यहाँ दसवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक कृतिका के भाग 2 के चौथे अध्याय एही ठैयाँ झुलनी हेरनी हो रामा पाठ का सारांश (Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 Yehi Thaiya Jhulni Herani Ho Rama Summary) दिया गया है।
एही ठैयाँ झुलनी हेरनी हो रामा के लेखक शिवप्रसाद मिश्र का परिचय
शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म 27 सितम्बर 1911 में काशी में हुआ। इनके पिता जी पंडित महावीर प्रसाद मिश्र तत्कालीन बनारस के विद्वानों में लोकप्रिय एवं सम्मानित व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे और माता का नाम सुमित्रा देवी था। इनका उपनाम ‘रूद्र’ साहित्यकार पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जी द्वारा दिया गया था। उनकी शिक्षा काशी के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हुई। रुद्र जी ने स्कूल एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। बहुभाषाविद् रुद्र जी एक साथ ही उपन्यासकार, नाटककार, गीतकार, व्यंग्यकार, पत्रकार और चित्रकार थे।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं –
उपन्यास – बहती गंगा, सुचिताच, रामबोला रामबोले।
गीत संग्रह – गज़लिका, ताल तलैया, परीक्षा पचीसी।
नाटक – महाकवि कालिदास, दशाश्वमेध।
उनकी अनेक संपादित रचनाएँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हुई हैं। वे सभा के प्रधानमंत्री पद पर भी रहे। सन् 1970 में उनका देहांत हो गया।
रुद्र जी अपनी जन्मभूमि काशी के प्रति आजीवन निष्ठावान रहे और उनकी यही निष्ठा उनके साहित्य में व्यक्त हुई है, विशेषकर उनकी अनुपम कृति बहती गंगा में। बहती गंगा को कुछ विद्वान उपन्यास मानते हैं, तो कुछ उसे कहानी-संग्रह भी मानते हैं।
एही ठैयाँ झुलनी हेरनी हो रामा की भूमिका
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ की रचना लेखक शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ ने की है। इस रचना में लेखक ने आज़ादी से पहले के समाज के बारे में बताया है। इसमें आज़ादी के आंदोलन के समय कजली ( लोकगीत जो भादो की तीज में गाया जाता है) गायक टुन्नू और दुलारी का अपने देश के प्रति प्रेम, समर्पण, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने इत्यादि के बारे में बताया है। इसमें टुन्नू और दुलारी के बीच आत्मीय प्रेम का वर्णन भी किया है।
इस रचना का शीर्षक ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का अर्थ है कि इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग( नाक में पहनने वाली नथ) खो गई है, मैं किससे पूछुं? दुलारी ने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लौंग पहना हुआ है दुलारी को गाने के लिए उस स्थान पर आमंत्रित किया गया था जहाँ टुन्नू को पुलिस के जमादार अली सगीर ने मारा था। इसी जगह उसका प्रेमी उससे अलग हुआ था।
एही ठैयाँ झुलनी हेरनी हो रामा के पात्रों का परिचय
दुलारी – एक प्रसिद्ध कजली गायिका, स्वाभिमानी , निडर, साहसी स्त्री।
टुन्नू – सोलह-सत्रह वर्ष का बच्चा, कजली गायक, देशप्रमी, दुलारी के प्रति आत्मीय प्रेम।
फेंकू – पुलिस का जासूस और उसके द्वारा दी गई धोतियों को दुलारी द्वारा फेंक देना।
अली सगीर – पुलिस का जमादार और टुन्नू की हत्या करने वाला।
अन्य पात्र – झींगुर, संपादक, प्रधान संवाददाता, रिपोर्टर शर्माजी, पुलिसकर्मी, गौरे सैनिक और अन्य आन्दोलनकारी।
Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary
दुलारी के घर टुन्नू का प्रवेश
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: महाराष्ट्रीय महिलाओं की तरह धोती लपेटे, कच्छ बाँधे, दंड (उठक-बैठक) लगाती दुलारी के शरीर से पसीना निकल आया। अब दंड (उठक-बैठक) समाप्त कर, अँगोछे से पसीना पोंछ, जूड़ा खोल सिर का पसीना सुखाया और आईने के सामने खड़ी अपनी भुजाओं को गर्व से देखते हुए प्याज के टुकड़े और हरी मिर्च के साथ चने चबा रही थी। तभी दरवाजे पर टुन्नू आया, दुलारी ने दरवाजा खोला।
