Table of Contents:
1. निर्मला पुतुल का जीवन परिचय
2. आओ मिलकर बचाएं कविता का सारांश
3. आओ मिलकर बचाएं कविता
4. आओ मिलकर बचाएं कविता की व्याख्या
5. आओ मिलकर बचाएं प्रश्न अभ्यास
6. Class 11 Hindi Aroh Chapters Summary
कवयित्री निर्मला पुतुल का जीवन परिचय- Nirmala Putul Ka Jeevan Parichay
निर्मला पुतुल जी का जन्म सन 1972 ईस्वी में झारखंड में हुआ था। यह एक आदिवासी परिवार की लड़की थी। इनका बचपन बहुत संघर्षों में गुजरा था।
वैसे तो इनका परिवार शिक्षित था, लेकिन फिर भी इनके परिवार में अकाली की समस्या के कारण इनकी पढ़ाई रुक गई।
निर्मला पुतुल जी ने नर्सिंग में डिप्लोमा किया और इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से इन्होंने स्नातक की डिग्री भी प्राप्त की।
जब निर्मला जी नर्स की ट्रेनिंग ले रही थी उस दौरान इनका परिचय बाहर की दुनिया से भी हुआ।
इन्होंने आदिवासी समाज के अंदर व्याप्त काफी चीजों को देखा। उनके साथ हो रहे अन्याय एवं अत्याचारों को भी करीब से उन्होंने देखा और महसूस किया।
उन्हीं बातों को उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से रखने का प्रयास किया है। आदिवासी लोग किस तरीके से अपने जीवन में संघर्ष करते हैं, छोटी-छोटी चीजों से समझौता करते हैं। यह सब कुछ उनकी कविताओं में साफ-साफ झलकता है।
इन की प्रमुख रचनाएं-
निर्मला पुतुल जी ने बहुत सारी रचनाएं रची है, जिनमें से प्रमुख है-
- नगाड़े की तरह बजते शब्द
- अपने घर की तलाश में
- फूटेग एक नया विद्रोह
- एक बार फिर
- आदिवासी स्त्रियां आदि।
आओ मिलकर बचाएं कविता का सारांश- Aao Milkar Bachaye Poem Short Summary
प्रस्तुत कविता आओ मिलकर बचाएं में कवयित्री निर्मला पुतुल जी ने अपनी संस्कृति, अपने झारखंड के सभ्यता को बचाने का आवाह्न किया है।
शहरी सभ्यता के कारण झारखंड के लोग अपने निजी संस्कृति को भूलते चले जा रहे हैं। जिस कारण कवयित्री निर्मला पुतुल जी अपने झारखंड को फिर से वापस लाने के लिए, लोगों से आग्रह करती हैं कि लोग शहरी सभ्यता की आड़ में ना पले।
झारखंड की संस्कृति में बहुत कुछ व्याप्त है और जब अपनी संस्कृति खूबसूरत हो, तो फिर शहरी संस्कृति को अपनाने की क्या जरूरत है। इन्हीं सब बातों की चर्चा इस संपूर्ण कविता में की गई है।
आओ मिलकर बचाएं कविता- Aao Milkar Bachaye Poem
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चहरे पर
सन्थाल परगान की माटी का रंग
भाषा में झारखंडी पन
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताज़ा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों का धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति
और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है
अब भी हमारे पास !
आओ मिलकर बचाएं कविता की व्याख्या- Aao Milkar Bachaye Poem Line by Line Explanation
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चहरे पर
सन्थाल परगान की माटी का रंग
भाषा में झारखंडी पन
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-20 कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से ली गई हैं। काव्य पंक्तियां निर्मला पुतुल जी द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा का अनूदित रूप है। इस कविता में कवयित्री ने अपने परिवेश की संस्कृति को बचाने का प्रयास किया है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की व्याख्या:- इस कविता में कवयित्री ने शहरी वातावरण का विरोध किया है। उन्हें लगता है कि शहरी वातावरण के कारण उनकी बस्ती का वातावरण बर्बाद हो रहा है। वह अपने बस्ती को शहरी जीवन में परिवर्तित होता हुआ नहीं देख पा रही हैं।
इसलिए वह लोगों का आवाहन करती हैं और कहती हैं कि हम सबको मिलकर हमारी बस्ती को बचाना चाहिए, क्योंकि यदि एक बार हमारी बस्ती को शहर की हवा लग गई, तो हमारी बस्ती पूरे तरीके से बर्बाद हो जाएगी।
शहर के लोग, दूसरे लोगों का शोषण करते हैं और यही शोषण की हवा अगर हमारी बस्ती में लग जाए, तो हमारी बस्ती में भी कुछ नहीं बचेगा। सभी लोग शोषण के शिकार हो जाएंगे। कवयित्री फिर कहती हैं कि हम सबको अपनी संस्कृति को बचाना चाहिए।
हम लोग संथाली लोग हैं और संथाल की मिट्टी, संथाल की भाषा हम सबके चेहरे पर साफ-साफ झलकना चाहिए। हम उन शहरों के रंग में नहीं बदलने चाहिए, वरना हमारा अस्तित्व मिट जाएगा।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का विशेष:-
1. भाषा सरल और सुबोध है।
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-20 कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से ली गई हैं। काव्य पंक्तियां निर्मला पुतुल जी द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा का अनूदित रूप है। कवयित्री के अपने बस्ती पर शहरीकरण के प्रभाव पर चिंता जताई है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवयित्री निर्मला पुतुल जी ने यह कहा है कि शहरीकरण के कारण हमारी बस्ती की अवस्था इस कदर हो गई है।
