Class 9 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary
नए इलाके में/खुशबू रचते हैं हाथ – अरुण कमल
अरुण कमल का जीवन परिचय – Arun Kamal Ka Jiwan Parichay : अरुण कमल का जन्म बिहार में 15 फ़रवरी 1954 को हुआ था। वे वर्तमान समय में पटना विश्वविद्यालय के प्राध्यापक हैं। अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियों में से एक है। उन्होंने प्रसिद्ध बाल उपन्यास जंगल-बुक का हिन्दी में अनुवाद किया। उन्हें भारतीय काव्य में उनके योगदान के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
अरुण कमल की कविताओं में जीवन के विविध क्षेत्रों का वर्णन मिलता है। इन्होनें अपनी कविताओं में जीवन के हर पहलू को बड़ी कुशलता से दर्शाया है और वर्तमान समय की शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश भी खुलकर इनकी कविताओं में सामने आया है। इनकी कविताओं में मज़दूरों की स्थितियों का काफ़ी वर्णन हुआ है। बच्चे, जवान, स्त्रियाँ सभी वर्ग के लोग इनकी कविता में शामिल हैं। कोई जूट या लोहे की फ़ैक्टरी में काम करता है, तो कोई होटल का नौकर है, पुल बनाने वाले मज़दूर, नक्सली समझकर मौत के घाट उतार दिए जाने वाले मज़दूर, दरजिन, स्कूल मास्टर, अगरबत्ती बनाने वाले मज़दूर आदि सभी उनकी कविताओं में स्थान प्राप्त करते हैं। अरुण कमल की कविताओं की खास विशेषता यह है कि उनका मज़दूर चित्रण किसी विशेष वर्ग के मज़दूरों तक ही सीमित नहीं है।
नए इलाके में कविता का सार – Naye Ilake Mein Kavita Ka Saar : प्रस्तुत कविता में कवि वर्तमान समय में चल रहे निर्माण के ऊपर व्यंग्य करते हुए, यह कहना चाह रहा है कि इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है। हर वस्तु को समय के साथ बदलना ही पड़ता है। जिसकी वजह से हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि हम बहुत जल्द ही किसी वस्तु के आदी हो जाते हैं। इसलिए कवि इस कविता में आधुनिक समाज में प्रतिदिन होते निर्माण की बात कर रहे हैं, उनके अनुसार, इस अंधा-धुंध निर्माण की वजह से अब खुद के घर को पहचानना भी मुश्किल हो गया है।
खुशबू रचते हैं हाथ कविता का सार – Khusboo Rachte Hai Hanth Kavita Ka Saar : प्रस्तुत कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वाले मज़दूरों का चित्रण किया है। उन मज़दूरों में बूढ़े, बच्चे, जवान, स्त्रियाँ, बीमार आदि सभी वर्ग के लोग शामिल हैं। ये सभी लोग स्वयं गंदगी में रहते हैं, किंतु अपनी मेहनत से कई प्रकार की खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं। उन्हें बनाने में उनके खुद के हाथ ख़राब हो गए हैं। उनके खुद के घर बदबू से भरे हुए है। इसी वजह से कवि ने अपनी विडम्बना व्यक्त की है। उनके अनुसार एक ओर तो दुनिया के सभ्य लोग इन गंदे मुहल्लों में रहने वाले लोगों से घृणा करते हैं, तो दूसरी ओर इन्हीं के गंदे हाथों द्वारा बनायी गयी अगरबत्तियों को भगवान के सामने जलाकर अपनी इच्छापूर्ति हेतु प्रार्थना करते हैं। अपने घर को सुगन्धित बनाते हैं।
नए इलाके में – Naye Ilake Me by Arun Kamal
इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था एकमंज़िला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
Naye Ilake Mein Poem Summary in Hindi
इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि ने शहर में हो रहे मकानों के निर्माण के बारे में बताया है।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने शहर में हो रहे अंधा-धुंध निर्माण के बारे में बताया है। रोज कुछ न कुछ बदल ही रहा है। आज अगर कुछ टूटा हुआ है, या कहीं कोई खाली मैदान है, तो कल वहाँ बहुत ही बड़ा मकान बन चुका होगा। नए-नए मकान बनने के कारण रोज नए-नए इलाके भी बनते जा रहे हैं। जहाँ पहले सुनसान रास्ता हुआ करता था। आज वहाँ काफी लोग रहने लगे हैं और चहल-पहल दिखने लगी है। यही कारण है कि लेखक को रास्ते पहचानने में तकलीफ़ होती है और वह अक्सर रास्ता भूल जाता है।
‘नए इलाके में कविता’ विशेष :
1. ‘नए-नए’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
3. इस कविता में लयात्मकता है।
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था एकमंज़िला
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि बताते हैं कि नए-नए घर बनने के बाद मेरे लिए अब रास्ते पहचानने भी मुश्किल हो गए हैं।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : इन पंक्तियों में लेखक हमें अपने रास्ते भूल जाने का कारण बताते हैं। लेखक ने जिस घर, जिस मैदान और जिस फाटक को अपने लिए चिन्ह बनाकर रखा था। जिन्हें देख कर उन्हें यह पता चलता था कि वह सही रास्ते पर चल रहे हैं, उन चिन्हों में से अब कोई भी अपनी जगह पर नहीं है। अब लेखक के खोजने के बाद भी उन्हें पुराना पीपल का पेड़ नहीं दिखाई देता है और ना ही अब उन्हें टूटा हुआ घर दिखता है, जिसे देख कर वे रास्ता पहचानते थे। ना ही अब उन्हें वह खाली ज़मीन कहीं दिखाई दे रही है, जहाँ से लेखक को बांये मुड़ना होता था। उसके बाद ही तो उनका जाना-पहचाना एक बिना रंग के लोहे के फाटक वाला एक मंजिला घर था।
‘नए इलाके में कविता’ विशेष :
1. ‘बाद बिना’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
3.इस कविता में लयात्मकता है।
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि के इलाके में नए मकान बनने से वह अपना घर नही पहचान पाता।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : इन्हीं कारणों की वजह से लेखक हमेशा रास्ता भटक जाता है। वह कभी भी सही ठिकाने तक नहीं पहुँच पाता। या तो वह एक-दो घर आगे निकल जाता है या फिर एक-दो घर पहले ही रुक जाता है।
‘नए इलाके में कविता’ विशेष :
1. इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. इस कविता में लयात्मकता है।
यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि अपने घर का रास्ता पहचानने में इधर-उधर भटकते हैं।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : यहाँ रोज कुछ न कुछ बन रहा है। किसी न किसी इमारत का निर्माण हो रहा है। जिसकी वजह से आप अपने रास्ते को पहचानने के लिए किसी इमारत या पेड़ को स्मृति नहीं बना सकते। क्या पता कल उसकी जगह पर कुछ और बन जाए और आप रास्ता भटक जाएं।
‘नए इलाके में कविता’ विशेष:
1. इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. इस कविता में लयात्मकता है।
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर?
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि अपने घर को पहचानने में असमर्थ हैं। अपना घर ढूँढने के लिए उन्हें घर घर जाकर दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : कवि ने शीघ्र होते हुए परिवर्तन के बारे में बताया है। ऐसा नहीं है कि कवि बहुत समय के बाद यहाँ लौटा है, इसलिए उसे सब बदला हुआ प्रतीत हो रहा है। ऐसा नहीं है कि वह वसंत के बाद पतझड़ को लौटा है, ऐसा नहीं है कि वह वैसाख को गया और भादों को लौटा है। वह तो कुछ ही दिनों में वापस आया, लेकिन फिर भी उसे सब बदला हुआ दिख रहा है और वह अपना घर भी नहीं पहचान पा रहा। अब तो एक उपाय यही है कि कवि हर घर में खट-खटाये और पूछे की क्या यही वह घर है?
