इस पाठ में हम कक्षा 11 वितान पाठ 2 राजस्थान की रजत बूंदें का सारांश (class 11 hindi vitan chapter 2 rajasthan ki rajat bunde summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।
राजस्थान की रजत बूंदें पाठ के लेखक का जीवन परिचय
लेखक अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सन् 1948 को हुआ। इनके पिताजी हिंदी के प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र और माताजी का नाम श्रीमती सरला मिश्र था। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1968 में संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
उत्तरदायित्व और सम्मान
गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की। वह इस प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग के संस्थापक और संपादक भी थे। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काम किया था। वे 2001 में दिल्ली में स्थापित सेंटर फार एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के ‘चिपको आंदोलन’ में जंगलों को बचाने के लिए सहयोग किया था। वे जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। 2009 में उन्होंने टेड (टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित किया था।
पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यानाकर्षित करने की दिशा में वे तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था। आरम्भ में बिना सरकारी मदद के अनुपम मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली है, वह कई सरकारों, विभागों और परियोजनाओं के लिए भी संभवतः संभव नहीं हो पाया है। उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा और सराहा। सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है। इसी तरह उत्तराखंड और राजस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया है।
इनकी प्रमुख रचनाएँ– राजस्थान की रजत बूँदें, साफ माथे का समाज, आज भी खरे हैं तालाब (उनकी यह पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब जो ब्रेल लिपि सहित तेरह भाषाओं में प्रकाशित हुई की एक लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।)
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राजस्थान की रजत बूंदें पाठ की भूमिका
यह रचना एक राज्य विशेष राजस्थान की जल समस्या का समाधान मात्र नहीं है। यह जमीन की अतल गहराइयों में जीवन की पहचान हैं। यह रचना धीरे-धीरे भाषा की एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जो कविता नहीं हैं, कहानी नहीं हैं, पर पानी की हर आहट की कलात्मक अभिव्यक्ति है।
कुंई का निर्माण करने वाले चेलवंजी
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: कुंई की खुदाई और चिनाई का काम करने वाले लोगों को चेलवांजी या चिजारो कहा जाता है और उनका काम चेजा कहलाता है। चेलवांजी या चिजारो कुंई के भीतर लगभग तीस पैंतीस हाथ तक खुदाई कर चुके हैं। कुंई का व्यास(चौड़ाई) बहुत ही संकरा( जिसकी चौड़ाई कम हो) होता है, यह काम कुल्हाड़ी या फावड़े से नहीं किया जा सकता। इसकी खुदाई का बसौली(औज़ार) से की जाती है। कुंई की गहराई में गर्मी को कम करने के लिए ऊपर जमीन में खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ताज़ी हवा नीचे जाती है और गर्म हवा ऊपर लौट जाती है। ऊपर से फेंकी जा रही रेत से बचने के लिए चेलवांजी अपने सिर पर धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहनते हैं।
कुंई का अर्थ
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: कुंई का अर्थ है छोटा-सा कुआँ। सामान्य कुएँ की तुलना में कुंई का व्यास(चौड़ाई) बहुत कम होता है लेकिन इसकी गहराई लगभग एक समान होती है। कुआँ भूजल को पाने के लिए बनता है पर कुंई में बारिश के पानी को इकट्ठा किया जाता है। मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। बारिश होने पर पानी भूमि पर पड़ते ही रेत में समा जाता है। यहाँ कहीं कहीं रेत के सतह के पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है।
कुंई का महत्व
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: कुएँ में पाया जाने वाला भूजल पीने लायक नहीं होता क्योंकि वह पानी खारा होता है। खड़िया पट्टी बारिश के पानी को गहरे खारे भूजल तक जाकर मिलने से रोकती है। ऐसी स्थिति में उस बड़े क्षेत्र में बरसा पानी भूमि की रेतीली सतह और नीचे चल रही पथरीली पट्टी के बीच अटक कर नमी की तरह फैल जाता है। मरुभूमि में रेत के कण समान रूप से बिखरे रहते हैं। पानी गिरने पर ये कण भारी हो जाते हैं पर अपनी जगह नहीं छोड़ते। भीतर समाया वर्षा का जल भीतर ही बना रहता है। इस हिस्से में बरसी बूँद-बूँद रेत में समाकर नमी में बदल जाती है। यहाँ कुई के निर्माण से रेत में समाई नमी बूँदों में बदलकर धीरे-धीरे रिसती रहती है और कुंई में पानी जमा होने लगता है। यह पानी खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा होता है।
