विद्यापति के पद | Vidyapati Ke Pad Class 12 Question Answer

Hindi Antra Class 12 Chapter 9 Vidyapati Ke Pad Question Answer

विद्यापति के पद प्रश्न अभ्यास:

विद्यापति के पद प्रश्न 1. प्रियतमा के दुःख के क्या कारण हैं?

विद्यापति के पद उत्तर: प्रियतमा अर्थात राधा दुःखी है क्योंकि उनका प्रियतम गोकुल छोड़ कर मथुरा जाकर बस गया है, और राधा उनके वियोग में तड़प रही हैं। सावन मास आ चुका है और ऐसे में राधा को कृष्ण की याद आ रही है। वह बड़े से भवन में अकेले नहीं रह पा रही है। नायक परदेस जाकर उसे भूल गया है और वापस आने का नाम ही नहीं ले रहा है। इन सब कारणों से नायिका अत्यंत दुःखी है। 

विद्यापति के पद प्रश्न 2. कवि नयन न तिरपित भेलके माध्यम से विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है?


विद्यापति के पद उत्तर: नायिका ने अपने पूरे जीवन काल में नायक के मनोहर रूप का दर्शन किया है , परंतु ये प्रेम होता ही ऐसा है कि कभी हृदय को तृप्ति ही नहीं मिलती। यही नायिका के साथ हो रहा है वो अपने प्रियतम को जितना भी देखे उसे कम ही लगता है। जितना भी सुने कम ही लगता है।

वो अपने प्रेम का जितना बखान करती है उसका प्रेम उतना ही नवीन होता जाता है। प्रेम में व्यक्ति कभी तृप्त नहीं हो पाता। जो लोग रसभोग करते रहते हैं वो भी इसके मर्म को कभी समझ नहीं पाते। इस प्रकार कवि इस पंक्ति के माध्यम से विरहिणी नायिका के अतृप्त हृदय की स्थिति को दर्शाना चाहता है। 

विद्यापति के पद प्रश्न 3. नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने के कारण अपने शब्दों में लिखिए।

विद्यापति के पद उत्तर: नायिका का अपने प्रियतम से प्रेम अतुलनीय है। उसने अपने पूरे जीवन में कृष्ण के मनोहारी रूप को निहारा है। फिर भी उसे यह कम ही लगता है अपने प्रियतम का मनमोहक रूप देखने को उसके नेत्र तरसते हैं। नायिका ने अपने पूरे जीवन काल में कृष्ण की मधुर बातें सुनी हैं, उसके जितनी मधुर बातें उसके कानों में कहीं और से कभी पड़ी ही नहीं।

फिर भी वह उससे कभी तृप्त नहीं हुई। उसके कान आज भी अपने प्रेमी की ध्वनि सुनने को तड़पते हैं। उसने अपने हृदय में कृष्ण को इतने समय तक सँजोकर रखा फिर भी उसका मन कभी तृप्त नहीं हुआ। प्रेम ऐसा ही होता है। कोई भी प्रेमी आज तक तृप्त नहीं हो पाया।

विद्यापति के पद प्रश्न 4. ‘सेह फिरत अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होएसे लेखक का क्या आशय है?

विद्यापति के पद उत्तर: इस पंक्ति में कवि ने नायिका के प्रेम का वर्णन किया है। राधा और कृष्ण का प्रेम इतना गहरा है कि उसका बखान कर पाना संभव नहीं है। जब राधा की सखियाँ उसे अपने प्रेम का वर्णन करने को कहती हैं तो राधा कहती हैं कि वो उस प्रेम के बारे में क्या बताए जिसे वो स्वयं ही समझ नहीं पाती। वो अपने प्रेम का जितना बखान करती जाती है उसका प्रेम उतना ही तिल तिल नवीन होता जाता है।

अपने प्रियतम को देखकर उसकी आँखें कभी तृप्त नहीं होती, उसकी मधुर ध्वनि सुनकर कान कभी तृप्त नहीं होते। उसे अपने हृदय में भरकर भी वो कभी तृप्त नहीं हो सकी। इस प्रकार इस पंक्ति में कवि का आशय यह है कि प्रेम ऐसा ही होता है, प्रेम कभी पुराना नहीं होता हमेशा नवीन रहता है। लाखों लोग प्रेम करते हैं पर कोई भी प्रेम से तृप्त नहीं हो पाता। प्रेम का जितना ही बखान करो उसमें उतना ही नयापन आता जाता है।  

विद्यापति के पद प्रश्न 5. कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है?

