Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 Mati Wali Summary

इस पाठ में हम कक्षा 9 कृतिका पाठ 4 ‘माटी वाली’ के पाठ का सारांश (class 9 hindi kritika chapter 4 Mati Wali summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।

Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 Mati Wali Summary

माटी वाली पाठ के लेखक विद्यासागर नौटियाल का जीवन परिचय 

लेखक विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर 1933, टेहरी के मालीदेवल गांव में हुआ। इनके पिताजी का नाम नारायण दत्त और माताजी का नाम रत्ना नौटियाल था। ये शहीद नागेंद्र सकलानी से प्रभावित होकर मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही सामन्तवादी विरोधी प्रजामंडल से जुड़ गए थे। इन्होंने वन, चिपको और टेहरी बाँध से सम्बंधित आंदोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए की। इनकी पहली कहानी ‘भैंस का कट्टा’ कल्पना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। 1980 में देव प्रयाग क्षेत्र में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। 1957 में ऑल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन के अध्यक्ष निर्वाचित स्वाधीन भारत की जेलों में लगभग तीन वर्ष तक बन्दी बने रहे। इन्हें देव, पहल और वीर सिंह देव पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।


इनकी प्रमुख कृतियाँ–

उपन्यास – उलझे रिश्ते, भीम अकेला, सूरज सबका है, उत्तर बयाँ है, झुण्ड से बिछुड़ा, यमुना के बागी बेटे।

कहानी-संग्रह – टिहरी की कहानियाँ, सुच्चि डोर।

दस प्रतिनिधि कहानियाँ –  उमर कैद, खच्चर फगणू नहीं होते, फट जा पंचधार, सुच्ची डोर, भैंस का कट्या, माटी खा जनावराँ, घास, सोना, मुलज़िम अज्ञात, सन्निपात।

आत्मकथ्य – मोहन गाता जाएगा।

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माटी वाली पाठ की भूमिका

‘माटी वाली’ कहानी की रचना लेखक विद्यासागर नौटियाल ने की है। लेखक ने इस पाठ में विस्थापन की समस्या को प्रभावी ढंग से उठाया है। गरीब और श्रमिक वर्ग इस समस्या से कैसे जूझ रहा है, लेखक ने इसका बहुत संवेदनशील और मार्मिक ढंग से चित्र खींचा है। इस कहानी की मुख्य पात्र ‘माटी वाली’ बूढ़ी औरत के माध्यम से गरीब वर्ग की दशा का वर्णन किया है।

माटी वाली पाठ के पात्रों का परिचय 

माटी वाली– घर-घर लाल मिट्टी पहुँचाने का काम करती है और अपने बीमार पति के लिए दो रोटियां जुटाती है।  

कामिनी – छोटी बच्ची, जो माटी वाली को घर मिट्टी देने के लिए बुलाती है।

मालकिन- अपने पूर्वजों से मिली विरासत का सम्मान करती, माटी वाली को चाय पिलाती है।

अन्य पात्र- टेहरी शहर के लोग, पुनर्वास साहब।

माटी वाली पाठ का सार 

माटी वाली का टिहरी शहर में प्रवेश 

एक बूढ़ी औरत ने शहर के सेमल के तप्पड़ मोहल्ले के आखिरी घर में पहुँचकर दोनों हाथों से सिर पर रखा अपना मिट्टी से भरा कंटर(कनस्तर) जमीन पर रखती है। सभी लोग उस बूढ़ी औरत को माटी वाली कहकर पुकारते हैं। फिर माटी वाली मोहल्ले में आकर जोर-जोर से आवाज़ लगती है। उसे सुनकर सभी लोग बाहर आ जाती हैं। टिहरी शहर का हर आदमी, मकान मालिक, किराएदार, बूढ़े बच्चे सभी माटी वाली को जानते हैं। उस इलाके में लाल मिट्टी देने वाली वह अकेली ही है। उसके जैसा मिट्टी देने वाला कोई दूसरा नहीं है। उसके बगैर तो लगता है कि टिहरी शहर में चूल्हा जलना ही बंद हो जाएगा। 

लोगों के जीवन में माटी वाली की अहम भूमिका

टेहरी शहर के लोगों के जीवन में माटी वाली की बहुत अहम भूमिका है। अगर माटी वाली लाल मिट्टी लाकर उनके घर-घर तक न पहुंचाए तो  शहर में भोजन के लिए भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी क्योंकि पूरे शहर में चूल्हे-चौके की लिपाई से लेकर मकानों की लिपाई-पुताई के लिए लाल मिट्टी वही देती है। मकान मालिकों के साथ-साथ नए किराएदार भी एक बार अपने आँगन में माटी वाली को देख उसके ग्राहक बन जाते हैं क्योंकि वह माटी वाली हरिजन बुढ़िया घर -घर जाकर मिट्टी देने का काम करती है।

माटी वाली को लोग अच्छे से पहचानते हैं 

शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को हीं नहीं, बल्कि उसके कंटर (कनस्तर) को भी पहचानते हैं। उसका कनस्तर बिना ढक्कन का होता है और उसके सिर पर रखे एक डिल्ले( सिर पर बोझे के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी) पर टिका रहता है। बूढ़ी औरत ने मिट्टी का कंटर(कनस्तर) ज़मीन पर रखा ही था कि सामने वाले घर की एक छोटी लड़की कामिनी दौड़कर आई और बोली कि माँ ने बुलाया है। मालकिन के कहने पर माटी वाली ने माटी घर के कोने में उडेल दी।