पानी के तीन रूपों का वर्णन
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: पहला रूप है पालरपानी। यानी सीधे बरसात से मिलने वाला पानी। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में इकट्ठा हो जाता है।
पानी का दूसरा रूप है; पातालपानी जो पानी वर्षा होने के बाद रेत द्वारा सोखा जाता है और खड़ियापट्टी के अभाव में जमीन के नीचे चला जाता है। कुएँ में यह पानी डेढ़ सौ से दो सौ हाथ नीचे मिलता है जो खारा होता है।
पानी का तीसरा रूप है; रेजाणीपानी जो पानी धरातल पर रेत द्वारा सोख लिया जाता है परंतु खड़ियापट्टी के कारण पातालपानी में नहीं मिल पाता। यह पानी कुंई बनाकर निकाला जाता है जो पीने के काम में आता है।
कुंई का निर्माण में जोखिम
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: इसी रेजाणीपानी को समेटने के लिए कुंई का निर्माण किया जाता है। कुंई की खुदाई या चिनाई के काम में जरा सी चूक से चेजारो या चेलवांजी के प्राण भी जा सकते हैं। बीस-पच्चीस हाथ की गहराई तक जाते-जाते गर्मी बढ़ती जाती है और हवा भी कम होने लगती है। लोगों द्वारा ऊपर से फेंकी जा रही रेत कुंई में काम कर रहे चेलवांजी को राहत दे जाती है। कभी-कभी कुंई बनाते समय ईंट की चिनाई से मिट्टी को रोकना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए लकड़ी के लट्ठे नीचे से ऊपर की ओर एक दूसरे में फँसा कर सीधे खड़े किए जाते हैं। फिर इन्हें खींप या चग की रस्सी से बाँधा जाता है। यह बँधाई भी कुंडली का आकार ले लेती है, इसलिए इसे सौंपणी भी कहते हैं।
कुंई की खुदाई और चिनाई का काम कर रहे चेलवांजी को मिट्टी की खूब परख रहती हैं। खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही सारा काम रोक दिया जाता है। उसी समय नीचे धार(पानी का तेज प्रवाह) लग जाती है और चेजारो ऊपर आ जाते हैं।
राजस्थान में चेलवांजो का विशेष सम्मान
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: कुंई के निर्माण का कार्य जब शरू होता था तब से ही गाँव में चेलवांजों का विशेष ध्यान रखा जाता था। राजस्थान की एक परंपरा के अनुसार कुंई का काम पूरा होने के बाद चेलवांजी का विशेष ध्यान रखते हुए उनके लिए विशेष भोज का आयोजन भी किया जाता था। उन्हें विदाई के समय तरह-तरह के भेंट दिए जाते थे। चेजारों का कुंई का काम होने के बाद भी गाँव वालों से संबंध नहीं टूटता था बल्कि साल भर के तीज त्योहारों, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग भेंट दी जाती थी और फसल आने पर खलिहान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था। अब सिर्फ मजदूरी देकर ही काम करवाने का रिवाज आ गया है।
निजी और सार्वजानिक कुंई
rajasthan ki rajat bunde class 11 summary: कुंई का व्यास(चौड़ाई) कम होने के कारण इसे साफ़ रखने के लिए ढँककर रखना आसान होता है। हरेक कुंई पर लकड़ी के बने ढक्कन ढँके मिलेंगे। कहीं-कहीं खस की मल की तरह घास-फूस या छोटी-छोटी टहनियों से बने ढक्कनों का उपयोग किया जाता है। गहरी कुई से पानी खींचने की सुविधा के लिए उसके ऊपर घिरनी या चकरी भी लगाई जाती है।
गाँव में हरेक की अपनी-अपनी कुंई है तथा उसे बनाने और उससे पानी लेने का हक़ उसका अपना होता है। लेकिन कुंई का निर्माण गाँव की सार्वजनिक जमीन पर किया जाता है इसलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश(रोक लगाना) लगा रहता है।
राजस्थान में रेत के नीचे सब जगह खड़िया की पट्टी न होने के कारण कुंई हर जगह नहीं मिलेगी। चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के कई क्षेत्रों में यह पट्टी चलती है और इस कारण वहाँ गाँव- गाँव में कुंइयाँ ही कुंइयाँ हैं। इस प्रकार राजस्थान में कुंई खड़िया पट्टी के बल पर खारे पानी के बीच मीठा पानी देती है।
राजस्थान की रजत बूंदें पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने हमें यह बताने का प्रयास किया है कि हमारे जीवन में पानी की समस्या एक बड़ी समस्या है। जिसके लिए हमें ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। हम बारिश के पानी को इकट्ठा कर सकते हैं ताकि पानी की समस्या को कुछ हद तक कम कर सकें।
राजस्थान की रजत बूंदें कठिन शब्दों के अर्थ
उखरूँ- पंजे के बल घुटने मोड़ कर बैठना
खिंप- एक प्रकार की घास जिसके रेशों से रस्सी बनाई जाती है
डगालों- तना या मोती टहनियाँ
आच प्रथा- इस प्रथा के अंतर्गत कुंई खोदने वालों को वर्ष भर सम्मानित किया जाता है
चेलवांजी- कुई की खुदाई करने वाले
कक्षा 11 की पुस्तक वितान के अध्याय दूसरे राजस्थान की रजत बूंदें पाठ का सारांश ‘Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 rajasthan ki rajat bunde Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।
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