Lakshman Murcha Class 12 Summary in Hindi – लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप कक्षा 12 चैप्टर 8
विषय सूचि
- तुलसीदास जी का जीवन परिचय
- लक्ष्मण मूर्छा कविता का सारांश
- लक्ष्मण मूर्छा कविता
- लक्ष्मण मूर्छा कविता की व्याख्या
- लक्ष्मण मूर्छा कविता के प्रश्न उत्तर
‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप’ सारांश – lakshman murcha aur ram ka vilap class 12 summary
यह पद्यांश ‘रामचरितमानस’ के लंकाकाण्ड से लिया गया है। लक्ष्मण जब शक्ति – बाण लगने से मूर्छित हो जाते हैं, तब श्री राम विलाप करने लगते हैं। सुषेण वैद्य के परामर्श पर हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए जाते हैं। लक्ष्मण को गोद में लिटाकर राम हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
राम विलाप करने लगते हैं कि तुम तो कभी मुझे दुःखी देख नहीं पाते थे। अब मुझे इतना प्रेम कौन करेगा। मैं जब अयोध्या जाऊंगा तब माँ से क्या कहूँगा। मुझे तुम्हें अपने साथ लाना ही नहीं चाहिए था।
हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आते हैं, तो उसे पीने के बाद लक्ष्मण जी की मूर्छा ठीक हो जाती है। यह सब जानकार रावण कुंभकरण को जगाता है और उसे सारी बात बताता है। सब सुनकर कुंभकरण रावण से कहता है कि उसने श्री राम और सीता माता से बैर लेकर बहुत गलत किया है।
लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप – lakshman murcha aur ram ka vilap
दोहा –
तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग।
अस कहि आयसु पाह पद, बदि चलेउ हनुमत।
भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार।।
उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसार।।
अप्ध राति गङ्ग कपि नहिं आयउ। राम उठाड़ अनुज उर लायउ ।।
सकडु न दुखित देखि मोहि काऊ। बांधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जों जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।।
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआर्वे मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाड़ गवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बुसेष छति नहीं।।
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।।
निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।
उतरु काह दैहऊँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
बहु बिधि सोचत सोचि बुमोचन। स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपालु देखाई।।
सोरठा
प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महं बीर रस।।
हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।।
तुरत बँद तब कीन्हि उ पाई। उठि बैठे लछिमन हरषाड़।।
हृदयाँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बँद तहाँ पहुँचवा। जेहि बिधि तबहेिं ताहि लह आवा।।
यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा ।।
जागा निसिचर देखिअ कैस। मानहुँ कालु देह धरि बैंस ।।
कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई।।
कथा कही सब तेहिं अभिमानी। कही प्रकार सीता हरि आनी।।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे महा।।
दुर्मुख सुररुपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।
दोहा
सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।।
जगदबा हरि अनि अब, सठ चाहत कल्यान।।
Lakshman Murcha Class 12 Summary in Hindi – लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप कविता की व्याख्या
तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग।
अस कहि आयसु पाह पद, बदि चलेउ हनुमत।
भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें कवि ने लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर रामजी का अपने भाई के प्रति चिंता का वर्णन किया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में तुलसीदास ने लक्ष्मण के मूर्छित होने एवं हनुमान के संजीवनी बूटी लाने की यात्रा का वर्णन किया है।
हे प्रभु, हे नाथ मैं आपका प्रताप अपने हृदय में रखकर वहाँ समय से पहुँच जाऊंगा। ऐसा कहकर और प्रभु श्री राम के चरण स्पर्श कर हनुमान उनकी आज्ञा लेकर वहाँ से चल देते हैं। भरत के बाहुबल, उनके शील गुण एवं श्री राम के पदों के प्रति उनके प्रेम को देखकर हनुमान मन ही मन उनकी अत्यंत सराहना करते हैं और अपने गंतव्य की ओर निकाल पड़ते हैं।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:-
1.पुनि-पुनि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. प्रभु पद प्रीति, मन महुँ, पाह पद, बाहु बल में अनुप्रास अलंकार है।
3. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसार।।
अप्ध राति गयी कपि नहिं आयउ। राम उठाड़ अनुज उर लायउ ।।
सकडु न दुखित देखि मोहि काऊ। बांधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जों जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें कवि ने श्रीराम जी का अपने भाई लक्ष्मण के प्रति व्याकुलता का वर्णन किया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में तुलसीदास जी ने प्रतीक्षा में व्याकुल श्री राम जी के शब्दों का वर्णन किया है।
श्री राम अपने प्यारे भाई लक्ष्मण को मूर्छित अवस्था में देखकर उसका मुख निहार रहे हैं और उनके मुख से जो शब्द निकाल रहे हैं, वो बिल्कुल किसी साधारण मनुष्य की ही भांति हैं।
वो कहते हैं कि आधी रात बीत गयी है, पर हनुमान अब तक नहीं आए। वो अपने प्रिय छोटे भाई को उठाकर अपने हृदय से लगा लेते हैं और उससे कहते हैं, तुम तो मुझे कभी दुःखी नहीं देख पाते थे। तुम्हारा स्वभाव हमेशा से ही कोमल रहा है। मेरे लिए तुमने अपने माता-पिता तक को छोड़ दिया। मेरे लिए सर्दी-गर्मी, धूप, बरसात सब कुछ सहा तुमने। फिर अब तुम्हारा वह प्रेम कहाँ गया।
मेरे व्याकुल शब्दों का भी तुम पर कोई असर क्यों नहीं होता, तुम उठते क्यों नहीं हो। यदि मुझे पता होता कि पिता का वचन निभाने के लिए मुझे तुमसे बिछड़ना पड़ेगा, तो मैं कभी वो वचन नहीं निभाता।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:-
1. बोले बचन, दुखित देखि, बन बंधु बिछोहू, बच बिकलाई में अनुप्रास अलंकार है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआर्वे मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाड़ गवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बुसेष छति नहीं।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें कवि ने श्री राम जी की भावुकता को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में कवि श्री तुलसीदास जी ने श्री राम के भावुकता में कहे शब्दों का वर्णन किया है।
श्री राम कहते हैं कि पुत्र, स्त्री, धन, परिवार और घर ये सब कुछ तो संसार में आते-जाते रहते हैं, परंतु सगे भाई का प्रेम बार-बार नहीं मिलता। ऐसा सोचकर जाग जाओ तात। वे आगे कहते हैं कि जिस प्रकार पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प और सूंड़ बिना हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मेरा जीवन भी तुम्हारे जैसे प्रिय भाई के बिना अधूरा हो जाएगा।
वे कहते हैं कि अगर पत्नी के लिए मैं तुम जैसे भाई को खो दूंगा, तो किस मुँह से मैं अपने घर वापस जाऊंगा। पत्नी की क्षति कोई विशेष क्षति नहीं है, परंतु भाई को मैं खो नहीं सकता। भले ही इसके लिए मेरा अपयश हो जाए।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:-
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. जाहिं जग, बारह बारा, बंधु बिनु, जिय जागहु में अनुप्रास अलंकार है।
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।।
निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।
उतरु काह दैहऊँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
बहु बिधि सोचत सोचि बुमोचन। स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपालु देखाई।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देख कर श्री राम जी की आँखों से अश्रु बहने लगते हैं। इसी का वर्णन कवि ने किया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम के भावुकता में कहे गए शब्दों का वर्णन किया है।
इस पद्यांश में श्री राम अपने मूर्छित अनुज से कहते हैं कि पुत्र अब तो जाग जाओ। अब तो मेरा कठोर हृदय तुम्हारा शोक और जगत का अपयश दोनों सहन करेगा। हे तात तुम अपनी माता के एकमात्र पुत्र हो उनके प्राणों के आधार हो। उन्होंने सब प्रकार से परम हित और सुखद जान कर ही तुम्हें मेरे हाथों में सौंपा था। अब मैं जब उनके पास जाऊंगा तो क्या उत्तर दूंगा। मेरे प्रिय भाई तुम उठकर मुझे ये सब समझाते क्यों नहीं।
अपने मूर्च्छित भाई को देख कर भगवान श्री राम कई तरह की बातें सोच रहे हैं और सोच-सोच कर उनके कमल नैनों से आँसू बह रहे हैं। ये सब देख कर भगवान शिव माता पार्वती से कह रहे हैं कि राम एक हैं, अखंड हैं और वो इस प्रकार एक साधारण मनुष्य की भांति व्यवहार इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि राम एक साधारण मनुष्य की शोक संतप्त व्यथित मन की वेदना दर्शा रहे हैं।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:
1. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. तात तासु तुम्ह, अब अपलोकु सोकु सुत, में अनुप्रास अलंकार है।
सोरठ
