Class 9 Hindi Kshitij Chapter 15 Summary
Megh Aaaye by Sarveshwar Dayal Saxena- मेघ आये
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जीवन परिचय- Sarveshwar Dayal Saxena Ka Jivan Parichay : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना मूलतः कवि एवं साहित्यकार थे। उनका जन्म 15 सितंबर, 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद में वाराणसी विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए की पढ़ाई पूरी की। वे अपने जीवनकाल में कवि, लेखक, पत्रकार एवं नाटककार भी रहे। उनके अनुसार जिस देश के पास समृद्ध बाल-साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। अपनी इस अग्रगामी सोच के साथ ही उन्होंने एक बाल-पत्रिका का सम्पादन भी किया। ‘दिनमान’ का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने समकालीन पत्रकारिता के सामने उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अतुलनीय योगदान दिया।
उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ (काव्य संग्रह), ‘पागल कुत्तों का मसीहा’ (लघु उपन्यास), ‘बकरी’ (नाटक), ‘बतूता का जूता’ (बाल साहित्य) आदि शामिल है। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनकी रचनाओं में गाँव तथा शहर दोनों जगहों के जीवन का वर्णन मिलता है और उनकी भाषा हिंदी होने के कारण आम लोगों के लिए काफी सरल भी हैं।
मेघ आए कविता का भावार्थ- Megh Aaye Class 9 Meaning in Hindi : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी इस कविता में ग्रामीण संस्कृति एवं गांव की प्राकृतिक सुंदरता का बड़ा ही मनमोहक वर्णन किया है। कवि ने यहाँ मेघों के आने की तुलना सज-धजकर आए मेहमान से की है। जिस तरह, गांव में दामाद के आने पर लोगों के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है, ठीक उसी तरह, भीषण गर्मी के बाद वर्षा के मेघ गांव में आने पर लोग बेहद उत्साहित और खुश हो जाते हैं। इस तरह कवि ने अपनी कविता में, आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है।
जब मेघ आते हैं, तो हवा चलने के कारण धूल उड़ने लगती है, नदी के जल में उथल-पुथल होने लगती है। आसमान में बिजली कड़कती है। सारे वृक्ष झुक जाते हैं। कवि ने इन सब घटनाओं की तुलना दामाद के आने पर घर तथा गांव में होने वाली तैयारियों के साथ की है। जैसे – जीजा की सालियाँ उनके पीछे-पीछे चलती हैं और औरतें उन्हें दरवाजे के पीछे से देखती हैं और बड़े-बुजुर्ग उनका आदर- सत्कार करते हैं।
मेघ आए- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँ वर के।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
Megh Aaye Line by Line Explanation
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
मेघ आए भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा-ऋतु के आने पर गांव में दिखाई देने वाले उत्साह का चित्रण किया है। कवि ने यहाँ बादल का मानवीकरण करके उसे एक दामाद (शहर से आये अतिथि) के रूप में दिखाया है। जिस प्रकार, कोई दामाद बड़ा ही सज-धज कर एवं बन-ठन कर अपने ससुराल जाता है, ठीक उसी प्रकार, मेघ भी बड़े बन-ठन कर और सुन्दर वेशभूषा धारण करके आये हैं। जैसे, किसी मेहमान (दामाद) के आने का संदेश, गांव के बच्चे एवं उनकी सालियाँ आगे-आगे दौड़कर पूरे गांव में फैला देते हैं, ठीक उसी तरह, हवा उनके आगे-आगे नाचती हुई पूरे गांव को यह सूचना देने लगी है कि गाँव में मेघ यानि बादल रूपी मेहमान आये हैं। यह सूचना पाकर गांव के सभी लोग अपने खिड़की-दरवाजे खोलकर उसे देखने एवं उसे निहारने के लिए घरों से बड़ी बेताबी से झांक रहे हैं।
इसका अर्थ यह है कि हर वर्ष हम वर्षा ऋतु का बहुत ही बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। इसके आने पर सारा आकाश बादलों से ढक जाता है और सौंधी-सौंधी हवाएं चलने लगती हैं और सभी लोग घर से निकल कर वर्षा ऋतु का आनंद लेने लगते हैं।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
मेघ आए कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-15 कविता ‘मेघ आए’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। गाँव के लोगों द्वारा मेघ रूपी मेहमान का किस प्रकार स्वागत किया। इसका उल्लेख पंक्ति में किया गया है।
मेघ आए भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु के आने पर प्रकृति में आने वाले बदलावों का वर्णन किया है और उसका बहुत ही सुंदर ढंग से मानवीकरण किया है। कवि कहते हैं कि आसमान में बादल छाने के साथ आंधी आने पर धूल ऐसे उड़ने लगती है, मानो गांव की औरतें घाघरा उठाए दौड़ रही हों। साथ ही, हवा के चलने के कारण पेड़ ऐसे झुके हुए प्रतीत होते हैं, मानो वे अपनी गर्दन उचकाकर मेहमान को देखने की कोशिश कर रहे हैं। वहीँ दूसरी तरफ, नदी रूपी औरतें ठिठककर, अपने घूँघट सरकाए हुए तिरछी नज़रों से मेहमान को देख रही हैं।
इसका अर्थ यह है कि जब वर्षा होने वाली होती है, तो पहले थोड़ी तेज़ हवा या आंधी चलने लगती है। जिसके कारण रास्ते में पड़ी धूल उड़ने लगती है एवं हवा के वेग से वृक्ष झुक जाते हैं। इस अवस्था में नदी का पानी मानो ठहर-सा जाता है, जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
मेघ आए कविता का प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज ‘ पाठ-15 कविता ‘मेघ आए’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। गाँव के लोगों द्वारा मेघ रूपी मेहमान का पूरे रीति- रिवाजों के साथ स्वागत किया गया है।
मेघ आए भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन एवं घर में दामाद के आगमन का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। जब कोई दामाद बहुत दिनों के बाद घर आते हैं, तो घर के बड़े-बुजुर्ग उन्हें झुककर सम्मानपूर्वक प्रणाम करते हैं। इस दौरान उनकी जीवन संगिनी हठपूर्वक गुस्सा होकर दरवाजे के पीछे छुपकर कहती हैं – “आपने इतने दिनों से मेरे बारे में कोई सुध (खोज-खबर) क्यों नहीं ली? क्या इतने दिनों के बाद आपको मेरी याद आई?” साथ ही, जब हमारे घर में कोई अतिथि आता है, तो हम उसके पांव धुलाते हैं, इसीलिए कवि ने यहाँ पानी “परात भर के” का उपयोग किया है।
इसका अर्थ यह है कि वर्षों बाद घर आने पर बड़े-बुजुर्ग जिस तरह अपने दामाद का स्वागत करते हैं, ठीक उसी प्रकार पीपल का वृक्ष भी झुककर वर्षा ऋतु का स्वागत करता है। जल की बूंदों के लिए व्याकुल लताएं गुस्से से दरवाज़े के पीछे छिपकर मेघ से शिकायत कर रही हैं कि वो कब से प्यासी मेघ का इंतज़ार कर रही हैं और उन्हें अब आने का समय मिला है। बादलों के आने की ख़ुशी में तालाब उमड़ आया है और उसके पास जितना भी पानी है, वो उससे थके हुए मेघ के चरणों को धोना चाहता है।
मेघ आए कविता का विशेष:-
1. इन पंक्तियों में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, जैसे- बूढ़े पीपल, लताएं, ताल।
2. कवि ने बूढ़े बुजुर्ग की तुलना पीपल से की है। लता की तुलना पत्नी से और तालाब की तुलना परिजनों से की है।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
मेघ आए कविता का प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज ‘ पाठ-15 कविता ‘मेघ आए’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। प्रेमी और प्रेमिका के मिलने की जो ख़ुशी होती है उनकी आँखों से बहने वाले आंसुओं से व्यक्त किया है।
मेघ आए भावार्थ :- उक्त पंक्तियों का अर्थ है कि अभी तक प्रेमिका को अपने प्रियतम के आने की ख़बर भ्रम लग रही थी, लेकिन जब वो आकर घर की छत पर चले जाते हैं, तो मानो प्रेमिका के अंदर बिजली-सी दौड़ उठती है। उन्हें देखकर प्रेमिका का भ्रम टूट जाता है और वह मन ही मन प्रेमी से क्षमा-याचना करने लगती है। फिर आपसी मिलन की अपार ख़ुशी के चलते दोनों प्रेमियों की आँखों से प्रेम के अश्रु बहने लगते हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि पूरा आसमान बादलों से ढक चुका है और बिजली चमकने लगी है। इससे हमारे मन की ये आशंका दूर हो गयी है कि वर्षा नहीं होगी। इस विचार के साथ ही बादलों से बरसात होने लगती है और इस तरह जल बरसाते हुए बादल आकाश में बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं।
मेघ आए कविता का विशेष:-
1. इस पंक्ति में मानवीकरण और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
2. प्रेमी-प्रेमिका के मिलने की खुशी का वर्णन किया गया है।
3. बहुत इंतजार के बाद एक बार फिर से मेघ के आने की ख़ुशी झलकती है।
कठिन शब्द :-
अश्रु – आँसू
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Thank you
धन्यवाद पियूष जी
Thanks for explaining