CBSE Class 6 Hindi Chapter 16 Van Ke Marg Mein Solution- वन के मार्ग में
तुलसीदास जी का जीवन परिचय: इस काव्य रचना के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी हैं, जो हिन्दी साहित्य के महान कवि थे। उन्होंने महान ग्रंथ श्री रामचरिमानस लिखा था, जिसे आज भी पूरे भारत में बड़े भक्ति-भाव से पढ़ा जाता है। इसमें श्री राम जी के पूरे जीवन का कवितामय वर्णन है। इन्हें प्राचीनकाल में रामायण लिखने वाले श्री वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि रामचरितमानस का कथानक रामायण से ही पैदा हुआ है।
वन के मार्ग में कविता का सार: प्रस्तुत कविता के प्रसंग में तुलसीदास जी ने उस समय के बारे में बताया है, जब श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी वनवास के लिए निकले थे। नगर से थोड़ी दूर निकलते ही सीता जी थक गईं, उनके माथे पर पसीना छलक आया और उनके होंठ सूखने लगे। जब लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं, तो उस दशा में भी वे श्री राम से पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए कहती हैं। राम जी उनकी इस दशा को देखकर व्याकुल हो उठते हैं और सीता जी के पैरों में लगे काँटे निकालने लगते हैं। यह देखकर सीता जी मन ही मन अपने पति के प्यार को देखकर पुलकित होने लगती हैं।
Ncert Solution for Class 6 Hindi Vasant All Chapters
Chapter 01. वह चिड़िया जो (केदारनाथ अग्रवाल)
Chapter 04. चाँद से थोड़ी-सी गप्पें (शमशेर बहादुर)
Chapter 10. झाँसी की रानी (सुभद्रा कुमारी चौहान)
Chapter 13. मैं सबसे छोटी होऊँ (सुमित्रानन्द पंत)
Chapter 16. वन के मार्ग में (वन के मार्ग में तुलसीदास)
वन के मार्ग में कविता- Van Ke Marg Mein Poem
पुर तें निकसीं रघुबीर – बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटि करिहौं कित ह्वै?”
तिय की लखि आतुरता पिय की अंँखियांँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
“जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौं, पिय! छांँह घरीक ह्वै ठाढे़।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहौं, भूभुरि-डाढे़।।”
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं कंटक काढे़।
जानकीं नाह को नेह लख्यो, पुलको तनु, बारिश बिलोचन बाढ़े।।
वन के मार्ग में कविता का भावार्थ- Van Ke Marg Mein Poem Summary
पुर तें निकसीं रघुबीर – बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटि करिहौं कित ह्वै?”
तिय की लखि आतुरता पिय की अंँखियांँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
वन के मार्ग में प्रथम पद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत’ पाठ-16 कविता ‘वन के मार्ग में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री तुलसीदास जी है।इसमें श्री राम जी सीता जी को परेशान देखकर व्याकुल हो जाते हैं।
वन के मार्ग में प्रथम पद अर्थ सहित:- प्रथम पद में तुलसीदास जी लिखते हैं कि श्री राम जी के साथ उनकी वधू अर्थात् सीता जी अभी नगर से बाहर निकली ही हैं कि उनके माथे पर पसीना चमकने लगा है। इसी के साथ-साथ उनके मधुर होंठ भी प्यास से सूखने लगे हैं। अब वे श्री राम जी से पूछती हैं कि हमें अब पर्णकुटी (घास-फूस की झोंपड़ी) कहांँ बनानी है। उनकी इस परेशानी को देखकर राम जी भी व्याकुल हो जाते हैं और उनकी आँखों से आँसू छलकने लगते हैं।
वन के मार्ग में प्रथम पद का विशेष:-
1.धरि धीर, भरि भाल, अंँखियांँ अति, करिहौं कित, चारु चलीं में अनुप्रास अलंकार है।
2. ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है
3. सवैया छंद है।
4. श्री राम जी , सीता जी और लक्ष्मण जी के वनवास जाने का सुंदर वर्णन हुआ है।
“जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौं, पिय! छांँह घरीक ह्वै ठाढे़।l
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहौं, भूभुरि-डाढे़।।”
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं कंटक काढे़।
जानकीं नाह को नेह लख्यो, पुलको तनु, बारिश बिलोचन बाढ़े।।
वन के मार्ग में द्वितीय पद का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत’ पाठ-16 कविता ‘वन के मार्ग में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री तुलसीदास जी है।इसमें सीता जी श्रीराम का अपने प्रति स्नेह देखकर खुश हो जाती हैं।
वन के मार्ग में द्वितीय पद अर्थ सहित:- इस पद में श्री लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं, तो सीता जी श्री राम से कहती हैं कि स्वामी आप थक गए होंगे, अतः पेड़ की छाया में थोड़ा विश्राम कर लीजिए। श्री राम जी उनकी इस व्याकुलता को देखकर कुछ देर पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं तथा फिर सीता जी के पैरों से काँटे निकालने लगते हैं। अपने प्रियतम के इस प्यार को देखकर सीता जी मन ही मन पुलकित यानि खुश होने लगती हैं।
वन के मार्ग में द्वितीय पद का विशेष:-
1.बारिश बिलोचन बाढ़े, पायँ पखारिहौं, बैठि बिलंब, में अनुप्रास अलंकार है।
2. ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
3.सवैया छंद है।
Ncert solution for class 6 hindi vasant Chapter 16 Van Ke Marg Mein Question and Answers
वन के मार्ग में प्रश्न – उत्तर:
प्रश्न 1. नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता जी की क्या दशा हुई?