दुलारी ने आँखें मिलाते हुए कहा- “तुम फिर यहाँ टुन्नू ? मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था।” इतने में टुन्नू ने बंडल निकालकर उसके हाथों में दिया, दुलारी ने देखा तो उसमें गाँधी आश्रम की बनी खादी की साड़ी थी। देखते ही दुलारी चीख पड़ी और पूछा इसे तुम क्यों लाए ? टुन्नू ने कहा- “होली का त्योहार था।” दुलारी जोर से टुन्नू पर चिल्लाई- “होली का त्योहार था तो यहाँ क्यों आए, जलने के लिए तुम्हें कहीं चिता नहीं मिली।
तुम मेरे कौन हो जो यहाँ चले आए। अगर तुम अपनी खैरियत चाहते हो, तो इसे लेकर चले जाओ।” दुलारी ने धोती टुन्नू के पैरों में फेंक दी। टुन्नू के आँखों में आँसू भर आए और टप-टप आँसू नीचे पड़ी धोती पर गिरने लगे। “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता” कह कर टुन्नू सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। टुन्नू को जाते हुए दुलारी भी देखती रही। अब उसके मन में कठोरता का स्थान कोमलता ने ले लिया। उसने जमीन पर पड़ी धोती उठाई, जिस पर काजल से सने आँसुओं के धब्बे पड़ गए थे। उसने एक बार फिर जाते हुए टुन्नू की ओर देखा और स्वच्छ धोती पर पड़े धब्बों को बार-बार चूमने लगी।
दुलारी और टुन्नू की पहली मुलाकात
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: दुलारी की टुन्नू से पहली मुलाकात खोजवाँ बाज़ार में तीज के अवसर पर हुई थी। दुलारी का तीज के अवसर पर गाने वालों में नाम था। उसमें सवाल-जबाव करने की अद्भुत क्षमता थी। उसके सामने गाने में बड़े-बड़े शायर घबराते थे। दुलारी खोजवाँ बाजार में भादों में तीज के अवसर पर कजली दंगल में गाने जाती थी और खोजवाँ वालों ने दुलारी को अपनी ओर होने से जीत पक्की समझ ली थी।
दूसरी ओर बजरडीहा वालों की ओर से टुन्नू को बुलाया गया था। जब दंगल में सवाल-जबाव के लिए दुक्कड़ (शहनाई के साथ बजाया जाने वाला एक तबले जैसा बाजा) पर चोट पड़ी तो बजरडीहा वालों की ओर से सोलह-सत्रह वर्ष का बालक टुन्नू, दुलारी की ओर हाथ उठाकर ललकार उठा और जोश से गाना गाने लगा। टुन्नू के गीत पर दुलारी को मुस्कराते देख लोग हैरान थे। आज दुलारी अपने स्वभाव के प्रतिकूल थी। टुन्नू को गाता देखकर खड़ी-खड़ी मुस्करा रही थी। तब खोजवाँ वालों को अपनी विजय पर पूरा विश्वास नहीं था। टुन्नू का इस प्रकार सार्वजनिक रूप में गाने का यह तीसरा-चौथा अवसर था। उसके पिताजी सत्यनारायण की कथा और विवाह में पंडित का कार्य करते थे। टुन्नू के पिताजी बहुत मुश्किल से घर चला रहे थे और दूसरी ओर उनके पुत्र टुन्नू को शायरी का चस्का लग गया था।
उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और कजली रचना करने में कुशल हो गया। इसी कारण बजरडीहा वालों ने उसे इस दंगल में अपनी ओर से बुलाया था। टुन्नू की शायरी पर उन्होंने ‘वाह-वाह’ का शोर मचाकर आसमान को सिर पर उठा लिया और यह देखकर खोजवाँ वालों का रंग उतर गया। दुलारी की बारी आई तो वह टुन्नू के दुबले-पतले शरीर को लेकर कहने लगी कि वैसे तू बगुला भगत है। उसी की तरह तुझे भी हंस की चाल चलने का हौसला हुआ है, परंतु कभी-न-कभी तेरे गले में मछली का काँटा जरूर अटकेगा और तेरी कलई खुल जाएगी। दुलारी के उत्तर में टुन्नू ने कहा – मन में जितना आए जी भर कर गालियाँ दो, पर अपने मन की बात को डंके की चोट पर सुनाऊँगा। यह सुन फेंकू सरदार लाठी लेकर टुन्नू को मारने दौड़ा। यह देखकर दुलारी ने टुन्नू को फेंकू से बचाया। उस दिन लोगों के कहने पर भी दोनों ने गाना नहीं गाया और कजली दंगल का मजा खराब हो गया।
दुलारी का टुन्नू से संबंध
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: टुन्नू के संपर्क में आने पर दुलारी के हृदय पर प्रभाव पड़ता है। टुन्नू के चले जाने के बाद दुलारी सोचने लगी कि टुन्नू की वेशभूषा में काफी अंतर था लेकिन उसे टुन्नू से पूछा ही नहीं शायद मौका ही नहीं मिला था। फिर दुलारी ने टुन्नू के द्वारा दी हुई धोती उठाई और सब कपड़ों के नीचे संदूक में रख दी। टुन्नू की दुर्बलता का अनुभव उसे पहली ही मुलाकात में हो गया था किंतु उसे नादानी मानकर छोड़ दिया था। जब भी टुन्नू दुलारी के पास आता तो अपने मन की बात किए बिना ही वहाँ से चला जाता था। दुलारी टुन्नू की हरकतों पर मन-ही-मन हँसती थी। दुलारी को यह समझने में देर नहीं लगी कि जिस पर वह आसक्त है उसका संबंध शरीर से नहीं; आत्मा से है। उसने आज तक टुन्नू का तिरस्कार किया था, वह सब दिखावा मात्र था। फिर भी वह यह स्वीकार करने के लिए तैयार न थी कि उसके हृदय में टुन्नू के लिए एक खास जगह है। वह इस विचार में उलझती जा रही थी और इस उलझन से बचने के लिए चूल्हा जलाकर रसोई के काम करने लग गई।
दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्र का बहिष्कार
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: इतने में दुलारी के घर फेंकू ने प्रवेश किया। उसके हाथ में धोतियों का बंडल था और फेंकू ने धोतियों का बंडल उसके पैरों में रख दिया। दुलारी ने बंडल पर ठोकर मारते हुए कहा लेकिन तुमने तो होली पर साड़ी देने का वादा किया था। फेंकू ने कहा काम अच्छा नहीं चल रहा इसलिए मैं तुम्हें साड़ियाँ तीज पर ला दूंगा। इसका जवाब दुलारी ने नहीं दिया। उसी समय विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते हुए “भारत जननि तेरी जय हो” का गीत गाते हुए देश के दीवानों का दल आया। बड़ी-सी फैली हुई चादर पर पुराने धोती, साड़ी, कमीज, कुरता आदि की वर्षा हो रही थी। तभी दुलारी ने लंका शायर के मिलों में बनी कोरी धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक दिया। सबकी आँखें खिड़की की ओर उठी और वैसे ही खिड़की बंद हो गई।
टुन्नू की मृत्यु
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: जुलूस आगे बढ़ गया। खिड़की फिर खुली और धड़ाके से बंद हो गई। तभी अली सगीर ने फेंकू को देख लिया। फेंकू पुलिस का मुखबर(जासूस) भी था। टुन्नू की मौत के समाचार पर दुलारी फेंकू को झाडू से मारते हुए चिल्ला रही थी और अपने घर से निकलने को कहने लगी। उसे इतना गुस्सा था कि चूल्हे पर रखी बटलोही की दाल ठोकर से उलट दी। दुलारी के हृदय में जल रही आग को पड़ोस में रहने वाली औरतें मीठे वचनों से बुझा रही थीं। दुलारी उनसे पूछ रही थी बताओ टुन्नू कभी यहाँ आता है? तभी नौ वर्षीय बालक झींगुर ने आकर समाचार सुनाया कि टुन्नू को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश भी उठा ले गए। इस समाचार को सुनकर दुलारी चौंक गई और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। पड़ोस की औरतें कठोर स्वभाव वाली दुलारी की हृदय की कोमलता को देख दंग रह गईं। दुलारी उठी और सबके सामने संदूक खोला और टुन्नू द्वारा दी गई धोती निकालकर पहन ली और तभी थाने से मुंशी और फेंकू ने सूचना दी कि आज अमन सभा में दुलारी को गीत गाना है।
टुन्नू की हत्या की खबर
