Antra Class 12 Ek Kam Poem Summary- एक कम कविता विष्णु खरे

Table of Content
1. विष्णु खरे का जीवन परिचय
2. एक कम कविता का सारांश
3. एक कम कविता
4. एक कम कविता की व्याख्या
5. एक कम कविता प्रश्न अभ्यास
6. Class 12 Hindi Antra All Chapter

विष्णु खरे का जीवन परिचय- Vishnu khare ka Jeevan Parichay

कवि विष्णु खरे का जन्म मध्य प्रदेश में सन 1962 ईस्वी में हुआ था। कवि विष्णु खरे सिर्फ एक भारतीय कवि के रूप में नहीं जाने जाते हैं बल्कि वे एक अनुवादक के रूप में, साहित्यकार के रूप में तथा एक फिल्म समीक्षक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं।

बहुत लोग कहते हैं कि कवि  विष्णु खरे अंग्रेजी साहित्य के कवि हैं और बहुत लोग कहते हैं कि  कवि  विष्णु खरे हिंदी साहित्य के कवि है।


लेकिन सच्चाई तो यह है कि कभी विष्णु खरे हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में लिखा करते थे। इसलिए यह दोनों ही साहित्य में अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं।

कार्यकाल- कवि विष्णु खड़े एक पत्रकार भी थे, तो उन्होंने नवभारत टाइम्स पत्रिका में से प्रभारी कार्यकारी संपादक के रूप में भी कार्य किया तथा वे अंग्रेजी टाइम्स ऑफ इंडिया में भी संपादन कार्य से जुड़े रहें। 

रचनाएं- कवि विष्णु खरे एक अनुवादक भी थे। इन्होंने टी एस इलियट का अनुवाद किया है। यह इनका पहला प्रकाशन था। इनकी दूसरी  कविता संग्रह गैर रूमानी वर्ष 1970 में प्रकाशित हुई।

एक के बाद एक लगातार उन्होंने अपनी रचनाएं रची। इनकी प्रमुख रचनाएं हैंकाल और अवधि, पिछला बाकी इत्यादि।

कवि विष्णु खरे की मृत्यु सन 2018 में  19 सितंबर को हुआ। 

एक कम कविता का सारांश – Ek Kam Poem short summary

एक कम कविता के माध्यम से कभी विष्णु खरे ने उस समय का चित्र प्रस्तुत किया है। जब हमारा भारत देश आजाद हो चुका था। आजादी के बाद वाली स्थिति का कवि ने इस कविता में चित्रण किया है।

सभी को लग रहा था जब भारत देश आजाद हो जाएगा तब  भारत में सब कुछ अच्छा हो जाएगा।  मगर आजादी के बाद का चित्र कुछ और ही नज़र आया। कुछ लोग आजादी के बाद बहुत अमीर हो गए और कुछ लोग फकीर बन गए।

यह जो मतभेद हुआ उसके बाद अमीरी और गरीबी का फ़ासला दिन प्रतिदिन बढ़ता चला गया। कवि के अनुसार हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने भारत को एक बेहतर स्थान पर देखने के लिए अपने जान तक का परवाह नहीं किया और शहीद हो गए।

मगर बलिदानी का परिणाम बहुत ही विपरीत हुआ।

आजादी के बाद लोग अमीर बनने के लिए किसी भी हद तक गिर गए। लोगों ने भ्रष्टाचारी, धोखाधड़ी करना आरंभ कर दिया और लोग अपने अंदर की मानवीय मूल्यों को भूलते चले जा रहे हैं। सब एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में लगे हुए हैं।

ऐसे स्थिति में अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान हैं, तो वे  लोग  ईमानदार लोग है ,जो भले ही गरीब है मगर बेईमान नहीं। 

वे अपने नैतिक मूल्यों को साथ में लेकर आगे बढ़ने की चाह रख रहे हैं। यह इमानदार लोग इतने सच्चे हैं कि लोगों के सामने हाथ फ़ैलाने  में भी शर्माते नहीं है। कवि को सत्यवादी  लोग ही सबसे ज्यादा पसंद आएं।

एक कम कविता- Ek Kam Poem

1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है
कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए
तो जान लेता हूं
मेरे सामने एक इमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है
मानता हुआ कि हां मैं लाचार हूं कंगाल या कोढ़ी
या मैं भला चंगा हूं और कामचोर और
एक मामूली धोखेबाज़
लेकिन पूरी तरह तुम्हारे संकोच लज्जा परेशानी
या गुस्से पर आश्रित
तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा निर्लज्ज और निरंकांक्षी
मैंने अपने को हटा लिया है हर होड़ से
मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं
मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम
कम से कम एक आदमी से तो निश्चित रह सकते हो