उत्तर. नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने पर ही सीता जी पसीने से लथ-पथ हो गयीं, उनके पैरों में कांटें चुभ गए, उनके होंठ प्यास से सूखने लगे और वो काफी ज्यादा थक गयीं।
प्रश्न 2. ‘अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा’ – किसने किससे पूछा और क्यों?
उत्तर. यह सीता जी ने श्रीराम जी से पूछा क्योंकि वो बहुत ज्यादा तक गयी थीं और उन्हें बहुत ज्यादा प्यास लग रही थी।
प्रश्न 3. राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?
उत्तर. राम जी सीता जी के पैरों को हाथ में लेकर सहलाने लगे और उनके पैरों में चुभे काँटे निकालने लगे।
प्रश्न 4. दोनों सवैयों के प्रसंगों में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर. पहले सवैये में कवि ने राम-सीता और लक्ष्मण जी के वनवास के लिए नगर से बाहर निकलने के बारे में बताया है। जबकि दूसरे सवैये में, लक्ष्मण जी के पानी लेने जाने के बाद श्री राम का सीता माता के प्रति प्रेम का वर्णन है।
प्रश्न 5. पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो।
उत्तर. प्रस्तुत कविता में तुलसीदास जी ने तब का प्रसंग बताया है, जब श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी वनवास के लिए निकले थे। नगर से थोड़ी दूर निकलते ही सीता जी थक गईं, उनके माथे पर पसीना छलक आया और उनके होंठ सूखने लगे। जब लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं, तो उस दशा में भी वे श्री राम से पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए कहती हैं। राम जी उनकी इस दशा को देखकर व्याकुल हो उठते हैं और सीता जी के पैरों में लगे काँटे निकालने लगते हैं। यह देखकर सीता जी मन ही मन अपने पति के प्यार को देखकर पुलकित होने लगती हैं।
अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न
प्र .1. प्रथम सवैया में कवि ने राम-सीता के किस प्रसंग का वर्णन किया है?
उ. 1. प्रथम सवैया में कवि ने राम-सीता के वन-गमन प्रसंग का वर्णन किया है।
प्र .2. वन के मार्ग में सीता को होने वाली कठिनाइयों के बारे में लिखो।
उ. 2. वन के मार्ग में सीता जी को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा जैसे वे चलते – चलते थक गईं और उनके माथे पर पसीना आने लगा। प्यास से उनके होंठ भी सूखने लगे तथा नंगे पाँव होने के कारण उनके पैरों में काँटे भी चुभ गए थे।
प्र .3. सीता की आतुरता देखकर राम की क्या प्रतिक्रिया होती है?
उ. 3. सीता की आतुरता देखकर राम जी अत्यंत व्याकुल हो उठते हैं। उनकी आंँखों से आँसू निकलते लगते हैं क्योंकि उनसे सीता जी की यह दशा देखी नहीं जाती।
प्र .4 .राम बैठकर देर तक काँटे क्यों निकालते रहे?
उ. 4. जब लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं तो सीता जी श्री राम से पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए कहती हैं। उनकी स्वयं की अत्यंत दयनीय दशा को देखकर राम जी व्याकुल हो जाते हैं और थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह सीता जी के पैरों से काँटे निकालने लगते हैं जिससे उनके कष्ट थोड़े कम हो सकें।
प्र .5. सवैया के आधार पर बताओ कि दो कदम चलने के बाद सीता का ऐसा हाल क्यों हुआ?
उ. 5. सीता जी बचपन से ही राजकीय सुविधाओं में पलीं – बढ़ीं थीं। उन्होंने कभी इतना कष्टमय जीवनयापन नहीं किया था। ना तो उन्हें वन के मार्ग में आने वाली बाधाओं का अनुभव था और ना ही कभी वो इतना पैदल चली थीं। इन सभी सुविधाओं के अभाव और वन जीवन के अभ्यस्त ना होने के कारण ही वे जल्दी ही थक जाती थीं और उनके माथे से पसीना बहने लगता था।