Table of content
- रघुवीर सहाय का जीवन परिचय
- वसंत आया कविता का सारांश
- वसंत आया कविता
- वसंत आया कविता की व्याख्या
- वसंत आया प्रश्न अभ्यास
- कठिन शब्द और उनके अर्थ
- Class 12 Hindi Antra All Chapter
रघुवीर सहाय का जीवन परिचय – Raghuveer Sahay ka Jeevan Parichay
कवि रघुवीर सहाय का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनकी पूरी शिक्षा लखनऊ में ही पूर्ण हुई। लखनऊ से ही इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। यह पेशे से पत्रकार थे। अपनी पत्रकारिता के जीवन के शुरुआती दौर में इन्होंने प्रतीक में सहायक संपादक के रूप में कार्य किया। इसके पश्चात वे आकाशवाणी के समाचार विभाग में कार्यरत रहे।
रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के इतिहास के नई कविता के कवि के रूप में जाने जाते हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरे तार सप्तक में रघुवीर सहाय की कुछ रचनाएं संकलित हुई थीं।
प्रमुख रचनाएं- रघुवीर सहाय की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं–
- आत्महत्या के विरुद्ध
- हंसो हंसो जल्दी हंसो
- लोग भूल गए हैं आदि।
इनको इनकी सुप्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। रघुवीर सहाय जी को समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माना जाता है। इनकी कविताएं में मानवीय रिश्तों को एक सूत्र में बांधने का चित्रण मिलता है साथ ही साथ इनकी कविता में अन्याय एवं गुलामी के खिलाफ आवाज उठाने का भी दृश्य दिखाई देता है।
वसंत आया कविता का सारांश – Vasant Aya Poem Summary
‘वसंत आया’ कविता के माध्यम से कवि रघुवीर सहाय यह कहना चाहते हैं कि आजकल मनुष्य अपना संबंध प्रकृति से तोड़ रहे हैं। वसंत ऋतु का आना अब लोग वास्तव में अनुभव करने के स्थान पर कैलेंडर में देखकर ही अनुभव कर लेते हैं।
लोग आजकल कुछ अलग ही दुनिया में खोए रहते हैं। लोगों को फिर से उसी दुनिया में वापस लाने के लिए कवि ने इस कविता को लिखा है। ताकि लोग इस कविता को पढ़कर फिर से वसंत ऋतु में पहुंच जाएं। जिनसे उन्हें यह अनुभव हो कि वास्तव में वह वसंत आया कविता नहीं बल्कि वसंत ऋतु का ही परम आनंद उठा रहे हैं।
वसंत आया कविता – Vasant Aya Poem
जैसे बहन ‘दा’ कहती है
ऐसे किसी बंगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोइ चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराये पांव तले
ऊंचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराये पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहायी हो-
खिली हुई हवा आयी फिरकी-सी आयी, चली गयी.
ऐसे, फ़ुटपाथ पर चलते-चलते-चलते
कल मैंने जाना कि वसंत आया.
और यह कैलेण्डर से मालूम था
अमुक दिन वार मदनमहीने के होवेगी पंचमी
दफ़्तर में छुट्टी थी- यह था प्रमाण
और कविताएं पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फदे दूर के विदेश के
वे नंदनवन होंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूंगा
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया.
वसंत आया कविता की व्याख्या – Vasant Aya poem line by line explanation
जैसे बहन ‘दा’ कहती है
ऐसे किसी बंगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोइ चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराये पांव तले
ऊंचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराये पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहायी हो-
खिली हुई हवा आयी फिरकी-सी आयी, चली गयी.