जिस तरीके से शहर के लोग अपने दिनचर्या को सही तरीके से नहीं निभाते हैं। उसी तरीके से हमारी बस्ती के लोग भी नहीं निभा पा रहे हैं। शहरीकरण के कारण हमारे बस्ती के लोगों के जीवन का उल्लास खत्म होता जा रहा है।
उनके मन में जो पहले खुशियां झलकती थी, वह अब समाप्त होती जा रही है। कवयित्री कहती हैं कि लोगों को प्रयास करना चाहिए कि उनके मन में मौजूद जो उत्साह है, उनका अच्छापन का जो भाव है वह खत्म नहीं होना चाहिए।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का विशेष:-
1. भाषा सरल और सुबोध है।
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताज़ा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों का धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-20 कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से ली गई हैं। काव्य पंक्तियां निर्मला पुतुल जी द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा का अनूदित रूप है। कवयित्री ने आदिवासी लोगों के जीवन का वर्णन किया है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की व्याख्या- इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री यह बताना चाहती हैं कि आदिवासी लोगों के जीवन में तीर, धनुष, कुल्हाड़ी इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
फिर कवयित्री कहती हैं कि आदिवासी लोग जंगल, नदी, पर्वत जैसे प्राकृतिक चीजों से जन्म से जुड़े हुए होते हैं।
वह कहती हैं कि मैं नहीं चाहती कि इन प्राकृतिक चीजों से हमारे बस्ती के लोग दूर हो जाए। इसलिए वह चाहती हैं कि बस्ती के लोग शहरीकरण के वातावरण में बिल्कुल भी ना ढले।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का विशेष:-
1. भाषा सरल और सुबोध है।
2. आदिवासी लोगों का वर्णन है।
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-20 कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से ली गई हैं। काव्य पंक्तियां निर्मला पुतुल जी द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा का अनूदित रूप है। कवयित्री ने शहरी वातावरण का वर्णन किया है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवयित्री कहती है कि शहरों में इतनी आबादी बढ़ चुकी है, इतने लोग बढ़ चुके हैं कि वहां पर रहने के लिए घर छोटा होता जा रहा है।
वह कहती हैं यदि नाचने के लिए लोगों को खुला आंगन चाहिए, तो उनको सर्वप्रथम अपने आबादी पर नियंत्रण करना होगा। संथालियों के अपने गीत होते हैं और शहरी लोग फिल्मी गीत से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
वह लोगों को अपने गीतों से परिचित करवाना चाहती हैं, फिल्मी गीतों से नहीं। कवयित्री यह भी कहती हैं कि शहर के लोगों में तनाव ज्यादा है क्योंकि वह खुश रहना भूल गए हैं, वह अपने संस्कृति से ऐसा नहीं चाहते हैं।
वह चाहती हैं उनके समाज के लोग खुलकर हंसे और तनाव से बिल्कुल मुक्त रहें।
कवयित्री इसलिए शहरी वातावरण में नहीं ढलना चाहती है, क्योंकि शहर में रहने के लिए घर छोटे होते जा रहे हैं, बच्चों का खेल का मैदान गायब होता जा रहा है, पशुओं के चरने के लिए हरी घास नहीं मिल रही है और उम्र दराज के लोगों को शांत वातावरण नहीं मिल रहा है।
वह अपने समाज को अपनी संस्कृति को बचाना चाहती है और इसके लिए वह सबको आगे आकर एक सामूहिक प्रयास करने के लिए आवाहन करती है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का विशेष:-
1. भाषा सरल और सुबोध है।
2. हरी-हरी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है
अब भी हमारे पास !
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-20 कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से ली गई हैं। काव्य पंक्तियां निर्मला पुतुल जी द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा का अनूदित रूप है। कवयित्री अपने संस्कृति को बचाएं रखना चाहती है।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता की व्याख्या:- कविता के इस अंतिम छंद में कवयित्री कहती हैं कि आज संपूर्ण विश्व में एक अविश्वास का वातावरण चल रहा है। इस वातावरण में कोई भी किसी भी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करता है। लेकिन हमें लोगों पर विश्वास करना चाहिए।
यदि हम विश्वास नहीं करेंगे, तो हम जिंदगी में कैसे आगे बढ़ेंगे। हम एक की वजह से दस लोगों को गलत नहीं समझ सकते हैं। हमें अच्छे कार्य करने होंगे और उस कार्य को करने के लिए लोगों पर थोड़ा-सा विश्वास रखना ही होगा।
हमें अपने थोड़े से सपनों को बचाना है, ताकि हम जो अपने अच्छे भविष्य की कल्पना कर रहे हैं, उस कल्पना के अनुसार अपने आप को ढाल सके।
अंततः कवयित्री कहती हैं कि आइए हम सब मिलकर अपने संस्कृति को बचाएं। इस संस्कृति को हम ऐसा बनाएं, जिसे देखकर सभी लोग अचंभित हो जाए और हर एक व्यक्ति हमारे संस्कृति जैसे बनने का प्रयास करें।
आइए हम सब अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति जो हमारी धरोहर है, उसे बचाएं।
‘आओ मिलकर बचाएं’ कविता का विशेष:-
1. भाषा सरल और सुबोध है।
2. लेखिका ने उम्मीद, सपने और विश्वास की बात की है।
aao milkar bachaye