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: जब शर्मा जी ने दुलारी और टुन्नू के संबंध और टुन्नू की मौत की रिपोर्ट प्रधान संवाददाता को दी, तो प्रधान संपादक गुस्से से बोलने लगे कि यह क्या अलिफ-लैला की कहानी लाए हो। यदि इस रिपोर्ट को छाप दूँ, तो कल ही अखबार बंद हो जाएगा और संपादक जी बड़े घर पहुँचा दिए जाएँगे। संपादक के आदेश पर प्रधान संवाददाता ने रिपोर्ट पढ़ने के लिए शर्मा जी से कहा और फिर शर्माजी रिपोर्ट पढ़ने लगे। कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर पूरे नगर में हड़ताल रही, यहाँ तक खोंमचों वालों ने नगर में फेरी नहीं लगाई। विदेशी वस्त्रों को संग्रह करने वालों का जुलूस निकल रहा था। जुलूस में कजली का प्रसिद्ध गायक टुन्नू भी था। टाउन हॉल पर पहुँचकर जुलूस भंग हो गया। पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नू को गाली दी। टुन्नू के प्रतिवाद करने पर सगीर ने पसली पर बूट की ठोकर मारी जिससे तिलमिलाकर टुन्नू जमीन पर गिर गया और उसके मुँह से खून निकलने लगा। वहाँ उपस्थित गोरे सैनिक टुन्नू को गाड़ी में लादकर ले गए और लोगों से कह दिया कि इसे अस्पताल ले जा रहे हैं।
संवाददाता ने गाड़ी का पीछा कर पता लगाया कि टुन्नू वास्तव में मर गया था और रात के आठ बजे टुन्नू का शव वरुणा में प्रवाहित करते हुए हमारे संवाददाता ने देखा है। इस सिलसिले में यह भी उल्लेख है कि टुन्नू का दुलारी से संबंध था। उसी दुलारी से टाउन हॉल में आयोजित समारोह में नचाया-गवाया गया था। उसे भी टुन्नू की मृत्यु का संदेश मिल चुका था। वह बहुत उदास थी। उसने खादी की धोती पहन रखी थी।
टुन्नू की मृत्यु के बाद दुलारी की मनोदशा
Yehi thaiya jhulni herani ho rama summary: पुलिस दुलारी को टाउन हॉल में गाने के लिए जबरदस्ती ले आई थी। वह गाना नहीं चाहती थी क्योंकि आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या हो गई थी। उसे मजबूर होकर गाने के लिए खड़ा होना पड़ा। अली सगीर ने मौसमी चीज गाने की फरमाइश की। उसने दर्द भरी आवाज़ से गाया- “एही ठैयाँ झुलनी हैरानी हो रामा, कासों मैं पूहूँ ?” उसकी नज़र वही पड़ी जहाँ पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नू की पसली पर बूट से ठोकर मारकर उसे गिराया था। उसने गीत का दूसरा चरण गाया –
सास से पूछू, ननदिया से पूहूँ, देवरा से पूछत लजानी हो रामा ? ‘देवरा से पूछत’ कहते-कहते वह बिजली की तरह एक दम घूमी और अली सगीर की ओर देखकर लजाने का अभिनय किया और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे या यों कहिए कि वे पानी की बूंदें भी जो वरुणा में टुन्नू की लाश फेंकने से छिटकी और अब दुलारी की आँखों में प्रकट हुई। दुलारी का वैसा रूप पहले कभी किसी ने नहीं देखा था।
एही ठैयाँ झुलनी हेरनी हो रामा का उद्देश्य
लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बताया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन अपने देश के लिए सच्ची भावना होना आवश्यक है। जैसे इस कहानी में हमें पात्रों के माध्यम से पता चलता है।
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हूँ रामा! पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ
विलोल- चंचल, अस्थिर
विलीन- जो अदृश्य हो गया हो,
कजली- एक तरह का गीत या लोकगीत जो भादों की तीज में गाया जाता है
दुक्कड़- शहनाई के साथ बजाया जाने वाला एक तबले जैसा बाजा
दबती- लिहाज करना
गौनहरियों- गाने का पेशा करने वाली
दरगोड़े- पैरों से कुचलना या रौंदना। भाव यह है कि वह वस्तु बहुतायत से प्राप्त हो
वकोट- मुंह नोच लेना
अगोरलन- रखवाली करना
उतर- शोभा या रौनक घटना
अइने- और,इस प्रकार
बिथा- व्यथा
आबरवाँ- बहुत बारीक़ मलमल
निभृत- भरा हुआ, पूर्ण
कृशकाय- दुबले-पतले शरीर वाला
पार्श्व- दोनों तरफ
उन्माद-अत्यधिक प्रेम, पागलपन
मुखबर- वह मुलाज़िम जो अपराध स्वीकार कर सरकारी ग्वाह बन जाए और जिसे माफ़ी दे दी जाए
डाँका- लाँघना
मेघमाला- आंसुओं की झड़ी
कर्कशा- कठोर वाणी वाली स्त्री
कुख्यात- बड़ा अपराधी
उद्भ्रांत- भ्रमित चित्त, हैरान
आमोदित- प्रसन्न, आनंदित
आविर्भाव- प्रकट होना, उत्पत्ति
स्मित- धीमी हँसी
सुलभ- सरल,साधारण
आकृति- ढांचा, शक्ल
रोबिले- जिसका दबदबा या प्रभाव हो
तनिक- थोड़ा – सा, कम
चित्त- मन
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