माटी वाली की विवशता 

माटी वाली की विवशता का भी हमें तब पता चलता है जब  मालकिन ने उससे कहा कि तुम बड़ी भाग्यवान हो, चाय के टाइम पर आई हो। मकान मालकिन ने उसे दो रोटी लाकर दी और चाय लेने रसोई में चली गई। जब तक मालकिन चाय लेकर आई तब तक माटी वाली ने एक रोटी डिल्ले में अपने बूढ़े पति के लिए छुपाकर रख ली और झूठ-मूठ का मुँह चलाकर खाना खाने का दिखावा करने लगी। फिर एक रोटी चाय के साथ खा ली। 

मालकिन के द्वारा पूर्वजों से विरासत में मिली चीजों का सम्मान करना

माटी वाली पीतल का गिलास देखकर मालकिन से कहती हक़ी कि आपने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखे हैं इस पर मालकिन कहती है कि ये बर्तन पुरखों की गाढ़ी कमाई से खरीदे गए हैं। इसलिए इन्हें हराम के भाव बेच देने को मेरा मन नहीं करता। आज इन चीजों की कीमत नहीं रह गई। बाजार में पीतल के दाम पूछो तो दिमाग चकराने लगता है। व्यापारी घरों से हराम के भाव ये बर्तन ले जाते हैं। अपनी चीजों का मोह बहुत बुरा होता है। 

एक गरीब औरत माटी वाली की चिंता 

माटी वाली मालकिन के घर से चाय पीकर सामने वाले घर में चली जाती है। उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी ले आने के आदेश के साथ उसे दो रोटियाँ मिल गई। उन रोटियों को माटी वाली ने अपने पति के लिए कपड़े के दूसरे छोर पर बाँध लिया। वह सोचती है कि इन रोटियों को देखकर उसके पति का चेहरा खिल उठेगा। 

माटी वाली का अपने पति के प्रति स्नेह 

माटी वाली को शहर से अपने  घर तक जाने में एक घंटा लग जाता  है। माटाखान से मिट्टी लाने में उसका पूरा दिन लग जाता है। माटी वाली यह सोचते हुए घर जाती है कि आज वह अपने पति को रूखी रोटी नहीं देगी। पहले वह प्याज को कूटकर तल देगी, फिर रोटी खिलाएगी। सब्ज़ी के साथ दो रोटियाँ अपने पति को परोस देगी। वह सोचती है कि वह एक ही रोटी खा पाएगा। हद से हद डेढ़ बची रोटी से वह अपना काम चला लेगी।

माटी वाली के बूढ़े पति का देहांत 

एक दिन जब माटी वाली रोटियों का हिसाब लगाती हुई अपने घर पहुँचती है। तो वह देखती है कि आज उसके के पैरों की आहट सुनकर उसका पति चौका नहीं था। उसने अपनी नजरें उसकी ओर नहीं घुमाई थी। माटी वाली घबरा जाती है, उसने छूकर देखा तो उसका पति मर चुका था। वह अपनी माटी छोड़कर जा चुका था। माटी वाली का पति अब इस दुनिया में नहीं रहा था।

गरीब लोगों के लिए प्रस्थान एक समस्या

टेहरी शहर के टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया और जिस वजह से शहर में पानी भर गया। लोगों को सरकार की तरफ से उन्हें रहने के लिए जमीन दूसरी जगह दी गई। लोगों ने दूसरी जगह जाना शुरू कर दिया। लेकिन माटी वाली के पास अपना कोई घर नहीं था।

पुनर्वास के साहब ने बुढ़िया से पूछा कि कहाँ रहती हो? “तहसील से अपने घर का प्रमाण पत्र ले आना।” माटी वाली ने कहा साहब मेरी ज़िन्दगी तो घरों में मिट्टी देते गुजर गई। बूढ़ी मिट्टी माटखान से लाती थी वो जमीन ही उसकी रोजी रोटी थी। उसका कोई अपना भी नहीं था।

माटी वाली कहती है कि “बाँध बनने के बाद मैं क्या खाऊँगी ?”  साहब कहते है कि “इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते। यह बात तो तुझे खुद ही तय करनी पड़ेगी।” पूरे शहर में पानी भर रहा था। बुढ़िया औरत अपने पति का अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकी क्योंकि शहर के सारे शमशान डूब चुके थे। लोग अपना घर छोड़कर जा रहे थे और माटी वाली अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी गाँव के हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती थी- “गरीब आदमी का शमशान नहीं डूबना चाहिए।”

माटी वाली पाठ का उद्देश्य 

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने हमें यह बताने का प्रयास किया है कि एक गरीब वर्ग ने लोगों के लिए विस्थापन करना एक बड़ी समस्या है। इस कहानी में पूरा टेहरी शहर खाली हो रहा है, सिर्फ एक असहाय औरत अपनी झोपड़ी के पास बैठी है। जिसका न कोई घर है न ही कोई अपना है।

माटी वाली पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ

कंटर- कनस्तर

बगैर- बिना 

प्रतिद्वंदी- विरोधी 

टैम- समय, वक़्त 

मसोसकर- मन के भावों को मन में ही दबा देना

अशक्त- कमजोर, असमर्थ 

कातर- व्याकुल, परेशान 

आपाधापी- व्यर्थ की भाग-दौड़ 

कक्षा 9  की पुस्तक कृतिका  के चौथे अध्याय माटी वाली पाठ का सारांश ‘Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 Mati Wali Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

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