Table of Content:
1. कबीर दास का जीवन परिचय
2. कबीर के पद का सारांश
3. कबीर के पद कविता
4. हम तौ एक करि जांनां भावार्थ
5. सतों देखत जग बौराना भावार्थ
6. कबीर के पद प्रश्न अभ्यास
7. Class 11 Hindi Aroh Chapters Summary
कबीर का जीवन परिचय – Kabir ka jeevan parichay
कबीर का जन्म 1398 ई में वाराणसी के लहरतारा में हुआ था। उनकी माता का नाम ‘नीमा’ और पिता का नाम ‘नीरू’ था। कबीर के जन्म के बारे में कोई एक राय निश्चित नहीं है।
कहा जाता है कि कबीर नीमा और नीरू की अपनी संतान नहीं थे , उन्हें वो लहरतारा तालाब के पास पड़े हुए मिले थे। उन्हें वो अपने घर ले आए और अपना पुत्र मान लिया। कबीर की रचित पंक्तियों एवं किंवदंतियों से पता चलता है कि वो निरक्षर थे।
उन्हें जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ वो सब सत्संग और देशाटन आदि से प्राप्त हुआ। और उन्होंने उसी ज्ञान को प्रमुखता दी जो उन्हें आंखो देखे सत्य और अनुभव से प्राप्त हुआ। वे जाति , संप्रदाय , वर्ण आदि द्वारा किए जाने वाले भेदभाव को नहीं मानते थे बल्कि प्रेम, समानता एवं सद्भाव का समर्थन करते थे।
कबीर हिन्दू-मुसलमान जैसे धर्म भेद को नहीं मानते थे बल्कि दोनों धर्मों के सत्संग किया करते थे और उनकी अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया करते थे। वो कर्मकांड के घोर विरोधी थे और एक ही ईश्वर को मानते थे।
कबीर भक्तिकाल की निर्गुणधारा के कवि हैं। कबीर की वाणी के संग्रह को ‘बीजक’ नाम से जानते हैं। बीजक के तीन भाग हैं रमैनी , सबद और साखी। कबीर मित्र,माता,पिता आदि में ही परमात्मा को देखते थे।
कबीर शान्तिप्रिय थे एवं सत्य और अहिंसा के समर्थक थे। समस्त संत कवियों में कबीर का स्थान अद्वितीय है। कबीर का पूरा जीवन काशी में ही बीता पर अपने अंतिम समय में ना चाहते हुए भी वो मगहर चले गए थे। मगहर में ही 119 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।
कबीर के पद कविता का सारांश – Kabir ke pad poem summary
प्रस्तुत पदों में कवि ने संसार में परमात्मा की व्यापकता की व्याख्या की है। वो कहते हैं कि परमात्मा हर एक के हृदय में विद्यमान है, परमात्मा सृष्टि के कण कण में व्याप्त है। परमात्मा उस ज्योति के समान है जिसका प्रकाश सम्पूर्ण संसार में फैला हुआ है और जिसे कोई रोक नहीं सकता।
संसार के लोग आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं किन्तु कबीर ने दोनों को एक ही माना है। इस बात को समझाने के लिए कवि ने विभिन्न उदाहरणों का उपयोग किया है।
इसके लिए वो कभी पवन कभी प्रकाश तो कभी लकड़ी और बढ़ई का उदाहरण देते हैं। कबीर का मानना है कि माया के कारण इनमें अंतर दिखाई देता है वास्तव इनमें कोई अंतर नहीं है।
कबीर कहते हैं कि संसार के लोग पागल हो गए हैं और इसलिए अपने अंदर कि शक्ति को अनदेखा कर बाहरी आडंबर के पीछे भाग रहे हैं। सच का विरोध और झूठ का विश्वास करते हैं।
राम-रहीम के नाम पर लड़ने वाले ईश्वर का मर्म नहीं जान सकते। कबीर ने अपने इन पदों में नियम, धर्म, छाप , तिलक के पीछे लड़ने वालों की निंदा की है।
कबीर के पद कविता – Kabir ke pad poem
पद 1
हम तौ एक करि जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।
पद 2
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।
कबीर के पद कविता का भावार्थ – Kabir ke pad poem explanation
हम तौ एक करि जांना ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।
कबीर के पद प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित पाठ-11 कविता ‘कबीर के पद’ से ली गयी हैं। इस पद के रचियता कबीरदास जी हैं। कबीर किसी भी प्रकार का जाति, धर्म के अधार पर भेदभाव नहीं करते। उनका मानना है कि आत्मा और परमात्मा एक ही है।
कबीर के पद भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि वो उस परमात्मा को जानते हैं जो एक है और जिन्होंने सम्पूर्ण संसार की रचना की है और वो संसार के कण कण में व्याप्त हैं। जो अज्ञानी हैं वो परमात्मा और संसार को अलग-अलग मानते हैं।