ऐसे, फ़ुटपाथ पर चलते-चलते-चलते
कल मैंने जाना कि वसंत आया।
वसंत आया कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-6 कविता ‘वसंत आया’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता रघुवीर सहाय जी हैं। इस कविता में कवि ने वसंत ऋतु का वर्णन किया है।
वसंत आया कविता की व्याख्या – प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि किस तरीके से उन्हें वसंत के आने का अनुभव हुआ। इस संबंध में उन्होंने इस कविता के माध्यम से बताया है।
सुबह की सैर करते हुए कवि को अशोक के पेड़ पर एक चिड़िया की आवाज आई और उनको यह आवाज बिल्कुल अपनी छोटी बहन की तरह लगी। जिस तरीके से उनकी छोटी बहन उनको ‘दा’ यानि भैया कहकर पुकारती थी, ठीक उसी तरह ही चिड़िया पेड़ पर बैठकर घूम रही थी। कवि को सुबह की सैर करते हुए जमीन पर कुछ पीले सूखे पत्ते दिखाई पड़े जो कवि के उन पत्तों पर पैर रखने से चुरमुराकर आवाज करने लगे।
फिर कवि कहते हैं जिस तरीके से कोई व्यक्ति सुबह नहाता है। उसी तरीके से ताजगी इस हवा में भी है। इन हवाओं को देखकर कवि को ऐसा लगता है, मानो यह हवा सुबह गर्म-गर्म पानी से नहाकर बिल्कुल ताजी हो गई है। इस तरीके से कवि को फुटपाथ पर चलते हुए ऐसा अनुभव हुआ कि मानो वसंत आ चुका है।
वसंत आया कविता का विशेष:-
1. सरल खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. फिरकी-सी आयी में उपमा अलंकार है।
3. बड़े- बड़े, चलते-चलते में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. छंद मुक्त कविता है।
5. वसंत ऋतु का वर्णन किया है।
और यह कैलेण्डर से मालूम था
अमुक दिन वार मदनमहीने के होवेगी पंचमी
दफ़्तर में छुट्टी थी- यह था प्रमाण
और कविताएं पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फदे दूर के विदेश के
वे नंदनवन होंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूंगा
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।
वसंत आया कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ पाठ-6 कविता ‘वसंत आया’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता रघुवीर सहाय जी हैं। इस काव्यांश में कवि रघुवीर सहाय ने प्रकृति की उपेक्षा पर व्यंग्य किया है।
वसंत आया कविता की व्याख्या – इस काव्यांश में कवि कहते हैं कि इस बार उन्हें वसंत के आने का पता कैलेंडर से ही पता चल गया था कि उस दिन पंचमी है और इसका उचित प्रमाण उनकी दफ्तर की छुट्टियों के माध्यम से ही पता चल गया कि सचमुच बसंत आ चुका है।
कहने का तात्पर्य यह है कि वसंत पंचमी के दिन जो छुट्टियां मिलती है। उस छुट्टी के माध्यम से उन्हें यह ज्ञात हो चुका था कि वसंत आ चुका है। फिर कवि कहते हैं कि कविताएं पढ़ते-पढ़ते उन्हें यह भी ज्ञात हो ही चुका है कि अब लाल- लाल पलाश के फूल खिलने लगेंगे। आम के पेड़ में अब बौर निकल आएंगे।
इतना ही नहीं जब बसंत आता है, तो ना सिर्फ पृथ्वी की बल्कि उस लोक में भी सुंदरता छा जाती है, जो लोक देवराज इंद्र का है। भौरें, मधुमक्खी यह सब वसंत के आने का उत्सव भी मनाने लगेंगे। मधुमक्खी वसंत ऋतु में फूल का रस पीकर अपने जीवन का कर्तव्य निभाने लगेंगे।
अंत में कवि रघुवीर सहाय जी कहते हैं कि मुझे इस बात का कभी कल्पना में भी ख्याल नहीं आया कि मेरे जीवन में एक ऐसा दिन आएगा, जिस दिन मुझे वसंत ऋतु के आने की खबर कैलेंडर के माध्यम से पता चलेगी।
वसन्त आया कविता का विशेष:-
1. सरल खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. छंद मुक्त रचना है।
3. दहर-दहर दहकेंगे, रंग रास में अनुप्रास अलंकार है।
4. अपना-अपना, दहर- दहर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
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आया वसंत कविता व्याख्या