Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 Summary
रहीम के दोहे – Rahim Ke Dohe
रहीम का जीवन परिचय- Rahim Ka Jeevan Parichay : रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। इनका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर में हुआ। ये बैरम खां के पुत्र थे। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे और अकबर के दरबार में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे। अकबरी दरबार के हिन्दी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अरबी, फ़ारसी, संस्कृत, हिन्दी आदि का गहन अध्ययन किया। राज-दरबार में अनेक पदों पर कार्य करते हुए भी साहित्य में उनकी रूचि बनी रही। उनके काव्य में नीति, भक्ति–प्रेम तथा श्रृंगार आदि के दोहों का समावेश है।
रहीम ने अपने अनुभवों को सरल और सहज शैली में प्रस्तुत किया। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने ब्रज भाषा, पूर्वी अवधी और खड़ी बोली का उपयोग अपने काव्यों में किया। गहरी से गहरी बात भी उन्होंने बड़ी सरलता से अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। मुस्लिम धर्म के अनुयायी होते हुए भी रहीम ने अपनी काव्य रचना द्वारा हिन्दी साहित्य की जो सेवा की वह अद्भुत है। रहीम की कई रचनाएँ दोहों के रूप में प्रसिद्ध हैं। रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
रहीम के दोहे का अर्थ- Rahim Ke Dohe Ka Arth: प्रस्तुत दोहों में रहीम जी ने हमें नीति व ज्ञान का अनमोल पाठ पढ़ाया है। उनके अनुसार संसार में मौजूद हर वस्तु-हर इंसान का अपना महत्व है। फिर चाहे छोटा हो या बड़ा, धनी हो या गरीब। उन्होंने हमें यह बताया है कि प्रेम का रिश्ता किसी धागे की तरह होता है, उसे बहुत संभाल कर रखना पड़ता है। अगर एक बार धागा टूट जाए, तो फिर जोड़ने पर उसमे गांठ पड़ जाती है, अर्थात रिश्ते टूटने के बाद भले ही दोबारा जुड़ जाएं, लेकिन लोगों में मन में कहीं ना कहीं कसक रह जाती है।
इसी प्रकार बाकी सारी पंक्तियों में रहीम जी ने यह बताया है कि हमें कैसे बर्ताव करना चाहिए। एक आदर्श जीवन जीने के लिए कैसे आचरण रखने चाहिए। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने हमें प्रेम-भाव से जीने का संदेश दिया है।
रहीम के दोहे- Rahim Ke Dohe
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
रहिमन निज संपति बिना, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित – Rahim Ke Dohe in With Meaning
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम के इन दोहों में रहीम जी ने हमें प्रेम की नाजुकता के बारे में बताया है। उनके अनुसार प्रेम का बंधन किसी नाज़ुक धागे की तरह होता है और इसे बहुत संभाल कर रखना चाहिए। हम बलपूर्वक किसी को प्रेम के बंधन में नहीं बाँध सकते। ज्यादा खिंचाव आने पर प्रेम रूपी धागा चटक कर टूट सकता है। प्रेम रूपी धागे यानि टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ना बेहद मुश्किल होता है। अगर हम कोशिशें करके प्रेम के रिश्ते को फिर से जोड़ लें, तब भी लोगों के मन में कोई कसक तो बनी ही रह जाती है। दूसरे शब्दों में, अगर एक बार किसी के मन में आपके प्रति प्यार की भावना मर गई, तो वह आपको दोबारा पहले जैसा प्यार नहीं कर सकता। कुछ न कुछ कमी तो रह ही जाती है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम के इन दोहों में हमें रहीम जी ने बहुत ही काम की सीख दी है। जिसके बारे में हम सब जानते हैं। रहीम जी इन पंक्तियों में कहते हैं कि अपने मन का दुःख हमें स्वयं तक ही रखना चाहिए। लोग ख़ुशी तो बाँट लेते हैं। परन्तु जब बात दुःख की आती है, तो वे आपका दुःख सुन तो अवश्य लेते हैं, लेकिन उसे बाँटते नहीं है। ना ही उसे कम करने का प्रयास करते हैं। बल्कि आपकी पीठ पीछे वे आपके दुःख का मज़ाक बनाकर हंसी उड़ाते हैं। इसीलिए हमें अपना दुःख कभी किसी को नहीं बताना चाहिए।