वे कहते हैं कि संसार में एक ही वायु एक ही जल और एक ही परमात्मा का प्रकाश फैला हुआ है। इन पंक्तियों में कबीर ने कुम्हार की तुलना परमात्मा से की है , वे कहते हैं कि जिस प्रकार कुम्हार एक ही मिट्टी से तरह-तरह के आकार गढ़ता है और बर्तनों का निर्माण करता है ठीक उसी प्रकार परमात्मा ने भी एक ही मिट्टी से हम सभी की रचना की है।
जैसे एक बढई सिर्फ लकड़ी को ही काट सकता है उस अग्नि को नहीं काट सकता जो उसमें समाई हुई है।ठीक उसी प्रकार मृत्यु के बाद सिर्फ शरीर मरता है उसमें समाई आत्मा कभी नहीं मरती। वे कहते हैं कि इस संसार की माया लोगों को आकर्षित करती है उन्हें अपनी ओर खींचती है, और इंसान इन क्षणभंगुर वस्तुओं में फँसते चले जाते हैं और उनपर गर्व भी करते हैं ।
कबीर कहते हैं कि लोगों को सांसारिक मोहमाया से मुक्त होकर एक ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। जो इस सांसारिक मोहपाश से मुक्त हो जाता है उसे किसी भी चीज़ का भय नहीं रहता।
कबीर के पद विशेष:
1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
2. कवि ने कुम्हार की तुलना परमात्मा से की है।
3. संधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है।
4. इस पद संगीतात्मकता है।
5. कबीर जी ने आत्मा और परमात्मा को एक ही बताया है।
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।
कबीर के पद प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित पाठ-11 कविता ‘कबीर के पद’ से ली गयी हैं। इस पद के रचियता कबीरदास जी हैं। इन पंक्तियों में कबीर ने बाहरी दुनिया के दिखावों पर प्रहार किया है।
कबीर के पद भावार्थ: वे कहते हैं कि संसार के लोग पागल हो गए हैं, सच सुनकर मारने को दौड़ते हैं और झूठ पर इनको पूरा विश्वास हो जाता है। कबीर कहते हैं कि उन्होंने ऐसे साधु संतों को देखा है जो व्रत-उपवास रखते हैं, नियमों का पालन करते हैं, अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुनी करते हैं और धर्म के नाम पर दिखावा करते हैं, जिसमें कि कुछ भी सच्चाई नहीं होती है।
कबीर ने बहुत से पीर -फकीर देखे हैं जो कि धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हैं और अपने मुरीदों को परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग बताते हैं , ऐसे लोग खुद अज्ञानी होते हैं इसलिए वास्तविकता से परे बाहरी आडंबरों में उलझे रहते हैं।
ये लोग आसन लगाकर समाधि में बैठे रहते हैं पत्थर की मूर्तियों वृक्षों को पूजते हैं तीर्थ आदि पर जाते हैं और सोचते हैं कि वो ईश्वर के सच्चे भक्त हैं और ऐसा करके अपने अभिमान को संतुष्ट करते रहते हैं पर सच्चाई तो यह है कि यह सब बस सांसारिक माया है वास्तविकता तो कुछ और ही है।
कबीर कहते हैं कि कुछ लोग टीका चन्दन लगाते हैं गले में माला सर पर टोपी पहनते हैं और खुद को ज्ञानी समझते हैं और दूसरों को ज्ञान की बातें बताते हैं जबकि असल में तो उन्हें खुद ही कुछ भी ज्ञान नहीं होता है।
कबीर आगे कहते हैं कि हिन्दू को राम प्रिय लगता है मुसलमान को रहीम प्रिय लगता है और धर्म के नाम पर दोनों एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं पर अपने अंदर कोई नहीं झाँकता है।
ये दोनों ही मूर्ख हैं क्योंकि जिसे ये भक्ति समझते हैं वो तो भक्ति है ही नहीं , इन्होंने ईश्वर को कभी समझा ही नहीं। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग खुद तो अज्ञानी होते हैं परंतु दूसरों को धर्म का ज्ञान बांटते फिरते हैं।
ऐसे गुरुओं के साथ-साथ उनके शिष्य भी मूर्ख ही होते हैं जो कि बाद में पछताते हैं। इस प्रकार कवि कहते हैं कि परमात्मा एक है और अगर परमात्मा को पाना है तो सत्य और प्रेम का रास्ता अपनाओ और दिखावे की दुनिया से दूर रहो।
कबीर के पद विशेष:
1. इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
2. घर घर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. संधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है।
4. इस पद संगीतात्मकता है।
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🤙🤙💯
Good poem