प्रस्तुत पाठ में दसवीं कक्षा की पुस्तक कृतिका भाग 2 के पांचवें अध्याय मैं क्यों लिखता हूँ का सारांश ‘Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Main Kyon Likhta Hun Summary’ दी गई है।
Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Main Kyon Likhta Hun Summary
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ के लेखक अज्ञेय जी का परिचय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म सन् 1911 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया (कुशीनगर) इलाके में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा जम्मू-कश्मीर में हुई और बी.एस.सी. लाहौर से की। क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के कारण अज्ञेय को जेल भी जाना पड़ा।
साहित्य एवं पत्रकारिता को पूर्णत: समर्पित अज्ञेय ने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ कीं। उन्होंने कई नौकरियाँ की और छोड़ीं। आज़ादी के बाद की हिंदी कविता पर अज्ञेय का व्यापक प्रभाव है। कविता के अलावा उन्होंने कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, निबंध, आलोचना आदि अनेक विधाओं में भी लेखन किया है।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-
काव्य-संग्रह – भग्नदूत, चिंता, अरी ओ करुणा प्रभामय, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार, कितने नावों में कितनी बार, बावरा अहेरी।
उपन्यास – शेखर: एक जीवनी (दो खंडो में), नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी।
कहानी- संग्रह – विपथगा, शरणार्थी, परंपरा, ये तेरे प्रतिरूप, कोठरी की बात, जयदोल।
निबंध – त्रिशंकु, आत्मनेपद, सबरंग और कुछ राग।
यात्रा-वृतांत – अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली, बहता पानी निर्मल।
पुरस्कार – साहित्य अकादमी (आंगन के पार द्वार), भारतीय ज्ञानपीठ (कितनी नावों में कितनी बार)।
अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक सहित चार – सप्तकों का समकालीन हिंदी कविता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्य अकादेमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अज्ञेय को अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी पुरस्कृत किया गया। सन् 1987 में उनका देहावसान हो गया। बौद्धिकता की छाप अज्ञेय के संपूर्ण लेखन में मिलती है। उनके लेखन के मूल में वैयक्तिकता की पहचान की समस्या है।
मैं क्यों लिखता हूँ की भूमिका
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि लिखने के लिए प्रेरणा कैसे उत्पन्न होती है? लेखक उस पक्ष को अधिक स्पष्टता और ईमानदारी से लिख पाते हैं जो स्वयं अनुभव करते हैं। लेखक ने केवल जापान के शहर हिरोशिमा में हुए रेडियोधर्मी विस्फोट का प्रभाव केवल सुना था। जब वे जापान गए वहाँ एक पत्थर पर आदमी की शक्ल में काली छाया को देखा तो उस रेडियोधर्मी विस्फोट का भयावह रूप उनकी आँखों के सामने प्रत्यक्ष प्रतीत होने लगा और उन्होंने भारत आते समय रेल में बैठे-बैठे उस घटना पर कविता लिखी।
मैं क्यों लिखता हूँ पाठ का सारांश – Main Kyon Likhta Hun Summary
लिखने की प्रेरणा- भीतरी और बाहरी दवाब
Main kyon likhta hun Summary: ‘मैं क्यों लिखता हूँ? का उत्तर लेखक देते हैं कि मैं इसलिए लिखता हूँ कि मैं स्वयं को जानना चाहता हूँ। और मुझे लिखे बिना इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सकता। लेखक का मानना है कि लिखकर ही लेखक आभ्यंतर(अंदर) विवशता को पहचानता है और लिखकर ही उससे मुक्त हो जाता है, इसलिए वह लिखता है। लिखने के पीछे सभी लेखकों के लिए कोई-न-कोई कारण होता है कुछ रचनाकार ख्याति पाने के लिए और कुछ बाहर की विवशता से लिखते हैं जैसे संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजे से, आर्थिक आवश्यकता से कुछ आभ्यंतर(अंदर) प्रेरणा से लिखते हैं। प्रत्येक रचनाकार यह भेद बनाए रखता है कि कौन-सी रचना भीतरी प्रेरणा का फल है और कौन- सी रचना बाहरी दबाव की।
