़के वालों के सामने आना 

उमा कमरे में प्रवेश करती है, सिर झुककर हाथ में पान की तस्तरी लिए आती है। उमा के लगे चश्में को देखकर गोपाल प्रसाद और शंकर एक साथ बोलते हैं चश्मा? रामस्वरूप चश्मा लगने की वजह को स्पष्ट करते हैं और फिर दोनों संतुष्ट हो जाते हैं। गोपाल प्रसाद उमा की चाल, उसकी छवि को देखते हुए गाने-बजाने के बारे में भी पूछते है। उमा के पिताजी के कहने पर उमा सितार उठाते हुए उसकी नजर उस लड़के पर पड़ती है तो वह उसे पहचानकर गाना बंद कर देती है। फिर उमा से उसकी पेंटिंग, सिलाई के बारे में पूछा जाता है। इसका उत्तर रामस्वरूप दे देते हैं।

उमा का व्यक्तित्व

गोपाल प्रसाद उमा से प्रतियोगिता में इनाम जीतने के संबंध में पूछते हुए, उमा को ही उत्तर देने के लिए कहते हैं। उमा हल्की सी आवाज़ में कहती है कि मैं क्या जवाब दू बाबूजी? जब कुर्सी और मेज को बेचा जाता है तब दुकानदार मेज और कुर्सी से कुछ नहीं पूछता, केवल खरीददार को दिखा देता है। पसंद आ जाए तो अच्छा वरना। 

इस तरह की बातें सुनकर रामस्वरूप उमा से क्रोधित होकर उसे डांटते हैं। उमा कहती है अब मुझे कहने दीजिए बाबूजी ये महाशय मुझे खरीदने आए हैं। जरा इनसे पूछिए तो क्या लड़कियों का दिल नहीं होता। क्या उनको चोट नहीं लगती? लड़कियां मजबूर भेड़- बकरियाँ हैं क्या? जिन्हें कसाई अच्छी तरह देखभाल कर। इतना बोलते ही उमा चुप हो जाती है। 

उमा का गोपाल प्रसाद के सामने शंकर का पर्दाफाश करना 

गोपाल प्रसाद गुस्सा हो जाते हैं। रामस्वरूप से कहते है क्या अपने मुझे यहाँ मेरी इज्जत उतारने के लिए बुलाया था। उमा कहती है आप इतने देर से मेरी नाप-तोल कर रहे हैं। इसमें हमारी बेज्ज़ती नहीं होती और आप अपने साहबजादे से पूछिए कि अभी पिछली फरवरी में ये लड़कियों के हॉस्टल के आस-पास क्यों चक्कर काट रहे थे और वहाँ से भाग गए थे। तो गोपाल प्रसाद अपने बेटे की हरकतों के लिए उसे डांटने की बजाए, उमा से पूछते हैं- क्या तुम कॉलेज में पढ़ती हो? उमा कहती है, हाँ पढ़ती हूँ। मैंने बी.ए पास की है। मैंने न तो कोई चोरी की है और न ही आपके बेटे की तरह यहाँ-वहाँ तांक-झांक कर कायरता का प्रदर्शन किया है। 

रामस्वरूप एक मजबूर पिता 

गोपाल प्रसाद खड़े हो जाते हैं और रामस्वरूप को बुरा-भला कहकर अपने बेटे को लेकर चले जाते है। उमा पीछे से कहती है जाईए और घर जाकर यह भी पता लगाइए कि आपके बेटे की ‘रीढ़ की हड्डी’ है भी या नहीं। और यह सुनकर उमा के पिताजी कुर्सी पर बैठ जाते हैं। उमा जोर-जोर से रोने लगती है और उनका नौकर रतन मक्खन लेकर आ जाता है। 

रीढ़ की हड्डी पाठ का उद्देश्य 

इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने हमें ऐसे लोगों से परिचित करवाया है जो शादी को एक कारोबार समझते हैं। इस पाठ में उमा जैसी लड़की के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा, उनकी मन -पंसद और उसकी तरह खुले विचार रखने वाली शिक्षित लड़की का एक उदहारण दिया है। एक साहसी लड़की किस तरह से लालची लोगों को बेनकाब करती है।

रीढ़ की हड्डी पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ 

अधेड़- ढलती उम्र में

कलसों- मिट्टी का घड़ा 

लच्छन- तौर-तरीका 

जतन- यत्न, प्रयास 

दकियानूसी- पुराने विचारों का समर्थन करने वाला 

करीने- तरीका, तरबीत, क्रम 

ठिठोली- हँसी-मजाक 

चौपट- बर्बाद, बिगड़ा हुआ 

निहायत- बहुत अधिक 

तालीम- शिक्षा 

तल्लीनता- तन्मय, तत्पर, किसी काम में मग्न हो जाना 

जायची- कुंडली

मजाल- सामर्थ्य, शक्तिमत्ता 

मर्ज़- बुरी आदत, बीमारी, रोग 

कक्षा 9  की पुस्तक कृतिका  के तीसरे अध्याय रीढ़ की हड्डी पाठ का सारांश ‘Class 9 Hindi Kritika Chapter 3 reedh ki haddi Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

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