‘नए इलाके में कविता’ विशेष :
1. ‘पुरानी पड़’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. इन पंक्तियों में प्रश्न अलंकार है।
3.इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
4. इस कविता में लयात्मकता है।
5. इन पंक्तियों में ऋतुओं का वर्णन किया गया है।
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
‘नए इलाके में कविता’ प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि कभी इधर-उधर भटक रहे हैं उन्हें अभी तक अपना घर नहीं मिला है।
‘नए इलाके में कविता’ भावार्थ : भटक जाने के कारण कवि अभी तक घर नहीं ढूंढ पाया है और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बारिश भी होने वाली है। कवि के पास समय बहुत ही कम है। अब तो कवि इसी आस में बैठा है कि काश कोई जान-पहचान का व्यक्ति उन्हें देखकर पहचान ले।
‘नए इलाके में कविता’ विशेष :
1. इस कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. इस कविता में लयात्मकता है।
खुशबू रचते हैं हाथ- Khusbu Rachte Hai Haath by Arun Kamal
कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढ़ेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
ज़ख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
Khusbu Rachte Hai Haath Poem Summary in Hindi
कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढ़ेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि ने बताया है कि किस प्रकार गन्दी झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग खुशबूदार अगरबत्तियां बनाते हैं।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ भावार्थ : कवि ने इन पंक्तियों में जीवन के कठोर यर्थाथ को दर्शाया है। जिस प्रकार कमल कीचड़ में ही खिलते हैं, उसी प्रकार कवि ने बताया है कि वातावरण को सुगन्धित कर देने वाली अगरबत्ती गंदी झुग्गी एवं झोपड़ियों में बनायी जाती है। ऐसी बस्तियाँ जहाँ से गंदे नाले निकलते हैं। जहाँ पर कूड़े-करकट का ढेर लगा होता है। बदबू से भरी गंदी बस्तियों में रहने वाले लोग ही खुशबूदार अगरबत्ती बनाते हैं। इसीलिए कवि ने इस कविता में कहा है “ख़ुशबू रचते हैं हाथ”।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ विशेष:
1. कूड़े-करकट में अनुप्रास अलंकार है।
2. आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
ज़ख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि ने बताया है कि खुशबूदार अगरबत्ती बनाने के लिए झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोगों को बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ भावार्थ : अगरबत्ती बनाते-बनाते अधिकतर कारीगरों के हाथ घायल हो गए हैं। किसी कारीगर के हाथों की नसें उभरी हुई दिख रही हैं, तो किसी के नाख़ून अगरबत्ती बनाते-बनाते घिस गए हैं। वहीं दूसरी ओर नए-नए बच्चे जिन्होंने अभी-अभी अगरबत्ती बनाना शुरू किया है, उनके हाथ पीपल के पत्ते की तरह बहुत ही मुलायम और नाज़ुक प्रतीत होते हैं। उन्हीं बच्चों में से कुछ लड़कियों के हाथ तो जूही की डाल की तरह पतले हैं। बहुत दिनों से काम करते हुए कई कारीगरों के हाथ कट-फट चुके हैं। उनके ज़ख्म भी गंदगी से भरे हुए हैं। ऐसे हाथ ही हमारे घर में खुशबू फ़ैलाने वाली सुगंधित अगरबत्तियों का निर्माण करते हैं।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ विशेष:
1. नए-नए में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-13 कविता-‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता अरुण कमल जी हैं। कवि ने बताया है कि किस प्रकार झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों के गंदे हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियां बनती है और सभी अमीर लोगों के घरों में खुशबू फैलती हैं।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ भावार्थ : प्रस्तुतु पंक्तियों में कवि ने हमें यही बताया है कि शहर के बड़े से बड़े घरों में जलने वाली खुशबूदार अगरबत्तियाँ इन्हीं गंदी बस्तियों की झुग्गियों में बनती हैं। जहाँ पर हमेशा बदबू भरी रहती है। चाहे कोई भी मशहूर अगरबत्ती हो, जैसे केवड़ा, गुलाब या रातरानी सभी यहीं इस गंदी बस्ती में रहने वाले गंदे लोगों के गंदे हाथों से बनाई जाती हैं। ये लोग खुद तो इतनी गंदगी एवं बदबू के बीच में रहते हैं, लेकिन दूसरों के घर को महकाने के लिए खुशबूदार अगरबत्तियों का निर्माण करते हैं। इसीलिए लेखक ने कहा है “सारी गन्दगी के बीच भी खुशबू रचते हैं हाथ”।
‘खुशबू रचते हैं हाथ कविता’ विशेष:
1. ‘रचते रहते’ में अनुप्रास अलंकार है।
2.आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है।
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