यहाँ रचनाकार के स्वभाव और आत्मानुशासन का बहुत महत्व होता है। इनमें कुछ ऐसे आलसी प्राणी होते हैं जो कि बिना किसी बाहरी दबाव के लिख ही नहीं पाते। यह कुछ उसी प्रकार है कि जैसे प्रातःकाल नींद खुल जाने पर बिस्तर पर तब तक पड़े रहे जब तक घड़ी का अलार्म न बज जाए। इस प्रकार रचनाकार बाहर के दबाव के प्रति समर्पित नहीं होता केवल उसे सहायक यंत्र की तरह काम में लाता है जिससे वे भौतिक यथार्थ से जुड़ा रहे। लेखक का मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव से अनुभूति गहरी होती है इसलिए उन्हें इस सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। वे अपने-आप ही उठ जाते है, पर अलार्म बज भी जाए तो कोई हानि नहीं मानते। लेखक कहते हैं कि वे बाहरी दवाब से कम प्रभावित होते है उन्हें उनकी भीतरी विवशता ही लिखने के लिए प्रेरित करती है।
भीतरी विवशता क्या होती है? इसके बारे में बताना कठिन है। लेखक ने समझाने के लिए इसका उदहारण देते हुए अपने एक कविता के बारे में चर्चा की है जिससे लेखक की बात स्पष्ट हो जाएगी।
विज्ञान का दुरुपयोग
Main kyon likhta hun Summary: लेखक बताते हैं कि मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ इसीलिए रेडियम-धर्मिता के क्या प्रभाव होते हैं? इन सबका लेखक को पुस्तकीय और सैद्धांतिक ज्ञान था। जब हिरोशिमा पर अणुबम गिरा तब लेखक ने समाचार में पढ़ा था।
उसके प्रभावों का प्रमाण भी सामने आ गया। विज्ञान के इस दुरुपयोग के प्रति बुद्धि का विद्रोह हुआ और लेखक ने लिखा भी, पर लेख में अनुभूति के स्तर पर जो यथार्थता होती है वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात होती है, इसलिए लेखक ने इस विषय पर कविता नहीं लिखी। लेखक बताते हैं कि भारत की पूर्वी सीमा पर कैसे सैनिक युद्धकाल में ब्रह्मपुत्र में बम फेंक कर हजारों मछलियों को मार देते थे जबकि उनको इतनी मछलियों की आवश्यकता नहीं होती थी। जीव के इस अपव्यय से जो व्यथा भीतर उमड़ी थी, उससे एक सीमा तक अणु-बम द्वारा व्यर्थ जीव नाश का कुछ-कुछ अनुभव कर सका था। लेखक बताते हैं कि अनुभव घटनाओं को अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे सम्मिलित कर लेता है। जब लेखक जापान गए तब हिरोशिमा के अस्पतालों में रेडियम पदार्थ से आहत और कष्ट पा रहे लोगों को देखा तो उस समय कुछ भी नहीं लिख सके।
लेखक की प्रत्यक्ष अनुभूति
Main kyon likhta hun Summary: लेखक की अनुभूति प्रत्यक्ष हो गई। एक दिन जब लेखक सड़क पर घूम रहे थे तभी उन्हें जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया दिखी। उस छाया को देखकर थप्पड़-सा लगा। उन्हें लगा कि उनके भीतर कहीं सहसा जलते हुए सूर्य-सा उग आया और डूब गया है। लेखक बताते हैं कि उस क्षण जैसे अणु विस्फोट मेरे अनुभूति पक्ष में आ गया और एक अर्थ में वह स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गए। इसी से यह सहज विवशता जागी।
लेखक के भीतर की बेचैनी बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना के क्षेत्र में आ गई और एक दिन अचानक लेखक ने हिरोशिमा पर कविता लिखी। उन्होंने कविता जापान में नहीं, भारत लौटते समय रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी। यह कविता अच्छी है या बुरी, इसमें कुछ मतलब नहीं। उसके निकट वह सच है जिससे अनुभूति उत्पन्न होती है।
मैं क्यों लिखता हूँ पाठ का उद्देश्य
इस लेख में लेखक ने हमें लिखने की प्रेरणा और उसके कारणों के बारे में बताया है। लेखक ने रचनाकार के बाहरी और आंतरिक दवाब के कारणों के बारे में भी बताया है। अपनी एक कविता हिरोशिमा के माध्यम से बताते हैं कि अनुभव से अधिक गहरी अनुभूति है।
मैं क्यों लिखता हूँ पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ
अभ्यंतर- अंदरूनी, भीतर का
उन्मेष- प्रकाश, दीप्ति
तटस्थ- निरपेक्ष, उदासीन, भावहीन, अनासक्त
विवशता- मजबूर
निमित्ति- कारण
नियमित- नियमबद्ध, नियमानुकूल, नियमानुरूप
विवरण- व्याख्या, स्पष्ट करना, वर्णन
आत्मसात- अपने अधिकार में करना, अपने में लीन या समाहित किया हुआ
अनुभूति- अहसास, संवेदना,
तर्क- जानने-समझाने हेतु किया जानेवाला यत्न, व्यंग्यपूर्ण बात
व्यथा- आंतरिक क्लेश या दुःख, वेदना, चिंता, विकलता
परवर्ती- बाद के समय का, बाद में होनेवाला
प्रत्यक्ष- जो आँखों के सामने हो
ज्वलंत- जलता और चमकता हुआ
रुद्ध- बंद हो गई, फँस गई
समूची- कुल, सम्पूर्ण
आकुलता- बेचैनी, परेशानी
दसवीं कक्षा की पुस्तक कृतिका भाग 2 के पांचवें अध्याय मैं क्यों लिखता हूँ का सारांश ‘Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Main Kyon Likhta Hun Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।