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें यह शिक्षा देते हैं कि एक बार में एक ही काम करने चाहिए। हमें एक साथ कई सारे काम नहीं करने चाहिए। ऐसे में हमारे सारे काम अधूरे रह जाते हैं और कोई काम पूरा नहीं होता। एक काम के पूरा होने से कई सारे काम खुद ही पूरे हो जाते हैं। जिस तरह, किसी पौधे को फल-फूल देने लायक बनाने हेतु, हमें उसकी जड़ में पानी डालना पड़ता है। हम उसके तने या पत्तों पर पानी डालकर फल प्राप्त नहीं कर सकते। ठीक इसी प्रकार, हमें एक ही प्रभु की श्रृद्धापूर्वक आराधना करनी चाहिए। अगर हम अपनी आस्था-रूपी जल को अलग-अलग जगह व्यर्थ बहाएंगे, तो हमें कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
रहीम के दोहे भावार्थ : इन पंक्तियों में रहीम जी ने राम के वनवास के बारे में बताया है। जब उन्हें 14 वर्षों का वनवास मिला था, तो वे चित्रकूट जैसे घने जंगल में रहने के लिए बाध्य हुए थे। रहीम जी के अनुसार, इतने घने जंगल में वही रह सकता है, जो किसी विपदा में हो। नहीं तो, ऐसी परिस्थिति में कोई भी अपने मर्ज़ी से रहने नहीं आएगा।
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने हमें एक दोहे की महत्ता के बारे में बताया है। दोहे के चंद शब्दों में ही ढेर सारा ज्ञान भरा होता है, जो हमें जीवन की बहुत सारी महत्वपूर्ण सीख दे जाते हैं। जिस तरह, कोई नट कुंडली मारकर खुद को छोटा कर लेता है और उसके बाद ऊंचाई तक छलांग लगा लेता है। उसी तरह, एक दोहा भी कुछ ही शब्दों में हमें ढेर सारा ज्ञान दे जाता है।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम दास जी कहते हैं कि वह कीचड़ का थोड़ा-सा पानी भी धन्य है, जो कीचड़ में होने के बावजूद भी ना जाने कितने कीड़े-मकौड़ों की प्यास बुझा देता है। वहीँ दूसरी ओर, सागर का अपार जल जो किसी की भी प्यास नहीं बुझा सकता, कवि को किसी काम का नहीं लगता। यहाँ कवि ने एक ऐसे गरीब के बारे में कहा है, जिसके पास धन नहीं होने के बावजूद भी वह दूसरों की मदद करता है। साथ ही एक ऐसे अमीर के बारे में बताया है, जिसके पास ढेर सारा धन होने पर भी वह दूसरों की मदद नहीं करता।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
रहीम के दोहे भावार्थ : यहाँ पर कवि ने स्वार्थी मनुष्य के बारे में बताया है और उसे पशु से भी बदतर कहा है। हिरण एक पशु होने पर भी मधुर ध्वनि से मुग्ध होकर शिकारी पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देता है। जैसे कोई मनुष्य कला से प्रसन्न हो जाए, तो फिर वह धन के बारे में नहीं सोचता, अपितु वह अपना सारा धन कला पर न्योछावर कर देता है। परन्तु कुछ मनुष्य पशु से भी बदतर होते हैं, वे कला का लुत्फ़ तो उठा लेते हैं, परन्तु बदले में कुछ नहीं देते।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने हमें जीवन से संबंधित कई शिक्षाएँ दी हैं और उन्ही में से एक शिक्षा यह है कि हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि कोई बात बिगड़े नहीं। जिस प्रकार, अगर एक बार दूध फट जाए, तो फिर लाख कोशिशों के बावजूद भी हम उसे मथ कर माखन नहीं बना सकते। ठीक उसी प्रकार, अगर एक बार कोई बात बिगड़ जाए, तो हम उसे पहले जैसी ठीक कभी नहीं कर सकते हैं। इसलिए बात बिगड़ने से पहले ही हमें उसे संभाल लेना चाहिए।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने हमें इस दोहे में जो ज्ञान दिया है, उसे हमें हमेशा याद रखना चाहिए। ये पूरी जिंदगी हमारे काम आएगा। रहीम जी के अनुसार, हर वस्तु या व्यक्ति का अपना महत्व होता है, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा। हमें कभी भी किसी बड़े व्यक्ति या वस्तु के लिए छोटी वस्तु या व्यक्ति की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कवि कहते हैं कि जहाँ सुई का काम होता है, वहां पर तलवार कोई काम नहीं कर पाती, अर्थात तलवार के आकार में बड़े होने पर भी वह काम की साबित नहीं होती, जबकि सुई आकार में अपेक्षाकृत बहुत छोटी होकर भी कारगर साबित होती है। इसीलिए हमें कभी धन-संपत्ति, ऊँच-नीच व आकार के आधार पर किसी चीज़ की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
रहिमन निज संपति बिना, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमसे कह रहे हैं कि जब मुश्किल समय आता है, तो हमारी खुद की सम्पत्ति ही हमारी सहायता करती है। अर्थात हमें खुद की सहायता खुद ही करनी होती है, दूसरा कोई हमें उस विपत्ति से नहीं निकाल सकता। जिस प्रकार पानी के बिना कमल के फूल को सूर्य के जैसा तेजस्वी भी नहीं बचा पाता और वह मुरझा जाता है। उसी प्रकार बिना संपत्ति के मनुष्य का जीवन-निर्वाह हो पाना असंभव है।
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने अपने दोहों में जीवन के लिए जल के महत्व का वर्णन किया है। उनके अनुसार हमेशा पानी को हमेशा बचाकर रखना चाहिए। यह बहुमूल्य होता है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है। बिना पानी के हमें न मोती में चमक मिलेगी और न हम जीवित रह पाएंगे। यहाँ पर मनुष्य के संदर्भ में कवि ने मान-मर्यादा को पानी की तरह बताया है। जिस तरह पानी के बिना मोती की चमक चली जाती है, ठीक उसी तरह, एक मनुष्य की मान-मर्यादा भ्रष्ट हो जाने पर उसकी प्रतिष्ठा रूपी चमक खत्म हो जाती है।
Class IX Sparsh भाग 1: Hindi Sparsh Class 9 Chapters Summary
- Chapter 07- रैदास के पद अर्थ सहित | Raidas Ke Pad Class 9
- Chapter 08- रहीम के दोहे अर्थ सहित | Rahim Ke Dohe in Hindi With Meaning Class 9
- Chapter 09- आदमी नामा- नाजिर अकबराबादी | Aadmi Naama Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 10- एक फूल की चाह कविता अर्थ सहित | Ek Phul Ki Chah Summary Class 9
- Chapter 11- गीत अगीत – रामधारी सिंह दिनकर | Geet Ageet Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 12- अग्नि पथ- हरिवंश राय बच्चन | Agneepath Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 13- नए इलाके में-अरुण कमल | Naye Ilake Me Poem Summary in Hindi Class 9
Class IX Kshitij भाग 1: Hindi Kshitij Class 9 Summary
- Chapter 09- कबीर की साखी अर्थ सहित | Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9
- Chapter 10- वाख कविता का भावार्थ – ललघद | Waakh Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 11- रसखान के सवैये कविता का भावार्थ | Raskhan Ke Savaiye Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 12- कैदी और कोकिला का भावार्थ – माखनलाल चतुर्वेदी | kaidi aur kokila poem summary in Hindi Class 9
- Chapter 13- ग्राम श्री कविता का भावार्थ – सुमित्रानंदन पंत | Gram Shree Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 14- चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ – केदारनाथ अग्रवाल | Chandr Gahna Se Lauti Ber Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 15- मेघ आए कविता का भावार्थ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना | Megh Aye Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 16- यमराज की दिशा कविता का भावार्थ – चंद्रकांत देवताले | Yamraaj Ki Disha Poem Summary in Hindi Class 9
- Chapter 17- बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता का भावार्थ – राजेश जोशी | Bachhe Kaam Par Ja Rahe Hai Poem Summary in Hindi Class 9
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बहुत ही सराहनीय कार्य आपको इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
आपके द्वारा लिखे गए कबीर के दोहों ने मुझे बहुत ही उत्साहित किया है इसके लिए आपका धन्यवाद
Waha
Thanks for solving my problem because I had a lot of doubts in this topic.
Thanks a lot