एक कम कविता की व्याख्या की व्याख्या- Ek Kam Kavita Poem line by line explanation

1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है
कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए
तो जान लेता हूं
मेरे सामने एक इमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है

भावार्थ- प्रस्तुत काव्य पंक्तियां कवि विष्णु खरे द्वारा रचित एक कम की है। इस कविता के माध्यम से कवि यह बताते हैं कि जब सन 1947 में भारत देश आजाद हुआ था। आजादी के पूर्व का भारत और आजादी के बाद से भारत में बहुत अंतर उन्होंने देखा।

आजादी के बाद के भारत में लोग आगे बढ़ने की होड़ में गलत राह पर चल रहे हैं। अपने ईमान को खो रहे हैं और जैसे तैसे बस जिंदगी में पैसे कमा रहे हैं।

वहीं कवि को कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं, जो 25 पैसे का एक चाय और दो रोटी के लिए बिना किसी लज्जा के लोगों के सामने हाथ फैलाते हैं। ऐसे लोगों को देखकर कवि समझ जाते हैं कि यह ईमानदार है तभी तो  एक रोटी और चाय के लिए लोगों के सामने हाथ फैला रहा हैं।

इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने उन लोगों पर कटाक्ष किया है, जो गलत राह पर चल कर बड़ी-बड़ी बातें कर गलत तरीके से पैसे कमा रहे हैं और अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

ऐसे लोगों से जब सवाल किया जाता है कि उन्होंने यह पैसे कैसे कमाया हैं  तो वे कहते हैं कि उन्होंने अपनी  मेहनत के बल पर पैसे कमाए हैं, जबकि वे झूठ बोल रहे हैं। 

कवि को इस बात का दु:ख है कि अगर पैसा कमाना इतना आसान होता तो हर एक व्यक्ति आज अमीर होता।

फिर कोई गरीब सड़कों पर भीख मांगते हुए नहीं दिखाई देता। इसलिए कवि  को उन व्यक्तियों को देखकर खुशी मिलती है ,जो व्यक्ति लोगों के सामने बेहिचक हाथ फैलाकर रोटी और चाय के लिए पैसे मांगते है।

मानता हुआ कि हां मैं लाचार हूं कंगाल या कोढ़ी
या मैं भला चंगा हूं और कामचोर और
एक मामूली धोखेबाज़
लेकिन पूरी तरह तुम्हारे संकोच लज्जा परेशानी
या गुस्से पर आश्रित
तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा निर्लज्ज और निरंकांक्षी
मैंने अपने को हटा लिया है हर होड़ से
मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं
मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम
कम से कम एक आदमी से तो निश्चित रह सकते हो

भावार्थ- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि विष्णु खड़े अपने आप को लाचार, कंगाल और फकीर कहते हैं और कहते हैं कि मैं खुद इतना गरीब हूं कि जो व्यक्ति मेरे सामने आकर हाथ फैलाता है। मैं उनकी कोई भी मदद नहीं कर पाता।

कवि खुद को कामचोर कहते हुए कहते हैं कि अगर मैं आगे बढ़ने की होड़ में रहता और बहुत सारे पैसे कमाता, तो शायद मैं आज इन लोगों की मदद कर पाता, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाया। इसलिए कवि को थोड़ा अफ़सोस हो रहा है।

कवि को एकतरफ जहां बेइमानी करने वाले लोगों के ऊपर शर्म आ रही है वहीं दूसरी ओर कवि को उन लोगों से सहानुभूति होती हैं  जो ईमानदारी के पथ  पर चलते है और  अपना पेट भर रहे हैं। 

कवि को इस बात का अफसोस होता है कि वह ऐसे लोग जिन्हें सच में मदद की आवश्यकता है, उनकी मदद नहीं कर पा रहे हैं। कवि इस वक्त खुद ही फकीर है।

जिस वजह से वह ईमानदार लोगों की मदद नहीं कर पा रहे और वे इस बात को स्पष्ट रूप से प्रकट भी करते हैं। इसलिए वे अपने आप को कहते हैं कि मैंने तो शर्म का पर्दा भी हटा दिया है और सच का साथ देकर मैं आगे बढ़ रहा हूं।

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