Table of Content:
1. सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
2. वे आँखें कविता का सारांश
3. वे आँखें कविता
4. वे आँखें कविता का भावार्थ
5. वे आँखें कविता प्रश्न अभ्यास
6. Class 11 Hindi Aroh Chapters Summary
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय – Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay
सुमित्रानंदन पंत छायावाद के प्रमुख कवि हैं। हिन्दी कविता में प्रकृति के विषय पर कविता लेखन की शुरुआत इन्होंने ही की थी। इनका जन्म 20 मई 1900 ई को उत्तराखंड के कौसानी में हुआ था। जन्म के कुछ ही घंटों के पश्चात उनकी माँ का देहांत हो गया था।
इसलिए उनका पालन पोषण उनकी दादी ने किया था और उनका नाम ‘गुसाईं दत्त’ रखा था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी के ही एक विद्यालय में हुई थी। हाईस्कूल की पढ़ाई के लिये वे वाराणसी चले गए और वहाँ के जयनारायण हाईस्कूल में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की।
इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया परंतु बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उनका बचपन प्रकृति की गोद में बीता था।
हिमालय के शिखर, पक्षियों का कलरव, चीड़ के पेड़ एवं कत्यूर घाटी और इनके साथ साथ दादी की कहानियाँ ये सब ही उनके बचपन के साथी थे। प्रकृति की छांव का ही असर था कि वे बचपन से ही कवि हृदय के थे।
उनके भाई को हिन्दी, अँग्रेजी, संस्कृत एवं कुमाऊँनी भाषाओं की अच्छी जानकारी थी और कविताएं लिखने का भी शौक था। सुमित्रानंदन उनको देखते एवं उनकी ही तरह कविता लिखने का प्रयास भी करते।
जब वो हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा गए तब शहरी सभ्यता से बहुत प्रभावित हुए। सबसे पहले उन्होंने अपना नाम बदला। वे लक्ष्मण के चरित्र को आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने अपना नाम गुसाईं से बदल कर ‘सुमित्रानंदन’ कर लिया।
वे नेपोलियन के युवावस्था के चित्र से प्रभावित हुए और उन्होंने अपने बाल लंबे एवं घुँघराले रख लिए। आगे चलकर उन्हें अपने लेखन के लिए कई पुरस्कार एवं उपाधियाँ दी गईं।
कविताओं के अलावा उन्होंने नाटक, कहानी, आत्मकथा, उपन्यास, आलोचना आदि के क्षेत्रों में भी काम किया है। उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया जिसका विषय था प्रगतिवाद। वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, चिदम्बरा, स्वर्ण किरण, कला, बूढ़ा चाँद आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
अपने जीवन काल में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार एवं पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। सन 1977 ई में इलाहाबाद में उनकी मृत्यु हो गयी।
वे आँखें कविता का सारांश – Ve Aankhein Poem Summary
प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग -1‘ से ली गयी है। इसके कवि हैं सुमित्रानंदन पंत। यह एक प्रगतिशील दौर की कविता है। इस कविता में कवि ने विकास के विरोधाभास पर प्रहार किया है।
समाज में किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय है और यह बात कवि को बहुत आहत करती है। वह उनके शोषण को देख कर बहुत दुःखी हैं और युगों से किसानों की स्थिति ऐसी ही बनी हुई है इससे कवि को बहुत पीड़ा होती है।
भारत के स्वाधीन होने के बाद भी किसानों की सामाजिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। उनको ध्यान में रखते हुए कोई भी उचित निर्णय नहीं लिया गया है।भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बाद भी किसानों की स्थिति समाज में शोषित वर्ग के रूप में जानी जाती है।
इस कविता में कवि ने किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक समस्याओं को उजागर किया है। कवि ने बहुत ही व्यापक रूप से समाज में व्याप्त वर्ग व्यवस्था को दर्शाया है।
उन्होंने बताया है कि किस प्रकार समाज आर्थिक स्तर पर उच्च वर्ग , मध्यम वर्ग , निम्न वर्ग में बंटा हुआ है। जाति के आधार पर बंटा हुआ है। वर्गीय चेतना अभी भी व्याप्त है और समाज विभिन्न वर्गों में बंटा हुआ है।
वे आँखें कविता- Ve Aankhen Poem
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका!
लहराते वे खेत दृगों में
हुया बेदख़ल वह अब जिनसे,
हँसती थी उनके जीवन की
हरियाली जिनके तृन तृन से!
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली,–आँखें आतीं भर,
देख रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल नें,
डूब कुँए में मरी एक दिन!
ख़ैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती!
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
वे आँखें कविता की व्याख्या – Ve Aankhein Poem Line by Line Explanation
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका!
व्याख्या: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1‘ में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इसके कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में किसानों के शोषण एवं शोषक का वर्णन किया गया है।
स्वतंत्र भारत में भी किसानों की स्थिति दुःखदायक एवं निराशाजनक है। यह देख कर कवि दुःखी है।
कवि कहता है कि किसान की आँखें किसी अंधेरी गुफा के समान प्रतीत होती हैं , उन आँखों को देख कर मन में भय उत्पन्न होने लगता है। उन आँखों में दूर दूर तक घोर दुःख और पीड़ा के आँसू दिखाई देते हैं।
पहले वह स्वतंत्र था , उसकी आँखों में गर्व भरा होता था। परंतु आज वह अत्यंत दुःखी है और इस दुःख के समय में संसार ने उसे समस्याओं के मँझधार में छोड़ दिया है और उससे किनारा कर लिया है।
लहराते वे खेत दृगों में
हुया बेदख़ल वह अब जिनसे,
हँसती थी उनके जीवन की
हरियाली जिनके तृन तृन से!
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!
व्याख्या: इन पंक्तियों में किसान अपने पुराने दिनों को याद कर रहा है। पहले उसके पास उसके अपने खेत हुआ करते थे । जो फसल से भरे लहलहाते रहते थे। वह दृश्य किसान की आँखों के आगे घूम रहा है।
अब उसे उसकी खुद की जमीन से बेदखल कर दिया गया है। जमींदारों ने उसकी ज़मीन हड़प ली है। कभी उस ज़मीन और उसके तिनके तिनके से किसान का परिवार फलता फूलता था उनका जीवन सुखी था ।
किसान की आँखों के आगे वह दृश्य घूम जाता है जब उसके प्यारे बेटे को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से मार डाला था। जवानी में ही उसका बेटा दुनिया छोड़ गया।
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
व्याख्या: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1‘ में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इसके कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में किसानों के शोषण एवं शोषक का वर्णन किया गया है।
स्वतंत्र भारत में भी किसानों की स्थिति दुःखदायक एवं निराशाजनक है। यह देख कर कवि दुःखी है।
इन पंक्तियों में किसान की मन की व्यथा का वर्णन किया गया है। वह कर्ज़ में पूरी तरह डूब गया था । जब कर्ज़ उतारने के लिए पैसे नहीं बचे तब महाजन ने उसकी सारी संपत्ति को नीलाम कर दिया ।
उसका घर खेत सबकुछ बिक गया। महाजन ने ब्याज का एक पैसा भी बकाया नहीं छोड़ा। उसके बैल के जोड़े को भी उससे छीन लिया। वह दृश्य उसकी आँखों में हर समय चुभता रहता है।
किसान के पास एक सफ़ेद गाय भी थी जिसे वह प्यार से उजरी कहता था। उजरी उसके अलावा किसी को भी अपने पास दूध दुहने आने नहीं देती थी। कितना सुख था उन पुराने दिनों में।
किसान वो सब याद करता है और उसकी दुःख भरी आह निकाल जाती है। उसके सुख भरे दिन अब बीत चुके हैं और उसकी आँखों के आगे नाचते रहते हैं।
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली,–आँखें आतीं भर,
देख रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल नें,
डूब कुँए में मरी एक दिन!
व्याख्या: इस कविता में किसानों के शोषण एवं शोषक का वर्णन किया गया है। स्वतंत्र भारत में भी किसानों की स्थिति दुःखदायक एवं निराशाजनक है। यह देख कर कवि दुःखी है।
इन पंक्तियों में किसान की परिवारिक स्थिति का वर्णन किया गया है। कवि कहता है कि दवा-इलाज के अभाव में किसान की पत्नी की मृत्यु हो गयी। उसे याद करके किसान की आँखें बार-बार भर आती हैं।
पत्नी की मौत के बाद देख-रेख के अभाव में दो दिन बाद उसकी नवजात बेटी की भी मृत्यु हो गयी ।
घर में बस एक उसकी विधवा बहू ही तो बची थी , बहू लक्ष्मी समान होती है। परंतु एक दिन कोतवाल ने उसे जबरन बुलवाया और यह कह कर बेइज्जती की कि इसके कारण इसके पति की जान चली गयी।
वह यह अपमान सह ना सकी और कुएं में डूब कर मौत को गले लगा लिया।
ख़ैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती!
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
व्याख्या: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1‘ में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इसके कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में किसानों के शोषण एवं शोषक का वर्णन किया गया है।
किसान को अपनी पत्नी की मृत्यु का विशेष दुःख नहीं है उसे लगता है कि पत्नी तो पैर की जूती है , एक गयी तो दूसरी आ सकती है परंतु अपने जवान बेटे की मौत का उसे बहुत दुःख है । दुःख से उसकी छाती फटती है सीने पर साँप लोटते हैं। उसे असहनीय पीड़ा होती है।
बीते दिनों की यादें उसकी आँखों में पल भर के लिए चमक ले आती है , किन्तु अगले ही क्षण यथार्थ से उसका सामना होता है और उसकी आँखें शून्य में गड़ जाती हैं और तीखी नोक सी चुभती हैं।
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वे आँखें कविता की व्याख्या
वे आँखें कविता का अर्थ
वे आँखें कविता की सारांश
वे आँखें कविता का उद्देश्य
वे आँखें कविता प्रश्न अभ्यास
वे आँखें सुमित्रानंदन पंत
वे आँखें क्वेश्चन आंसर