कबीर के पद प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिये हैं?
उत्तर– कबीर मानते हैं कि ईश्वर एक ही है और इसके समर्थन के लिए उन्होंने कई तर्क दिये हैं। वे कहते हैं कि वायु,जल, पृथ्वी,अग्नि और आकाश इन पाँच तत्वों से मिलकर मनुष्य की रचना हुई है।
इन सब की रचना एक ही मिट्टी से हुई है। परमात्मा एक है और उसी एक परमात्मा ने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है। सारे संसार में उसी परमात्मा का प्रकाश विद्यमान है।
प्रश्न 2. मानव शरीर का निर्माण किन पाँच तत्वों से हुआ है?
उत्तर– कबीर जी कहते हैं कि मानव शरीर का निर्माण वायु, अग्नि, जल, आकाश और धरती इन पाँच तत्वों से हुआ है। और इन पांचों तत्वों का निर्माण परमात्मा ने एक ही मिट्टी से किया है।
प्रश्न 3. जैसे बाढी काष्ट ही काटे अगिनी ना काटे कोई ।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरुपै सोई ।
इसके आधार पर बताइये कि कबीर कि दृष्टि में इश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर जी कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी तो काट सकता है पर उसके अंदर की आग नहीं काट सकता उसी प्रकार मनुष्य का शरीर नश्वर है, उसका शरीर तो मर जाता है परंतु उसके अंदर की आत्मा हमेशा जीवित रहती है।
अंदर जो आत्मा होती है उसमें भी परमात्मा का निवास होता है।
प्रश्न 4. कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर– कबीर जी मानते हैं कि जो लोग बाहरी आडंबर और मोहमाया से मुक्त हो जाते हैं उन्हें किसी भी बात का भय नहीं होता है। कबीर स्वयं भी इन सांसारिक आडंबरों से मुक्त हैं और इसीलिए वो भयमुक्त भी हो चुके हैं।
उन्हें सांसारिक बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता और इसीलिए वो खुद को दीवाना कह रहे हैं।
प्रश्न 5. कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि संसार बौरा गया है यानि कि पागल हो गया है। इसको सच सुनकर गुस्सा आता है मारने को दौड़ता है और झूठ पर विश्वास करता है। नियम के नाम पर व्रत उपवास करता है।
माला , टोपी ,तिलक ,छाप आदि पहनता है और पत्थर एवं वृक्ष की पूजा करता है। गीता, कुरान पढ़कर अपने आप को विद्वान समझता है और राम रहीम के नाम पर आपस में लड़ाई करता है। खुद अज्ञानी होकर दूसरों को परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग बताता फिरता है।
प्रश्न 6. कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि जो लोग बाहरी दिखावा करते हैं वो लोग अंदर से तो अज्ञानी होते हैं पर दूसरों को ज्ञान की बातें सीखाते फिरते हैं। खुद तो परमात्मा का ज्ञान नहीं होता पर दूसरों को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताते हैं।
आसन लगा कर ध्यान साधना करते हैं पर अपने अंदर के परमात्मा से अनजान होते हैं। धार्मिक किताबों और छाप तिलक में ईश्वर को ढूंढते हैं जबकि वो तो हर मनुष्य के अंदर ही होता है।
प्रश्न 7. अज्ञानी गुरुओं के शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर– अज्ञानी गुरुओं के शरण में जो भी जाते हैं वो भी मूर्ख बन कर रह जाते हैं । सांसारिक मोहमाया और आडंबर में उलझ जाते हैं। आधे अधूरे ज्ञान की वजह से ऐसे शिष्य भी अपने गुरुओं की ही तरह पाखंडी बन जाते हैं और अंत में पछताते हैं।
प्रश्न 8. बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं(आत्म)को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गयी है? उन्हें अपने शब्दों में लिखे ।
उत्तर– बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गयी है :
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
लोग आजकल टोपी पहनते हैं माला पहनते हैं माथे पर छाप और तिलक लगाते हैं। ये वो लोग होते हैं जो बाहरी दिखावों में विश्वास रखते हैं। ये अपनी आत्मा से अनजान होते हैं अज्ञानी होते हैं और दूसरों को ज्ञान देने और ईश्वर से मिलाने की बातें करते हैं। ऐसे दिखावों से न तो आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और ना ही ईश्वर की।
Tags: