Din Jaldi Jaldi Dhalta Hai Summary – दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

Table of content

  1. हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय
  2. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! कविता का सारांश 
  3. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! कविता 
  4. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! कविता की व्याख्या
  5. आत्मपरिचय कविता
  6. Class 12 Hindi Aroh Chapters Summary

Harivansh Rai Bachchan Ka Jeevan Parichay – हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय 

हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 ई को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव एवं माता का नाम सरस्वती देवी था। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कायस्थ विद्यालय से प्राप्त की, जहां इन्होंने पहले उर्दू और फिर हिन्दी में अपनी शिक्षा ग्रहण की। आगे चलकर इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया और अंग्रेजी में एम ए किया।

हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन काल में बहुत सी कविताएं लिखी जिनमें से मधुशाला निशा निमंत्रण मधुबाला मधुकलश इत्यादि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उनकी दो चट्टानें को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सन 1968 में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार एवं एफरो एशियन सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।


इसके अलावा उन्हें पद्मभूषण एवं सरस्वती सम्मान’ भी प्रदान किया गया था। इन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में बतौर हिन्दी विशेषज्ञ कार्य भी किया।  हरिवंश राय बच्चन पर अनेक पुस्तकें लिखी गयी हैं। सन 2003 में मुंबई में इनकी मृत्यु हो गयी।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे–
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?–
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! कविता की व्याख्या 

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! कविता की व्याख्या – Din Jaldi Jaldi Dhalta Hai Summary

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! से ली गयी हैं। ये पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित गीत निशानिमंत्रण से उद्धृत हैं। कवि ने मनुष्य के जीवन की यात्रा का वर्णन किया है।

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि जीवन यात्रा को पथ कह कर संबोधित कर रहे हैं। जिस प्रकार सूर्योदय के बाद सूर्यास्त निश्चित है उसी प्रकार जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है, हर क्षण जीवन ढलता जा रहा है। इस जीवन यात्रा में यात्री दिन ढलने के पहले अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहता है। अर्थात सारी सुख सुविधाएं और जिम्मेदारियाँ पूरी कर लेना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे एक पंछी दिन ढलने से पहले अपने घोंसले तक लौट आना चाहता है। 

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ विशेष-

1. जल्दी-जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे–
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! से ली गयी हैं। ये पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित गीत निशानिमंत्रण से उद्धृत हैं। कवि ने पक्षियों और उनके बच्चों का वर्णन किया है।

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि जब पक्षी दाना चुगने को जाते हैं, तब वह अपने बच्चों को घोंसले में ही छोड़ जाते हैं, तब बच्चे उनकी प्रतीक्षा करते हैं कि वो दिन ढलने से पहले दाना लेकर वापस आ जाएंगे।

इस प्रतीक्षा की कल्पना मात्र से पक्षियों के पंखों में कितनी चंचलता भर जाती है। पक्षियों को अपने बच्चों की चिंता सताती है कि वो घोंसले से झांक-झांक कर उनका इंतज़ार कर रहे होंगे। इसी प्रकार संसार भी अपनी जिम्मेदारियाँ जीवन ढलने के पहले पूरी कर लेना चाहता है। 

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ विशेष-

1. जल्दी-जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।

3. इस कविता में तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?–
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से ली गयी हैं। ये पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित गीत निशानिमंत्रण से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने अपने मन की पीड़ा को व्यक्त किया है।

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि ने अपने हृदय में बसी पीड़ा को व्यक्त किया है। कवि कहता है कि संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो कि उसका इंतज़ार कर रहा हो, उससे मिलने को तड़प रहा हो। ऐसा कोई नहीं है जिसके लिए वो इन पक्षियों की तरह मेहनत करे। यह सोच सोच कर कवि का मन विचलित हो उठता है और उसके कदम ढीले पड़ जाते हैं।

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ विशेष-

1. जल्दी-जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2.’मुझसे मिलने’ में अनुप्रास अलंकार है।

3. इन पंक्तियों में प्रश्न अलंकार है।

4. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।

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