विद्यापति के पद उत्तर: नायिका जब भी कोयल की कूक सुनती है तो उसे अपने प्रियतम का विरह असहनीय हो जाता है , वह जब भी भँवरों की गुंजन सुनती है तो वह अपने प्रेमी से मिलन को तड़पने लगती है। परंतु नायिका का अभी अपने प्रेमी से मिलन संभव नहीं है अतः वह अपनी आँखों को बंद कर लेती है, ताकि उसे खिलते हुए फूल न दिखें।

कोयल और भँवरों की गुंजन सुनकर अपने कानों को बंद कर लेती है ताकि उसे उनकी ध्वनि सुनाई न दे सके। कोयल की कूक, भँवरों का गुंजन ये सब मिलन के प्रतीक हैं और इनको सुनकर नायिका को बहुत कष्ट होता है। 

विद्यापति के पद प्रश्न 6. कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम को ढूँढ़ने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है?

विद्यापति के पद उत्तर: प्रियतम को चारों तरफ ढूँढने की मनोदशा को कवि ने इन शब्दों में व्यक्त किया है:

कातर दिठि करि, चौदिस हेरी-हेरि
नयन गरए जल धारा। 

अर्थात, नायिका नायक को हर तरफ ढूंढती है कि शायद वो कहीं दिख जाए परंतु उसको न पाकर व्यथित हो उठती है और उसके नेत्रों से लगातार आँसू बहते रहते हैं। जिस प्रकार चौदस का चंद्रमा दिन पर दिन क्षीण होता जाता है ठीक उसी प्रकार नायिका भी अपने प्रियतम की विरह व्यथा में दिन पर दिन क्षीण होती जा रही है। 

विद्यापति के पद प्रश्न 7. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
तिरपित, छन, बिदगध, निहारल, पिरित, साओन, अपजस, छिन, तोहारा, कातिक

विद्यापति के पद उत्तर:    

तिरपित- संतुष्टि 
छन- क्षण
बिदगध- विदग्ध 
निहारल- निहारा 
पिरित- प्रीति
साओन- सावन
अपजस- अपयश
छिन- क्षीण
तोहारा- तुम्हारा
कातिक- कार्तिक 

विद्यापति के पद प्रश्न 8. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
      सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।

(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
      सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल स्रुति पथ परस न गेल।।

(ग) कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान।
     कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।

विद्यापति के पद उत्तर: (क) इन पंक्तियों में कवि का आशय है कि नायिका का प्रियतम परदेस गया हुआ है और वह उसके विरह में तड़प रही है। वह बड़े से भवन में अकेली नहीं रह पाती है। वह बड़ा-सा घर उसे काटने को दौड़ता है। और वह अपने प्रेमी के विरह में इतनी पीड़ित है कि उसको इस संसार में कोई भी समझ नहीं सकता।

इस प्रकार इन पंक्तियों का आशय यह है कि दो प्रगाढ़ प्रेमियों के विरह की वेदना को समझ पाना संसार में किसी के बस की बात नहीं है। 

(ख) इन पंक्तियों में कवि ने नायिका के अतृप्त मन की व्यथा को व्यक्त किया है। नायिका ने अपने पूरे जीवन काल में नायक के सुंदर मुख को निहारा है फिर भी उसके नयन तृप्त नहीं  होते हैं , वो अभी भी अपने प्रेमी के दर्शन को तड़पती है। अपने पूरे जीवन में कृष्ण की मधुर बातों को सुना है, इतनी मधुर बातें उसके कानों में कहीं और से कभी पड़ी ही नहीं, फिर भी वो उनकी ध्वनि सुनने को तरसती है। 

इस प्रकार इन पंक्तियों का आशय यह है कि प्रेम में व्यक्ति कभी भी तृप्त नहीं हो सकता।

(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका की सखी कृष्ण को नायिका की दशा बता रही है। वो कहती है कि कमल के समान सुंदर मुख वाली राधा जब भी सुंदर खिले हुए फूलों को देखती है तो वह अपनी आँखें बन्द कर लेती है। कोयल की कूक भँवरों का गुंजन उससे सहन नहीं होता है, उनको सुनकर वह अपने कानों को हाथों से बंद कर लेती है।

इन पंक्तियों का आशय यह है कि खिलते हुए फूल, कोयल की कूक, भँवरों की गूंज ये सब प्रेमियों के मिलन का प्रतीक है और इन सबको देख कर नायिका को नायक की और भी ज्यादा याद आने लगती है इसलिए वह अपनी आँखों और अपने कानों को बंद कर लेती है। 

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