Patang Kavita Class 12 Summary- पतंग कविता अर्थ सहित

Table of content

  1. आलोक धन्वा का जीवन परिचय
  2. पतंग कविता का सारांश 
  3. पतंग कविता 
  4. पतंग कविता की व्याख्या
  5. पतंग कविता प्रश्न अभ्यास
  6. Class 12 Hindi Aroh Chapters Summary

कवि आलोक धन्वा का जीवन परिचय- KAVI AALOK DHANVA KA JEEVAN PARICHAY

कवि आलोक धन्वा जी का जन्म 1948 में मुंगेर, बिहार में हुआ था। कवि आलोक धन्वा के बारे में कहा जाता है कि बहुत ही छोटी आयु से उन्होंने कविता लिखना आरंभ कर दिया था और इनकी लोकप्रियता छोटी उम्र से ही काफी थी।

बिहार के राष्ट्रभाषा परिषद ने इन्हें साहित्य सम्मान से सम्मानित किया था। बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान व पहल सम्मान से भी इन्हें नवाज़ा गया था।


कविता लिखने के साथ-साथ यह सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी समाज में सक्रिय रहे हैं।

रचनाएं- सन 1972 में इनकी पहली कविता जनता का आदमी प्रकाशित हुई थी। इनकी प्रसिद्ध कविताएं हैं भागी हुई लड़कियां, ब्रूनो की बेटियां इत्यादि।

कवि आलोक धन्वा अपनी कविताओं में खड़ी बोली का प्रयोग करते हैं, उन्होंने अपनी कविताओं में बिम्बों का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है उनकी भाषा बहुत ही सहज एवं सरल है एवं इनकी कविताओं में अलंकारों का सुंदर चित्र दिखाई देता है।

पतंग कविता का सारांश- PATANG POEM SHORT SUMMARY

प्रस्तुत कविता कवि आलोक धन्वा जी के काव्य संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ से ली गई है। यह एक बहुत ही लंबी कविता है लेकिन पाठ्य पुस्तक में इस कविता के तीसरे भाग को ही शामिल किया गया है।

प्रस्तुत कविता पतंग के बहाने कवि आलोक धन्वा जी ने बाल सुरक्षा एवं उनकी उमंगों का बड़ा ही सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि ने बिम्बों का प्रयोग करते हुए बालकों के क्रियाकलापों एवं प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का बहुत ही व्यापक वर्णन किया है।

यह कविता बिंबो के माध्यम से एक नई दुनिया की ओर प्रवेश करती है, जिस दुनिया में शरद कालीन ऋतु का चित्र है। जहां पर तितलियां अपनी रंगीन दुनिया में मौज कर रही हैं। इस दुनिया में कुछ बच्चे हैं, जो छत पर पतंग उड़ाते हैं। उन्हें एक ओर गिरने का भय है, तो दूसरी ओर विजय पाने की खुशी। बच्चे कभी गिर कर संभलते हैं, तो कभी डर से सहमते हैं।

पतंग कविता – Patang Kavita

सबसे तेज बौछारें गयीं भादों गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ो
ज़ो से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके –
दुनिया की 
सबसे हल्की और रंगीन चीज़ें उड़ सकें
दुनिया का सबसे हल्का कागज़ उड़ सके –
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की
 इतनी नाजुक दुनिया

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बैचेन पैरों के पास
जब वे दौड़ते है
बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़
उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती है महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के
साथ साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने 
रन्ध्रों के सहारे

अगर वे गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और
बच जाते हैं तब तो
और भी निडर
होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बैचैन पैरों के पास।

पतंग कविता की व्याख्या – Patang Kavita Explanation

सबसे तेज बौछारें गयीं भादों गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पर करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ो
ज़ो से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

पतंग कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-2 कविता ‘पतंग’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि आलोक धन्वा जी है।कवि ने शरद ऋतु का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। 

पतंग कविता की व्याख्या- कवि कहते हैं कि अंधेरी रात बीत गई, अब उजाला हो गया है। शरद ऋतु गई है, शरद ऋतु का जो सवेरा होता है, वह बिल्कुल खरगोश की लाल आँखों के जैसा लगता है। सारे मौसम को पार करके शरद ऋतु फिर से वापस गई है। यह शरद किसी बच्चे की तरह है, जो अपनी किरणों को तेजी से फैलाते हुये चल रहा है, और अपनी चमकीली साईकल पर सवार होकर घण्टी बजा बजाकर सबको अपने पास बुला रहा है।

पतंग कविता का विशेष:-

1.’जोर जोर’  में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. शरद ऋतु का वर्णन किया गया है।

3. सुबह के सूरज की तुलना खरगोश की आँखों से की है।

4. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है।

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके –
दुनिया की 
सबसे हल्की और रंगीन चीज़ें उड़ सकें
दुनिया का सबसे हल्का कागज़ उड़ सके –
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की
 इतनी नाजुक दुनिया

पतंग कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-2 कविता ‘पतंग’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि आलोक धन्वा जी है। इसमें बच्चों के मन में पतंग को उड़ाने की जो खुशी होती है  उसी का वर्णन किया है।

पतंग कविता की व्याख्या- कवि कहते हैं कि शरद ऋतु एक बालक के समान प्रतीत हो रहे है।जो अपने चमकीले इशारों से बच्चों को पतंग उड़ाने के लिए बुला रही है, बाहर शरद ऋतु ने आकाश को मुलायम तथा सुहावना बना दिया है, और ऐसे मौसम में पतंग और ऊँची उड़ सकती है, सारा वातावरण इस तरह से हो जाता है कि बच्चे पतंग उड़ाएं, सबसे हल्की और रंगीन पतंग जिसे बच्चों का मन ऊँचे से ऊँचा उड़ाना चाहता है।

पतंग कविता का विशेष:-

1.मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।

2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है।

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बैचेन पैरों के पास
जब वे दौड़ते है
बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
छतों के खतरनाक किनारों तक

पतंग कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-2 कविता ‘पतंग’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि आलोक धन्वा जी है। इसमें कवि ने बच्चों के अपने ही धुन में रहने का वर्णन किया है।

पतंग कविता की व्याख्या- कवि कहते हैं कि बच्चों के तलवे में कपास बंधी हुई है, उनको कठोर तल का आभास नहीं होता है, वे बेसुध होकर दौड़ते रहते हैं, एक जगह टिकते नहीं है। जब वो दौड़ते हैं, तो ऐसा लगता है कि मृदंग बज रहे हों, ऐसा लगता है पृथ्वी उनके साथ भाग रही है। उनके लिए छत की कठोरता भी मुलायम है, कभीकभी वो छत के खतरनाक किनारों तक जाते हैं, मगर उनका लचीलापन उनको गिरने से बचा लेता है।

पतंग कविता का विशेष:-

1. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है।

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़
उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती है महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के
साथ साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने 
रन्ध्रों के सहारे

पतंग कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-2 कविता ‘पतंग’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि आलोक धन्वा जी हैं। इसमें कवि ने बच्चों की पतंग को लेकर जो कल्पनाएं हैं उनको बड़े अद्भुत ढंग से प्रस्तुत किया है।

पतंग कविता की व्याख्या- कवि कहते हैं कि उस वक़्त उनको उनके भीतर की तत्परता तथा उनका उत्साह में जो लय होता है, वह उन्हें गिरने से बचाता है। एक धागे के सहारे जो पतंग उड़ रही है, एक धागे के सहारे बच्चों को गिरने से रोक लेती है। बच्चे अपनी कल्पनाओं के सहारे पतंग के साथ उड़ रहे हैं।

पतंग कविता का विशेष:-

1. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है।

2. साथ-साथ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 

अगर वे गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और
बच जाते हैं तब तो
और भी निडर
होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बैचैन पैरों के पास।

पतंग कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-2 कविता ‘पतंग’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि आलोक धन्वा जी हैं। इसमें कवि ने बच्चों के भीतर आत्मविश्वास और साहस के बढ़ने का वर्णन किया है।

पतंग कविता की व्याख्या- पतंग उड़ाते हुए जब ये बच्चे छतों के खतरनाक किनारे पर गिरने से बच जाते हैं, तो उनकी निर्भीकता और आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है और वे दोगुने साहस के साथ फिर से छत पर आते हैं और पतंग उड़ाते हैं। ऐसा लगता है ये दौड़तेभागते बच्चे दौड़ नहीं रहे बल्कि पृथ्वी ही भाग रही है।

पतंग कविता का विशेष:-

1.’सुनहले सूरज’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है।

Tags:
पतंग कविता का सारांश
पतंग कविता का अर्थ
पतंग कविता का शिल्प सौंदर्य
पतंग कविता के प्रश्न उत्तर
patang poem in hindi class 12 summary
patang poem explanation class 12
patang poem explanation in hindi
patang namak kavita ka kendriya bhav apne shabdon mein likhiye
patang namak kavita ka kendriya bhav
patang namak kavita ka kendriya bhav likhiye
patang namak kavita ka kendriya bhav kya hai
patang namak kavita ka kendriya bhav spasht kijiye
patang poem in hindi class 12
patang kavita class 12

Leave a Comment