उषा कविता की व्याख्या कक्षा 12 चैप्टर 6 – Usha Kavita Class 12 Summary
Table of content
- शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय
- उषा कविता का सारांश
- उषा कविता
- उषा कविता की व्याख्या
- उषा कविता के प्रश्न उत्तर
- कठिन शब्द और उनके अर्थ
शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय- SHAMSHER BAHADUR SINGH JI KA JEEVAN PARICHAY
कवि शमशेर बहादुर सिंह जी को नई कविता के समर्थक के रूप में पहचाना जाता है। कवि शमशेर बहादुर सिंह जी का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ था। कहा जाता है कि देहरादून में ही इनकी प्रारंभिक शिक्षा आरंभ हुई थी, तथा इन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
कवि शमशेर बहादुर सिंह जी चित्रकला में भी बहुत ज्यादा माहिर थे। इन्होंने चित्रकार का प्रशिक्षण प्रसिद्ध चित्रकार उकील बंधुओं से लिया।
रचनाएं- कवि शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार है-
इतने पास अपने, बात बोलेगी इत्यादि।
कवि शमशेर बहादुर सिंह जी ने उर्दू के हिंदी कोश का भी संपादन किया था।
सम्मान- साहित्य अकादमी के सम्मान से भी इन्हें पुरस्कृत किया गया है।
कवि शमशेर बहादुर सिंह जी का अंतिम समय अहमदाबाद में बीता था। सन् 1993 में उनका स्वर्गवास हो गया।
उषा कविता का सारांश- Usha Kavita Class 12 Summary
उषा कविता का सारांश – सूर्योदय के ठीक पहले प्रकृति का जो दृश्य होता है, उस दृश्य को चित्रित करने के लिए कवि ने ‘उषा कविता’ लिखी है। इस संपूर्ण कविता में कवि ने प्रकृति का बहुत ही अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है। सूर्योदय से पूर्व प्रकृति का दृश्य कैसा होता है, इस कविता के माध्यम से हमें भली-भांति पता चलेगा।
उषा कविता के अनुसार कवि को सुबह का रंग ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी गृहिणी ने अपने चूल्हे को राख से लीप दिया हो और जब सूर्य अपनी लालिमा संपूर्ण पृथ्वी पर फैलाता है, उस वक्त कवि को वह लालिमा ऐसी प्रतीत होती है, मानो काले सिलबट्टे पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी(रेतीली मिट्टी) लगा दी हो।
अंत में कवि कहते हैं कि जब सूर्य पूरी तरह से उदय हो जाता है, तब भोर का वह सुंदर दृश्य ना जाने किस जादू के कारण गायब हो जाता है। बस इसी बात का चित्र प्रस्तुत कविता उषा में किया गया है।
उषा कविता- USHA Kavita
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।
उषा कविता की व्याख्या- USHA POEM LINE BY LINE EXPLANATION
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
उषा कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-6 कविता ‘उषा’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने प्रकृति का सुदंर चित्रण किया है।
उषा कविता की व्याख्या: प्रस्तुत काव्य पंक्तियां कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता उषा से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। कवि सूर्य के उदय होने से पूर्व के दृश्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह आकाश नीले शंख जैसा प्रतीत होता है। जिस तरह से घर की औरतें सुबह उठकर अपना चूल्हा मिट्टी से लीपती हैं, ठीक उसी तरह से यह संपूर्ण आकाश ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी ने इस आकाश को भी राख से लीप दिया है।
उषा कविता का विशेष:-
1. ‘शंख जैसे’ में उपमा अलंकार है।
2. सरल और सहज भाषा का प्रयोग हुआ है।
3. प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।
4. गाँव के वातावरण का बहुत सुंदर वर्णन किया है।
कठिन शब्द- नभ– आकाश।
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
उषा कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-6 कविता ‘उषा’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने सूर्योदय का सुंदर वर्णन किया है।
उषा कविता की व्याख्या: प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि प्रातः काल का वर्णन करते हुए कहते हैं, कि जैसे-जैसे सूर्य उदय होता है और अपने लालिमा को संपूर्ण पृथ्वी पर बिखेरता है, वैसे-वैसे ही आकाश का रंग बदलने लगता है। प्रकृति को सूर्य की लालिमा उस वक्त ऐसे प्रतीत होती है, मानो किसी ने काले रंग के सिल को लाल केसर से धोकर साफ कर दिया हो।
काले सिल कहने का तात्पर्य रात के अंधेरे से है, जिसे सूरज रुपी रोशनी ने साफ किया है। कवि फिर कहते हैं कि मुझे उस वक्त आकाश ऐसा लगता है, मानो किसी ने काले रंग के स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी (रेतीली मिट्टी) का प्रयोग किया हो।
कवि को काली अंधेरी रात स्लेट के समान लगती है और उन्होंने सुबह की लालिमा को लाल खड़िया मिट्टी(रेतीली मिट्टी) के रूप में प्रस्तुत किया है।
उषा कविता का विशेष:-
1. सरल और सहज भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. इन पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
कठिन शब्द- सिल– जिस पर मसाला पीस आ जाता है, मल देना– लगाना।
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।
उषा कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-6 कविता ‘उषा’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने सुबह के दृश्य का वर्णन किया है।
उषा कविता की व्याख्या:- प्रस्तुत कविता के अंतिम भाग में कवि ने सुबह के बदलते दृश्य का वर्णन करते हुए कहा है कि मुझे सुबह का दृश्य सबसे ज्यादा सुंदर लगता है। नीले आकाश का धीरे-धीरे लाल रंग में परिवर्तित होना। यह सब कुछ ऐसा लगता है मानो किसी ने प्रकृति पर अपना जादू चला कर सुंदर दृश्य को धीरे-धीरे बदला हो।
उषा कविता का विशेष:-
1. नील जल में ……..जैसे हिल रही हो। में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
2. सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।
कठिन शब्द- उषा– सुबह।
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