प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महं बीर रस।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें कवि ने श्री राम जी के विलाप का वर्णन किया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में कवि श्री तुलसीदास जी ने हनुमान के आगमन का वर्णन किया है। मूर्च्छित लक्ष्मण को गोद में लिटाकर श्री राम विलाप कर रहे हैं। उनके विलाप को सुनकर वहाँ उपस्थित वानरों को बहुत व्याकुलता हो रही है। तभी वहाँ हनुमान आ जाते हैं और ऐसा लगता है, जैसे करुण रस के प्रसंग में वीर रस का प्रसंग आ गया हो।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:
1. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
2.प्रभु प्रलाप में अनुप्रास अलंकार है।
हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।।
तुरत बँद तब कीन्हि उ पाई। उठि बैठे लछिमन हरषाड़।।
हृदयाँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बँद तहाँ पहुँचवा। जेहि बिधि तबहेिं ताहि लह आवा।।
यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा ।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इस प्रसंग में श्री हनुमान संजीवनी बूटी लेकर लौट आए हैं और वहाँ उपस्थित सभी लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गयी है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस प्रसंग में कवि श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी जब लौटे तो परम ज्ञानी श्री राम कृतज्ञ हो गए और उन्होंने प्रसन्न होकर हनुमान को गले से लगा लिया।
वैद्य सुषेण ने हनुमान से संजीवनी बूटी ली और तुरंत लक्ष्मण को औषधि बनाकर पिलाई। इससे लक्ष्मण तुरंत उठ कर बैठ गए। भगवान राम ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। ये दृश्य देख कर वहाँ उपस्थित सभी भालू और वानर हर्षित हो उठे।
हनुमान जी ने सुषेण वैद्य को वहाँ वैसे ही वापस पहुंचा दिया जहां से जैसे उन्हें वो लेकर आए थे। वैद्य सुषेण ने लंका पहुँच कर रावण को सारा वृत्तान्त कह सुनाया और यह सब सुन कर रावण अत्यंत विषाद से भर गया और अपना सिर धुनने लगा। फिर वह व्याकुल होकर अपने भाई कुंभकरण के पास गया। कुंभकरण सो रहा था, उसे विभिन्न प्रकार के प्रयास करके जगाया गया।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:
1. पुनि पुनि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
3. तबहेिं ताहि, भेटेउ भ्राता में अनुप्रास अलंकार है।
जागा निसिचर देखिअ कैस। मानहुँ कालु देह धरि बैंस ।।
कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई।।
कथा कही सब तेहिं अभिमानी। कही प्रकार सीता हरि आनी।।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे महा।।
दुर्मुख सुररुपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इस प्रसंग में रावण ने अपने भाई कुंभकरण को सीता हरण की कथा सुनाई है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इस पद्यांश में राक्षस कुंभकरण को जगा दिया गया है।
वो दिखने में ऐसा लगता है, जैसे स्वयं काल मनुष्य का देह धारण करके बैठा है। कुंभकरण अपने भाई रावण से पूछता है कि तुम्हें ऐसा भी क्या कष्ट है, जो इतना मुँह सूखाकर बैठे हो। इस पर रावण ने कुंभकरण को सीता हरण की सारी कथा कह सुनाई। उसने बताया कि किस प्रकार वानरों ने उनके बड़े-बड़े राक्षसों को मार डाला है। दुर्मुख, नरान्तक, देवनतक, अकंपन, महोदर जैसे बड़े-बड़े रणवीरों का भी संहार कर दिया है।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:
1. ‘महा महा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
दोहा
सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।।
जगदबा हरि अनि अब, सठ चाहत कल्यान।।
Lakshman Murcha Class 12 प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ पाठ-8 ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। यह प्रसंग रामचरितमानस के ‘लंकाकाण्ड’ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास जी है। इसमें कुंभकरण की व्याकुलता का वर्णन किया गया है।
Lakshman Murcha Class 12 भावार्थ: इसमें तुलसीदास जी ने उस समय का वर्णन किया है रावण ने जब सीता हरण और राक्षसों के विनाश की कथा कुंभकरण को सुनाई, तो वह भावुक हो उठा और रावण से कहता है कि अरे मूर्ख तुम जगत जननी माता सीता को हर लाये हो और अब तुम्हें कल्याण चाहिए। इस प्रकार इस पद्यांश से कुंभकरण की श्रेष्ठता का पता चलता है क्योंकि उन्होंने सीता माता के हरण को मूर्खता कहा है।
Lakshman Murcha Class 12 विशेष:
1. दोहा छंद है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
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